बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों हेतु सब्ज़ियों का जलवायु अनुकूलित बीज उत्पादन: अपना खेत, अपना बीज

Updated on March 3, 2022

पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में सब्ज़ियों की खेती करने वाले किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या समय से गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता है। बाजार में उपलब्ध हाइब्रिड बीजों को किसान अगले वर्ष के लिए संरक्षित नहीं कर सकता है और परम्परागत बीज लुप्तप्राय होते जा रहे हैं। इस समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सीड डिवीजन से सहायतित कोर सपोर्ट परियोजना अन्तर्गत गोरखपुर एन्वायरन्मेण्टल एक्शन ग्रुप, गोरखपुर के किसानों ने परम्परागत बीजों को तैयार कर संरक्षित करते हुए अपना खेत, अपना बीज की दिशा में एक पहल प्रारम्भ किया है।


गोरखपुर एन्वायरन्मेण्टल एक्षन ग्रुप द्वारा संचालित विज्ञान एवं प्रौद्यागिकी विभाग, भारत सरकार ;सीड डिवीजनद्ध के कोर सपोर्ट परियोजना के अन्तर्गत विकास खण्ड- जंगल कौड़िया, जनपद- गोरखपुर, उत्तर प्रदेष एवं नौतन प्रखण्ड, जिला- पष्चिमी चम्पारण, बिहार में परियोजना आच्छादित कुछ क्षेत्रों में प्रत्येक वर्ष बाढ़ एवं जल-जमाव की समस्या बनी रहती है। ऐसे क्षेत्रों में किसानों की खेती/फसल का नुकसान होता है। यहां यह भी उल्लेखनीय होगा कि इन क्षेत्रों में किसान सब्ज़ियों की खेती अधिक मात्रा में करते हैं और प्रायः सब्ज़ियों की खेती बाढ़ एवं जल-जमाव के प्रति संवेदनषील होती है। वहीं दूसरी तरफ यह भी एक समस्या है कि सब्ज़ियों के बाढ़ एवं जल-जमाव रोधी बीजों की कमी है।

पहल
ऐसी स्थिति में इन क्षेत्रों के किसानों ने गोरखपुर एन्वायरन्मेण्टल एक्षन ग्रुप एवं विज्ञान एवं प्रौद्यागिकी विभाग के तकनीकी सहयोग से पारम्परिक बीज उत्पादन प्रक्रिया अपनाने में रूचि प्रदर्षित की। पिछले तीन वर्षों से इन क्षेत्रों के किसानों द्वारा जलवायु अनुकूलित बीजों जैसे- चौलाई, करेला, भिण्डी, नेनुआ आदि का उत्पादन किया जा रहा है। इसी क्रम में उत्तर प्रदेष के गोरखपुर जनपद के पचगांवा गांव के किसान उमेष, जिन्दापुर के सुग्रीव एवं बिहार, पष्चिमी चम्पारण के गांव जगदीषपुर देगौना के किसान सुरेष भगत ने ऐसी भिण्डी का बीज तैयार किया, जिसकी खेती जल-जमाव के दौरान 1-2 फुट पानी एक से डेढ़ माह तक लगे रहने वाले खेतों में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है।

बीजों के चयन एवं उत्पादन के परीक्षण की प्रक्रिया:
रिजीलियण्ट सब्ज़ियों के बीजों को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले उनकी प्रकृति को ध्यान में रखते हुए ;बाढ़ एवं जल-जमाव को सह सकने वाली सब्ज़ियांद्ध सब्ज़ियों के बीजों का चयन करके अलग-अलग जलवायुविक परिस्थितियों में और अलग-अलग प्रकार की मिट्टी पर इनकी खेती करते हैं और बेहतर परिणाम प्राप्त होने पर पुनः दूसरे सीजन में इनका परीक्षण किया जाता है। इस प्रकार ट््रायल की प्रक्रिया से गुजरने के बाद बीजों को उनकी विषिष्ट विषेषता के आधार पर वर्गीकृत कर पैकेजिंग की जाती है।

प्रसार एवं विस्तार
अधिक किसानों तक इन बीजों की पहुंच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से परियोजना के अन्दर स्थापित कृषि सेवा केन्द्रांे द्वारा इन बीजों को शोधित करके, 100 एवं 50 ग्राम के पैकेट में पैकिंग कर आस-पास के किसानों को एवं बाजारों में बिक्री हेतु उपलब्ध कराया जाता है। इसके अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर एवं अन्य जनपदों में लगने वाले किसान मेला, प्रदर्शनी एवं संगोष्ठियों आदि में भी इसका प्रदर्शन किया जाता है।

किसानों द्वारा किये गये सफल प्रयास
भिण्डी का बीज उत्पादन: इन दोनों किसानों द्वारा वर्षाकाल में होने वाली भिण्डी का चयन करके पिछले 2 वर्ष से अलग-अलग जलवायुविक परिस्थितियों एवं अलग-अलग प्रकार की भूमि पर डी0एस0टी0 कोर सपोर्ट परियोजना के सहयोग से ट््रायल किया गया और आषातीत परिणाम प्राप्त होने के बाद प्राप्त बीजों को किसानों द्वारा 100 ग्राम के पैकेट में तैयार किया गया। इस वर्ष इस बीज को अधिक मात्रा में पैदा करने के लिए 10 किसानों का चयन किया गया और उन्हें बीज की उपलब्धता सुनिष्चित कराई गयी। इन बीजों से तैयार भिण्डी के पौध की लम्बाई 5-6 फुट होती है और फलों की लम्बाई 6-8 सेमी0 तक होती है। इस फसल को वर्षा ऋतु में लेने के बाद उसे कटिंग कर देने पर रबी के मौसम में भी भिण्डी की खेती आसानी से की जा सकती है।

चौलाइ का बीज उत्पादन: बीज उत्पादन हेतु चौलाई की बुवाई जनवरी के अन्तिम सप्ताह में करते हैं। बुवाई के एक माह के अन्दर ही पहली कटाई कर बिक्री कर दी जाती है। माह फरवरी से अप्रैल के बीच तीन से चार कटाई कर साग के रूप में बेच देते हैं। अप्रैल के अन्तिम सप्ताह में जमीन से पांच इंच उपर से कटाई करते हैं। पुनः उसे उखाड़ कर खेत में लाइन से लाइन 10 इंच एवं पौधे से पौधा 10 इंच की दूरी पर रोपाई कर खेत में हल्की सिंचाई कर देते हैं। इस प्रकार से की गयी रोपाई के 45 दिन बाद बीज बन कर तैयार हो जाता है। कटाई करने के बाद अच्छी तरह सुखा कर पौधों को पीट कर बीज निकाल लिया जाता है। इस बीज की बुवाई तीनों मौसमों में किया जा सकता है। प्राप्त बीजों को 100 एवं 50 ग्राम के पैकेट में पैक कर बिक्री की जाती है।

अर्चना श्रीवास्तव


अर्चना श्रीवास्तव
प्रोग्राम प्रोफेशनल्स
गोरखपुर एन्वायरन्मेण्टल एक्शन ग्रुप
224, पुर्दिलपुर, एम0जी0 कालेज रोड
गोरखपुर - 273 001, उत्तर प्रदेश, भारत

 

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