फसल विकास के महत्वपूर्ण चरणों में सिंचाई के लिए पानी की पर्याप्त एवं समय से उपलब्धता आवश्यक है। इससे फसल की उत्पादकता एवं आय में सुधार सुनिश्चित होगा। यद्यपि इसके लिए एक विश्वसनीय उर्जा आधारित प्रणाली एक महत्वपूर्ण शर्त है, जो जल आपूर्ति की समय पर निकासी और वितरण को सक्षम बनाती है। सौर उर्जा मॉडलों ने इस दिशा में एक रास्ता दिखाया है।
ग्रामीण क्षेत्रों में, खेत की उर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए सार्वजनिक रूप से वितरित बिजली का सहयोग लिया जाता है, जो विभिन्न उपकरणों को चलाने में मदद करती है। अनिश्चितताओं जैसे- बिजली की कटौती, खतरनाक उतार-चढ़ाव के साथ आपूर्ति के परिणामस्वरूप बिजली उपकरण जल जाना और मोटर खराब हो जाना आदि चुनौतियों का सामना किसान को करना पड़ता है। इसके साथ ही मौसम की अनिश्चितता और अप्रत्याशित बाजार भाव किसानों की कठिनाईयों को और बढ़ाती हैं। पर्याप्त भूजल होने के बावजूद, अनिश्चित बिजली आपूर्ति होने के कारण किसान सिंचाई करने में असमर्थ होते हैं।
इन चुनौतियों से निपटने हेतु सस्टेन प्लस, सेल्का और विल्ग्रो फाउण्डेशन के सहयोग से कालिक लाइवलीहुड्स टीम ने नवीनीकरणीय उर्जा पर आधारित मॉडलों की अवधारणा को तैयार कर क्रियान्वित किया और स्थाई कृषि अभ्यासों को प्रोत्साहित किया। मॉडलों के प्रति समुदाय की उत्सुकता और स्थाई भौगोलिक स्थिति से उत्साहित होकर, ट््रस्ट ने वैकल्पिक सौर उर्जा परियोजना मॉडलों को क्रियान्वित किया।
कई तौर-तरीकों को अपनाकर किसानों की मदद करना इस परियोजना का समग्र उद्देश्य था –
* फसल विविधता और उत्पादकता को बढ़ाने हेतु विश्वसनीय सौर मॉडलों को अपनाकर जलापूर्ति तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करना।
* नये उद्यमों जैसे- बेहतर चारा तक पहुंच हेतु सोलर संचालित हाइड््रोपोनिक्स और फसलों के पोषण प्रबन्धन को उन्नत बनाने के लिए पंचगव्य इकाईयों आदि के विकास की खोज करना।
* मुख्य किसान और सहयोगी किसानों के बीच सामुदायिक लाभ साझा प्रणालियों को प्रोत्साहित करना।
* मुख्य किसान को इस मॉडल को स्थापित करने हेतु आंशिक वित्तीय सहयोग देने के साथ ही ऋण प्राप्त करने हेतु बैंकों से जुड़ाव सुनिश्चित करना।
यहां कुछ उदाहरण दिये जा रहे हैं –
1. जल के समुचित उपयोग और आय को बढ़ाने हेतु सामुदायिक सौर सिंचाई मॉडल (5 एचपीद्ध)
यह मॉडल समग्र रूप से सोलर पम्प लगाने, बहुस्तरीय खेती, मृदा और जल संरक्षण अभ्यासांे एवं सरकारी विभागों के साथ अभिसरण को ध्यान में रखकर नियोजित एवं क्रियान्वित की गयी।
समय से सिंचाई सुनिश्चित करने और सिंचित क्षेत्र का विस्तार करने के लिए सोलर पम्पों को लगाना पहल उपाय था। धीरे-धीरे, किसानों की आय बढ़ाने हेतु, एक ही खेत में कई फसलें लेना प्रारम्भ करते किसानों को बहुस्तरीय फसलों की खेती अपनाने हुए किसानों को प्रशिक्षित एवं निर्देशित किया गया। इसी के साथ, सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों की स्थापना तथा उचित प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन तरीकों को अपनाने के माध्यम से मृदा और जल संरक्षण तरीके अपनाने तथा अधिक पानी चाहने वाली फसलों की खेती न करने हेतु भी किसानों को निर्देशित किया गया। अन्त में, सौर उर्जा का उपयोग करने हेतु किसानों को सक्षम बनाने की दृष्टि से प्राथमिकता के आधार पर किसानों को उपयुक्त सरकारी योजनाओं/कार्यकमों का लाभ दिलाने हेतु किसानों को जुड़ाव सम्बन्धित सरकारी विभागों के साथ किया गया।
एक समुदाय-आधारित मॉडल को इस तरह से डिजाइन किया गया था, जिसमें स्थापित किया गया था कि स्थापित प्रत्येक सोलर पम्प से 4 किसानों की 8-10 एकड़ जमीन को सेवाएं मिलती थीं। सोलर पम्प लगाने वाले किसान को मुख्य किसान कहा जाता है और उसे 3 साथी किसानों को पानी उपलब्ध कराना होता है और यह अनिवार्य है। जल सेवा की शर्तें पूरी तरह से नेतृत्वकर्ता और साथी किसानों के बीच आन्तरिक प्रतिबद्धता पर आधारित। साथी किसान दोनों पक्षों की आपसी सहमति से जल सेवा के बदले फसल कटाई के बाद या तो अनाज के रूप में प्रतिदान कर सकते हैं या फिर नगद रूपया दे सकते हैं। इस मॉडल से मुख्य किसान को सोलर पम्प लगाने के लिए लिये गये ऋण को वापस करने में मदद मिलती है।
व्यक्तिगत सोलर पम्प का डिजाईन ग्राम जलभृत मानचित्रण और इंजीनियरों/पेशेवरों द्वारा किये गये तकनीकी साइट सर्वेक्षणों के परिणाम पर आधारित है। अक्टूबर 2020 में पायलट परियोजना के अन्तर्गत 3 हार्सपावर पम्प वाला एक सामुदायिक सौर सिंचाई मॉडल स्थापित किया गया था। पम्प को 21 डिग्री सेल्सियस के न्यूनतम तापमान पर सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक संचालित किया जा सकता है। बूंद प्रणाली और स्प्रिंकलर को संचालित करने के लिए पम्प का दबाव अत्यधिक पर्याप्त है।
यादगीर जिले के यादगीर, गुरमिटकल एवं वाडीगेर ब्लाकों में कुल 125 सामुदायिक सौर सिंचाई मॉडल इकाईयों की स्थापना की गयी है। प्रति इकाई स्थापना लागत कुल रू0 3,60,000.00 लगी, जिसमें से रू0 1,49,000.00 परियोजना अंशदान, रू0 36,000.00 किसान का अंशदान और रू0 1,75,000.00 बैंक से ऋण लिया गया। छः माह में एक बार रू0 24,000.00 की किश्त जमा करते हुए कुल 10 किश्तों में बैंक से लिये गये ऋण की भरपाई 5 वर्ष में की गयी। सूको बैंक और भारतीय स्टेट बैंक को शामिल करते हुए बहु हितभागी दृष्टिकोण के माध्यम से सस्टेन प्लस फाउण्डेशन द्वारा वित्तीय सहयोग प्रदान किया गया था।
बाक्स 2: उत्प्रेरित करने वाली कहानियां यादगीर के बेलागेरा गांव के वेंकटेश रायप्पा पिछले कई दशकों से खेती में संलग्न हैं। इनके पास अपनी 6 एकड़ भूमि है। वह मूंग, मूंगफली, धान और पत्तेदार सब्ज़ियां उगाते हैं। कालिके-टाटा ट््रस्ट द्वारा आयोजित प्रशिक्षण में प्रतिभाग करने के बाद, उन्होंने सोलर पम्प सिंचाई प्रणाली को स्थापित कराया व परियोजना के प्रक्षेत्र कार्यकर्ताआंे के दिशा-निर्देश में खेती की विभिन्न तकनीकें सीखीं। वेंकटेश रायप्पा इस पहल से जुड़ने पहले किसान थे। वे अपने सोलर पम्प को 6-7 घण्टे चलाते हैं, जिसमें अपने 6 एकड़ खेत की सिंचाई करते हैं और दैनिक आधार पर अन्य किसानों के साथ पानी साझा करते हैं। सोलर पम्प स्थापित करने के बाद से उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी हो गयी है। वह कहते हैं, ‘‘फसल की समय से सिंचाई हो जाने के कारण फसल उपज में 30-40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।’’ साथी किसानों की 7 एकड़ खेती की सिंचाई करने के माध्यम से, वे रू0 6,500.00 प्रति एकड़ की दर से आय भी प्राप्त करते हैं, जो उनकी अतिरिक्त आमदनी का स्रोत है। रामलिंगप्पा के पास स्वयं की 8 एकड़ खेती है। उनके पास 5 हार्सपावर मोटर वाला एक बोरवेल है। बोरवेल लगाने से पहले, खरीफ और रबी ऋतु के दौरान, वह मूंगफली और कपास की खेती करते थे। बार-बार बिजली कटौती एवं पावर कम ज्यादा होने के कारण कई बार मोटर जल जाती थी। सोलर पम्प लगाने के बाद से, वे विविध प्रकार की खेती करने लगे हैं और जब आवश्यकता हो, उसकी सिंचाई कर लेते हैं। उन्होंने पत्तेदार सब्ज़ियां, प्याज, मूली, मिर्च, भिण्डी, लौकी और तरबूज की खेती करना प्रारम्भ कर दिया है। अपने घर में उपयोग के लिए खरीफ ऋतु में वे जैविक धान उगाते हैं। सोलर मॉडल लगाने से पहले, उनकी वार्षिक आय रू0 3 लाख थी। इस व्यवस्था के बाद, अब वह लगभग रू0 6 लाख आय अर्जन करने लगे हैं। इसके साथ ही वह अपने आस-पास के किसानों को सुविधा शुल्क के बदले सिंचाई का पानी उपलब्ध कराकर अतिरिक्त कमाई भी कर रहे हैं। अपने सोलर पम्प मॉडल से वह अपने 8 एकड़ के साथ साथी किसानों की 4 एकड़ खेत की सिंचाई करते हैं। यादगीर तालुक के बालीचक्रा गांव के इरप्पा भेम्मन्ना, अपने 6 एकड़ खेत पर पिछले 3 दशकों से खेती कर रहे हैं। सोलर पम्प लगाने के बाद, दिसम्बर 2020 में, उन्होंने औद्यानिक फसलों जैसे- मिर्च, बैगन, टमाटर, तरबूज आदि उगाना प्रारम्भ किया। इरप्पा कहते हैं, ‘‘उर्जा उपयोग का सरल प्रबन्धन, बिना किसी व्यवधान |
सामुदायिक सौर सिंचाई मॉडल इकाई लगाने के दिन से लेकर 5 वर्षों तक की गारण्टी मिलने के कारण 48 घण्टे के अन्दर छोटे-बड़े सभी मरम्मतों तथा खराब होने की स्थिति में किसी भी पार्ट को बदलने की जिम्मेदारी फर्म कदम एग्री प्राइवेट लिमिटेड, बंगलौर की थी। सिंचाई की आवश्यकताओं तथा निवेश की इच्छा रखने के कारण बेहतर तकनीकी विशिष्टताओं वाले मॉडल को प्रमुख किसान के खेत में निवेश किया गया था ;देखें बाक्स 1द्ध। समूह में ऐसे किसानों का चयन किया गया था, जिनकी जमीनें पानी के पम्प के आस-पास थीं अथवा जलग्रहण क्षेत्र के भीतर थीं जिससे पम्प के माध्यम से उन्हें पानी दिया जा सके। सामान्यतः समूह के भीतर एक आपरेटर को नामांकित किया गया था, जो समूह के सदस्यों द्वारा सौर पम्प के उपयोग पर नजर रखता और विभिन्न सदस्यों को दी गयी पानी की मात्रा के आधार पर सेवा शुल्क लगाया गया था। कालिके-टाटा ट््रस्ट द्वारा नियमित रूप से प्रतिदिन तकनीकी एवं अन्य सहायता प्रदान की गयी। सक्षम किसानों द्वारा स्थाई कृषिगत अभ्यासों के माध्यम से विविधीकृत खेती कर अधिकाधिक आय प्राप्त करने के लिए परियोजना टीम द्वारा कृषि विभाग, कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केन्द्रों एवं अन्य प्रमुख संस्थाओं के साथ मिलकर प्रशिक्षण दिया गया।
तकनीकी विशेषज्ञता
क्रमांक सामग्री इकाई मात्रा
क्रमांक | सामग्री | इकाई | मात्रा |
1 | सोलर पैनल | 300 वॉट | 16 |
2 | सोलर पैनल ढांचा | 8 प्लेट | 2 |
3 | सोलर मोटर पम्प | 5 हार्सपावर | 1 |
4 | सोलर वीएफडी ड््राइव | 5 हार्सपावर | 1 |
5 | अर्थिंग इकाई | लागू नहीं | 1 |
6 | लाइटनिंग अरेस्टर | लागू नहीं | 1 |
7 | चेण्जओवर स्विच एसपीडी एमसीबी के साथ इनक्लोज बाक्स | & | 1 |
8 | परिवहन | & | & |
9 | लगाना | & | & |
10 | बीमा | 5 वर्षीय |
निवेशों एवं सेवाओं की समय से आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु सम्बन्धित विभागों के साथ जुड़ाव भी स्थापित किया गया।
यह देखा गया कि सिंचाई किये जाने वाले क्षेत्र में भारी मात्रा में विस्तार हुआ है परिणामतः किसानों की आय में सुधार हुआ है। सौर मॉडल लगवाने वाले प्रमुख किसान के अलावा, अन्य साथी किसान भी सिंचाई की सहायता प्राप्त कर बहु प्रकार की खेती कर लाभान्वित हो रहे हैं (देखें बाक्स 2)।
2. हरा चारा की खेती हेतु सौर उर्जा संचालित हाइड््रोपोनिक इकाई
ग्रामीण समुदायों में, किसानों को अपने पशुधन के लिए यथोचित और पर्याप्त चारा प्राप्त करने हेतु बहुत संघर्ष करना पड़ता है। इसमें बकरियां, भैंसे, गायें, बैल आदि सभी शामिल हैं। क्वारण्टाइन अवधि के दौरान स्थिति और भी गम्भीर थी। विशेषकर सिरोही प्रजाति के जानवरों की भोजन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चारा की कमी का गम्भीर रूप से सामना करना पड़ा था। उनके रख-रखाव पर अतिरिक्त लागत पर उच्च मूल्य वाला चारा बाहर से खरीद कर लाना पड़ा।
इस समस्या के समाधान हेतु यादगीर स्थित वाडीगेरा के गोण्डेनूर एवं जोलडडगी गांवों में एक पायलट परियोजना प्रारम्भ की गयी। इस प्रयोग हेतु 15 वर्षों से अधिक समय से खेती कर रहे श्री पिदप्पा एवं श्री राजशेखर पाटिल को शामिल किया गया।
इस पायलट परियोजना में सोलर पैनल संचालित हाइड््रोपोनिक प्रणाली के साथ पालन और प्रजनन के लिए पांच सिरोही प्रजाति की बकरियां दी गयीं। प्रणालियां मूलतः उर्जा-कुशल हैं। मृदा-रहित खेती तकनीक पर आधारित, इस इकाई में न्यूनतम मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। यह सौर उर्जा से संचालित होती है जो इसे बिना बिजली वाले क्षेत्रों के लिए अत्यधिक उचित बनाता है। उत्पाद की मुख्य विशेषताएं इसका डिजाइन और चारा तैयार करने में लगने वाला समय है। इसके साथ ही एक उद्यम के तौर पर भी, भविष्य में इससे उपार्जित चारा का विक्रय कर हाइड््रोपोनिक किसान अतिरिक्त आय का अर्जन भी कर सकते हैं। इस प्रणाली का उपयोग मशरूम खेती के लिए भी किया जा सकता है।
3. सौर उर्जा संचालित सड़न इकाई: पंचगव्य और जीवाम्रुथ का थोक उत्पादन
पंचगव्य और जीवाम्रुथ तैयार करने के लिए परियोजना के द्वारा एक अन्य दूसरा प्रयोग किया गया मॉडल सौर उर्जा संचालित सड़न इकाई है।
हरित क्रान्ति चरण के बाद से, खेती की उच्च लागत और कीटनाशक अवशेष मुक्त भोजन का उत्पादन किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती रही है। यह विशेष रूप से यादगीर के क्षेत्र में और अधिक महत्वपूर्ण है, जहां 80 प्रतिशत से अधिक किसान छोटी जोत वाले हैं। किसान अपने छोटे-छोटे भूखण्डों पर सब्ज़ियां और कुछ उच्च मूल्य वाले औद्यानिक फसलें जैसे- तरबूज उगाते हैं, जिसमें अधिक लागत की आवश्यकता होती है।
तरल खादों जैसे पंचगव्य और जीवामु्रथ का थोक में उत्पादन करने हेतु सौर उर्जा संचालित सड़न इकाई को स्थापित किया गया। सौर उर्जा से संचालित फेंटाई मशीन को ड््रम में रखा गया। सिटरर मशीन प्रति घण्टे के आधार पर सूर्य से चार्ज होने वाली बैटरी से संचालित होती है। एक दिन में, 6 बार फेंटाई की जाती है। यह प्रक्रिया 10 दिनों तक निरन्तर की जाती है। 10 दिनांे के बाद, सड़ाई गयी सामग्री को मशीन से जुड़े फिल्टर ट्यूबों के माध्यम से छानकर बाहर निकाला जाता है और प्लास्टिक की बोतलों में भर लिया जाता है। पंचगव्य को किसानों को रू0 80.00 प्रति लीटर की दर से बेचा जाता है। इसका उपयोग वे बुवाई, फूल एवं फल आने के समय करते हैं।
निष्कर्ष
भारत में जिस प्रकार के उर्जा की मांग है, उसे देखते हुए सौर उर्जा संचालित प्रणालियां एक विश्वसनीय उर्जा आधारित प्रणाली के तौर पर किसानों की मदद करने हेतु एक अच्छा और उपयुक्त विकल्प होंगी। यद्यपि कुछ प्रारम्भिक निवेश की आवश्यकता होती है, लेकिन ये पर्यावरण-सम्मत हैं और नियोजित विविधीकरण के माध्यम से लम्बे समय में किसानों को अधिक आय उपार्जन में सक्षम बनाती हैं।
अरूण कुमार शिवाराय
अरूण कुमार शिवाराय
कार्यक्रम मैनेजर – आजीविका
कालिके – टाटा ट््रस्ट
श्री लक्ष्मी निवास, प्लाट नं0 14 एवं 15
बालाजी कल्याना मण्डप के पीछे
वनाकेरी लेआउट के निकट, यादगीर – 585201
ई-मेल:ashivaray@tatatrusts.org
Source: Renewable Energy in Agriculture, LEISA India, Vol.24, No.4, Dec 2022