स्वस्थ जीवन के लिए शहरी खेती

Updated on December 3, 2023

तेजी से हो रहे शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, भूमि सीलिंग, बहु-मंजिला इमारतों का निर्माण, चौड़ी सड़कों, कार्यालयों, बाजारों के परिणामस्वरूप बड़े शहरों और कस्बों में बागवानी के लिए जमीन की अनुपलब्धता हो गयी है। शहरों में लगातार बढ़ती जनसंख्या एवं बढ़ते वाहनों के कारण प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ चुका है। एकरसता को तोड़ने एवं थके हुए मन-मस्तिष्क को आराम देने की अत्यन्त आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में शहरी निवासियों के लिए छत पर बागवानी एक किफायती विकल्प है, जिसके बहुत से लाभ हैं।


स्वस्थ औद्यानिक उत्पादों को उत्पादित करने हेतु बागवानी बहुत पुराना अभ्यास है। घर के पिछवाड़े स्वस्थ और रसायन-मुक्त सब्ज़ियांे की बागवानी हमारे दैनिक आहार में सहायता कर सकती हैं। लेकिन, शहरी क्षेत्र में, जहां भूमि एक बड़ी चुनौती है, वहां पर एक सब्ज़ी वाटिका बनाना असंभव है। फिर भी, छत के उपर की जगहों का प्रयोग स्वस्थ सब्ज़ियां उगाने के लिए किया जा सकता है। घर पर जैविक रूप से सब्ज़ियां उगाने का एक बड़ा फायदा यह भी है कि रसोई घर से निकले अपशिष्टों का प्रभावी प्रबन्धन हो जाता है।

जून 2020 मंे लॉकडाउन के दौरान छत पर बागवानी का विचार सामने आया। कृषि में स्नातक होने तथा फसलें उगाने का जुनून होने के कारण मैंने लॉकडाउन के दौरान छत पर बागवानी करना प्रारम्भ किया। मैंने प्रारम्भ में अपने टैरेस पर छोटे स्तर पर सब्ज़ियां उगानी शुरू कीं, जो धीरे-धीरे बढ़ती गयी।

छत पर बागवानी स्थापित करना
छत पर बागवानी स्थापित करने के लिए हमने विभिन्न बिन्दुओं जैसे- स्थान की उपलब्धता, उपयोग में लाने के लिए डिब्बे, उगाने के लिए पौधे, जल की उपलब्धता आदि पर विचार किया। छत पर बागवानी के लिए स्थान की उपलब्धता को परिभाषित करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसके आधार पर ही हम प्रति इकाई लगने वाली जगह का निर्धारण बर्तनों की संख्या की योजना बना सकते हैं। स्थान का चुनाव इस प्रकार किया जाये कि पौधों को पर्याप्त सूर्य की रोशनी एवं जल की उपलब्धता रहे।

आगे, हमें छत पर बागवानी करने के लिए मीडिया की ओर देखना पड़ा था। छत पर बागवानी के लिए बहुत से डब्बे उपलब्ध होते हैं, लेकिन सामान्यतः यह उगायी जाने वाली सब्ज़ियों के प्रकार पर निर्भर करता है। हमने कम घनत्व वाली यूवी स्थिरीकृत पालीथीन थैलों का चयन किया। यह 24 सेमी ग 24 सेमी ग 30 सेमी0 लम्बाई, चौड़ाई व उंचाई वाले घनत्व का व हल्का होता है। 600 गेज़ वाले इस पालीथीन बैग की मोटाई 150 माइक्रान की होती है। यह आकार अधिकांश सब्ज़ियों के लिए उपयुक्त होती है और इसमें 18 किग्रा0 तक मिट्टी व खाद का मिश्रण रख सकते हैं। सामग्री का यह प्रकार 4-5 वर्षों तक चलता है और इस प्रकार यह सस्ता भी पड़ता है।

पौधों को आवश्यक पोषण प्रदान करने के लिए बर्तन में 1ः1ः1 के अनुपात में मृदा, कोकोपिट व कम्पोस्ट का मिश्रण भरा गया। इसके साथ ही मृदा जनित बीमारियों की रोक-थाम के लिए प्रति 100 किग्रा में 1किग्रा0 की दर से ट््राइकोडर्मा को मिलाया गया। इस तैयार मिश्रण से बैग का 2/3 भाग भरा गया।

बुवाई के दौरान एक विस्तृत नियोजन किया गया था ताकि घर के उपयोग के लिए नियमित रूप से विविध प्रकार की सब्ज़ियां मिलती रहें। सब्ज़ियों का चयन मौसम के अनुसार किया गया, जिससे पर्याप्त उपज मिले। इसके साथ ही उन सब्ज़ियांे का भी चयन किया गया, जो जल्द तैयार होने वाली थीं। प्रमााणित कम्पनियों एवं भारतीय औद्यानिक शोध संस्थान-बंगलौर जैसे सरकारी संस्थानों से सब्ज़ियों के बीज लिये गये। क्योंकि इनके यहां से प्राप्त बीज गुणवत्तापूर्ण होते हैं और भरपूर उपज देते हैं।

बाक्स 1: विभिन्न ऋतुओं के लिए सब्ज़ियों की सूची

ऋतु सब्ज़ियां
खरीफ (जून-अक्टूबर)

 

रबी

 

 

गर्मी

बैगन, टमाटर, मिर्च, भिण्डी, सेम, ग्वारफली, मेथी, चौलाई, हरी सेम आदि

 

मूली, पालक, धनिया, सोया, गांठगोभी, आलू, प्याज, बन्दगोभी, फूलगोभी ;अक्टूबर-मार्चद्ध बथुआ, शलजम, मटर, ब्रोकोली आदि

 

लौकी, करेला, नेनुआ, तरोई, सरपुतिया, खीरा, खरबूज, तरबूज, टमाटर, बोड़ा

 

 

60 थैलों में विविध प्रकार की सब्ज़ियां उगायी गयीं। 4-5 सदस्यों वाले एक छोटे परिवार के लिए सब्ज़ियां उगाने हेतु लगभग 50-60 बैग पर्याप्त होता है। लतादार सब्ज़ियां जैसे- लौकी, नेनुआ, सरपुतिया, करेला, तरोई, बोड़ा आदि को कोने में लगाया गया था ताकि उन्हें उपर चढ़ने के लिए बेहतर सहायता मिल सके। शेष थैलों को फसल के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता के आधार पर रखा गया। अर्थात जिन्हें सूरज के रोशनी की भरपूर मात्रा चाहिए थी, उन्हें बीच में रखा गया, जिन्हें कम चाहिए थी, उन्हें किनारे की तरफ और जिन्हें एकदम नहीं चाहिए, उन्हें ठण्डे स्थान पर रखा गया। दलहनी सब्ज़ियों जैसे- हरी सेम, मेथी, मटर आदि को भी लगाया गया। इनसे सब्ज़ियां तो मिलती ही हैं इनकी जड़ों में नाइट््रोजन स्थिरीकरण का गुण होने के कारण मृदा उर्वरता भी उन्नत होती है।

विविध प्रकार की फसलों को निम्न तरीके से लगाया गया –
* 15 थैलों में पालक, चौलाई, धनिया, सोया, मेथी, पुदीना, रामदाना आदि पत्तेदार सब्ज़ियांे ;ऋतु के आधार परद्ध को लगाया गया।
* 20 थैलों ;5-5 थैलोंद्ध में भिण्डी, बैगन, टमाटर और मिर्च लगाया गया।
* बोड़ा और हरी सेम को 10 थैलों में लगाया गया।
* 2 थैलों में छिड़काव विधि से ग्वारफली लगायी गयी।
* 8 थैलों में मूली और गांठगोभी की खेती की गयी।
* 5 थैलों का उपयोग प्याज के लिए किया गया।

फसल की देख-रेख
हर घर से प्रतिदिन जैविक कचरा निकलता है, जिसमें रसोई से निकला कचरा, सूखी पत्तियां एवं अन्य अपशिष्ट होते हैं। इन अपशिष्टों को कुशलतापूर्वक पुनर्चक्रित किया जा सकता है। वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए केंचुओं के खाद्य सामग्री के तौर पर इनका उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, रसोई घर से निकले ये अपशिष्ट मिर्च, बैगन, टमाटर एवं भिण्डी के लिए मल्चिंग का काम भी करते हैं। आंशिक अपघटन के बाद, इन कचरों को एक वर्मीकम्पोस्ट बनाने वाले थैले में गाय के गोबर की घोल की एक परत के उपर भर देते हैं जिससे केंचुओं द्वारा खाद बनाने की प्रक्रिया बढ़ जाती है। वर्मीकम्पोस्ट बनाने वाले थैले को छायादार स्थान पर ऐसी जगह रखते हैं, जहां बरसात का पानी सीधे से थैले न प्रवेश करे। 2-3 माह के बाद, इस थैले की सामग्री को खाद के रूप में उपयोग कर थैले को खाली कर लिया गया। इसके साथ ही वर्मीवॉश भी तैयार किया जाता है। यह एक प्रकार का तरल खाद होता है, जो थैले के प्रवेश द्वार से एकत्र किया जाता है। पौधों पर इसका छिड़काव करने से पौधों को पोषक तत्वों की पूर्ति होने के साथ ही पौधांे की बढ़त में भी सहायता मिलती है।

वर्मीकम्पोस्ट के अलावा, प्रत्येक फसल के बाद फार्म यार्ड मेन्योर एवं कम्पोस्ट का उपयोग किया जा सकता है। बगीचे के लिए चूना और पोटाश के स्रोत के तौर पर लकड़ी की राख एक उत्कृष्ट स्रोत है। पौधों की बेहतर वृद्धि के लिए कम्पोस्ट में बहुत कम मात्रा में इसे मिलाकर छिड़काव किया जाता है।

छत वाली खेती में, हम हमेशा जैविक निवेशों पर निर्भर करते हैं, इसलिए कीटों एवं बीमारियों का प्रकोप बहुत सामान्य है। तथापि, पौध विविधता अपनाने के कारण, कीटों एवं बीमारियों के कारण नुकसान की घटनाएं कम ही होती हैं। उदाहरण के तौर पर, मिर्च में पत्तियों में सिकुड़न, सेम में सफेद मक्खी लग जाती है। इस समस्या से निपटने हेतु परजीवी और शिकारी कीटों के उपयोग की प्राकृतिक नियंत्रण पद्धति तथा वनस्पतियों का उपयोग किया गया ;बाक्स 2द्ध। सब्ज़ियों की समय से बुवाई करने से कीटों का आक्रमण कम होता है। हम किसी कीटनाशक का उपयोग नहीं करते हैं।

कटाई से लाभ
बुवाई के दौरान योजना बनाने से लम्बे समय तक सब्ज़ियां मिलनी सुनिश्चित हुई। मेरी छत की बागवानी में विविध प्रकार की सब्ज़ियां उगायी जाती हैं। उदाहरणस्वरूप, सभी पत्तेदार सब्ज़ियांे की कटाई 30 दिनों में एक बार की जाती है, लेकिन अगली कटाई का समय 15 दिन बाद आता है। फलियां 50 दिन के बाद तुड़ाई लायक हो जाती हैं और प्रत्येक 2-3 दिन के अन्तर पर इनकी तुड़ाई करते हैं। अन्य सब्ज़ियां भी अपने समय के अनुसार तैयार होती हैं और कम से कम एक माह तक के लिए उपलब्ध होती हैं।

सघन देख-भाल के कारण, खेत जितना ही उपज प्राप्त होता है। इसके साथ ही, सब्ज़ियां ताजी और पोषणयुक्त होती हैं एवं इनका स्वाद बाजार मिलने वाली सब्ज़ियों की तुलना में अच्छा होता है। घर के उपभोग के लिए उगायी गयीं सब्ज़ियां अधिक होने पर पड़ोसियों में भी बांटी गयीं।

लगने वाली लागत एवं प्राप्त लाभ पर भी विचार किया गया। छत पर बागवानी स्थापित करने में लगने वाली कुल लागत और एक वर्ष के दौरान प्राप्त उपज के विश्लेषण के दौरान ज्ञात हुआ कि एक साल में लगने वाली लागत रू0 5223.00 थी। तालिका सं0 1 में सभी मदों में लगने वाली लागत को प्रदर्शित किया जा रहा है। लगभग रू0 8480.00 की सब्ज़ियां उगायी गयीं, जो यह सिद्ध करती हैं कि छत पर सब्ज़ियां उगाना एक लाभप्रद उद्यम है।

तालिका 1: प्रथम वर्ष ;1 जून 2020 से 31 मई 2021 तकद्ध के दौरान छत पर बागवानी में लगने वाली कुल लागत और कुल आयलागत प्राप्ति

लागत & प्राप्ति

 

विवरण लागत (Rs.) मात्रा उपज(किग्रा0/कटाई) मूल्य (Rs) प्राप्ति
पॉलीथिन थैला 1500.00 60
खाद 750.00 300
टाई 100.00 1
हैण्ड स्प्रेयर 200.00 1
जैव उर्वरक 200.00 2
लाल मिट्टी 500.00 300
कोको पिट 900.00 300
सिंचाई 800.00 2 मानव दिवस
निराई 800.00 2 मानव दिवस
सभी फसलों के बीज

 

1.       बीन्स 165.00 300 ग्राम 30 किग्रा 60 1800.00
2. धनिया 30.00 100 ग्राम 10 बार कटाई 25 250.00
3. पालक 100.00 500 ग्राम 25 बार कटाई 15 375.00
4. चौलाई 150.00 200 ग्राम 21 बार कटाई 10 210.00
5. रामदाना 70.00 100 ग्राम 22 बार कटाई 15 330.00
6. मेथी 60.00 250 ग्राम 20 बार कटाई 20 400.00
7. टमाटर 260.00 10 ग्राम 20 किग्रा0 30 600.00
8. पुदीना 10.00 10 ग्राम 10 बार कटाई 10 100.00
9. भिण्डी 48.00 150 ग्राम 12 किग्रा0 45 540.00
10. सेम 20.00 100 ग्राम 6 किग्रा0 100 600.00
11. प्याज 60.00 25 ग्राम 5 किग्रा0 50 250.00
12. बैगन 200.00 25 ग्राम 15 किग्रा0 40 600.00
13. साबस्के सूप 200.00 200 ग्राम 10 बार कटाई 15 150.00
14. मूली 50.00 50 ग्राम 20 20 400.00
15. गांठ गोभी 50.00 50 ग्राम 15 45 675.00
16. मिर्च 100.00 25 ग्राम 30 किग्रा0 40 1200.00
कुल 5223.00 8480.00

 

छत पर बागवानी के अन्य बहुत से फायदे भी हैं। जैसे- स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को कम करना, न्यूनतम समय एवं स्थान का उपयोग कर स्वस्थ खाद्य का उत्पादन करना। जैविक विधि से गृहवाटिका में सब्ज़ियां उगाने का एक सबसे महत्वपूर्ण फायदा यह है कि रसोई से निकलने वाले अपशिष्टों का प्रभावी प्रबन्धन हो जाता है। इसके अलावा, शहरी क्षेत्रों में काम करने वालों के लिए यह तनाव से मुक्ति पाने का एक बेहतर माध्यम भी है।

छत पर बागवानी में अनुभव प्राप्त करने के बाद मैंने अपने आस-पास रहने वाले लोगों को एक स्वस्थ जीवन के लिए छत पर बागवानी में प्रशिक्षित करना प्रारम्भ कर दिया। भविष्य में, मेरी योजना बंगलौर में छत पर बागवानी विषय पर कन्सल्टेन्सी प्रारम्भ करने की है।

आभार,
बगीचे को स्थापित करने और इस लेख को लिखने में श्री संतोष के एम द्वारा किये गये सहयोग के लिए लेखक उनका हृदय से आभार व्यक्त करता है।

रून्दन वी


रून्दन वी
पी0एच0डी0 स्कॉलर, शस्य विज्ञान विभाग
कृषिगत विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़
ई-मेल: rundangowda10@gmail.com


Source: Agroecology Education, LEISA India, Vol.24, No.2, June 2022

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