जोखिम मुक्त कृषि: महिलाओं के नेतृत्व में जलवायु अनुकूलित खेती मॉडल

Updated on June 3, 2023

जब महिलाओं को यह तय करने का अधिकार है कि उन्हें क्या उगाना है, किन निवेशों का उपयोग करना है, अपने उत्पादों को कब और कहां बेचना है, तब ही कृषि और आजीविका में प्रमुख बदलाव होते हैं। मराठवाड़ा में कृषि में बदलावकर्ता के रूप में महिलाओं को सशक्त करते हुए महिला जलवायु अनुकूलित कृषि मॉडलों के माध्यम से खेतिहर परिवारों के लिए अनुकूलित आजीविक को प्रोत्साहित करते हुए यह सुनिश्चित किया गया कि खेती एक आर्थिक रूप से व्यवहार्य उद्यम हो सकता है।


महाराष्ट््र में फसलांे की खेती का जोत आकार 12 प्रतिशत तक कम हो गया है। हालांकि पिछले तीन दशकों में नगदी फसलों जैसे- गन्ना की खेती दुगुने क्षेत्रफल पर होने लगी है। लेकिन महाराष्ट््र में जल संकट की परिस्थितियों को देखते हुए इन फसलों को उगाना अलाभकारी हो गया है। फिर भी इस सूखाग्रस्त क्षेत्र के बहुत से लघु एवं सीमान्त किसान अपने लिए भोजन उगाने के बजाय अधिक पानी चाहने वाली नगदी फसलों जैसे- सोयाबीन एवं गन्ना की खेती निरन्तर कर रहे हैं। इसके अलावा, इन फसलों को उगाने से किसानों की निर्भरता रासायनिक खादों, कीटनाशकों एवं बाजार में मिलने वाले महंगे हाइब्रिड बीजों पर हो गयी है, जिससे उनकी खेती की लागत में भारी वृद्धि हुई है। मराठवाड़ा में लगभग 80 प्रतिशत खेतिहर भूमि वर्षा आधारित है। ऐसे में खराब मानसून के चलते नगदी फसलों की क्षति होने का अधिक जोखिम रहता है। इन सबके बीच लघु एवं सीमान्त किसान जो खेतिहर निवेशों को खरीदने हेतु ऋण लेते हैं और केवल एक प्रजाति की फसल उगाते हैं, उनके उपर सबसे अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है। अधिकांशतः इन परिवारों की महिलाओं के उपर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि उनके पास भूमि स्वामित्व न होने के कारण उत्पादक संसाधनों जैसे- वित्त, बाजार, जल एवं उचित सरकारी प्रसार सेवाओं तक उनकी पहुंच नहीं हो पाती या बहुत कम पहुंच होती है।

केन्द्र में महिलाएं
लघु एवं सीमान्त खेतिहर परिवारों की महिलाओं की प्रमुख पहचान खेतिहर मजदूर के तौर है। समय, श्रम और जानकारी के रूप में खेती में उनका अमूल्य योगदान होने के बावजूद, उन्हें किसान के तौर पर मान्यता नहीं दी जाती है। पुरूष निर्णय लेते हैं कि किस फसल की खेती कैसे करनी है और कहां पर बेचना है और महिलाएं पुरूषों से निर्देश लेकर कम दक्षता वाले कार्यों जैसे- निराई-गुड़ाई, कटाई आदि कार्यों को करती हैं। इस बुनियादी आधार को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र में काम करने वाली एक स्वयंसेवी संगठन स्वयम् शिक्षण प्रयोग (एस0एस0पी0) ने कृषि में चार कृषि चक्रों में महिलाओं को खेतिहर मजदूर से नेतृत्वकर्ता के रूप में बदलने हेतु एक सशक्तिकरण मार्ग के रूप में महिला नेतृत्व वाली जलवायु अनुकूलित खेती मॉडल को डिजाइन किया।

बाक्स 1

उस्मानाबाद की आशा हजगुदे बड़ी दुविधा में थीं। वह प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत् बूंद सिंचाई योजना का लाभ लेना चाहती थीं, लेकिन बूंद सिंचाई प्रणाली खरीदने हेतु पहले उन्हें लगभग रू0 30,000.00 जमा करना पड़ता। किसान द्वारा उत्पाद अथवा सेवाएं खरीदने के बाद सरकारी अनुदान की राशि सीधे उनके खाते में आती है। परिवार के लिए यह धनराशि बहुत बड़ी थी।

आशा के लिए चीजें तब आसान हो गयीं, जब उन्हें बूंद सिंचाई प्रणाली खरीदने हेतु जलवायु अनुकूलित खेती मॉडल के अन्तर्गत रू0 25,000/- का ऋण न्यून ब्याज दर पर मिल गया। आशा याद करते हुए कहती हैं, ‘‘मुझे उस समय मात्र रू0 5,000/- का निवेश करना पड़ा था। वर्ष 2009 में प्रारम्भ की गयी जलवायु अनुकूलित कृषि का वित्तीय स्रोत बैक से ऋण लेना है और उसका प्रबन्धन उस्मानाबाद और तुलजापुर ब्लाक में स्वयं सहायता समूह संघ सशक्त सखी संगष्ठ द्वारा किया जाता है।  ,

 

महिलाएं स्वाभाविक रूप से परिवार की खाद्य एवं पोषण आवश्यकताओं को समझती हैं और जब उन्हें निर्णय लेने के उपर प्रशिक्षित किया जाता है, तब वे प्राकृतिक कृषि निवेशों के साथ स्थानीय अनाज, मोटे अनाज, दालों एवं सब्ज़ियों को उगाने को प्राथमिकता देती हैं। ये कम अवधि की फसलें होती हैं और कम पानी चाहने वाली फसलें होने के कारण स्थानीय जल संकट वाली जलवायु के लिए अधिक उपयुक्त होती हैं। इसका अर्थ यह है कि विपरीत परिस्थितियों जैसे सूखा में भी खाद्य उपलब्धता में सुधार होता है। परम्परागत रूप से महिलाएं घर के पशुधन का प्रबन्धन करती हैं। वे पशुओं के लिए चारा भूसा तैयार करने से लेकर दूध निकालने तथा भोजन पकाने हेतु गोबर से उपला बनाने व सुखाने सम्बन्धी सभी कार्य करती हैं। एस0एस0पी0 का मॉडल महिलाओं के इस अर्जित ज्ञान का लाभ उठाकर उन्हें कम लागत वाले जैव-उर्वरक तैयार करने पर प्रशिक्षण देता है। इसके अतिरिक्त महिलाएं परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य के बारे में चिन्तित रहती हैं और जैविक निवेशो की व्यवस्था करने हेतु अतिरिक्त प्रयास करेंगी। तुंगाव, उस्मानाबाद की रूपाली विकास शंेडगे कहती हैं, ‘‘अगर जैविक कीटनाशक तैयार करने के लिए हमें 10 पत्तियों की आवश्यकता है, तो महिलाएं तब तक नहीं रूकेंगी, जब तक कि 10वीं पत्ती न मिल जाये, जबकि पुरूष 9 से खुश हो सकते हैं।’’ आज हम जिन अधिकांश किसानों से मिले, उनका मानना है कि जैव आदानों के उपयोग से उनकी मृदा की गुणवत्ता में सुधार हुआ, जिससे मृदा की जलधारण क्षमता बढ़ी है और मिट्टी अधिक नमी बनाए रखने में सक्षम हुई है, उनकी उत्पादकता में सुधार हुआ है और उन्हें कम पानी का उपयोग करने में सहायता मिली है।

निर्माण-सशक्त-स्थाई मॉडल
एस0एस0पी0 के महिला नेतृत्व वाली जलवायु अनुकूलित खेती दर्शन के मूल में निर्माण, सशक्त और स्थाई का एक त्रि-स्तरीय मॉडल है। सबसे पहले, एस0एस0पी0 समुदाय-आधारित संसाधनों, प्रमुख सहयोगियों और अपनाने वाले किसानों का एक अनुकूल पारिस्थितिक तंत्र बनाता है और समय-समय पर उन्हें परिष्कृत करता है। आपरेटिंग मॉडल के इस चरण में, एस0एस0पी0 ने सामुदायिक सम्पत्तियों जैसे- अपनाने वाले किसानों के साथ समन्वयन में प्रदर्शन प्रक्षेत्र एवं सरकारी योजनाओं तक पहुंच बनाकर खेत तालाबों एवं सामुदायिक टैंकों को भी बनाता है। आपरेटिंग मॉडल के दूसरे चरण में, एस0एस0पी0 मॉडल अपनाने वाले किसानों को प्रशिक्षित कर मुख्य पारिस्थितिकी प्रणाली कार्यकर्ताओं को विकसित करता है एवं उन्हें गतिशील समूहों में परिपक्व बनाता है। समुदाय आधारित संसाधनों जैसे कृषि संवाद सहायकों एवं एस0एस0पी0 द्वारा तैयार किये गये व निरन्तर मार्गदर्शन प्राप्त स्थानीय कृषि विशेषज्ञों की मदद से इस कार्य को पूरा किया गया। आपरेटिंग मॉडल के अन्तिम चरण में, आत्मा परियोजना से जुड़ाव स्थापित करते हुए किसान समूहों को अपने कार्यों को स्थाईत्व प्रदान करने हेतु सक्षम बनाया गया ताकि वे सरकारी योजनाओं से पंजीकृत किसान समूहों का जुड़ाव स्थापित कर सकें। इन योजनाओं की सहायता से किसान अपने खेत आधारित उद्यमों को विस्तार दे रहे हैं और बाजार से जुड़ाव में सुधार हो रहा है, जिससे उनको अपनी गतिविधियों में निरन्तरता बनाये रखने में मदद मिल रही है। इसके अलावा, समुदाय आधारित संसाधनों का डिजाइन स्थानीय महिलाओं द्वारा होने से उनकी जानकारी का विस्तार होता है और परियोजना समाप्त होने के बाद भी उन्हें ज्ञान का सहयोग मिलता है। इसके साथ ही, किसान समूहों और समुदाय आधारित संसाधनों को शामिल कर तैयार किये गये मुख्य पारिस्थितिकी प्रणाली कार्यकर्ता खुद को एक ऐसी सामाजिक पूंजी के तौर पर तैयार करते हैं, जिसमें सरकारी एजेन्सियां और दाता संस्थाएं निवेश कर सकते हैं।

प्रक्षेत्र पर
जलवायु अनुकूलित खेती (सी0आर0एफ0) मॉडल का लक्ष्य कृषि अभ्यासों में चार प्रमुख बदलाव करना है- लोगों को नकदी फसलों से खाद्य फसलों की ओर मोड़ना, रसायन से जैव निवेशों की ओर परिवर्तन, मिट्टी और पानी का संरक्षण तथा कृषि-सम्बद्ध व्यवसायों के माध्यम से विविधीकृत आजीविका को बढ़ावा देना। इन परिवर्तनों को लाने के लिए, महिलाआंे को अपने परिवार का भोजन और पोषण प्रबन्धन होने के अपने सहज ज्ञान का निरन्तर उपयोग करने की आवश्यकता है। इसस उन्हें यह सोचने और निर्णय करने में मदद मिलती है कि क्या उगाना है, किस तरह के निवेशों का उपयोग करना है और कौन सी कृषि सम्बन्धी गतिविधियां अपनानी हैं।

महिलाओं के नेतृत्व वाली जलवायु अनुकूलित खेती मॉडल महिलाओं को ऐसे किसानों, नेतृत्वकर्ताओं एवं परिवर्तन उत्प्रेरकों के रूप में पुनसर््थापित करने का प्रयास करता है, जो अपने खेत पर खाद्य सुरक्षित अभ्यासों को अपनाते हैं। यह मॉडल चार प्रमुख पहलुओं – बाजार से जुड़ाव, महिला किसानों को संगठित करना, तकनीक का एकीकरण और जल कुशल सूक्ष्म सिंचाई मॉडलों पर केन्द्रित है। इसका मुख्य लक्ष्य उत्पादकता में सुधार, आय में वृद्धि, परिवार के स्वास्थ्य एवं पोषण को बढ़ाना और अनुकूलता या लचीलापन बनाये रखना है।

जलवायु अनुकूलित कृषि मॉडल परिवार के एक छोटे से भूखण्ड पर प्राकृतिक निवेशों के साथ प्रत्येक ऋतु में 6-8 खाद्य फसलें उगाने को प्रोत्साहित करता है। इसके लिए एकाग्रचित्त प्रयास, देख-भाल, प्रतिबद्धता और समय की आवश्यकता होती है, जो पुरूषों के पास नहीं है। इसलिए, एस0एस0पी0 का जलवायु अनुकूलित कृषि मॉडल महिलाओं को इस बात के लिए प्रोत्साहित करता है कि वे अपने परिवार से भूमि का एक छोटा टुकड़ा लेकर उस पर खेती करने का अधिकार प्राप्त करें। सामान्यतः इसकी शुरूआत आधा अथवा एक एकड़ खेत पर परिवार के उपभोग के लिए स्थानीय सब्ज़ियां, मोटे अनाज, स्थानीय अनाज और दालें उगाने से होती है। इसके अलावा यह मॉडल प्राकृतिक बीजों, उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग और प्रशिक्षणों को भी बढ़ावा देता है, जिससे बचत, बेहतर स्वास्थ्य और जल व मृदा का संरक्षण सुनिश्चित होता है।

ग्राम स्तर पर महिलाओं को एक अनौपचारिक समूह के तौर पर गठित किया गया। प्रत्येक समूह में 20 सदस्य होते हैं। प्रत्येक समूह का नेतृत्व समूह की दो महिलाओं द्वारा किया जाता है, जो समूह की गतिविधियों का नेतृत्व करने और ग्रामस्तरीय सामुदायिक सुगमकर्ता से समन्वय बनाने हेतु जिम्मेदार होती हैं।

सीखने के लिए सहभागी दृष्टिकोण अपनाते हुए प्रशिक्षण दिया जाता है और अंतिम सत्र के दौरान उन्हें उत्पादक समूहों में शामिल कर लिया जाता है। पहले दो सत्रों में, एक नये अपनाने वाले को अपने परिवार से खेत के एक छोटे टुकड़े पर खेती करने का अधिकार प्राप्त करने में सक्षम बनाया जाता है और उन्हें मौसमी खाद्य फसलों की खेती से सम्बन्धित ज्ञान, जानकारी एवं दक्षता से सुसज्जित किया जाता है। इसमें स्थानीय स्तर पर उपलब्ध बीजों की पहचान करना एवं कम लागत व पर्यावरण-सम्मत उर्वरकों एवं कीटनाशकों को तैयार करना शामिल है। इस चरण को क्रियान्वित करने के लिए, वह अपने परिवार की खाद्य एवं पोषण आवश्यकता को पूरा करने और जैव निवेश के लिए अपने खेत के साथ पशुधन का एकीकृत करती हैं।
ण् तीसरे सत्र में, एक वर्ष पहले इस मॉडल को अपना चुकी लाभार्थी द्वारा आम तौर पर अपने नियंत्रण वाली जमीन का और विस्तार किया जाता है और उसके उत्पादन में वृद्धि होती है। उनके परिवार की आवश्यकता पूरी होने के बाद शेष बचे उत्पाद को वह बाजार में बेच भी लेती है (देखें बाक्स 2)। साथ ही, परिवार की आमदनी बढ़ाने हेतु उसे जैव निवेशों, मुर्गी पालन, दुग्ध पालन, बकरी पालन आदि को प्रारम्भ करने और उसे निष्पादित करने हेतु प्रशिक्षित भी किया जाता है। चौथे और अन्तिम सत्र में, एस0एस0पी0 ने महिलाओं को जमीन पर कानूनी अधिकार प्राप्त करने में सहयोग प्रदान किया जिससे उन्हंे अपने नाम से सरकारी योजनाओं तक पहुंच बनाने में मदद मिली। इसके अतिरिक्त, कार्यक्रम के प्रारम्भ में बनाये गये अनौपचारिक किसान समूहों को सरकारी योजनाओं का निरन्तर लाभ दिलाने हेतु आत्मा के साथ पंजीकृत करने की दिशा में मार्गदर्शन किया गया। सामूहिक व्यापार प्रारम्भ करने के लिए चयनित समूहों को किसान उत्पादक कम्पनियां प्रारम्भ करने हेतु प्रशिक्षित किया गया।

सामुदायिक अनुकूलन/लचीलापन कोष
सामुदायिक अनुकूलन/लचीलापन कोष एक समुदाय के स्वामित्व वाली, समुदाय द्वारा संचालित और प्रबन्धित कम-ब्याज कोष है, जो बिना किसी बड़ी धनराशि का निवेश किये सरकारी योजनाओं तक किसानांे की पहुंच को सुगम बनाता है। सामुदायिक अनुकूलन/लचीलापन कोष अथवा सी0आर0एफ महिला समूहों के नेटवर्क को कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराने का तुरन्त व आसान माध्यम है। मुख्य-मुख्य सरकारी योजनाओं तक किसानों की पहुंच बनाने में सी0आर0एफ0 एक मुख्य भूमिका निभाता है (देखें बाक्स 1)। किसान समूहों द्वारा सी0आर0एफ0 तक पहुंच बनायी जाती है और समूह ऋण मानदण्डों द्वारा व्यक्तिगत किसानों तक इसका प्रसार किया जाता है। सी0आर0एफ0 तक पहुंचना त्वरित व आसान होता है, बैंक की तुलना में इसका ब्याज दर कम होता है तथा उत्पाद खरीदने से पहले लाभार्थी के खाते में पैसा पहुंच जाता है। एक किसान द्वारा आवेदन करने के 8 दिनों के अन्दर उसके बैंक खाते में पैसा पहुंच जाता है और उस पर 8 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देय होता है। इसके साथ ही सी0आर0एफ0 जानवरों का चारा खरीदने, हाइड््रोपोनिक्स, सब्ज़ियां उगाना आदि के लिए भी ऋण देकर किसानों की मदद करता है, जिसके लिए वे माइक्रो फाइनेन्स कम्पनियों या बैंक से लोन नहीं पा सकती हैं।

बाक्स 2: एक एकड़ खेती का मॉडल नकद फसल से विविधीकृत जैविक खेती की ओर बदलाव का प्रचार करता है।

महाराष्ट््र के लातूर के गौर गांव की रहने वाली अर्चना तावडे का कहना है, ‘‘हम अपने एक एकड़ खेत में सोयाबीन उगाते थे और रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करते थे। हमने मुश्किल से अपनी आय का 30 प्रतिशत बचाया।’’ आगे वे कहती हैं, ‘‘प्रशिक्षण के बाद, मैंने अपने पति को इस बात के लिए मनाया कि वे मुझे अपनी सीख को लागू करने के लिए 10,000 वर्गफीट खेत दे दें।’’

विभिन्न प्रकार की फसलों- सब्ज़ियों और अनाजों के साथ प्रयोग एवं केवल जैविक उर्वरक का उपयोग करते हुए अर्चना तीन गुना अधिक उपज देखकर आश्चर्य चकित रह गयीं। हालांकि उन्होंने लाभ कमाया, परन्तु उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि परिवार के लिए उपलब्ध पौष्टिक भोजन था। सफलता से उत्साहित होकर, अर्चना के पति ने एक एकड़ में जैविक खेती मॉडल को अपनाया। अब वे 23 प्रकार की फसलें- सब्ज़ियां, दालें, अनाज और तिलहन की खेती करके वे अपनी कमाई का लगभग 60 प्रतिशत बचा लेते हैं।

आज अर्चना एक चर्चित वक्ता और प्रशिक्षक हैं। एक एकड़ मॉडल को लागू करने और क्रियान्वित करने हेतु उनके अनुभव अन्य महिलाओं के लिए एक शक्तिशाली उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं। अर्चना कहती हैं, ‘‘एक महिला, एक मां और एक किसान के रूप में मेरे लिए मेरे परिवार एवं मेरी भूमि का स्वास्थ्य दोनों महत्वपूर्ण हैं। एक एकड़ मॉडल मेरे दोनों लक्ष्यों को प्राप्त करने में मेरी मदद करता है। यह वह संदेश है, जो मैं अन्य महिलाओं के साथ साझा करती हूं।’’

 

बाक्स 3: महिला किसानों के लिए भूमि स्वामित्व

मराठवाड़ा में बार-बार पड़ने वाले सूखे से किसानों को भारी नुकसान हुआ और किसानों द्वारा आत्महत्या की घटनाएं बढ़ीं। उस्मानाबाद के कलम्ब में स्थित एकुरगा गांव की महिला किसानों ने मामलों को अपने हाथ में लेने का फैसला किया और स्थिति से उबरने में अपने परिवारों की मदद करने हेतु आगे आयीं।

इस क्षेत्र में पुरूषों के बीच शराब की लत में भी वृद्धि देखी गयी, जिससे परिवार का संकट बढ़ा ही है। गांव की मनीषा यादव का कहना है, ‘‘मेरे पति ने ड््राइवर के रूप में काम करना शुरू कर दिया और ज्यादातर समय घर से दूर रहते थे। उनका शराब पीना बेकाबू हो गया। मेरे ससुराल वालों को डर लगने लगा कि वह हमारी सारी जमीन बेच देंगे। स्थिति को बचाने के लिए, मैंने अपने ससुराल वालों को जमीन मेरे नाम पर स्थानान्तरिक करने के लिए मना लिया।’’ आज मनीषा के पास एक एकड़ जमीन है, जिस पर सब्ज़ियों की खेती कर उन्होंने रू0 20,000/- कमाए हैं।

एस0एस0पी0 ने एकुरगा में जलवायु अनुकूलित खेती मॉडल पर महिलाओं को प्रशिक्षण देना प्रारम्भ किया। इस प्रशिक्षण के दौरान, महिलाओं ने सरकारी कृषि योजनाओं और संसाधनों तक पहुंच बनाने के लिए भूमि अधिकार और स्वामित्व के महत्व को समझा। इसके बाद भूमि अधिकार प्राप्ति करने के लिए 400 महिलाओं का एक समूह बनाया।

महिलाओं ने अपने परिवार के बीच महिलाओं के नाम जमीन होने के फायदों पर बात-चीत करना प्रारम्भ कर दिया और परिवार को अपने नाम पर जमीन बांटने के लिए तैयार किया। सविता ताई भोरे वह प्रथम महिला थीं, जिन्होंने अपने पति को तैयार किया और बिना किसी लागत के ब्लाक तहसीलदार के पास जाकर जमीन अपने नाम कराने हेतु कानूनी प्रक्रिया पूरी की। एकुरगा गांव में सविता भूमि स्वामित्व के लिए महिलाओं की एक वकील और रोल मॉडल हैं ओर उन्होंने 50 से अधिक महिलाओं परिवार के साथ समझौता कराकर भूमि पर स्वामित्व प्रदान करने में सहायता की है।

 

 

विस्तार
एस0एस0पी0 ने सबसे पहले इस मॉडल को उस्मानाबाद में चलाया, जहां उन्होंने किसानों को एक एकड़ भूमि में कम पानी चाहने वाली खाद्य फसलों की खेती करने और रासायनिक से जैविक खेती अभ्यासों की ओर प्रवृत्त किया। महिला नेतृत्व वाली जलवायु अनुकूलित खेती मॉडल को एक एकड़ मॉडल के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें महिलाओं को अभ्यासों में बदलाव करने और खाद्य फसलें उगाने हेतु एक एकड़ या उससे भी कम जमीन का अधिग्रहण करना शामिल था।

किसी मॉडल की वास्तविक क्षमता को उजागर करने के लिए सहयोगात्मक प्रयास की आवश्यकता होती है। एक तरफ एस0एस0पी0 ने इस मॉडल की पहुंच, प्रभाव एवं प्रभावशीलता को बेहतर बनाने के लिए यूएमईडी- महाराष्ट््र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन, महाराष्ट््र सरकार, मिजरेरियर जर्मनी, हुइरो कमीशन, वेल्थंगरहिल्फे-जी0आई0जेड, हिन्दुस्तान यूनीलीवर फाउण्डेशन, कमल उडवाडिया फाउण्डेशन, मैक्आर्थर फाउण्डेशन, अशोका, एच0एस0बी0सी एवं नाबार्ड जैसे प्रमुख पारिस्थितिकी प्रणाली सहभागियों के साथ सहयोग किया। वहीं दूसरी तरफ पारिस्थितिकी प्रणाली सहभागियों ने महिलाओं के साथ अपनी पहल को बढ़ाने में एस0एस0पी0 के सहयोग का लाभ उठाया है।

वर्ष 2014 में सीमान्त किसान परिवारों के बीच खाद्य और आय सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु महिलाओं के नेतृत्व की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से एस0एस0पी0 टीमों ने इस दृष्टिकोण को विकसित किया। वर्ष 2016 में, महाराष्ट््र सरकार के साथ एस0एस0पी0 की सहभागिता महिला किसानों को आगे प्रशिक्षित करने और उनकी मदद करने के लिए सामुदायिक संसाधन व्यक्तियों के रूप में कृषि नेताओं के एक कैडर के निर्माण के माध्यम से दृष्टिकोण को बढ़ाने के एक अवसर के रूप में आयी।

सात वर्षों में, महाराष्ट््र के उस्मानाबाद, लातूर, सोलापुर और नान्देड जिलों के 750 से अधिक गांवों में 75,000 महिला किसानों और परिवारोें ने जलवायु अनुकूलित खेती की ओर बदलाव करना शुरू कर दिया है। वर्तमान में इसे जालना, अहमदनगर और आरंगाबाद जिलों तथा भारत में बिहार और केरल राज्य तक बढ़ाया जा रहा है। इस प्रक्रिया में कार्यक्रम ने जैव-निवेश का उपयोग करके खाद्य फसलें उगाकर 65,000 एकड़ कृषि भूमि को बदल दिया है। जमीनी स्तर पर मॉडल को उतारने में अद्वितीय कैसकेडिंग दृष्टिकोण इसे मापनीय, अनुकरणीय और कुशल बनाता है।

उपमन्यु पाटिल


उपमन्यु पाटिल
स्वयम शिक्षण प्रयोग (एस0एस0पी0)
102, प्रथम तल,
गायत्री भवन, आर्चिड स्कूल गली
बालेवाडी फाटा, बनेर, पुणे - 411 045
महाराष्ट््र
ई-मेल:sspindia1@gmail.com

Source: Building farm resilience, LEISA India, Vol. 24 No.3, Sep,2022

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