जैव विविधता से अनुकूलन का निर्माण

Updated on March 2, 2020

शुष्क क्षेत्रों में एक फसली पद्धति के साथ-साथ अनियमित वर्षा ने खेती को अविश्वसीय व अत्यधिक जोखिम भरा बना दिया है। जल संरक्षण जैसी सामान्य गतिविधियों ने किसानों को जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से निपटने हेतु आत्मबल प्रदान किया है। खेती में जैव विविधता में वृद्धि करके आजीविका, पर्यावरण सुधार और जोखिम को कम करना एक परखा हुआ समाधान है।


तमिलनाडु राज्य के जिले मदुरई की अधिकांश जनसंख्या की आजीविका का प्राथमिक स्रोत खेती है। मदुरई जनपद के वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रों में लगभग 90 प्रतिशत फसलों की असफलता का मुख्य कारण पौधों की वृद्धि के महत्वपूर्ण समय पर पानी की कमी का होना है। हाल के वर्षों में अनियमित वर्षा और बढ़ते तापमान के फलस्वरूप पीने और सिंचाई दोनों के लिए पानी की भारी कमी हो गयी है। साथ ही साथ जल जनित रोगों में भी वृद्धि हुई है। पानी की कमी, लगातार फसलों के खराब होने और चारे की कमी के कारण लोग अक्सर अपने पशुओं को बेच देते हैं, खेती छोड़ देते हैं व निकट के शहरों में पलायन कर जाते हैं।

बदलते जलवायु परिदृश्यों के अनुकूल समुदाय की अनुकूलन क्षमता को बढ़ाने व कृषि में लगने रहने के लिए धान फाउण्डेशन ने ‘‘जलवायु परिवर्तन और अनुकूलन’’ परियोजना का संचालन किया। दिसम्बर, 2011 में मदुरई जिले के कालुपट्टी प्रखण्ड के चार पंचायतों से इस परियोजना का आरम्भ हुआ।
परियोजना के अन्तर्गत सबसे पहले सामाजिक पूंजी के निर्माण पर ध्यान केन्द्रित किया गया। इसके बाद जल संरक्षण/संचयन की गतिविधियों को बढ़ावा दिया गया। किसानों को ऐसी फसलों व पौधांे के चयन हेतु शिक्षित किया गया, जिनको पानी की कम से कम आवश्यकता हो अर्थात संरक्षित पानी का सुदपयोग हो। जैसे- मोटे खाद्यान्न व बागवानी। इसके अलावा एक अन्य अनुकूलन रणनीति के तहत् किसानों व पशुओं का बीमा भी किया गया था। संक्षेप में, यह जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से निपटने हेतु एक समग्र दृष्टिकोण था।

परियोजना के अन्तर्गत आच्छादित गांव किलकिलुम के एक किसान ने इस परियोजना से जुड़कर अपनी खेती व आजीविका में बदलाव कर सफल खेती का उदाहरण प्रस्तुत किया है।

बदलना सीखना
मदुरई जिले के प्रखण्ड टी. कालुपट्टी के किलकिलुम गांव के किसान इलनगोवन एक किसान हैं। इन्होंने ‘‘कर के सीखने’’ के सिद्धान्त को बखूबी अपनाकर अपनी खेती में बदलाव किया है। इनके पास वर्षा आधारित क्षेत्र में दो एकड़ खेती है, जिस पर इनके पिता खेती करते हैं और पिछले तीन वर्षों से अनियमित व अनिश्चित वर्षा के कारण खेती करने में सक्षम नहीं थे। वह आय हेतु डेयरी का कार्य करते थे, किन्तु डेयरी परिवार के खर्च हेतु पर्याप्त नहीं थी। हलगोवन ने दूसरे किसान से पट्टे पर 5 एकड़ भूमि ली। उन्होंने भूमि पर से कटीली झाड़ियों को साफ किया और बाजरा और कपास की खेती प्रारम्भ की। वह तीन साल लगातार इन फसलों की खेती करते रहे, लेकिन अच्छी उपज लेने में सफल नहीं रहे जिसके परिणामस्वरूप उनको इस खेती में नुकसान उठाना पड़ा।

गांव में कृषक समुदाय को परियोजना से सम्बन्धित जानकारी देने हेतु उन्मुखीकरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। परियोजना वास्तव में, अनियममित वर्षा और फसल विफलता के रूप में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने हेतु था और इलनगोवन की आवश्यकताओं से बिलकुल मेल खाता था। इलनगोवन खेत में तालाब एवं उसके लाभ से परिचित था। खेत तालाब एक छोटी जल संचयन की संरचना है, जो मानसून के दौरान पानी एकत्र करने व संग्रहित करने के लिए जमीन की खुदाई करके खेत में स्थापित की जाती है। जलग्रहण क्षेत्र में सतह के उपर और सतह के नीचे बहते हुए जल को खेत तालाब में एकत्र किया जाता है। तालाबों में संग्रहित पानी का उपयोग पानी की कमी के समय फसलों की सिंचाई के लिए किया जाता है ताकि फसलों की जीवितता बनी रह सके।

खेत तालाबों से हो रहे लाभ को देखने-समझने हेतु रामनाथपुरम जिले के प्रखण्ड मुदुकुलयर के सेवरियारपट्टनम में किसानों को एक्सपोजर भ्रमण कराया गया। सेवरियारपट्टनम में किसानों के साथ विचार-विमर्श व बात-चीत के द्वारा खेत तालाब के लाभों के बारे में अच्छी तरह से जानने के बाद इलनगोवन ने अपने खेत में एक खेत तालाब बनाने का फैसल किया। सितम्बर माह में इलनगोवन ने अपनी भूमि के एक चौथाई हिस्से में 33मी0ग्15मी0ग्1.6मी0 के आकार के एक तालाब की खुदाई की। दुर्भाग्य से, इस वर्ष वर्षा न होने के कारण खेत तालाब में पानी नहीं एकत्र हो सका।

कृषि में जैव विविधता बढ़ने से खेती में जोखिम काफी कम हो गया। आय के स्रोत में बहुफसली खेती, पशुधन व मछली पालन की गतिविधियां शामिल हो गयीं।

तालिका 1: फसल, उत्पादन एवं शुद्ध आय

क्रम फसल का नाम बोया गया क्षेत्र/बीज दर खेती की लागत ;रू0 में उपज स्वयं के उपभोग में कुल आमदनी (बाजार मूल्यद्ध) शुद्ध आय
1 गेंदा 46 सेण्ट 1650 बार तुड़ाई से 184.50 किग्रा0 शून्य 5800 4150
2 मिर्च 24 सेण्ट 3820 150 किग्रा0 10 किग्रा0 9800 5980
3 छोटा प्याज मिर्च में अन्तःखेती 50 154 किग्रा0 4  किग्रा0 1040 990
4 बैगन 3 सेण्ट 500 25 किग्रा0 5 किग्रा0 750 250
5 करेला 2 पाकेट 10 15 किग्रा0 4 किग्रा0 600 590
6  सेम 2 पाकेट 10 10 किग्रा0 4 किग्रा0 100  90
7 कपास 25 सेण्ट 1750 62-5 किग्रा0 2500 750
8 सहजन 50 पौध 1500 पहली बार 40 फल सभी फल 100 100
9 सेसबानिया 10 बीज 5 5 8 बण्डल 1 बण्डल 40 35
10 चौलाई साग 50 ग्राम 50 90 बण्डल 25 बण्डल 360 310
11 तरोई 2 पाकेट 10 6 fdxzk0 90 80
12 मछली पालन 750 बच्चे 1050 7-5 किग्रा0 2 किग्रा0 1875 825

 

जैव विविधता में वृद्धि
वर्ष 2013 में एक ही वर्ष में खेत तालाब पानी से भर गया था। पानी से भरे हुए तालाब से इलनगोवन ने अपने खेत में जैव विविध्ता को बढ़ाने वाली बहुफसली खेती करने का निश्चय किया। पलापट्टी गांव के भ्रमण के दौरान किसान श्री अलगरसामी के खेत से प्रेरित होकर इलनगोवन ने सहजन के 50 पौधों को भी लगाने का निश्चय किया। इन पौधों की सिंचाई हेतु खेत तालाब के पानी का उपयोग किया गया। पौधों में अप्रैल माह में फल लगना प्रारम्भ हो गया। सर्वप्रथम उन्होंने 40 फलों की तुड़ाई की और उसका उपयोग घर हेतु किया। अनुभव की कमी होते हुए भी उन्होंने नवम्बर माह में गेंदा के फूलों की खेती की और खेत से 3 किमी0 की दूरी पर स्थित प्रखण्ड कालुपट्टी के बाजार में गेंदा के फूल की बिक्री की। गेंदा के फूलों की खेती से उन्हें रू0 5800.00 की आमदनी हुई। पौधों की पत्तियों का उपयोग उन्होंने बकरियों के चारे हेतु किया। 2 बकरियां स्वयं इलनगोवन की थीं और 10 बकरियां उनके पड़ोसी की थीं। अन्त में, खेत में जैविक पदार्थों की मात्रा बढ़ाने के उद्देश्य से पौधों के डण्ठलों को खेत में जोत दिया गया।

खेत तालाब के पश्चिम दिशा की ओर की जमीन में बैगन की खेती की गयी। मानसून की विफलता/असफलता व बीमारी के कारण बैगन की उपज कम प्राप्त हुई। इस खेत से मात्र 25 किग्रा0 बैगन प्राप्त हुआ, जिसमें से 5 किग्रा0 बैगन का उपयोग घर हेतु किया गया और शेष 20 किग्रा0 बैगन की बिक्री कर रू0 750.00 की आमदनी हुई।

इसी समय, उन्होंने आधा एकड़ खेत में मिर्च की खेती की। सेवरियारपट्टनम के एक्सपोजर भ्रमण के दौरान उन्होंने देखा था कि अधिकांश खेत तालाब धारक भूजल ;खारा पानीद्ध के साथ खेत तालाब के पानी को मिलाकर फसलों की सिंचाई कर रहे थे। उन्होंने भी खेती की सिंचाई हेतु इसी विधि का उपयोग किया। सिंचाई की नाली के मेड़ों पर 10 सेसवानिया के पौध लगाये। साथ ही अन्तः फसलों के रूप में चौलाई की खेती। इसी प्रकार उन्होंने सिंचाई नाली के मेड़ों पर छोटे प्याज की खेती कर दो किग्रा0 प्याज की उपज प्राप्त की।

इलनगोवन ने मिर्च की फसल के पास 50 सेण्ट में कपास की खेती। अब तक कपास की खेती इन्होंने 14 बार कपास की फसल ली और दो फसल से रू0 2550.00 की आय प्राप्त हुई। उन्होंने गृहवाटिका में करैला, लौकी, तरोई, बीन्स ;सेमद्ध की सब्ज़ियां उगाईं। सब्ज़ियों का उपयोग घरेलू प्रयोग हेतु होता था एवं रिश्तेदारों में भी बांटा जाता था। साथ ही बची हुई सब्ज़ियों की बिक्री गांव के बाजार में की जाती थी। इस गतिविधि ने परिवार के खर्च को कम किया साथ ही घरेलू उपयोग के लिए ताज़ी सब्ज़ियां भी प्राप्त होने लगी।

सभी फसलों की कटाई के बाद उन्होंने हरे चारे की खेती की। उन्होंने खर-पतवार को रोकने तथा मृदा व जल की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए अन्तरखेती की। इसके अतिरिक्त उन्होंने खेत तालाब में मछली का भी उत्पादन किया।

इलनगोवन ने धान फाउण्डेशन द्वारा आयोजित मछली पालन प्रशिक्षण में प्रतिभाग किया। बाद में, उन्होंने तीन विभिन्न प्रजातियों- रोहू, मिरगल एवं कतला के 750 बीजों को खरीद कर उनका पालन किया। इससे उन्हें 7.5 किग्रा0 मछली मिली। उन्होंने 5.5 किग्रा0 मछलियों को गांव में ही बेच दिया और शेष 2 किग्रा0 को स्वयं उपभोग किया।

जल संरक्षण और इसके फायदे
इलनगोवन खेत तालाबों के बारे में संक्षेप में कहते हैं ‘‘अक्सर मानसून की बारिश विफल हो जाती है। जिन लोगों के पास खुला या बोरवेल है, उनसे पानी खरीदना बहुत महंगा है। यहां तक कि यदि मैं प्रयास करूं फिर भी बिजली की लगातार कटौती होने के कारण वे लोग पानी देने को भी तैयार नहीं होते। ऐसे में अपनी फसल को पानी की कमी के कारण सूखता देखकर मेरे दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं, दिल रोने लगता है कि हम केवल फसल उगा सकते हैं, पानी नहीं। भगवान का शुक्र है कि खेत तालाब का निर्माण करके पानी जमा करने का मुझे एक रास्ता मिल गया। अब मुझे दूसरों से पानी मांगने की आवश्यकता नहीं होती है।’’

खेत तालाब के पानी से 98 सेण्ट ;एक एकड़ के बराबरद्ध फसल उगाने में मदद मिली है। जबकि 191 सेण्ट में सरल खेती योग्य भूमि का क्षेत्र अधिक था, क्योंकि उस खेत में अन्तरकृषि व अनुक्रमिक फसलों की गतिविधियां संचालित थीं। उन्होंने सहजन के साथ गेंदा तथा मिर्च में प्याज और अगाथी की खेती अन्तः फसल के रूप में की एवं गेंदा उगाये गये क्षेत्र के 23 सेण्ट में चारा के तौर पर बाजरा की फसल उगायी। इस प्रकार पहले की अपेक्षा अब खेती की सघनता बहुत अधिक थी।

फसल अवशेषों का पुनर्चक्रीकरण कर उन्होंने अपनी खेती की लागत को कम किया। उदाहरण के लिए, गेंदा और बैंगन के प्रयोग बकरियों के चारे के लिए किया गया। इसी प्रकार उन्होंने अपने खेत पर सेसबानिया उगाकर वे दुग्ध उत्पादन में सुधार करने में सक्षम हुए। खेत तालाब से भूजल स्तर को रिचार्ज करने में मदद मिली, जिससे भूजल स्तर में वृद्धि हुई। खेत तालाब के निर्माण से पहले बोरवेल से लगभग 20-25 मिनट के लिए पानी निकलता था, लेकिन अब 40-45 मिनट तक पानी निकल रहा है।

जैव विविधता के बढ़ने से खेती में जोखिम काफी कम हो गया है। वे अब केवल कृषि से ही नहीं, वरन् पशुधन व मछली पालन से आय अर्जित कर रहे हैं ;तालिका नं0 1 देखेंद्ध। इसके साथ ही परिवार को मिलने वाले भोजन की विविधता में भी वृद्धि हुई है जिसके परिणामस्वरूप घरेलू पोषण में भी बढ़ोत्तरी हुई है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि खेत तालाब में पानी एकत्र कर वे असमय बारिश होने के बाद भी अपने खेतों की सिंचाई समय से कर ले रहे हैं। मरियम्मन स्वयं सहायता समूह के एक सदस्य के तौर और ग्राम स्तरीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन संघ का भी सदस्य होने के नाते, इलनगोवन अन्य लोगों के साथ अपने विचारों एवं अनुभवों को साझा करने तथा उन्हें उत्प्रेरित करने हेतु इन दोनों समूहों का उपयोग करते हैं।

अधिनरायनन आर.


अधिनरायनन आर
प्रोग्राम लीडर
जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कार्यक्रम
धान फाउण्डेशन
1 ए, वैद्यनाथपुरम पूर्वी
केनट क्रास रोड
मदुरई -625016, तमिलनाडु
ई-मेल:aadhi@dhan.org

Source: Climate change & ecological approaches, LEISA India, Vol. 19, No.2, June 2017

 

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