अपशिष्ट को अवसर में बदलना

Updated on September 3, 2022

विकास के क्रम में, आज जब हम ऐसे विकास की बात कर रहे हैं, जो बिना पर्यावरण, लोगों व उनकी आजीविका को नुकसान पहुंचाए हो, तब फर्रूखाबाद के एक छोटे से गांव में रहने वाले डॉ0 जगदीप सिंह के प्रयासों को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। इन्होंने गांवों को शहरों में बदलते देखा और उसी क्रम में बढ़ते प्रदूषण को भी अनुभव किया। और फिर शुरू हुई अपशिष्ट को अवसर में बदलने की कहानी, जिसके नायक एक नहीं तीन थे- किसान, उसके खेत/फसल और रोजगारी ईट-भट्ठा मालिक।


जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है- यह कथन अब बहुत पुराना हो गया है। नयी बात यह है कि इसके दुष्प्रभावों को स्थानीय स्तर पर महसूस किया जाने लगा है। लोग-बाग जानने लगे हैं कि जलवायु परिवर्तन के क्या कारण हैं और हमारा इसमें क्या योगदान है? फिर भी उंचे स्तर की जीवन शैली का मोह कहिए या आजीविका चलाने की जद्दो-जहद! उच्च, मध्यम व निम्न सभी आयवर्ग के लोग जानने व समझने के बावजूद बदलना नहीं चाहते।
हम सभी बखूबी परिचित हैं कि फसल अपशिष्टों को जलाने से एक तरफ तो हमारी मृदा का ह्रास होता है, उसमें मौजूद लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ वायुमण्डल में भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। साथ ही आज की चकाचौंध भरी शहरी जीवन शैली अपनाने के क्रम में कंकरीट के जंगल तैयार होते जा रहे हैं, जिसके लिए आवश्यक वस्तुओं में एक- ईंट तैयार करने में पर्याप्त मात्रा में कोयले का उपयोग होता है। विभिन्न अध्ययनों व शोधों से सिद्ध हो चुका है कि ईंट भट्टे और फसल अवशेषों को जलाना, ग्रामीण के साथ-साथ शहरी भारत में भी वायु, जल और मृदा प्रदूषण के दो सामान्य स्रोत हैं। ईंट भट्ठों से भारी मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड (ब्व्), कार्बन डाइऑक्साइड (ब्व्2), सल्फर डाइऑक्साइड (ैव्2), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (छव्2), ब्लैक कार्बन, पार्टिकुलेट मैटर (च्ड) का उत्सर्जन होता है, जबकि फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में 1 सेमी की गर्मी प्रवेश करती है। और 33.8-42.2 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में वृद्धि होती है, जो उपजाऊ मिट्टी के लिए महत्वपूर्ण जीवाणु और कवक आबादी को मार देती है। ये पदार्थ और हानिकारक गैसें ग्रीनहाउस प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग में भी बड़ा योगदान करती हैं।

पहल:
फोर्ड इण्डिया के साणंद प्लाण्ट में सीनियर मैन्युफैक्चरिंग इंजीनियर के रूप में कार्यरत डॉ0 जगदीप सिंह ने इस समस्या की गम्भीरता को समझा और वर्ष 2017 में नौकरी छोड़कर अपना पूरा समय इस समस्या के समाधान में लगाने का विचार किया जिसकी शुरूआत उन्होंने कनासी (कैमगंज, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश) नामक एक छोटे से गाँव से की और वहां पर लोगों की खेती में बदलाव ला दिया।

डॉ0 जगदीप जब भी अपने गांव कनासी आते, किसानों द्वारा फसल अवशेष जलाने की गतिविधियों से बढ़ते प्रदूषण को देखते समझते, उसके समाधान की बात भी सोचते, परन्तु कुछ परिणाम नहीं निकलता। वर्ष 2018 में उन्होंने गम्भीरता से इस समस्या पर विचार किया और किसानों को फसल अवशेष न जलाने हेतु जागरूक किया, किन्तु यह कार्य इतना आसान नहीं था, क्योंकि श्रम की अनुपलब्धता और उच्च श्रम लागत के कारण किसानों के लिए अपने खेतों की सफाई करना बहुत कठिन था। दूसरे इन्हें फसल अपशिष्टों का प्रबन्धन करने के बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी। इसी समय ईंट भट्ठा मालिकों द्वारा किये जा रहे कोयले के प्रयोग से बढ़ने वाले प्रदूषण ने भी इनका ध्यान खींचा और इन्होंने दोनों समस्याओं को मिलाकर उनका समाधान खोजा कि थोड़ी सी तकनीक से एक की जरूरत दूसरा पूरा करेगा और साथ में पैसा भी मिलेगा।

ईंट-भट्ठा मालिकों की समस्या को निकट से देखने हेतु उन्होंने लगभग 30 ईंटों के भट्ठों का दौरा किया और उनके मालिकों से मुलाकात की। उनमें से अधिकांश काले कोयले का उपयोग कर रहे थे जो प्रदूषण का प्रमुख स्रोत है क्योंकि यह ब्व्2, ब्व्, छव्2, ैव्2 और पार्टिकुलेट मैटर्स आदि जैसे बहुत सारे प्रदूषकों का उत्सर्जन करता है।

 

डॉ. जगदीप सिंह ने अपशिष्टों को अवसर में बदलने के माध्यम से दोनों समस्याओं का एक समाधान तलाशा कि यदि किसान अपने खेतों से निकलने वाले फसल अपशिष्टों से कोयला तैयार करें तो ईंट-भट्ठा मालिक उसे खरीद कर अपने भट्ठे में उपयोग करें। इससे एक तरफ जहां किसानों को अपने कचरे का अच्छा खासा मूल्य मिल जाता तो दूसरी तरफ भट्ठा मालिकों को स्थानीय स्तर पर ही कोयला की उपलब्धता भी सुनिश्चित हो जाती। परन्तु यह बहुत आसान नहीं था, क्योंकि ईंट-भट्ठा पर काफी बड़ी मात्रा में कोयलों की आवश्यकता होती है तथा दूसरी तरफ किसानों को भी नहीं पता था कि किस तरह से कोयला बनाया जाये।

इस स्थिति से निपटने हेतु सबसे पहले इन्हांेने के0वी0के0 जूनागढ़ की विषय विशेषज्ञ डॉ0 ममता कुमारी के साथ सम्पर्क स्थापित कर समाधान हेतु रास्ते तलाशे। तत्पश्चात् इंटरनेट पर काफी शोध के माध्यम से कोयला तैयार करने वाले प्लाण्ट के बारे में समझ बनायी और प्राप्त समाधान के उपर किसानों के साथ चर्चा की। और अन्ततः कोयला तैयार करने वाले संयंत्र की स्थापना हेतु आवश्यक उपकरणों की खरीद हेतु इकोस्टैन इंडिया, लुधियाना, पंजाब से सम्पर्क स्थापित किया गया।

रणनीति
संयंत्र खरीदने से पहले यह तय किया गया कि चूंकि इस क्षेत्र में सरसों की खेती बड़े पैमाने पर होती है और सरसों के अपशिष्टों को मवेशी भी नहीं खाते। इसलिए सभी इच्छुक किसान अपने सरसों की फसल के अपशिष्टों को इस संयंत्र हेतु उचित मूल्य पर उपलब्ध करायेंगे और रिकैप कन्सल्टेन्सी प्रा0लि0 के बैनर तले स्थापित संयंत्र पर कोयला तैयार कर उसे ईंट-भट्ठा मालिकों को बिक्री की जायेगी। अपशिष्ट न जलाने हेतुु पर्याप्त जागरूकता का प्रसार भी कराया गया।

फरवरी 2018 में कोयला बनाने वाले संयंत्र के लिए ऑर्डर दिया गया और वास्तविक प्लांट अप्रैल 2018 के पहले सप्ताह में प्राप्त हुआ। प्लांट ने 8 अप्रैल 2018 को कोयले का उत्पादन शुरू किया था। कोई प्रचार की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि माउथ पब्लिसिटी बहुत बड़ी थी। कोयला निर्माण संयंत्र को देखने के लिए बहुत से किसान, ब्रिकेटिंग दलालों और ईंटों के मालिकों ने संयंत्र का दौरा किया था। आज लगभग 350 से अधिक किसान इस संयंत्र के माध्यम से कृषि कचरे से धन पैदा कर रहे हैं। अब, फर्रूखाबाद के कैमगंज और मोहम्मदाबाद तहसील के लगभग 70-80 प्रतिशत ईंट भट्टों के मालिकों ने अपशिष्टों से तैयार कोयले का उपयोग करना शुरू कर दिया है।

परिणाम व विस्तार
परिणाम बताते हैं कि फसल अवशेषों को कोयले में बदलने और इन कोयलों के ईंट भट्टों में उपयोग से कार्बन फुटप्रिंट और अन्य हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों को कम करने में मदद मिली है, जिससे ब्व्2 उत्सर्जन में 8.22 मिलियन किलोग्राम, ब्व् उत्सर्जन में 0.34 मिलियन किलोग्राम, छव्ग उत्सर्जन में 0.028 मिलियन किलोग्राम की कमी आई है। ैव्2 उत्सर्जन 0.007 मिलियन किग्रा, और पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन 0.065 मिलियन किग्रा। इसने किसान की औसत आय में भी 11.81 प्रतिशत की वृद्धि की है, कोयला तैयार कर बेचने के माध्यम से डॉ0 जगदीप सिंह को 35 प्रतिशत शुद्ध लाभ अर्जित हुआ है, ईंट भट्ठों ने श्रम लागत में 13 प्रतिशत की कमी की है, ईंट उत्पादन में 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और ईंट भट्टे की कुल आय में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह ग्रामीण भारत के लिए पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ कचरे से धन पैदा करने का एक अच्छा समाधान साबित हुआ है।
डॉ0 जगदीप सिंह एवं के0वी0के0 के संयुक्त प्रयासों से इस योजना का विस्तार हो रहा है और इसी कड़ी में वर्ष 2021 में विदिशा, मध्य प्रदेश में एक नये कोयला बनाने के संयंत्र को स्थापित किया गया, जिसमें तकनीकी सहायता डॉ0 जगदीप सिंह व डॉ0 ममता सिंह, विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केन्द्र जूनागढ़ ने दी।

डॉ0 ममता कुमारी


डॉ0 ममता कुमारी
विषय वस्तु विशेषज्ञ
कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय
पिपलिया, धोराजी, राजकोट, गुजरात - 360410, भारत,
ई-मेल: mamata.kumari27@gmail.com

 

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