अनुकूलित/लचीली खेती: एक एकड़ मॉडल

Updated on September 5, 2023

जब प्राकृतिक संसाधनों का यथेष्ट उपयोग करते हुए प्राकृतिक तरीकों से खेती की जाये तो एक एकड़ भूमि में की गयी खेती भी लाभकारी हो सकती है। कर्नाटक के एक किसान थम्मैया ने अपने एक एकड़ मॉडल के माध्यम से यह सिद्ध किया है।


मैसूर जिले के हुनसूर तालुक के चौड़िकट्टे गांव के श्री थम्मैया एक नवोन्वेषी किसान हैं जो विगत चार दशकों से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। उन्हें अपना खेत अपने पिता से विरासत में मिला, जो रासायनिक खेती करते थे। लेकिन थम्मैया, स्नातक होने और रासायनिक खेती के नुकसानों से अवगत होने के कारण प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ गये। थम्मैया के पास 24 एकड़ भूमि है। लगभग 16 एकड़ पर बाग है, जिसमें कई तरह के मुख्य रूप से 800 नारियल के वृक्षों के साथ सपोता, केला, आम, अदरक, हल्दी और मौसमी फसलों के साथ अन्तःखेती करते हैं। फसलों की खेती पारम्परिक चक्र में जैविक तरीके से की जाती है। लगभग एक एकड़ भूमि पर विशेष रूप से पौधरोपण, वानिकी पौधों, फलदार वृृक्ष और इमारती लकड़ी के नर्सरी उगाये जाते हैं। नर्सरी में उगाये गये पौधों की भारी मांग होती है और ये किसान के लिए आय उपार्जन गतिविधि के रूप में काम करते हैं।

इनके पास 6 खेत तालाब हैं जो 6 एकड़ क्षेत्र में फैले हुए हैं। मेड़ों पर बांस, गूलर के पेड़ और चारे की फसलें उगायी जाती हैं। बरसात के मौसम में लगभग 53 दिनों में अधिकांशतः दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान उनके खेत में औसतन 770 मिमी0 वार्षिक वर्षा होती है। आवश्यकता पड़ने पर तालाबों के पानी से खेत की सिंचाई की जाती है। जब तालाबों के पानी का उपयोग नहीं होता है तब यह पानी भूजल को रिचार्ज करने में मदद करता है। गर्मियों के दौरान आवश्यकता पड़ने पर वह सिंचाई के लिए जमीन से पानी निकालने हेतु 5 हार्सपावर मोटर का उपयोग करते हैं। 6 तालाबों में से एक तालाब में मछलियां पाली जाती हैं, जो इनके लिए आय का एक अतिरिक्त स्रोत हैं। इसके अलावा, थम्मैया पशुपालन भी करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि पशुपालन आय का एक स्रोत होने के साथ-साथ जैविक खेती अभ्यास के लिए महत्वपूर्ण है। वे अपने फार्म पर 11 गाय (8 मलनाड गिदा प्रजाति की और 3 हल्लीकर प्रजाति की), 4 बछड़े, 3 भेड़, 12 बकरियां, 2 टर्की मुर्गियां एवं 4 स्थानीय प्रजाति की मुर्गियां पालते हैं।

एक एकड़ मॉडल प्रक्षेत्र

वर्ष 2019 में, इन्होंने कनेरी, कोल्हापुर के श्री सि)गिरी मठ का भ्रमण किया, जहां उन्होंने एक एकड़ मॉडल प्रक्षेत्र के बारे में सीखा। उन्होंने महसूस किया कि यदि वे यह प्रदर्शित कर सकें कि कैसे एक एकड़ के खेत से आत्मनिर्भर बना जा सकता है, तो कम संसाधनों के साथ खेती कर जीवन-यापन करने वाले किसानों को मदद मिल सकती है। इसी सोच को ध्यान में रखते हुए इन्होंने अपने खेत पर एक एकड़ मॉडल के विकास की एक शुरूआत थी।

वर्ष 2019 में, थम्मैया ने बहुस्तरीय खेती तकनीक सीखी। इस पद्धति में, प्राकृतिक संसाधनों जैसे- भूमि, जल, प्रकाश आदि के अनुकूलित उपयोग हेतु एक ही खेत में, एक ही समय में विभिन्न उंचाई के पौधे उगाये जाते हैं। पहली फसल की कटाई के समय तक दूसरी फसल भी कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस प्रकार यह एक स्व-स्थाई तकनीक है। चूंकि पौधों के बीच आपस की दूरी बहुत कम होती है, इसलिए एक फसल के लिए की जाने वाली सिंचाई दो या अधिक फसलों के लिए पर्याप्त होती है, इस प्रकार पानी की बचत होती है।

थम्मैया ने अपना प्रयोग नारियल के वृक्षों के साथ प्रारम्भ किया। उन्होंने सबसे पहले खेत के पूर्व और पश्चिम की ओर 30 फीट की दूरी पर नारियल के पेड़ (उंचे) लगाये। नारियल के दो वृक्षों के बीच उन्होंने एक चीकू का पेड़ (अधिक छतरी वाला मध्यम लम्बा) लगाया। नारियल और चीकू के बीच की जगह में उन्होंने केले का पेड़ (मध्यम उंचाई) (दूसरी परत) लगाया। नारियल के पेड़ों के नीचे उन्होंने काली मिर्च और पान की बेल लगाई है। इन पेड़ों के बीच में उन्होंने अदरक और हल्दी के पौधे लगाये। खेत के उत्तर और दक्षिण की ओर तीसरी परत में उन्होंने आम, अमरूद, पपीता, जामुन, कटहल जैसे वृक्ष लगाये। इन वृक्षों के नीचे अगली परत के रूप में नोनी पौधा, कृष्णा फल, रामफल, लक्ष्मण फल, नीबू का पेड़ और छोटे फलों के पौधे लगाये हैं (चित्र 1)।

इन्होंने हरी पत्तेदार सब्ज़ियों, मौसमी सब्ज़ियों एवं बाजरा को भी लगाया। वे मृदा को ढंकने के माध्यम से खर-पतवार की बढ़त को रोकते हैं। जमीन के नीचे अदरक, हल्दी, रतालू, कसावा और गंजी की खेती की। गंजी की खेती मुख्यतः चूहों को आकर्षित करने और अन्य फसलों को चूहों से बचाने के लिए करते हैं। इस प्रणाली में सहजीवन शामिल है, प्रत्येक पौधा दूसरे को बढ़ने में मदद करता है। हल्दी में रोगाणुरोधी गुण होने के कारण यह विषाणुओं को बढ़ने से रोकता है, सब्ज़ियां खर-पतवार की बढ़त को रोकती हैं और बीच में मसाले हैं, क्योंकि इन्हें कम प्रकाश की आवश्यकता होती है।

ग्लिरिसीडिया, सहजन, मूंगा गाछ, मालाबार नीम को बाड़ की फसलों के तौर पर लगाया गया। सभी पौधों में विभिन्न गुण होते हैं। एक तरफ जहां ग्लिरिसीडिया मिट्टी में नाइट््रोजन स्थिरीकरण का कार्य करता है, वहीं सहजन और मूंगा गाछ की पत्तियों और बीजों का उपयोग भोजन और औषधीय उद्देश्य के लिए किया जाता है। साथ ही पत्तियां मिट्टी के लिए जैविक खाद का भी काम करती हैं। जब भी थम्मैया अपने एक एकड़ मॉडल खेत मंे जाते हैं तो वह पत्तियों को काटते हैं और भूमि पर गिरा देते हैं, जो हरी खाद और गीली घास के रूप मंे काम करते हैं। भूमि पर फैली ग्लिरिसीडिया की लगभग 1 किग्रा0 पत्तियां लगभग 120 लीटर वर्षा जल को अपने अन्दर अवशोषित करती हैं, जिससे जल संरक्षण में मदद मिलती है।

औषधीय, कॉफी एवं अन्य छोटे फलों के 80 पौधे अन्य पौधों में शामिल हैं। खेत में प्रचुर मात्रा में वनस्पतियांे को देखते हुए परागण बढ़ाने के लिए थम्मैया ने अपने एक एकड़ मॉडल खेत में मधुमक्खी पालन इकाईयां भी स्थापित की हैं। वे एक जैविक कीटनाशक जीवाम्रुत (बाक्स 1 देखें) तैयार कर ड््रमों में एकत्र करते हैं और उसे अपने मॉडल खेत में उपयोग करते हैं। ना प्रारम्भ कर दिया है। खाद तैयार करने के लिए फसलों का अपशिष्ट भी मॉडल खेत में एकत्र किया जाता है। इस एक एकड़ मॉडल खेत में निराई-गुड़ाई, जुताई और अन्तर-खेती अभ्यास नहीं किया जाता है। थम्मैया ने अपने मॉडल खेत में जैविक कीट नियंत्रण का भी प्रदर्शन किया है। उदाहरण के लिए, गैंडा के थूथन से नारियल के पेड़ को बचाने के लिए हरड़ अथवा हर्रे के बीज के तेल को 2 लीटर बोतल में भरकर पेड़ से बांध देते हैं। ठीक इसी प्रकार, बन्दरों के आतंक को रोकने के लिए थम्मैया नारियल के पेड़ों पर दो लीटर वाले पानी के बोतल में मछली के टुकड़ों सहित मछली का सांभर भर कर रखते हैं। बन्दर मछली की दुर्गन्ध से दूर भागते हैं।

  बाक्स 1: जीवाम्रुत तैयार करना एक ड््रम में 200 लीटर पानी डालें। अब इसमें गाय का ताजा गोबर 10 किग्रा0, 10 लीटर गौमूत्र, 2 किग्रा0 गुड़, 2 किग्रा0 पिसी हुई दाल एवं खेत की मेड़ से एक मुट्ठी मिट्टी मिलायें। घोल को बढ़िया से मिलायें और फिर इसे सड़ने के लिए 48 घण्टे तक किसी छायादार स्थान पर रख दें। अब जीवाम्रुत तैयार है। 200 लीटर जीवामु्रत एक एकड़ खेत के लिए पर्याप्त होता है।

एक नवोन्वेषी किसान के तौर पर थम्मैया ने अपने खेत पर नारियल के पौधों का चयन, केले की खेती की सामूहिक पद्धति आदि (देखें बाक्स 2) बहुत से नवीन विचारों को अपनाया है। वह अपने मॉडल खेत को देखने आने वाले अन्य किसानों के साथ इन नवाचारों को साझा भी करते हैं।

लाभ और प्राप्तियां

बहुस्तरीय खेती के माध्यम से थम्मैया मात्र एक एकड़ खेत में 80 औषधीय पौधों, नारियल, चीकू, केला, अमरूद, कटहल, बाजरा, पत्तेदार सब्ज़ियां, आम, चारा फसलों के लिए कन्द और जड़ वाली फसलों सहित लगभग 200 प्रजातियों की खेती कर रहे हैं। एक एकड़ खेती मॉडल में कम पानी के उपयोग की आवश्यकता होती है। अतः हम इसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों अधिक प्रभावी ढंग से क्रियान्वित कर सकते हैं। इसमें पानी का उपयोग बहुत कम हो जाता है। थम्मैया कहते हैं, ‘‘एक एकड़ खेत में जहां पारम्परिक किसान प्रत्येक ऋतु में 20,000 लीटर पानी का उपयोग करता है, वहीं हमें 6,000 लीटर से भी कम पानी की आवश्यकता होती है।’’

   बाक्स 2: पौधरोपण एवं फलदार फसलों में नवाचार नारियल पौध का चयन एवं उगाना: ऐसे पेड़ जो 40 वर्ष पुराने हों और जिसका उपरी सिरा गोलाकार मुकुट ( पूर्ण चन्द्रमा के आकार जैसा) की तरह दिखता हो, उसे ही मूल वृक्ष के तौर पर चयन करना चाहिए। मूल वृक्ष से गिरने वाले नारियलों को इकट्ठा कर उसे एक छोटे तालाब में 3 महीनों के लिए रखना चाहिए। उनमें जो नारियल का गोला आधा पानी में डूबा हुआ हो, उसे ही नर्सरी तैयार करने के लिए चुनना चाहिए। तालाब से निकालकर नारियल के गोले को जीवामु्रत में डुबाना चाहिए। उसके बाद नारियल को निकालकर पौध उगाने के लिए नर्सरी के थैलों में रखना चाहिए। केला की खेती की सामूहिक पद्धति: थम्मैया ने रोबस्ट, नान्द्रेड़, इलाक्कीबेल, रसाबेल, साम्बरबेल, मराबेल, केम्पू/रजाबेल एवं जी9 नाम से केला की 10 प्रजातियों को बनाया है। केले के गुच्छों को काटने के बाद उसके तनों को खेत में छोड़ देते हैं। तनों में मौजूद पोटाश को नये उग रहे पौधों को शोषित कर लिया जाता है और इसके बाद पौधों में किसी भी प्रकार के खाद अथवा पोटाश डालने की आवश्यकता नहीं होती है।

इस मॉडल का दूसरा बड़ा लाभ यह है कि अलग-अलग अवधि में पकने वाली भिन्न-भिन्न प्रकार की फसलें उगाने से पूरे वर्ष भर उपज मिलती रहती है। इस मॉडल से खाद्य, पोषण और आय तीनों प्रकार की सुरक्षा मिलती है। उदाहरण के लिए, थम्मैया, बाजराों का उपयोग अपने परिवार के उपभोग के लिए करते हैं, जिससे उनके परिवार को खाद्य व पोषण दोनों प्रकार की सुरक्षा मिलती है। कटाई से प्राप्त बाजरा के कुछ हिस्से का मूल्य संवर्धन भी करते हैं। वह 20-25 किग्रा0 बाजरा को पारम्परिक पत्थर की चक्की से पीस कर आटा तैयार करते हैं जिससे बाजरे का पोषक तत्व बना रहे। इसे वह आरोग्य स्फूर्ति ब्राण्ड नाम से बेचते हैं और प्रतिवर्ष रू0 50,000.00 आय प्राप्त करते हैं।

अपने एक एकड़ मॉडल के अन्तर्गत नारियल, चीकू, केला और काली मिर्च जैसे औद्यानिक वृक्षों से वह वर्ष भर में मोटा-मोटा रू0 10 लाख कमा लेते हैं। इसके अतिरिक्त, वह औषधीय पौधों से तैयार ‘‘कफ चूर्ण’’ तथा बिना बिके केले को सुखाकर बेचकर उससे भी आय प्राप्त करते हैं। वह अपने खेत में तैयार सब्ज़ियों, आम, कटहल आदि को अपने घर आने वाले लोगों, दोस्तों आदि को देते रहते हैं और अपने सम्बन्धों को सुदृढ़ बनाये हुए हैं। जैविक रूप से खेती करने का उनको सबसे बड़ा लाभ यह है कि उनके खेत में तैयार उपज रसायन मुक्त और स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। थम्मैया ने यह सि) कर दिया है कि प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रबन्धन कर, बाहरी निवेश का उपयोग कम से कम करते हुए और जहां तक संभव हो उपज का मूल्य संवर्धन करते हुए एक एकड़ खेत में भी खेती को लाभकारी बनाना संभव है।

खेती से आगे

थम्मैया ने न केवल एक स्थाई मॉडल तैयार किया है, वरन् वह अपने खेत पर आने वाले अन्य किसानों को इस मॉडल को अपनाने हेतु प्रोत्साहित भी करते हैं। लगभग 20-30 लोग प्रति सप्ताह उनके खेत का भ्रमण करते हैं। हाल ही में, कृषि और औद्यानिक विश्वविद्यालय तथा विद्यावर्धन कॉलेज, मैसूर के छात्रों ने उनके खेत का भ्रमण किया। थम्मैया जो अभ्यास करते हैं, उसे सिखाते भी हैं। वह इच्छुक लोगों के लिए माह में एक बार प्रशिक्षण का आयोजन करते हैं। सामान्यतः उनके खेत पर 50-100 किसान प्रशिक्षित हो चुके हैं। हुन्सुर क्षेत्र के आस-पास रहने वाले युवाओं को वह खेत प्रबन्धन पर मार्गदर्शन और प्रशिक्षण भी देते हैं। वह इन युवाओं को आवास और भोजन निःशुल्क देने के साथ ही प्रतिदिन रू0 500.00 का भुगतान भी करते हैं। उन्होंने 70 किसानों को एक एकड़ मॉडल तैयार करने के लिए निर्देशित किया है। इसमें कनकपुरा तालुक, नानाजागुड तालुक, मैसूर और चन्नापटना तालुक के किसान शामिल हैं।

बी एम संजना सहायक सम्पादक


बी एम संजना सहायक सम्पादक,
लीज़ा इण्डिया ए0एम0ई0 फाउण्डेशन नं0 
204, 100 फीट रिंग रोड तीसरा फेज, बनशंकरी, 
द्वितीय ब्लाक, तीसरा स्टेज बंगलौर - 560 085 भारत 
ई-मेल: sanjana@amefound.org

Source: Building Farm Resilience, LEISA India, Vol. 24, No. 3, Sep, 2022

Recent Posts

कृषि पारिस्थितिकी पर प्रशिक्षण वीडियो: किसानों के हाथ सीखने की शक्ति देना

कृषि पारिस्थितिकी पर प्रशिक्षण वीडियो: किसानों के हाथ सीखने की शक्ति देना

छोटे एवं सीमान्त किसानों के लिए कृषि पारिस्थितिकी ज्ञान और अभ्यासों को उपलब्ध कराने हेतु कृषि सलाहकार सेवाओं को...