कृषि पारिस्थितिकी- भारतीय युवाओं के लिए एक स्थाई समाधान

Updated on July 14, 2025

युवाओं को कृषि पारिस्थितिकी अभ्यासों को अपनाने के लिए सशक्त बनाकर न केवल स्थाई खाद्य उत्पादन सुनिश्चित होता है, वरन् ग्रामीण आजीविका, पर्यावरणीय संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलता है। यह लेख भारत में युवाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर गहराई से चर्चा करता है और यह भी पता लगाता है कि कैसे कृषि पारिस्थितिकी युवाओं के समग्र विकास में योगदान देते हुए उन्हें सशक्त बनाने के लिए स्थाई समाधान प्रस्तुत कर सकता है। साथ ही इस लेख में युवाओं की क्षमता का उपयोग करने के उद्देश्य से वर्तमान रणनीतियों पर भी चर्चा की गयी है।


भारत के युवा बेरोजगारी, शिक्षा तक पहुंच का अभाव, पर्यावरणीय ह्रास एवं आर्थिक असमानताओं सहित कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। राष्ट््रीय युवा नीति 2014 के अनुसार, भारत में 15-29 आयु वर्ग के युवाओं की संख्या देश की कुल जनसंख्या का 27.5 प्रतिशत है और भारत के सकल राष्ट््रीय आय में इनका योगदान 34 प्रतिशत है। बेरोजगारी एक गम्भीर मुद्दा है, जो भारतीय युवाओं को उनकी योग्यता और कौशल के बावजूद प्रभावित करता है। उपयुक्त रोजगार के अवसरों की कमी से युवाओं में हताशा और अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो रही है। इसके अतिरिक्त, गरीबी, अपर्याप्त बुनियादी सुविधाओं एवं सामाजिक अवरोध के चलते लाखों युवाओं की पहुंच गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक नहीं हो पाती है, इससे उनका व्यक्तिगत और व्यवसायिक विकास बाधित होता है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन, वनों की कटान एवं प्रदूूषण सहित पर्यावरणीय ह्रास से विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों लोगों की आजीविका के समक्ष संकट उत्पन्न हो रहा है, जहां लोगों की आजीविका और आय का प्रमुख साधन कृषि है। एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है, असमानताएं बढ़ रही हैं और विशेषकर कमजोर समुदायों की संसाधनों एवं अवसरों तक सीमित पहंुच होने के कारण आर्थिक असमानताएं बनी हुंई हैं।

कृषि पारिस्थितिकी की भूमिका
भारत के कृषि क्षेत्र की विशेषता परम्परागत पद्धतियों से की जाने वाली खेती है जो बहुधा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है। छोटी जोत के किसान, जो कृषिगत कार्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, उन्हें आर्थिक चुनौतियों तथा संसाधनों तक सीमित पहुंच की समस्या से ग्रसित होते हैं। तक स्थाईत्व नहीं रह पाता है। जलवायु परिवर्तन, मृदा क्षरण और जल संकट के कारण ये चुनौतियां और अधिक बढ़ जाती हैं जिससे खेती के लिए वैकल्पिक तरीकों की तत्काल आवश्यकता महसूस होने लगती है।

कृषि पारिस्थितिकी खेती के लिए एक ऐसा समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है जो कृषिगत प्रणालियों में पारिस्थितिकी सिद्धान्तों के एकीकरण पर जोर देती है। जैव विविधता, मृदा स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्रों के रिजीलियेन्स को बढ़ावा देने के माध्यम से कृषि पारिस्थितिकी का उद्देश्य पर्यावरणीय प्रभावों को कम करते हुए उत्पादकता को बढ़ाना है। फसल विविधीकरण, प्राकृतिक तरीके से कीट प्रबन्धन और समुचित जल उपयोग आदि ऐसी मुख्य गतिविधियां हैं, जो खेती प्र्रणालियों को स्थाई बनाये रखने में योगदान करती हैं। कृषि पारिस्थितिकी के मुख्य सिद्धान्तों को बाक्स 1 में बताया गया है –

भारत में विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में कृषि पारिस्थितिकी आधारित अभ्यासों की वकालत लम्बे समय से लोगों द्वारा की जा रही है। महाराष्ट््र स्थित श्रीपाद दाभोलकर का ‘‘प्रयोग परिवार’’ हो अथवा गुजरात के भास्कर सवे द्वारा किया जा रहा प्राकृतिक खेती अभ्यास, कर्नाटक के नारायण रेड्डी हों अथवा तमिलनाडु के जी. नाम्मलवर, ये सभी कृषि पारिस्थितिकी अभ्यासों को अपने-अपने क्षेत्रों में दशकों से अपना रहे हैं। इनके अलावा, हाल ही में, खेतिहर समुदायों को उत्प्रेरित करने हेतु शून्य बजट प्राकृतिक खेती एक आंदोलन के रूप में बड़े पैमाने पर उभर कर सामने आयी है।

कृषि पारिस्थितिकी एक समाधान के रूप में
भारत की जनसंख्या में युवाओं का बड़ा प्रतिशत है और कृषि में उनकी भागीदारी कई कारणों से महत्वपूर्ण है –

1. नवाचार और अनुकूलन: युवा किसान कृषिगत चुनौतियों के लिए नये दृष्टिकोण, नयी रचनात्मकता और अभिनव समाधान लेकर आते हैं। जलवायु परिवर्तन और अन्य खतरों का सामना करने तथा कृषि सेक्टर की रिजीलियेन्स के लिए युवा किसानों के अन्दर नयी तकनीकों एवं गतिविधियों को अपनाने की पर्याप्त क्षमता है।
2. दक्षता विकास: कृषि पारिस्थितिकी आधुनिक कृषि तकनीकों के साथ पारम्परिक ज्ञान के महत्व पर जोर देती है। कृषि पारिस्थितिकी अभ्यासों में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों से जुड़ाव स्थापित कर युवा बहुमूल्य कौशल प्राप्त कर सकते हैं जो उन्हें एक सफल किसान और उद्यमी बनने में सक्षम बनाता है।
3. स्थायित्व: कृषि पारिस्थितिकी पर्यावरणीय संरक्षण, जैवविविधता एवं प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन को प्राथमिकता देने वाली स्थाई खेती गतिविधियों को प्रोत्साहित करती है। कृषि पारिस्थितिक दृष्टिकोण से युवाओं के जुड़ने के पश्चात् यह सुनिश्चित हो जाता है कि पीढ़ियों तक इन अभ्यासों में निरन्तरता बनी रहेगी।
4. आर्थिक सशक्तता: विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि लाखों भारतीयों की आजीविका का प्रमुख स्रोत है। कृषि पारिस्थितिकी में युवा वर्ग के शामिल होने से हम आर्थिक सशक्तता, उद्यमशीलता और ग्रामीण विकास के लिए नये अवसर तैयार कर सकेंगे।
5. खाद्य सुरक्षा: बढ़ती जनसंख्या और बदलती आहार प्राथमिकता के साथ, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण चिन्ता का विषय हुआ है। कृषि पारिस्थितिकी के अन्तर्गत खाद्य सम्प्रभुता एवं पोषण सुरक्षा में योगदान देने वाले अभ्यासों जैसे- विविधीकृत फसल प्रणाली, जैविक खेती एवं स्थानीय खाद्य उत्पादन पर जोर दिया जाता है।
6. पर्यावरणीय संरक्षा: कृषि पारिस्थितिकी गतिविधियां जैवविविधता संरक्षण, मृदा स्वास्थ्य एवं जल प्रबन्धन को प्रोत्साहित करते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में मदद मिलती है। कृषि पारिस्थितिकी में युवाओं की भागीदारी उन्हें पर्यावरण का संरक्षक बनने, स्थाई भूमि उपयोग करने तथा प्राकृतिक संसाधन संरक्षण में सक्षम बनाती है।
7. सामुदायिक सशक्तिकरण: कृषि पारिस्थितिकी खेती के लिए समुदाय-आधारित दृष्टिकोणों को बढ़ावा देती है और किसानों के बीच सामूहिक कार्यों तथा सहयोग की भावना को प्रोत्साहित करती है। समुदाय के नेतृत्व में की जाने वाली गतिविधियों में युवाओं की भागीदारी से सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा मिलता है जिससे वे स्थानीय चुनौतियों का मिलकर सामना करने में सक्षम होते हैं।
8. उद्यमिता एवं बाजार से जुड़ाव: युवाओं के बीच कृषि में उद्यमिता को बढ़ावा देकर मूल्य संवर्धन, विविधीकरण, एवं बाजार तक पहंुच के लिए नये अवसरों का निर्माण किया जा सकता है। फार्मर प्रोड्यूसर आर्गनाइजेशन और कोआपरेटिव जैसे पहल से जुड़कर छोटी जोत के किसान अपने उत्पादों को सामूहिक रूप से बाजार तक ले जा सकते हैं, उचित मूल्य के लिए मोल-भाव कर सकते हैं और जैविक उत्पादों के लिए बेहतर बाजारों तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करने में सक्षम हो सकते हैं। युवाओं के नेतृत्व में किये गये कृषि-व्यापार जैसे- जैविक खाद्य स्टार्ट-अप एवं पर्यावरणसम्मत कृषि प्रसंस्करण इकाईयां गांवों में रोजगार का सृजन करने तथा आर्थिक विकास में अपना योगदान कर सकती हैं।

 

बाक्स 1: कृषि पारिस्थितिकी के प्रमुख सिद्धान्त
1. जैवविविधता: कृषि पारिस्थितिकी कृषिगत प्रणालियों में जैवविविधता के महत्व को पहचानती है। पारिस्थितिकी तंत्रों की विविधता कीटों, बीमारियों एवं पर्यावरणीय तनावों के प्रति अधिक रिजीलियेन्ट रहते हैं। कृषि पारिस्थितिकी अभ्यासों में बहुधा फसल विविधीकरण, कृषि-वानिकी एवं अपने कृषिगत क्षेत्रों के अन्दर या उसके आस-पास प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा शामिल है।
2. मृदा स्वास्थ्य: कृषि पारिस्थितिकी स्थाई कृषि के लिए स्वस्थ मृदा पर जोर देती है। फसल चक्रीकरण, आच्छादन खेती एवं जैविक मृदा परिवर्तन से बिना किसी रासायनिक निवेशों का उपयोग किये मृदा उर्वरता, ढांचे और पोषण चक्रीकरण में सहयोग मिलता है।
3. पारिस्थितिकी कीट प्रबन्धन: केवल रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भर रहने के बजाय, कृषि पारिस्थितिकी एकीकृत कीट प्रबन्धन रणनीति के उपयोग को प्रोत्साहित करती है। इसमें जैविक नियंत्रण, फसल चक्रीकरण, पक्षियों/जीवों के रहने की जगह बनाकर तथा कीटों को प्रबन्धित करने हेतु प्रतिरोधी फसल प्रजातियों का प्रयोग करने जैसी गतिविधियों को अपनाकर लाभकारी जीवाश्मों एवं पर्यावरण के नुकसान को कम किया जा सकता है।
4. स्थानीय ज्ञान एवं सहभागी दृष्टिकोण: कृषि पारिस्थितिकी स्थानीय ज्ञान को महत्व देती है और किसान, शोधकर्ताओं एवं अन्य हितभागियों को शामिल करते हुए निर्णय लेने की सहभागी प्रक्रियाओं को बढ़ावा देती है। स्थानीय समुदायों के साथ समन्वयन स्थापित करते हुए, कृषि पारिस्थितिकी पहलों को विशिष्ट सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय सन्दर्भों के अनुरूप बनाया जा सकता है जिससे उनकी प्रभावशीलता और स्वीकार्यता बढ़ जाती है।
5. स्थाईत्व एवं रिजीलिन्स: कृषि पारिस्थितिकी का उद्देश्य कृषिगत प्रणाली को रिजीलियेन्ट बनाना है ताकि बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों से अनुकूलन स्थापित किया जा सके और लम्बे समय में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिल सके। बाहरी निवेशों पर निर्भरता कम करके और पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बढ़ावा देकर, कृषि पारिस्थितिकी खेती अभ्यास खाद्य उत्पादन प्रणालियों के स्थाईत्व में योगदान देते हैं।

 

कृषि पारिस्थितिकी में युवाओं की भागीदारी: वर्तमान स्थिति
भारत में कृषि पारिस्थितिकी के बड़े पैमाने पर विस्तार हेतु युवाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण है। शिक्षा, तकनीक और उद्यम में निवेश कर, युवा वर्ग स्थाई कृषि को आगे बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभा सकते हैं। भारत में कृषि में युवाओं की भागीदारी के महत्व को पहचाना जा रहा है और कृषि पारिस्थितिकी में उनकी भागीदारी को बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न रणनीतियों पर काम किया जा रहा है। इस क्षेत्र में युवा सशक्तिकरण के लिए संभावनाएं बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न गतिविधियों का प्रदर्शन किया जा रहा है। उनम से कुछ मुख्य गतिविधियां निम्नवत् हैं –

1. दक्षता विकास कार्यक्रम: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना ;पीएमकेवीवाईद्ध एवं दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना ;डीडीयू-जीकेएमद्ध जैसी योजनाएं कृषि पारिस्थितिकी अभ्यासों में युवाओं को दक्षता विकास प्रशिक्षण प्रदान करती हैं। ये कार्यक्रम उन्हें स्थाई कृषि तकनीक अपनाने हेतु आवश्यक ज्ञान व दक्षता से सुसज्जित करते हैं।
2. युवा उद्यमिता कार्यक्रम: अटल नवाचार मिशन और स्टार्टअप इण्डिया जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य कृषि सहित विभिन्न सेक्टरों में युवाओं के बीच उद्यमिता को बढ़ावा देना है। ये कार्यक्रम युवा उद्यमियों को वित्तीय सहायता, मार्गदर्शन एवं इनक्यूबेटर सुविधाएं प्रदान करते हैं जिससे उन्हें स्थाई कृषि हेतु अभिनव नवाचार विकसित करने हेतु उत्प्रेरित किया जाता है।
3. कृषि पारिस्थितिक खेती को प्रोत्साहन: प्रशिक्षण कार्यक्रमों, प्रदर्शनों एवं प्रसार सेवाओं के माध्यम से सरकारी संस्थाएं, स्वैच्छिक संगठन एवं अन्य नागर समाज संगठन कृषि पारिस्थितिकी खेती को प्रोत्साहित कर रहे हैं। ये गतिविधियां कृषि पारिस्थितिकी के लाभों के विषय में युवाओं को जागरूक करती हैं और उन्हें इसके क्रियान्वयन हेतु व्यवहारिक दिशा-निर्देश भी उपलब्ध कराती हैं।
4. युवा सहभागिता मंच:बहुत से ऑनलाइन और ऑफलाइन ऐसे मंच और नेटवर्क हैं जो कृषि पारिस्थितिकी में युवाओं की भागीदारी को सहज बनाते हैं। युवा मंच, फार्मर प्रोड्युसर संगठन एवं ऑनलाइन फोरम इसी तरह के कुछ मंच और नेटवर्क हैं। ये मंच युवा किसानों एवं कृषि उद्यमियों को आपस में ज्ञान एवं जानकारियों के साझाकरण, सहयोग एवं सामूहिक कार्य करने में सक्षम बनाते हैं।
5. नीतिगत सहयोग: कृषि पारिस्थितिकी खेती को सहयोग करने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा जैविक खेती प्रोत्साहन योजना, स्थाई कृषि मिशन एवं कृषि पर्यावरणीय अनुदानों सहित कई नीतिगत उपाय प्रारम्भ किये गये हैं। ये नीतियां युवाओं द्वारा कृषि पारिस्थितिकी अभ्यासों को अपनाने और बढ़ाने के लिए एक सक्षम वातावरण तैयार करते हैं।

कृषि पारिस्थितिकी: एक स्थाई समाधान
वर्तमान परिदृश्य में युवाओं के समक्ष खेती करने के दौरान आने वाली चुनौतियों को हल करने तथा उन्हें सशक्त बनाने हेतु कृषि पारिस्थितिकी स्थाई समाधान प्रस्तुत करती है। उनके सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ाने की दिशा में कृषि पारिस्थितिकी समग्र समाधान प्रस्तुत कर सकती है।

कृषि पारिस्थितिकी इन समस्याओं के समाधान और भारत के युवाओं को सशक्त बनाने हेतु एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है। कृषिगत अभ्यासांे में पारिस्थितिकी सिद्धान्तों का एकीकरण करते हुए, कृषि पारिस्थितिकी स्थाई कृषि तकनीकों को प्रोत्साहित करती है जो पर्यावरण की सुरक्षा करते हुए उत्पादकता को बढ़ावा देती है। कृषि पारिस्थितिकी अभ्यासों में दक्षता विकास कार्यक्रम युवाओं को आवश्यक ज्ञान और दक्षता से सुसज्जित करती है जिससे वे एक सफल किसान और उद्यमी के रूप में सामने आते हैं। जैविक खेती, मूल्य संवर्धन प्रसंस्करण और इको-टूरिज्म में उद्यमिता में अवसर स्थाई आजीविका विकल्प बनते हैं और ग्रामीण विकास में योगदान करते हैं। साथ ही बाहरी निवेशों की लागत को कम करते हुए उत्पादकों की शुद्ध आय बढ़ सकती है।

इसके अलावा, कृषि पारिस्थितिकी अभ्यास जैवविविधता संरक्षण, मृदा स्वास्थ्य और जल प्रबन्धन को बढ़ावा देते हैं जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव कम होते हैं। कृषि पारिस्थितिकी में युवाओं को शामिल करने से वे पर्यावरण के संरक्षक बन सकते हैं, भूमि के स्थाई उपयोग और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण को बढ़ावा दे सकते हैं। खेती के लिए समुदाय-आधारित दृष्टिकोण किसानों के बीच सामूहिक कार्यवाही और सहयोग को प्रोत्साहित करते हैं, सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देते हैं और युवाओं को स्थानीय चुनौतियों का सामूहिक रूप से सामना करने के लिए सशक्त बनाते हैं। इसके अतिरिक्त, कृषि पारिस्थितिकी निवेश लागत को कम करके, फसल के रिजीलियेण्ट में सुधार करके और छोटे किसानों के लिए बाजार तक पहुंच बढ़ाकर आर्थिक लाभ प्रदान करती है। कृषि पारिस्थितिकी अभ्यासों को अपनाकर युवा ऐसी रिजीलियेण्ट कृषि प्रणाली बना सकते हैं जो पर्यावरणीय आघातों एवं आर्थिक अनिश्चितताओं का सामना कर सकें। कुल मिलाकर, कृषि पारिस्थितिकी एक स्थाई समाधान के रूप में उभरती है, जो न केवल युवाओं को सशक्त बनाती है, वरन् खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण विकास में भी योगदान करती है।

सन्दर्भ
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विकास यादव
वरिष्ठ रिसर्च फेलो
आईसीएआर-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान
218, कौलागढ़ मार्ग देहरादून
उत्तराखण्ड – 248195
ई-मेल: rvikashyadavbkt2000@gmail.com

बांके बिहारी
प्रमुख वैज्ञानिक ;कृषि प्रसारद्ध
आईसीएआर-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान
218, कौलागढ़ मार्ग देहरादून
उत्तराखण्ड – 248195


Source: Youth and Agroecology, LEISA INDIA, Vol. 26, No.2, June 2024

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