यह सिद्ध होता जा रहा है कि स्थानीय कृषि पारिस्थितिकी के अनुकूल मोटे अनाजों पर आधारित फसल प्रणालियाँ चरम मौसमी स्थितियों के लिए उपयुक्त हैं। साथ ही आदिवासी समुदायों के बीच कुपोषण के मुद्दों के समाधान की दृष्टि से भी यह कृषि प्रणालियाँ अति महत्वपूर्ण हैं।
मोटे अनाज ओडिशा में स्थानीय समुदायों के दैनिक आहार का अभिन्न अंग रहे हैं। मोटे अनाज जलवायु अनुकूलित, वर्षा आधारित स्थितियों में उगने वाली तथा कम पानी चाहने वाली फसल हैं। इसके साथ ही ये छोटे एवं सीमान्त किसानों की खाद्य सुरक्षा एवं पोषण के स्रोत हैं।
स्थानीय समुदायों द्वारा पहाड़ी ढ़लानों के साथ मध्यम और ऊपरी भूमि पर स्थानान्तर खेती पद्धति से जून से सितम्बर के दौरान खेती की जाती है। अधिकांश किसानों द्वारा अपने घरेलू उपभोग के लिए खेती की जाती है। खेत से उत्पादित अनाज का केवल 10-20 प्रतिशत भाग ही स्थानीय हाट बाजारों में बिक्री की जाती है। परम्परागत तौर पर यहां के किसान, स्थानीय कृषि पारिस्थितिकी की दृष्टि से उपयुक्त मिश्रित खेती के साथ फसल चक्र पद्धति को अपनाते हैं। ये कृषि पद्धतियाँ समय के साथ जांची-परखी हैं और चरम मौसमी स्थितियों के लिए उपयुक्त हैं। पिछले दो दशकों से यहां के लोेगों के दैनिक आहार पद्धति में बदलाव देखा जा रहा है। अधिकांश ग्रामीण परिवारों द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली से प्राप्त चावल को भोजन में अधिक प्राथमिकता दी जा रही है। जीवन यापन हेतु कृषि के अतिरिक्त, स्थानीय समुदाय गैर इमारती वन उपज (एनटीएफपी) के लिए वनों पर निर्भर हैं। कंधमाल के अधिकांश गरीब परिवारों के लिए जबरदस्ती पलायन एक वास्तविक सच्चाई हैं।
पहल
वर्ष 2012 में, एक स्वैच्छिक संगठन निर्माण ने स्थानीय लोगों के साथ जुड़कर मिश्रित खेती, जैव विविधता और स्थाई खेती अभ्यासों एवं पारिस्थितिकी खेती को बढ़ावा देने वाले अभ्यासों पर काम करना प्रारम्भ किया। शुरूआत में, आधारभूत जानकारी एकत्र करने हेतु सभी गांवों में सहभागी ग्रामीण मूल्यांकन (पीआरए) अभ्यास कर घरेलू आय, अपनायी जा रही स्थानीय कृषि पद्धतियों की स्थिति, बीज विविधता की सीमा आदि विभिन्न पहलुओं पर जानकारियां प्राप्त की गयीं। समुदायों को अपनी स्थानीय कृषि पद्धतियों को पुनर्जीवित करने हेतु प्रेरित करने के लिए एक ग्राम स्तरीय बैठक का आयोजन किया गया जिसमें स्थानीय फसल विविधता के क्षरण, स्थानीय स्वदेशी कृषि प्रथाएँ और स्थाई खेती से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई।
नयागढ़ और कंधमाल जिलों की कुछ महिलाओं ने क्षेत्र में लघु मोटे अनाजों की खेती में आने वाली विभिन्न चुनौतियों को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया। वहाँ की खेती में मोटे अनाजों की बोआई के क्षेत्र में भारी कमी आई है और फसलों की पैदावार में भी कमी आई है। पिछले दो दशकों में मोटे अनाजों की खेती के क्षेत्रफल में 25-30 प्रतिशत तक तथा फसल की पैदावार में लगभग एक तिहाई की कमी आई है। लघु मोटे अनाजों की खेती एवं उपज में कमी के मुख्य कारणों में स्थानीय स्वदेशी बीज प्रजातियों की अनुपलब्धता, वन विभाग द्वारा पहाड़ी ढलान पर “पोडु चास“ करने पर प्रतिबंध, बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और तेजी से मिट्टी का कटाव प्रमुख हैं।
परियोजना के प्रथम वर्ष में मोटे अनाज आधारित मिश्रित खेती पर प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। परियोजना के दूसरे वर्ष में ग्राम स्तरीय प्रशिक्षण के दौरान स्थानीय मिश्रित और जैव विविधतापूर्ण कृषि प्रणाली पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्थाई खेती पद्धतियों और बीज विविधता को संचयन करने की आवश्यकता पर चर्चा किया गया। ऐसे में रणनीति यह थी कि महिला नेतृत्व वाले दृष्टिकोण को बढ़ावा देना जिससे खाद्य उत्पादन प्रणाली पर महिलाओं का नियंत्रण हो और स्थानीय कृषि-जैव विविधता का संरक्षण किया जा सके।
इस दृष्टिकोण को पुष्ट करने की दृष्टि से महिलाओं के साथ ग्राम स्तरीय बैठक का आयोजन की गईं। ग्राम स्तरीय संस्थानों (वीएलआई) को बढ़ावा दिया गया। लगभग 21 ग्राम स्तरीय संस्थानों (वीएलआई) का गठन किया गया और सदस्यों को मोटे अनाज आधारित सामुदायिक बीज बैंकों के प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित किया गया। वर्तमान में लगभग 27 समुदाय-आधारित बीज बैंकों का गठन किया गया है जो 27 ग्रामों में लगभग 600 किसानों का सहयोग करता है। स्थानीय देशी फसलों को विरासत के तौर पर संरक्षित करने हेतु स्थानीय समुदायों को एक बार सहयोग के तौर पर 12 स्थानीय देशी फसलों के बीज प्रदान किये गये। इसके पीछे बीज पूंजी को संरक्षित करने की मंशा थी। इन 12 फसल प्रजातियों को एक फसली मौसम के अन्दर पुनर्जीवित किया गया।
महिलाओं को मिश्रित खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया जिससे स्थानीय मिश्रित कृषि प्रणाली को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा सके। इसके लिए प्रमुख रणनीति महिला-नेतृत्व वाले दृष्टिकोण को बढ़ावा देना था।
समुदायों को ऊँची और निचली दोनों भूमि पर मोटे अनाजों की खेती करने हेतु प्रोत्साहित किया गया। मोटे अनाज मिशन परियोजना के कारण प्रमुख लघु मोटे अनाजों के बोये जाने वाले खेती क्षेत्र को नया बढ़ावा मिला है। खरीफ में लघु मोटे अनाजों को 2-3 महीने के लिए बोया जाता है। अधिकांश लघु एवं सीमांत किसान ऊँचे स्थानों पर धान की खेती करना पसंद करते हैं जिससे खाद्य सुरक्षा बनी रहे। आंशिक रुप से धान के साथ गली फसल की खेती करना अधिक फसल विविधीकरण प्राप्त करने का सबसे अच्छा उपाय है। इसलिए विभिन्न फसल संयोजन के मिश्रित खेती लोकप्रिय बन गयी है।
निर्माण संस्था ने भी समुदायों को प्रेरित किया कि मोटे अनाज प्रणाली गहनता (एसएमआई) को अपनायें और मोटे अनाज मिशन के तहत् अनुदान का लाभ उठायें जिससे नकद स्थानान्तरण में आसानी हो। इससे कारण बोये जाने वाले क्षेत्रों में वृद्धि हुई है और मोटे अनाज मिशन परियोजना के अन्तर्गत अधिकांश गांवों में रागी उत्पादन प्राप्त किया गया।
निर्माण ने छोटे मोटे अनाजों के प्रसंस्करण के लिए किसान समूहों का सहयोग किया है। इसके अन्तर्गत सुदूर जनजातीय इलाकों में सौर ऊर्जा आधारित मोटे अनाज प्रसंस्करण ईकाई का प्रावधान किया गया। महिला समूह उत्पादित मोटे अनाज एकत्रीकरण, मोटे अनाजों का प्रसंस्करण, पैकेजिंग और विपणन का कार्य करती हैं जिससे बेहतर आय अर्जित कर सकें।
लोगों से अनाज एकत्र करने तथा कटाई के बाद होने वाले कार्यों के लिए मशीनांे की व्यवस्था हेतु क्लस्टर स्तर पर ग्राहक नियुक्ति सेंटर स्थापित किये गये।
ओडिशा मोटे अनाज मिशन के तहत् सरकार द्वारा अनाजों की खरीददारी की जा रही है। राज्य में रागी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित है। हालाँकि, अभी तक अन्य मोटे अनाजों के लिए सरकार द्वारा कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित नहीं किया गया है। फिर भी, पायलट के तौर पर, अब राज्य में मोटे अनाज सार्वजनिक वितरण प्रणाली और मिड-डे-मील योजनाओं का हिस्सा हैं। मोटे अनाज की बिक्री सरकारी आउटलेट द्वारा विभिन्न कस्बों और शहरों में किया जाता है। वहाँ केवल कुछ ही सरकारी विपणन एजेंसियां हैं जैसे मिशन शक्ति/ओएलएम और बहुत कम निजी कंपनियाँ जैसे ओर्मास और ट्राइफेड। हाल ही में मोटे अनाजों का अंतर्राष्ट्रीय विपणन बाजार विकसित हो रहा है। कुछ सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों ने हाल ही में अन्तर्राष्ट्रीय उपभोक्ता देशों जैसे जर्मनी के साथ डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से जुड़ाव स्थापित करने की कोशिश की है।
परिणाम और प्रभाव ?
पारम्परिक या स्थानीय फसलों के पुनरूद्धार, सामुदाय आधारित बीज बैंकों के प्रबन्धन और देशी कृषि जैव-विविधता के संरक्षण में महिला किसान प्रमुख भूमिका निभा रही हैं।
किसानों के पारस्परिक वार्तालाप, ज्ञान का हस्तान्तरण और मोटे अनाजों की सर्वोत्तम पारम्परिक बीजों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने हेतु कंधमाल और नयागढ़ जिले में संयुक्त रूप से बीज महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इन सब प्रयासों से किसानों में पारिस्थितिकी खेती की प्रणालियों के प्रति जागरुकता औेर रुचि बढ़ रही है और पारम्परिक जैविक खेती प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रेरणा मिल रही है।
तालिका 1: 2021-22 में मोटे अनाजों की खेती का आंकड़ा, निर्माण, ओडिशा
| क्रमांक | प्रखण्ड | आच्छादित गांवांे की संख्या | शामिल किसानों की सं0 | आच्छादित क्षेत्रफल ;हे0 में | कुल बिक्रित अधिशेष रागी ;कु0 | बिक्री से प्राप्त कुल आय | किसानों के खाते में हस्तान्तरित प्रोत्साहन राशि |
| 1 | तुमुदीबन्धा | 212 | 2255 | 1081.4 | 3850.69 | 12965755.1 | 1659800 |
| 2 | कोटागदा | 75 | 1096 | 700.2 | 3762.74 | 4798142.9 | 1602000 |
| 3 | दसापाला ;प्रथम वर्षद्ध | 22 | 496 | 190.95 | 0 | 0 | 1699659 |
| 4 | के. सिंहपुर | 57 | 1675 | 1075 | 2500 | 8442500 | 1069000 |
| 366 | 5522 | 3047.55 | 10113.43 | 26203398 | 6030459 |
वर्तमान में, समुदाय-आधारित बीज बैंक मोटे अनाज, मक्का, दालें, सब्जियां और खाने योग्य कंद सहित 55 स्थानीय फसलों के विरासत बीजों के रख-रखाव पर कार्य कर रहे हैं। समुदाय द्वारा अब मोटे अनाज आधारित मिश्रित कृषि प्रणाली के अंतर्गत धान की 7 प्रजातियों, स्थानीय मक्का की 6 प्रजातियांे, छोटे मोटे अनाजांे की 3 किस्में, बार्नयार्ड मोटे अनाजों की 2 किस्मों, मोती मोटे अनाजों की 2 किस्मों, फॉक्सटेल बाजरा की 2 प्रजातियों, बाजरा की 2 प्रजातियों, अरहर की 4 प्रजातियों, लोबिया की 2 प्रजातियों, चावल की 3 प्रजातियों, देशी बीन की 4 प्रजातियों, काला चना की 2 प्रजातियों, कुल्थी और 17 प्रकार के खाद्य कंद को बो/उगा रहे हैं।
निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन तथा भूख और कुपोषण से मुिक्त के खिलाफ लड़ाई में महिलाएं प्रमुख भूमिका निभाती हैं। इन जनजातीय इलाकों में मोटे अनाज और महिलाओं के बीच का सम्बन्ध अपरिहार्य हैं। इन गरीबों में व्याप्त कुपोषण को कम करने में मोटे अनाजों का पुनरुद्धार एक वरदान साबित हुआ है।
क्षेत्र में स्थानीय मोटे अनाज की स्थानीय प्रजातियों की बोआई हेतु प्रोत्साहन, रख-रखाव और प्रसार की रणनीति के साथ ही अच्छी विपणन रणनीति तैयार करना भी अति महत्वपूर्ण है ताकि उनके उपज को नकदी फसलों में परिवर्तित किया जा सके। आसन्न जलवायु परिवर्तन को देखते हुए पर्याप्त भूमि पर इन प्रजातियों की खेती के विकास में ऐसी नीतियों से मदद मिल सकती है।
मोटे अनाजों के अपनाने के बहुत से फायदों को देखते हुए ओडिशा में मोटे अनाज मिशन, स्थानीय गैर सरकारी संगठनों और किसान संगठनों द्वारा सक्रिय रुप से प्रचार किया जा रहा है। फिर भी, यह सावधानी बरतने की आवश्यकता है कि मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के चक्कर में एकल फसल पद्धति के कारण जैव विविधता को नुकसान न पहुँचे।
रविशंकर बेहरा
सलाहकार, निर्माण
2डी-1, मेट्रो मेंशन अपार्टमेंट,
रबी टॉकीज चक, पुराना शहर,
भुवनेश्वर-751014
ओडिशा
ई-मेलः rsbeera@rediffmail.com
Source : Millets Farming Systems, Vol. 23, No.1, March 2023



