कृषि पारिस्थितिकी में सफलता की खेती

Updated on June 1, 2024

जुनून, समर्पण और रचनात्मकता से जीवन को बदल देने वाली रेहाना की कहानी खेतिहर परिवारों से जुड़ी अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हो सकती है। रेहाना ने कृषि पारिस्थितिकी के माध्यम से न केवल अपनीे खेत की उत्पादकता में परिवर्तन किया वरन् पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक कल्याण में भी योगदान दिया। मशरूम उगाने की कला सीखने से लेकर कृषि पारिस्थितिकी खेत तैयार करने तक के उनके सफर का समुदाय पर एक सकारात्मक प्रभाव परिलक्षित होता है।


महिलाएं, सदियों से कृषि एवं भोजन की प्राथमिक उत्पादक और भूमि के देख-भालकर्ता के रूप में होने के कारण कृषि पारिस्थितिकी ज्ञान के संरक्षण में मौलिक भूमिका निभाती आई हैं। कृषि पारिस्थितिकी में, महिलाओं का ज्ञान और कौशल उनके अपने समुदाय की आवश्यकताओं और सांस्कृतिक मूल्यो के अनुरूप स्थाई कृषि को बढ़ावा देने हेतु अमूल्य है। स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र का व्यापक ज्ञान, पारंपरिक कृषि तकनीकें और बीज संरक्षण विधि पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती हैं। निश्चित रूप से, महिलाओ ने स्थाई और समावेशी भोजन प्रणालियाँ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन बहुत बार इस पर ध्यान नहीं दिया जाता। उनकी महत्वपूर्ण व उल्लेखनीय भागीदारी के बावजूद, समाज में महिलाओं के योगदान को उपेक्षित किया जाता है। महिलाओं को सशक्त बनाना न केवल कृषि पारिस्थितिकी प्रमुख कृषि प्रणाली के क्षेत्र में बल्कि परिवार की स्थिति को भी बदल सकती है।

हमारी कहानी शुरू होती है एक मेहनती महिला रेहाना के साथ, जो अपने ससुराल वालों के साथ एक छोटे शहर में रहती हैं। रेहाना को, एक गरीब महिला होने के नाते, कई प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है और सीमित अवसरों के साथ जीवन-यापन करना पड़ता है। खेती से सम्बन्धित सभी निर्णय उनके परिवार के पुरुषों द्वारा लिया जाता है। वे लोग अपने पारम्परिक खेती के कई तरीकों को अपनाकर संघर्ष कर रहे हैं परिणामस्वरुप पैदावार कम होती है। वस्तुतः इनके परिवार को कृषि में उच्च उत्पादन मूल्य और न्यूनतम आय अर्जन के कारण आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अनेक चुनौतियों और सीमित संसाधनों का सामना करने के बावजूद रेहाना हमेशा अपने परिवार को एक बेहतर जिंदगी देने का सपना देखती थी।
वह हर सुबह अपने नियमित काम के बाद गायों और बकरियों की देखभाल के लिए खलिहान में निकल जाती थीं। वह न केवल अपने जानवरों की बल्कि खेत के लगे पौधों की भी देखभाल करती थीं। सबका यह मानना है कि ये सभी कार्य तो उनके कृषि जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन उनकी खेती के लिए समर्पण और प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध पर किसी का ध्यान नहीं गया।

एक दिन उन्होंने अपने पड़ोस की कुछ महिलाओं को खेती करते हुए देखा जो स्वयं सहायता समूह की सदस्य थीं। समूह की इन महिलाओं ने सामूहिक रूप से मशरूम उत्पादन की एक छोटी इकाई की स्थापना की थी और उनके इस काम के लिए पुरस्कृत भी किया गया था। उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों ने रेहाना को यह सोचने पर मजबूर किया कि यदि ये महिलाएं ऐसा कर सकती हैं तो मैं क्यों नहीं कर सकती? वास्तव में, रेहाना के अन्दर शुरू से ही खेती के प्रति बहुत अधिक अधिक जुनून और प्रेरणा शक्ति थी। उनका परिवार पीढ़ियों से खेती कर रहा है और कृषि की गहरी समझ उनको अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है। रेहाना को अपने आस-पास के परिवेश ने प्रेरित किया और उन्होंने “हमारी एकता“ नाम से एक स्वयं सहायता समूह का गठन किया।

उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्र, टीकमगढ से मशरूम उत्पादन पर प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने घर में ही मशरूम उत्पादन इकाई की स्थापना की। शुरुआत में उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्र से प्राप्त स्पॉन से ओएस्टर (सीप) मशरुम का उत्पादन छोटे पैमाने पर शुरू किया। बाद में उन्होंने मशरुम की अन्य प्रजातियों का उत्पादन भी शुरु कर दिया। साथ ही अपने स्वयं सहायता समूह की अन्य महिलाओं को भी मशरुम उगाने की उत्पादन तकनीक को सीखने हेतु प्रेरित किया। उनके द्वारा उगाए गये ताजा मशरुम की खबर चारों तरफ फैल गई और प्रारम्भ में लोग ताजा मशरूमों को खरीदने के लिए उनके घर तक स्वयं आने लगे। लेकिन इसमें बहुत उतार-चढ़ाव रहा। कुछ दिनों तक तो मशरुम की भारी माँग होती थी, लेकिन अन्य दिनों में उत्पादित मशरूम बच जाता था। रेहाना ने निर्णय लिया कि किसी भी चीज़ को बरबाद नही होने देंगी। वे अतिरिक्त मशरुम सुखाकर, पाउडर बनाकर संरक्षित करने लगीं। इस पाउडर को उन्होंने विभिन्न सामाग्रियों के साथ मिलाकर अनोखे पापड़ (कुरकुरा स्नैक्स) बनाया। यद्यपि ये पापड़ बहुत ही अनोख एवं स्वादिष्ट बने, लेकिन इनके विपणन में उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पर रेहाना भी जीवट की महिला निकलीं और उन्होंने इन चुनौतियों से निपटने की दिशा में कारगर कदम उठाते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र के विशेषज्ञों से सम्पर्क किया व अपने उत्पाद के पोषक तत्वों का मूल्य ज्ञात कर उसे प्रमाणित कराया। इस अनुभव ने उनके अन्दर नये आत्म विश्वास को जागृत किया।

मशरूम उत्पादन एवं उसके मूल्यवर्धक उत्पादों की सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने अपना ध्यान खेती की ओर लगाया। उन्होंने अपने पति के साथ एकीकृत खेती करने की ओर बदलाव किया। यह उनके लिए एक निर्णायक मोड़़ था। उन्होंने अपने स्वयं सहायता समूह के अन्य सदस्यों को एक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने की दिशा में फसलों, एकीकृत सब्जियों, फलों, अनाजों की विविधीकृत खेती और मुर्गी व बकरी पालन करते हुए विविधता बढ़ाने की सलाह दी जिससे कीटों एवं जलवायु के उतार-चढ़ावों के प्रति उनका लचीलापन बढ़े।

स्वयं सहायता समूह के कुछ सदस्यों ने जिससे मिट्टी की उर्वरता और जल धारण क्षमता को बढ़ाने हेतु सहचर रोपण, फसल चक्र, प्राकृतिक खाद विधियाँ जैसे कम्पोस्टिंग, ढंककर फसल तैयार करना और मल्चिंग विधि से खेती करना प्रारम्भ किया। साथ ही उन्होंने बकरी पालन और मुर्गी पालन के बारे में प्रशिक्षण लिया, जहां उन्होंने बकरी और मुर्गी पालन प्रबन्धन के विभिन्न वैज्ञानिक तरीकों को भी सीखा। उन्होंने समन्वित पशुधन के साथ फसल उत्पादन जोड़ा जिससे प्राकृतिक प्रक्रियाओं को बढ़ावा मिले। इस प्रकार नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने में सहायता मिली। साथ ही इस समन्वयन से जैव विविधता और स्थाई कृषि प्रणाली में भी वृद्धि हुई।

इनके प्रयास हमेशा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ पारम्परिक तरीकों के अनुभवजन्य ज्ञान के द्वारा स्थाई और पर्यावरण अनुकूल खाद्य प्रणालियों को बढ़ावा देने की ओर थे। उन्होंने दिन-प्रतिदिन की चुनौतियों से निपटने के लिए नये दृष्टिकोध और अन्तर्दृष्टि प्राप्त किये। एक बार उनकी बकरी का बच्चा बीमार पड़ गया और उनकी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी एक महिला ने सलाह दिया कि बकरी के बच्चे को गाय का दूध पिलायें क्योंकि इस दूध में इम्युनोग्लोबिन होता है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। रेहाना ने उनकी सलाह मानकर बच्चे को तुरन्त दूध पिलाया जिससे बकरी के बच्चे का स्वास्थ्य अच्छा हो गया। कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्र में सहयोग अति मूल्यवान होता है। मेरा यह भी मानना है कि कृषि सिर्फ जीविकोपार्जन का एक तरीका नहीं है, वरन् यह जीवन बनाने का एक तरीका है।

रेहाना का खेत सहजीवी कृषि प्रणाली का एक मॉडल है। इसमें एक ही स्थान पर उन्होंने बाह्य संसाधनों पर अपनी निर्भरता कम करते हुए जलवायु परिवर्तन अनुकुलित खेती, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और फसल पैदावार में बढ़ोत्तरी किया। उन्होंने न केवल उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का उत्पादन किया बल्कि अधिशेष उत्पादों को स्थानीय बाजार में प्रीमियम मूल्यों पर बेचना भी शुरु किया। इस पारिस्थितिक संतुलन से उन्होंने मनुष्य और खेती के बीच सामंजस्य स्थापित किया जिससे स्थाई खेती को बढ़ावा मिल रहा है। रेहाना की कहानी जुनून, समर्पण और रचनात्मकता से जीवन को बदलने का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। कृषि पारिस्थितिकी के माध्यम से उन्होंने न केवल अपने खेत की उत्पादकता में बदलाव किया बल्कि पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक कल्याण में भी योगदान दिया मशरूम उगाने की कला सीखने से लेकर कृषि पारिस्थितिकी खेत बनाने तक की उनकी यात्रा, चुनौतियों को अवसरों में बदलने और समुदाय पर सकारात्मक प्रभाव डालने को प्रदर्शित करती है।


महक खत्री
वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी (एसएडीओ),
कृषि विकास एवं किसान विभाग कल्याण, टीकमगढ़ (म.प्र.)
हवेली रोड़, सिंधी कॉलोनी, टीकमगढ़ (म.प्र.) 472001
ई-मेलः mahakkhatri09@gmail.com

योगरंजन सिंह
वैज्ञानिक
जेएनकेवीवी कृषि महाविद्यालय, टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश)
ई-मेलः yogranjan@gmail.com

खुशबू खत्री
ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी (आरएईओ),
कृषि विकास एवं किसान विभाग कल्याण, टीकमगढ़ (म.प्र.)
ई-मेलः khushbukhatri2014@gmail.com


Source: Women in Agroecology, LEISA India, Vol. 23, No. 3, September 2023

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