2024 तक खेतों को ‘‘डीजल मुक्त’’ बनाने के लिए सूक्ष्म सोलर पम्पों का विस्तार

Updated on March 3, 2023

एक तरफ जहां देश वर्ष 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन करने हेतु प्रतिबद्ध है, वहीं दूसरी तरफ भारत में अपना स्वयं का कृषिगत पम्प रखने वाले लगभग दो-तिहाई सीमान्त किसान अभी भी डीजल/मिट्टी के तेल वाले पम्प पर निर्भर करते हैं। कार्बन उत्सर्जन कम करने और डीजल मुक्त देश बनाने की दिशा में कुछ उल्लेखनीय बिन्दुओं के उपर ध्यानाकर्षण का प्रयास किया जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की दिशा में निर्धारित किये गये सतत् विकास लक्ष्यों के सापेक्ष भारत इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि वर्ष 2070 तक देश में कार्बन उत्सर्जन शून्य हो जायेगा। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष के प्रारम्भ में भारत सरकार के उर्जा मंत्रालय ने यह घोषणा कि पुर्नउत्पादित उर्जा की ओर कदम बढ़ाकर हम वर्ष 2024 तक कृषिगत क्षेत्र को डीजल-मुक्त कर देंगे। इसके अलावा, देश कच्चा तेल की खरीददारी पर होने वाले खर्चों में भी कमी लायेगा, जो वित्तीय वर्ष 2021-22 में 119 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में लगभग दोगुना हो गया था।

भारत में परिवहन के बाद, कृषि दूसरा वह क्षेत्र है, जहां डीजल की खपत सबसे अधिक होती है। भारत में खेतों की सिंचाई हेतु लगभग 30 लाख पारम्परिक कृषिगत पम्प हैं। उनमें से 10 लाख डीजल से चलते हैं। इसलिए ‘‘डीजल मुक्त’’ खेती को सक्षम बनाने हेतु सिंचाई के लिए सौर उर्जा का उपयोग करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

देश में अभी तक, मात्र 3,80,000 सोलर पम्प क्रियाशील हैं, जो बहुत ही कम हैं। इसके अतिरिक्त, इन सभी संचालित सोलर पम्पों की उच्चतम क्षमता 2 हार्सपावर और उससे अधिक है। सबसे रूचिकर बात तो यह है कि उच्च क्षमता वाले सोलर पम्प भी एक हेक्टेयर या उससे अधिक खेत वाले केवल 32 प्रतिशत किसानों की सिंचाई आवश्यकता को पूरी कर सकते हैं, जबकि 1 हार्सपावर से कम क्षमता वाले छोटे सोलर पम्प, ऐसे 68 प्रतिशत सीमान्त किसानों की सिंचाई की आवश्यकता को पूरा करते हैं, जिनके पास एक हेक्टेयर से कम भूमि है। इसके बावजूद सरकार द्वारा चलायी जा रही वर्तमान योजनाएं छोटे सोलर पम्पों पर केन्द्रित नहीं हैं।

उर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद की एक रिपोर्ट का अनुमान है कि, सिंचाई की मांग को पूरी करने के लिए सूक्ष्म सोलर पम्प लगभग 48,000.00 करोड़ रूपये का बाजार अवसर उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा, पशुपालन गतिविधि के लिए रू0 10,000.00 करोड़ रू0 का बाजार अवसर भी है, जहां जानवरों के लिए पानी की उपलब्धता को सुलभ बनाने के लिए ये पम्प सहयोग कर सकते हैं।

पूरे भारत में अधिसंख्य सीमान्त किसानों के जीवन को प्रभावित करने हेतु 9 मिलियन से अधिक सूक्ष्म सोलर पम्पों को लगाने की आवश्यकता है, तभी डीजल/मिट्टी के तेल के उपयोग में कमी आयेगी और कार्बन उत्सर्जन में खेती का योगदान कम होगा। फिर भी, इस प्रभाव को महसूस करने के लिए पांच मुख्य बिन्दुआंे को ध्यान में रखते हुए केन्द्रित प्रयास करने की आवश्यकता होगी –

पहला, लोगों में रूचि पैदा करने के लिए योजनाओं में सूक्ष्म सोलर पम्पों को शामिल करें –
सरकारी नीतियों के अनुसार जहां उच्च क्षमता वाली पम्पों पर 60-90 प्रतिशत तक अनुदान मिलता है, वहीं सूक्ष्म सोलर पम्पों को अनुदान की योजनाओं से बाहर रखा गया है। इससे एक असमान वातावरण बन रहा है। परिणामस्वरूप, सीमान्त किसानों सहित अधिकांश किसान आवश्यकता न होने पर भी उच्च क्षमता वाले पम्पों को खरीदने हेतु ललचाते हैं। इससे एक तरफ तो उनके उपर आर्थिक भार बढ़ता है, छोटी आवश्यकता हेतु बड़े पम्प का इस्तेमाल करने से धंुआं अधिक निकलता है, जो पर्यावरण को और अधिक नुकसान होता है। इसलिए, राष्ट््रीय और राज्य दोनों स्तर पर संचालित होने वाली मौजूदा योजनाओं में सूक्ष्म सोलर पम्पों को शामिल करना चाहिए और किसानों की आवश्यकता के अनुसार पम्पों के आकार की संस्तुति होनी चाहिए।

दूसरा, नवाचार को प्रोत्साहन देने हेतु पम्प के प्रदर्शन मानक दृष्टिकोण को संशोधित करें –
वर्तमान में, सूक्ष्म पम्प श्रेणी में, नवीन एवं अक्षय उर्जा मंत्रालय ने केवल 250 वॉट और 500 वॉट के पम्पों के लिए प्रदर्शन मानक दिया है। एक निश्चित आकार आधारित प्रदर्शन बेंचमार्क के अलावा, नवीन एवं अक्षय उर्जा मंत्रालय को प्रति वॉट के आधार पर एक प्रदर्शन बंेचमार्क पर विचार करना चाहिए। इससे नवोन्वेषी लोग सरकारी सहायता प्राप्त करने हेतु विभिन्न क्षमताओं वाले पम्पों को डिजाइन करने के प्रति उत्साही हो सकेंगे।

तीसरा, निवेश-आधारित दृष्टिकोण के बजाय प्राप्ति-आधारित दृष्टिकोण अपनाना –
अभी वर्तमान में सोलर पम्प खरीदते समय किसान/ग्राहक सिर्फ सोलर पम्पों की क्षमता को देखते हैं। सोलर पम्पांे केप्रदर्शन पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। उदाहरण के लिए, जब 500 वॉट का कम क्षमता वाला पम्प खरीदते हैं, तोउससे निकलने वाला पानी 500 वॉट के बराबर है अथवा नहीं, इस पर विचार नहीं किया जाता। इसलिए अधिक प्रभावी समाधानों को समर्थन देने हेतु राष्ट््रीय और राज्य अभिकरणों को पानी देने की क्षमता आधारित दृष्टिकोण को अपनाना चाहिए।

चौथा, हितभागियों के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए प्रदर्शनों का सहयोग करना-
कम क्षमता वाले या सूक्ष्म सोलर पम्पों की कम तैनाती का एक प्रमुख कारण उपभोक्ताओं, फाइनेन्सरों एवं राज्य अधिकारियों के बीच उनकी क्षमता के बारे में जागरूकता का न होना है। बहुधा किसान एवं फाइनेन्सर को पता ही नहीं होता कि सबसे कम क्षमता वाला अर्थात् सबसे कम कितने वॉट का सोलर पम्प उपलब्ध है। ऐसी स्थिति में सूक्ष्म सोलर पम्पों को बढ़ावा देने की दिशा में देश में प्रत्येक उच्च प्राथमिकता वाले जिलों में 1000 सूक्ष्म पम्पों का सहयोग प्रदान करने के लिए केन्द्रीय मंत्रालय को राज्य नोडल एजेन्सियों, राज्य ग्रामीण आजीविका मिशनों एवं अन्य दूसरे प्रासंगिक विभागों के साथ मिलकर काम करना चाहिए। इससे राज्य/राष्ट््र की सोलर पम्प/सूक्ष्म सोलर पम्प आधारित योजनाओं का अधिकाधिक विस्तार होगा और बड़ी संख्या में लघु एवं सीमान्त किसान लाभान्वित होंगे, जिससे सरकार का ‘‘डीजलमुक्त देश’’ का सपना साकार होगा।

और अन्त में, बड़े पैमाने पर तैनाती को सक्षम बनाने के लिए अंतिम उपयोगकर्ता की वित्तपोषण की पहुंच को उन्नत करना –
भारत में प्रधानमंत्री कुसुम योजना है, जो सोलर पम्पों को अपनाने के लिए अनुदान देती है। फिर भी, देश में सीमान्त किसानों की संख्या लगभग 100 मिलियन है और इन सभी को अनुदान पर सोलर पम्प उपलब्ध कराना एक कठिन कार्य है। रू0 30,000.00 से रू0 60,000.00 के बीच मूल्य वाले सोलर पम्प अधिसंख्य हैं, परन्तु वित्तीय कमी के कारण किसानों की पहुंच इन सोलर पम्पों तक नहीं हो पाती है और किसान चाहकर भी सोलर पम्प नहीं अपना पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में इन पम्पों को अपनाने में लोगों को सक्षम बनाने हेतु वित्त तक पहुंच बनाना सबसे महत्वपूर्ण है। मुख्य कार्यकारी संगठनों जैसे- नाबार्ड, नवीन एवं अक्षय उर्जा मंत्रालय को सूक्ष्म सोलर पम्पों के लिए वित्तीय सहयोग उपलब्ध कराने हेतु वित्तीय संगठनों को अधिक जोखिम गारण्टी देना चाहिए।

साथ ही, नाबार्ड जैसे संगठन सूक्ष्म सोलर पम्पों की संभावना के इर्द-गिर्द कार्य करने के लिए क्षेत्रीय बैंकों की क्षमता निर्माण में सहयोग कर सकते हैं ताकि तकनीक में उनका आत्मविश्वास बढ़ता रहे।

निष्कर्षतः
लघु एवं सीमान्त किसानों द्वारा सूक्ष्म सोलर पम्पों को अपनाने के कई फायदे हो सकते हैं। उदाहरणस्वरूप सिंचाई की लागत मंे कमी होगी, नुकसानदायक स्थानीय और वैश्विक उत्सर्जन में कमी होगी, फसल चक्र में वृद्धि होगी, किसानों की शुद्ध आय बढ़ेगी और सर्वाधिक महत्वपूर्ण तो यह है कि इससे कमजोर किसानों की रिजीलियेन्स क्षमता में वृद्धि होगी।

यद्यपि, सूक्ष्म सोलर पम्पों के बड़े पैमाने पर अनुकूलन में अनुदानों का अभाव, गैर लचीले प्रदर्शन मानक और अपर्याप्त निविदा प्रक्रियाएं जैसी कुछ चुनौतियां बाधक हैं। इसलिए, सूक्ष्म सोलर पम्पों को खरीदने में लोगों को सक्षम बनाने हेतु वित्त तक पहुंचने में सहयोग प्रदान करने हेतु एक समन्वित प्रयास, लक्षित नीतियां, लोगों में जागरूकता प्रसार एवं तकनीकी नवाचार आवश्यक है। इससे 2024 तक डीजल मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहयोग मिलेगा और 2070 तक कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयासों में भी योगदान होगा।

नोट
https://www.koanadvisory.com/wp-content/uploads/2019/06/Micro-SWP-Koan-Advisory-Final-
Report.pdf
https://www.reuters.com/business/energy/indiahopes-replace-diesel-with-green-energy-its-farmsby- 2024-2022-02-11/
https://economictimes.indiatimes.com/industry/energy/oil-gas/indias-oil-import-bill-doubles-to-usd-119-bn-infy22/articleshow/91049349.cms?from=mdr
https://www.deccanherald.com/national/centre-targetsto-end-diesel-use-in-farms-by-2024-1080509.html
https://mnre.gov.in/img/documents/uploads/8065c8f7b9614c5ab2e8a7e30dfc29d5.pdf
https://loksabhaph.nic.in/Questions/QResult15.aspx?qref=41907&lsno=17
http://agcensus.dacnet.nic.in/DatabaseHome.aspx
https://pmkusum.mnre.gov.in/landing.html

शेख वासे खालिद
प्रोग्राम एसोसियेट
उर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद
आईएसआईडी कैम्पस, 4 वसन्त कुंज, इन्स्टीच्यूटनल एरिया
नई दिल्ली – 110070, भारत
ई-मेल: wase.khalid@ceew.in

नोट: यह लेख मूलतः https:// www.ceew.in/blogs/how-can-india-scale-solar-pumpirrigation-and-make-agriculture-sector-diesel-freeby-2024 में प्रकाशित हुआ है।

Source: Renewable Energy in Agriculture, LEISA India, Vol. 24, No.4, Dec. 2022

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