स्वयं सहायता सबसे बड़ी सहायता: आर्थिक मंदी के खिलाफ मजबूती से खड़े हुए देशज किसान

Updated on December 5, 2021

स्थानीय उत्पादों को बेचने के लिए, ‘‘पहियों पर खेत’’ नाम से की जा रही पहल ने एक विकेन्द्रित तरीके से विविध स्थानीय बाजारों तक पहुंच बनाने में किसान समूहों को सक्षम बनाया है। इस पहल को करने से मेघालय में एनईएसएफएएस के साथ सहयोग स्थापित करने वाले दूसरे सभी किसान समूहों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है और उन्हें इस बात के लिए भी उत्साहित किया है कि वे इस अपनायें और अपने क्षेत्रों में इसे आगे बढ़ायें।


वर्तमान में पूरा विश्व कोविड-19 नामक एक वैश्विक महामारी की चपेट में है। यह महामारी एक तूफान बनकर हर किसी को चपेट में ले रही है और विभिन्न क्षेत्रों को गम्भीर रूप से प्रभावित कर रही है। इसने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को बाधित कर दिया है। इसका सबसे गम्भीर दुष्प्रभाव छोटे व मझोले किसानों पर पड़ रहा है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में मंदी से निपटने के लिए उनके पास आधार पूंजी की कमी होने के कारण वे विशेष रूप से कमजोर हैं। नियमित बाजारों को बन्द कर दिये जाने अथवा निर्धारित सरकारी प्रोटोकाल के कारण आंशिक रूप से बाजारों को खोले जाने की वजह से इन छोटे-मझोले किसानों को बड़ी आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ा। हालांकि देशी ज्ञान से लबरेज़ किसानों ने इसे एक अवसर की तरह लिया और इस कठिन समय का सामना करने के लिए षिलांग, मेघालय में स्थित एक गैर सरकारी संगठन द नार्थ ईस्ट स्लो फूड एण्ड एग्रो बायोडायवर्सिटी सोसायटी ;एनईएसएफएएसद्ध के साथ सहयोग स्थापित करते हुए इस संकट से निपटने हेतु एक नूतन विकल्प की खोज की। गैर सरकारी संगठन एनईएसएफएएस उत्तरी-पूर्वी भारत में देशी खाद्य प्रणाली को प्रोत्साहित करने, उनको बचाने और पुनर्जीवित करने के लिए काम करता है।

एनईएसएफएएस एक गैर सरकारी संगठन है, जो मेघालय की राजधानी शिलांग में स्थित है। यह मेघालय और नागालैण्ड के 130 गांवों में काम कर ही है और वर्तमान में ग्रामीण विद्युतीकरण निगम फाउण्डेशन के वित्तीय सहयोग से ‘कोई पीछे न छूट जाये’ इस उद्देश्य के साथ ‘‘3000 घरों के लिए खाद्य, पोषण और उर्जा सुरक्षा के लिए जैव विविधता’’ नामक एक परियोजना का संचालन कर रही है। वर्तमान में अपनी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से 3249 किसानों के साथ इस संस्था का जुड़ाव स्थापित हो चुका है। इनमें देषी ज्ञान के साथ काम करने वाली वे महिला किसान प्रमुख रूप से शामिल हैं, जो ज्यादातर हस्तान्तरित खेती अभ्यास को अपनाती हैं। कुछ किसान अधिक व्यवस्थित खेती जैसे- धान और बन या छत पर खेती से भी जुड़े हुए हैं। ये किसान अपने पूर्वजों से प्राप्त बीजों को सुरक्षित एवं संरक्षित रखते हैं। यद्यपि स्थानीय बीज धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं, लेकिन बीज आदान-प्रदान कार्यक्रमों तथा सामुदायिक स्तर पर बीज बैंकों की स्थापना जैसी गतिविधियों की सहायता से उन्हें पुनर्जीवित करने के विशेष प्रयास किये जा रहे हैं।

सामान्यतः ये किसान अपने उत्पादों को साप्ताहिक तौर पर लगने वाली स्थानीय बाजारों में बेचते हैं। कुछ किसान अपने उत्पादों को बेचने के लिए छोटी सी जगह किराये पर ले लेते हैं और कुछ अस्थाई व्यवस्था के तहत् फर्ष और फुटपाथ पर अपने उत्पादों को रखकर बेचते हैं। बाजार में आने वाले व्यापारियों को भी वे अपने उत्पाद बेचते हैं। हालांकि, कोविड-19 के कारण बिक्री का यह तरीका अत्यधिक प्रभावित हुआ। ऐसी स्थिति में नियमित बाजार व्यवधानों से निपटने तथा आजीविका की चुनौतियों को दूर करने के लिए, स्थानीय समाधान के तौर पर ‘‘पहियों पर खेत’’ नाम से एक पहल की शुरूआत की गयी। यह समयबद्ध पहल किसानों समूहों को अपने उत्पादों को सीधे उपभोक्ताओं तक बेचने और साथ ही उनके लिए आजीविका के अवसर प्रदान करने एक मंच है। वास्तव में, यह एक वाहन है, जिसे किसान समूह सप्ताह में एक बार अथवा जब भी उत्पाद तैयार हो, ताजा उत्पाद बेचने के लिए किराये पर ले लेते हैं। मेघालय के विभिन्न जिलों में फैले लगभग 30 किसान समूहों से 200 किसान इस नवाचार के साथ जुड़े हुए हैं। ये किसान एक वाहन किराये पर ले लेते हैं। अभी भी किसी किसान समूह के पास अपना स्वयं का वाहन नहीं है, परन्तु भविष्य में समूह की बचत से वाहन खरीदने की योजना है। किसान आस-पास लगने वाले बाजार के दिनों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं और उसी के अनुसार अपनी योजना बनाते हैं। सामान्यत ‘‘पहिये पर खेत’’ सप्ताह में दो बार संचालित होता है। प्रत्येक समूह से केवल 1 से 2 किसान ही वाहन के साथ जाते हैं। ऐसा खर्च कम करने के उद्देष्य से किया जाता है। एनईएफएसएएस ने प्रचार सामग्री एव कुछ छोटी सी धनराषि के माध्यम से इन समूहों को सहायता प्रदान की है। इसके साथ ही समूहों को बहीखाता लिखने की पद्धति पर प्रशिक्षित भी किया है। वास्तव में, ये देषज ज्ञान से भरपूर ये लघु-सीमान्त किसान विविध प्रकार के उत्पादों को उगाते हैं। साथ ही कुछ उत्पाद जंगलों से प्राप्त किया जाता है। विभिन्न प्रकार के जंगली खाद्य पदार्थों तथा खेती की गयी सब्ज़ियांे जैसे- आलू, गाजर बीन्स एवं अन्य मौसमी सब्ज़ियां, फल और दालों का विपणन किया जाता है। एनईएसएफएएस से सम्बद्ध किसान ‘‘पहियों पर खेत’’ मंच का उपयोग कर रहे हैं। कोविड प्रोटोकाल में ढील दिये जाने के बाद से वे स्थानीय बाजारों में इन उत्पादों की बिक्री कर रहे हैं। इस पहल का उद्देष्य सामाजिक दूरी के मानदण्डों का पालन करते हुए व्यवसाय करने तथा वास्तव में बाजार को उपभोक्ता तक ले जाना है। यह घरेलू खाद्य सुरक्षा को सुरक्षा प्रदान करने की तत्काल आवष्यकता सुनिश्चित करता है और खरीदने से लेकर बेचने तक अपने स्थानीय उत्पाद को बेचने की क्षमता भी सुनिश्चित करता है।

हालांकि बड़ी मात्रा में विपणन करने योग्य उत्पादों को एकत्र करना एक चुनौती थी, क्योंकि अधिकांष लघु, सीमान्त किसानों के पास सीमित मात्रा में उत्पाद होते हैं और वे अपने उपभोग के बाद शेष बचे उत्पादों को ही बेचते हैं। यहां तक कि बहुत से किसानों से उत्पाद एकत्र करने के बाद भी वे उत्पाद थोड़ी ही मात्रा में होते हैं, जिस कारण वे बाजार कम जाते हैं। ऐसा करते हुए, इस पहल ने मेघालय में एनईएसएफएएस के साथ सहयोग स्थापित करने वाले दूसरे सभी किसान समूहों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है और उन्हें इस बात के लिए भी उत्साहित किया है कि वे इस अपनायें और अपने क्षेत्रों में इसे आगे बढ़ायें। ‘‘पहियों पर खेत’’ पहल के अलावा मेघालय के पष्चिमी जयंतिया पहाड़ी में सोसायटी फॉर अरबन एण्ड रूरल एम्पावरमेण्ट ;श्योरद्ध ने सब्ज़ियों की ऑनलाइन बिक्री करने में सक्षम एक स्थानीय ऑनलाइन मंच ‘‘सिलैड’’ (https://syllad.com/store) तथा किसानों एवं उपभोक्ताओं के बीच समन्वय स्थापित करने हेतु पुल का काम किया है। एनईएसएफएएस के सहयोगी स्वयंसेवी संगठन तथा सोसायटी फॉर अरबन एण्ड रूरल एम्पावरमेण्ट ;श्योरद्ध ने कुछ किसान समूहों एवं स्थानीय ऑन लाइन मंच ‘‘सिलैड’’ पहल के बीच समन्वय स्थापित करने की प्रक्रिया में मदद की। श्योर उत्पादों की उपलब्धता के आधार पर सिलैड को सूचित करता है और किसानों से उत्पादों की खरीद में सहयोग करता है। उत्पादों को टैब-फलों एवं सब्ज़ियों के अन्तर्गत सिलैड ऑनलाइन स्टोर पर बेचा जाता है। अधिक जानकारी के लिए, कृपया वेबसाइट को देखें। इस साझेदारी ने शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में समुदाय के लोगों के घरों में सामानों को पहुंचाने में भी सहायता की है। किसान भी अब उत्पादों को बढ़ाने हेतु अपने गृहवाटिका/किचन गार्डेन में स्वस्थ स्थानीय उत्पादों को उगाने हेतु अतिरिक्त मेहनत कर रहे हैं और समुदाय के अन्य जरूरतमंद लोगों के साथ स्थानीय बीजों का आदान-प्रदान भी कर रहे हैं।

गारो पहाड़ियों में, देषज किसान समूहों ने समुदाय के बीच विविधतापूर्ण गृहवाटिकाओं की आवष्यकता को बता रहे हैं। वे घरेलू खाद्य सुरक्षा और आजीविका के निर्वाह को सुरक्षित रखने के अलावा, कोविड- 19 जैसे वायरस के खिलाफ हमारी लड़ाई में अच्छी प्रतिरक्षा के लिए स्वच्छ, स्थानीय और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन पर जोर दे रहे हैं। इसी तरह कोविड-19 ने खाद्य एवं आजीविका के लिए स्थानीय विविधता पर निर्भरता के महत्व को रेखांकित किया है। इसने स्थानीय किसानों को आत्मनिर्भर बनाने और आत्मनिर्भर बनने हेतु प्रयास करने का अधिकार दिया है। यद्यपि देषज ज्ञान रखने वाले लघु एवं सीमान्त किसान हमेषा इसकी वकालत करते रहे, परन्तु बड़े पैमाने पर उत्पादन केन्द्रित औद्योगिक कृषि प्रणाली के कारण इसका महत्व खो सा गया था, जो अब इस महामारी के दिनों में लोगों को पता चल रहा है।

जनकप्रीत सिंह


जनक प्रीत सिंह
वरिष्ठ एसोसियेट, आजीविका
एनईएसएफएएस, शिलांग
ईमेल: rituja.mitra18.dev@apu.edu.in

Source: Agroecology and going local, LEISA India, Vol. 22, No.4, December 2020

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