स्थानीय स्तर पर सब्जी उत्पादन

Updated on December 4, 2021

कोविड महामारी के समय में, लोगों के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाये रखना और बढ़ाना पहले की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण था। केरल में किसानों एवं नागरिकों ने गृहवाटिका एवं घरों की छतों पर सुरक्षित भोजन उगाने में बहुत से नवाचारों को करने का प्रयास किया है जिससे स्वस्थ एवं पोषणयुक्त भोजन तक उनकी पहुंच बढ़ी भी है।


केरल पिछले 2-3 दशकों में सबसे तेज शहरीकरण करने वाला उपभोक्ता राज्य है। पिछले 10-15 वर्षो में केरल में थनाल सहित बहुत से समूह जैविक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। इससे शहर के बहुत से स्वास्थ्य के प्रति सजग लोगों के अन्दर बदलाव आया है और वे अपनी आवश्यकतानुसार अपनी गृहवाटिका और अपने घरों की छतों पर अपने खाने के लिए सब्ज़ियां उगाने लगे हैं। उनमें से बहुत से लोग अपने उत्पादों को पड़ोसियों को बांटने एवं बेचने भी लगे हैं और ऐसे ही लोगों द्वारा साप्ताहिक बाजार भी लगाये जाने लगे हैं।

कोविड-19: एक गेम चेन्जर
वस्तुत: कोविड-19 महामारी और लॉक डाउन ने एक गेम चेन्जर की भूमिका निभाई। लॉक डाउन जैसी अनिश्चितता भरी परिस्थितियों से निपटने हेतु तैयारी करने के क्रम में, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने स्थानीय खाद्य उत्पादन, विशेषकर सब्ज़ियों एवं कन्द उत्पादन के माध्यम से ‘‘खाद्य आत्मनिर्भरता’’ का आहवान किया। कृषि निदेशक डॉ0 के0 वासुकि ने भी घर पर खाद्य उत्पादन हेतु अभियान चलाने के लिए लोगों को प्रेरित किया। पिछले तीन महीनों में, राज्य ने एक एकीकृत खाद्य सुरक्षा परियोजना की शुरूआत की, जिसमें लोगों को घरों में खेती करने और बंजर भूमियों को उर्वर बनाने हेतु भी प्रोत्साहित किया गया। इसका अनिवार्य रूप से अर्थ व्यक्तिगत उपभोग के लिए सब्ज़ियों की खेती करना और अपने स्वयं के उपयोग के लिए पशुधन को बनाये रखना था। लोगों को सब्ज़ियों की बागवानी शुरू करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए विशेषकर सोशल मीडिया ने एक अच्छी भूमिका निभाई। इसके साथ ही कृषि विभाग ने लोगों को सब्ज़ियों के बीज की आपूर्ति करना प्रारम्भ किया। किसानों के साथ काम कर रहे बहुत से समूह भी स्थानीय स्तर पर बीज वितरित करने लगे हैं। लोग अपने घर के आगे या पीछे खाली पड़ी छोटी सी जगह में चाइनीज आलू, अरवी, कसावा, सूरन आदि उगाने लगगे हैं और उन्होंने लॉक डाउन के दौरान अपने तैयार उत्पादों को पड़ोसियों के साथ साझा किया।

बंजर भूमि से खाद्य भूमि तक
पिछले दो दशक से किसानों के साथ काम करने वाली एक स्वैच्छिक संगठन थनाल ने अप्रैल में ‘‘फूड स्केप’’ नामक परियोजना प्रारम्भ की। इस परियोजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बंजर भूमि को खाद्य भूमि में बदलना था। इसके पीछे विचार था कि लोगों से धन जुटाया जाये और जब किसान फसल तैयार कर लें तो लोगों से प्राप्त धन के बदले उन्हें खाद्य सामग्री वापस दें। किसानों और ग्रामीण युवाओं को निवेश जैसे- बीज एवं जैविक खाद, प्रशिक्षण तथा कृषि पारिस्थितिकी तकनीकों एवं अभ्यासों आदि के रूप में सहयोग प्रदान किया गया। पिछले दो माह में हमने लगभग 800 किसानों को बीज, जैविक खाद आदि इनपुट उपलब्ध कराने के साथ-साथ मृदा, कीटों एवं व्याधियों के जैविक प्रबन्धन पर प्रशिक्षण दिया। इनमें पलक्कड़ में अट्टापडी जिला एवं पथनमथीट्टा के नारानमूज्ही जिले के आदिवासी समुदाय भी शामिल हैं, जहां विभिन्न कारणों से पिछले 20-30 वर्षों में खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय गिरावट आयी है।

हम अनुसूचित जनजाति विकास विभाग के सहयोग से वर्ष 2019 से अट्टापडी में 19 गांवों में ‘‘कृषि पारिस्थितिकी के माध्यम से पोषण पर्याप्तता’’ पर काम कर रहे हैं। इस पायलट परियोजना का मुख्य उद्देश्य पंचकृषि कही जाने वाली उनकी पारम्परिक कृषि के साथ ही उनकी मोटे अनाज आधारित खाद्य प्रणाली को भी पुनर्जीवित करना था। जब हमने इस परियोजना को शुरू किया तो महिला-पुरूष दोनों के बीच इसे लेकर बहुत उत्साह था। बहुत से बेरोजगार व कृषि में रूचि रखने वाले शिक्षित युवा इस परियोजना के साथ जुड़ गये। वे पंचकृषि के साथ ही नई कृषि पारिस्थितिकी अवधारणा के विषय में अधिक से अधिक जानकारी लेना प्रारम्भ कर दिये। उन्होंने समुदाय के बुजुर्गों के सहयोग से देशज बीजों एवं कृषि सम्बन्धी अभ्यासों को संरक्षित करने हेतु एक पायलट परियोजना आरम्भ की और उसे ‘‘वेधे वले’’ अर्थात् बीज की टोकरी नाम दिया।

हमारे साथ बात-चीत में एक बार उन्होंने आन्ध्र प्रदेश में संचालित समुदाय प्रबन्धित प्राकृतिक खेती के बारे में सुना और तब वे इसे करके देखना चाहते थे। बहुत से किसानों ने प्रयोग करने हेतु अपना सहयोग प्रदान देने की मंशा व्यक्त की। अचानक कोविड 19 का प्रकोप बरपा और सभी कुछ ठहर गया। प्रथम बार लगे लॉक डाउन के दौरान हमने कोर टीम सदस्यों के साथ सघन बात-चीत एवं सम्पर्क जारी रखा। जब सम्पूर्ण लॉक डाउन हटा तो हमने देशज खाद्य एवं कृषि प्रणाली विकसित करने के महत्व को समझने वाले बुजुर्ग एवं युवा किसानों का सहयोग करने के लिए फूड स्केप नामक परियोजना प्रारम्भ की। उनके पास उत्साह था और मानव संसाधन भी था, लेकिन वित्तीय संसाधनों का अभाव था। उन्हें प्रति एकड़ रू0 5000.00 अग्रिम धनराशि चाहिए थी। परियोजना फूड स्केप के माध्यम से, थनाल ने इस धनराशि की व्यवस्था की। बहुत से मित्र एवं उपभोक्ता संसाधन प्रदान करने के लिए आगे आये। हमने उन्हें यह प्रस्ताव दिया कि हम उनकी इस धनराशि को अनाज, दलहन एवं सब्ज़ियों के रूप में उन्हें वापस करेंगे। यह देखकर बहुत खुशी हुई कि बहुत से ऐसे लोग भी थे, जो बदले में कुछ भी नहीं लेना चाहते थे।

किसानों ने खेतों की जुताई कर बीजों की बुवाई करना प्रारम्भ किया। हमारी युवा टीम ने स्वयं से लीज़ पर कुछ खेत लिया और अन्य किसानों के सहयोग से उस पर जैविक सब्जी उत्पादन का कार्य प्रारम्भ किया। हमने युवा टीम के लिए प्राकृतिक खेती और कृषि पारिस्थितिकी, विशेषकर कीट व ब्याधि प्रबन्धन एवं जैविक खादों पर 6 सत्रों में ऑनलाइन प्रशिक्षण का आयोजन किया। इसके साथ ही प्राकृतिक खेती पर अन्य संस्थाओं द्वारा आयोजित ऑनलाइन प्रशिक्षणों में भाग लेने हेतु भी उन्हें प्रोत्साहित किया गया।

थनाल द्वारा जैविक सब्जी की खेती की शुरूआत

हमने वर्ष 2001 में त्रिवेन्द्रम जिले के दो पंचायतों में किसानों के साथ काम करना प्रारम्भ किया। जैविक खेती पर इस पायलट परियोजना को कोवालम के निकट महिला किसानों के साथ संचालित किया गया। उन दिनों केरल में कीटनाशकों एवं विशेषकर इण्डोसल्फान को लेकर सघन बहस चल रही थी और थनाल ने कीटनाशकों के विषय में जानकारियों को सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस परियोजना ने यह दिखाया कि बिना रसायनिक कीटनाशकों के खेती करना भी संभव है। खाद्य उत्पादन पर चर्चा और खाद्य में आत्मनिर्भरता लाने की हमेशा से बहुत से वैज्ञानिकों द्वारा आलोचना की गयी और इसके पीछे उनका मुख्य तर्क था कि केरल में छोटी जोत होने के कारण इस लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन है। इसे एक सीमित कारक के रूप में देखा गया और हमारी परियोजना का एक उद्देश्य यह भी था कि हम यह भी दिखाएं कि छोटी जोत में भी पर्याप्त उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है और लघु किसान भी पर्याप्त सब्ज़िया उगा सकते हैं। केरल में अच्छी जलवायु व मृदा है जो फलों और सब्ज़ियों की खेती के लिए उपयुक्त है। हमने महिलाओं के 3 स्वयं सहायता समूहों का गठन किया, जिनके पास स्वयं की बहुत भूमि नहीं थी। एक वर्ष के समय में ही उन्होंने बड़ी सफलता प्रदर्शित की और पंचायत ने जैविक सब्जी एवं केला उत्पादन की योजना बनाने में सहायता देने हेतु हमें आमन्त्रित किया। इस सहायता के बाद, थनाल ने राज्य के लिए जैविक खेती नीति विकसित करने हेतु राज्य सरकार के साथ काम किया।

 

पठानामथिट्टा जिले मंे एक अन्य दूसरा आदिवासी समुदाय काम के लिए बाहर जाने मंे सक्षम नहीं है और न ही कोविड के दौरान उनके पाास करने के लिए ज्यादा काम था। 13 भिन्न-भिन्न प्रकार की सब्ज़ियों के बीज एवं जैव निवेशों के रूप में लगभग 480 परिवारों को सहयोग प्रदान किया गया। उनमें से बहुत से लोग भारी बारिश के कारण काम शुरू नहीं कर सके। इस बीच, हमने इस समूह से कुछ चयनित लोगों के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई।

सामुदायिक रसोई
स्थानीय खाद्य उत्पादन के मूल्य को समझने के बाद, केरल की सभी पंचायतों ने लॉक डाउन के दौरान, सामुदायिक रसोई की शुरूआत की। हमने त्रिवेन्द्रम के पंचायत कराकुलम के साथ काम करना प्रारम्भ किया। यह पंचायत शहर के बिलकुल निकट है, लेकिन अभी भी यहां पर लघु एवं सीमान्त किसानों की बहुसंख्य आबादी है। पंचायत हमारे साथ जुड़कर बहुत उत्साहित थी। मृदा को उन्नत बनाने के लिए हमने लगभग 130 किसानों ;अधिकांश महिला किसानद्ध को सहायता के तौर पर फार्मिंग किट प्रदान की। इस फार्मिंग किट में भिन्न-भिन्न प्रजातियों की सब्ज़ियों के बीज एवं जैव निवेश थे। जैविक सब्ज़ियों की खेती के उपर कुछ चयनित किसानों को दो प्रशिक्षण भी दिये गये। चूंकि पिछले महीने कोविड के कारण सरकार द्वारा कहीं आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगाया गया था, इसलिए बीज प्राप्त करने वाले तथा बीज प्राप्त करने के लिए पंजीकृत सभी किसानों तक पहुंचने में बहुत कठिनाई आ रही थी, लेकिन फिर भी किसानों ने खेती करना प्रारम्भ किया। हम लोग इस पंचायत में एक मोबाइल जैविक क्लीनिक सेवा चलाने की योजना बना रहे हैं।

मेरी खाद्य वाटिका चुनौती
यह महामारी हमारी टीम के बीच, साथ ही साथ बहुत करीब से जुड़े किसानों के बीच भी बहुत भ्रम की स्थिति उत्पन्न करने का कारण बन रही थी। क्योंकि वे कहीं आने-जाने में सक्षम नहीं हो पा रहे थे, कार्य पूरा नहीं कर पा रहे थे, किसानों से नहीं मिल पा रहे थे और दस्तावेज आदि तैयार नहीं कर पा रहे थे। तब उन्हें जोड़े रखने तथा जैविक खेती में उनकी विशेषज्ञता का उपयोग करने के लिए हमने ‘‘मेरी खाद्य वाटिका चुनौती’’ की शुरूआत की। हमने एक व्हाट्स गु्रप बनाया और खेती से जुड़ी फोटोज़ को साझा करने लगे तथा कीट प्रबन्धन, मृदा प्रबन्धन, स्थान की समस्या आदि मुद्दों के समाधान पर काम करने लगे। इससे बहुत दिलचस्प एवं अर्थपूर्ण बात यह निकल कर आयी कि प्रत्येक व्यक्ति के पास सफलता की कहानियां हैं और वे इसे साझा करने की आशा रखते हैंं। यहां पर दो उदाहरण दिये जा रहे हैं:-

कोवालम के निकट बेल्लार गांव की प्रमिला कहती हैं, ‘‘जैविक सब्जी बागवानी के साथ मेरा कार्यकाल तब शुरू हुआ, जब हम 12 वर्ष पूर्व थनाल संस्था के साथ जुड़े। पिछले वर्ष, हम रहने के लिए दूसरे स्थान पर आये और यहां भी मैंने अपनी छत पर सब्ज़ियों को उगाना प्रारम्भ किया। मैंने थनाल से प्राप्त ग्रोबैगों एवं बीजों को अपने आस-पड़ोस के लोगों को भी बांटा ताकि वे प्रोत्साहित होकर घर पर सब्ज़िया उगाना प्रारम्भ करें। मैंने भिण्डी, मिर्च, बैगन, लौकी आदि सब्ज़ियों को उगाया। अब हम बीजों, सब्ज़ियों की नर्सरी एवं फसल को आपस में बांटते हैं। इससे लोगों के साथ हमारी निकटता बढ़ गयी है। खेती-किसानी के पूर्व के अनुभवों एवं थनाल के परियोजना अधिकारी श्री अरूण के सुझावों के आधार पर, अब मैं लोगों को जैव कीट नियंत्रण एवं जैविक खाद के बारे में बताने में सक्षम हो गयी हूं। अगले चरण के तौर पर, थनाल मोबाइल एग्री क्लिनिक टीम द्वारा चलाये जा रहे प्रशिक्षण के माध्यम से हमारे समुदाय में लो अपनी खेती चक्र को बढ़ाने करने के विषय में सोच रहे हैं। मैं इस महामारी की परिस्थिति के बदलने की प्रतीक्षा कर रही हूं ताकि अपने खेतिहर समुदाय से अधिकाधिक लोगों को जोड़ सकूं और उन्हें आत्मनिर्भर बना सकूं।’’

जैविक बाजार के मैनेजर दीपक का कहना, ‘‘हम सात लोगों ने मिलकर एक जैविक किसान मित्र से 1.5 एकड़ जमीन लीज पर ली और ‘‘वेनाड जैविक खेत’’ नाम से एक उद्योग आरम्भ किया। मुख्य फसल के रूप में केला, अदरक, हल्दी, रतालू, अरवी, गंजी, टमाटर, मिर्च, बैगन, करैला, कुन्दरू, कद्दू एवं भतुआ है। निवेशों पर कोई लागत लगाये बिना हम आत्म निर्भरता प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं अर्थात् खेती से सम्बन्धित सभी कार्यों को हम स्वयं करते हैं। हम घर के बीजों से नर्सरी तैयार करते हैं, स्वयं जैविक खाद व जैव कीट विकर्षक तैयार करते हैं, खेत की जुताई एवं समतलीकरण करते हैं, तालाब में मछली पालते हैं और जब तालाब का पानी पौधों के लिए खाद के रूप में बदल जाता है, तब इस पानी को पूरे खेत में नाली बनाकर उस रास्ते से सिंचाई करते हैं। बैगन और खीरा के साथ केले के पौधों के बीच में रतालू एवं अरवी लगाकर अन्तःफसली खेती पद्धति को अपनाते हैं। हल्दी और अदरक के कीट नियंत्रक गुणों को ध्यान में रखते हुए इनको बीच-बीच में लगाया जाता है। मल्चिंग के महत्व को समझते हुए, हम जूट की बोरियों एवं सूखे पत्तों का प्रयोग करते हैं। हम अधिकांशतः जैविक बाजार में दुुर्लभ मानी जाने वाली सब्ज़ियों तथा केला ही उगाते हैं। हमने अपने पाटिंग मिश्रण को बेचना भी प्रारम्भ कर दिया, जिससे खेत में लगने वाली लागत के कुछ भाग को वापस पा सकें। हम सभी लोग अपने खेत में प्रतिदिन सुबह कम से कम 3 घंटा काम अवश्य करते हैं। खेती में सुबह-सुबह काम करने से हमें एक नई उर्जा मिलती है और हम पूरे दिन सक्रिय व तरो-ताजा बने रहते हैं। इसके साथ ही हमारे स्वास्थ्य एवं उर्जा के स्तर में भी काफी सुधार हुआ है।’’

केरल में यह एक स्वागत करने योग्य प्रवृत्ति है, क्योंकि लोगांे के बीच रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाये रखना स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण विचार बन गया है। एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए पोषणयुक्त खाद्य, विशेषकर फल एवं सब्ज़ियां अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। केरल की भौगोलिक स्थलाकृति एवं यहां की मृदा फलों एवं सब्ज़ियों की खेती के लिए अत्यन्त उपयुक्त है। ये देखना अत्यन्त रूचिपूर्ण एवं आशाप्रद है कि अब बहुत से शिक्षित युवा लोग ‘‘मेरा भोजन मेरी जिम्मेदारी’’ के विषय में बात करने लगे हैं।

उषा एस, मंजू एम नैयर एवं देविका ए एस


उषा एस.
थनाल, ओडी-3
जवाहर नगर, पोस्ट-कोवाडायर
तिरूवन्नतपुरम् - 695 003
केरल
ई-मेल: ushathanal@gmail.com

Source: Small farmersand safe vegetables cultivation, LEISA India, Vol.22, No.3, September 2020

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