स्थानीय बीजों तक पहुंच बनाने के माध्यम से खाद्य सम्प्रभुता को बनाये रखना

Updated on March 3, 2020

महाराष्ट््र के आदिवासी क्षेत्रों के किसानों ने अपने भोजन की संप्रभुता बनाये रखने के लिए स्थानीय, पारम्परिक पुनर्जीवन एवं संरक्षण की सहभागी प्रक्रिया के माध्यम से स्थानीय बीजों के उपर अपनी जानकारी/ज्ञान के साथ बीजों तक अपनी पहुंच सुनिश्चित की है।


विशेष रूप से नाजुक क्षेत्रों के किसानों की आजीविका को स्थाईत्व प्रदान करने के लिए फसलों की आनुवांशिक विविधता एक प्रमुख तत्व है जो बदलते बड़े पारिस्थितिकी एवं जलवायु के साथ आर्थिक परेशानियों के अधीन है। स्थानीय कृषि जलवायुविक परिस्थितियों के अनुकूल अपनी भूमि के लिए संरक्षित बीजों के लिए किसानों का सैकड़ों वर्षों का प्रयास लगा है।

हालांकि अनाज, दालें, तेल, पुराने जंगली कन्द, मूल और स्थानीय जड़ी-बूटियों सहित स्थानीय खेती जो कि आदिवासी और ग्रामीण समुदाय के लिए खाद्य सुरक्षा का एक अच्छा स्रोत हुआ करता था, वे सभी आज खत्म हो रहे हैं और किसान उन्नत पैदावार प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों की खेती कर रहे हैं। जिससे इन प्रकार के बीजों के लिए बाहरी कम्पनियों एवं एजेन्सियों पर किसानों की निर्भरता बढ़ती जा रही है। इसके अलावा रसायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के अधिक उपयोग के फलस्वरूप खेती की लागत में वृद्धि, पर्यावरणीय गिरावट और जैव विविधिता को प्रभावित करने वाले एकल खेती की क्षेत्र में वृद्धि हो रही है।

महाराष्ट््र का नंदुरबार जिला एक आदिवासी बहुल जिला है। सतपुड़ा पहाड़ी श्रृंखला में बसा यह यह क्षेत्र विशेषकर दो प्रखण्ड- धड़गांव और अक्कल कुंआ मुख्यतः आदिवासी एवं पहाड़ी बहुल है। भील और पावरा इन प्रखण्डों की मुख्य जनजातियां हैं। इनमें अधिकांश आदिवासी छोटे एवं सीमान्त भूमि जोत के किसान हैं और खेती में कम पैदावार होने के कारण अपने निर्वहन हेतु जंगलों पर निर्भर रहते हैं। नंदुरबार जिला अपनी असाधारण पारम्परिक फसल विविधता के लिए जाना जाता है जिसमें मक्का, बाजरा, मोटे अनाज, दालें और जंगली खाद्य प्रजातियां शामिल हैं। फिर भी, वर्तमान समय अवधि में जैव विविधता का तेजी से क्षरण हुआ है।

खाद्य व आजीविका सुरक्षा प्रदान करने और छोटे किसानों के लिए खेती में जोखिम कम करने की दृष्टि से जैव विविधता के महत्व को शामिल करते हुए गैर सरकारी संगठन बाएफ ने नंदुरबार जिले के धड़गांव और अक्कलकुंआ प्रखण्ड के दूर स्थित 14 गांवों में सामुदायिक नेतृत्व प्रबन्धन और आदिवासियों के भोजन को पुनर्जीवित करने की पहल की। क्षेत्र में फसल विविधता एवं संगठित ज्ञान को दस्तावेजित करने और स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से सहभागी बीज उत्पादन एवं पारम्परिक फसल/प्रजातियों को संरक्षित करना इस पहल के मुख्य उद्देश्य थे।

खेतिहर लोगों का दस्तावेजीकरण

गांव में प्रारम्भिक आंकड़ों का संकलन करने के लिए गांव स्तर पर एक फोकस ग्रुप के माध्यम से चर्चा की गयी जिसमें गांव के वृद्ध, महिलाएं एवं अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति शामिल हुए। इसके साथ ही संस्था के कार्यकर्ताओं ने आदिवासी समुदायों के पारम्परिक त्यौहारों में सक्रिय रूप से भागीदारी कर बीजों व उनकी संस्कृति के बारे में जानकारियां प्राप्त की। साथ ही पारम्परिक खाद्य फसलों के संरक्षण करने वाले परिवारों की सूची तैयार की गयी।
इन बैठकों के दौरान कार्यकर्ताओं न उन कृषक परिवारों की पहचान की जो अभी भी अपनी जमीन के छोटे टुकड़े पर पारम्परिक विधि से खेती कर रहे हैं। बाएफ संस्था ने गांव स्तर पर इन किसानों को शामिल करके ग्राम स्तर पर 19 बीज मेलों का आयोजन किया जिसमें विभिन्न फसलों जैसे- बाजरा, मक्का, छोटे दानों के मोटे अनाजों की विविधता के साथ-साथ जंगली खाद्य पौधों की प्रजातियों को प्रदर्शित किया गया।

पांच किसान जो पहले से ही संरक्षण प्रक्रिया से परिचित थे, उन किसानों का बीज संरक्षण समूह बनाने के लिए चयन किया गया। यह समूह आगे सभी फसलों के संग्रह में शामिल था। प्रारम्भ में मक्का के लिए 12 और बाजरा के लिए 9 भूमि संग्रह किये गये। बाद में अन्य फसलों के बीज संरक्षण की प्रक्रिया प्रारम्भ की गयी। इस प्रकार कुल मिलाकर लगभग 258 भूखण्ड एकत्र किये गये थे। सारिणी सं0 1 में इन भूखण्डों एवं इनके लक्षणों को दर्शाया गया है।

समुदायों ने पाया कि पारम्परिक भूखण्ड कठोर थे, सूखा स्थितियों के प्रति सहनशील थे और उनमें कीटों एवं रोगों का आक्रमण भी बहुत कम होता था।

तालिका सं0 1: बीज बचाओ समिति द्वारा फसलों के जर्म प्लाज्म का एकत्रीकरण

फसल भूखण्डों की संख्या भूखण्डों का महत्व
टांगुन 01 दानों का बड़ा आकार, स्वाद में मीठा, अधिक कल्ले, सूखा परिस्थितियों के प्रति सहनशील
बजड़ी 03 बंजर/ढलवां जमीन पर आसानी से उगने वाली, चूसक कीट प्रतिरोधी, बेहतर गुणवत्ता, अधिक पोषक
सांवा 06 बंजर/ढलवां जमीन पर आसानी से उगने वाली, चूसक कीट प्रतिरोधी, बेहतर गुणवत्ता, अधिक पोषक
मक्का 23 सूखा सहनशील, स्वाद में मीठा, स्वस्थ पौधे, अच्छी चारा गुणवत्ता
चारा 21 सभी पारम्परिक भूखण्ड ब्लैक स्मट नामक रोग के प्रति सहनशील, स्वाद में मीठा, एक सीमा तक सूखा सहनशील, चारे का स्वाद अत्यधिक मीठा
लोबिया 06 अत्यधिक मीठा, सूखा परिस्थितियों के प्रति सहनशील, बेहतर गुणवत्ता एवं कीटों का कम से कम आक्रमण
जलकुम्भी 12 लम्बे पुष्पगुच्छ, दानों का बड़ा आकार, स्वाद में मीठा, चूसक कीटों का कम से कम आक्रमण
जंगली खाद्य पदार्थों की प्रजातियां 63 उच्च औषधीय मूल्य, कुछ वर्ष भर मिलते हैं, आसानी से खोदने योग्य, रोग प्रतिरोधक, सूखा सहनशील
कुल 135

 

संरक्षण
प्रदर्शन के दौरान विशिष्ट भूमि के लिए एकत्र की गयी जानकारियों को सीटू संरक्षण के दौरान मिलाया गया। प्रत्येक भूखण्ड के लिए समुदाय के साथ चर्चा करने के बाद आगे संरक्षण करने के सन्दर्भ में मक्का और बाजरा प्रत्येक के लिए 5-5 सबसे बेहतर भूखण्डों का चयन किया गया ;देखें तालिका 2द्ध। किसानों के खेतों को संरक्षण हेतु नियंत्रित भूखण्ड के रूप में तैयार किया गया। दस इन-सीटू संरक्षण भूखण्डों को पारम्परिक भूमि की खेती के लिए पहचान की गयी थी।

समुदाय संरक्षण प्रक्रिया में शामिल होने के साथ ही प्रजातियों की भौतिक प्रदर्शन के आधार पर प्रजातियों के चयन में भी सक्रिय सहभागिता निभाते हैं। बाएफ के कार्यकर्ताओं के साथ बीच बचाओ समिति के सदस्यों और जानकार किसानों ने फसल की विकास अवस्था एवं कटाई से पहले प्रत्येक इन-सीटू भूखण्डांे का भ्रमण किया। वैज्ञानिक पद्धतियों का उपयोग करते हुए शुद्ध पंक्ति चयन करने के उपर सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया। इसके साथ ही शुद्ध पंक्ति चयन का किसानों का अपना तरीका भी है। सदस्यों ने फसलों का चयन कुछ निश्चित विशेषताओं जैसे- दाने का आकार, दाने का रंग, पौध की उंचाई, दर्ज करने की संवेदनशीलता, कीट एवं रोग प्रतिरोधक, सूखा सहिष्णु, पुष्पगुच्छ का ढांचा आदि के आधार पर किया गया। प्रतिरूप विशेषताओं का वर्गीकरण करने के लिए परियोजना कार्यकर्ताओं ने आईसीएआर के डीयूएस दिशा-निर्देशों के आधार पर वैज्ञानिक आंकड़ों को एकत्र किया और मक्का के 21 भूखण्डों तथा बाजरा के 18 भूखण्डों का रूपात्मक विशेषताओं का निर्धारण किया।

तालिका 2: दुहराव के लिए मक्का और चारा के चयनित भूखण्डों का विवरण

फसल स्थानीय नाम महत्वपूर्ण विशेषताएं
मक्का कुक्कड़ मकई कम परिपक्वता अवधि ;90-95 दिन कीद्ध, सूखा सहनशील, रस्ट रोग प्रतिरोधी, अपने मीठे स्वाद के कारण विशेषकर लड्डू बनाने हेतु उपयोगी
मक्का केहरी मकई मध्यम परिपक्वता अवधि ;95-100 दिन कीद्ध, चूसक कीटों के प्रति सहिष्णु, सूखा प्रतिरोधी
मक्का पिवाला लाल मकई एवं पिवाड़ा लहन मक्की लम्बी बाली, चमकदार पीले रंग का बीज, पौध की उंचाई 215 सेमी0 तक, सूखा सहनशील
मक्का पिवाला मक्का बिना भूसी के लम्बी बाली, रस्ट रोग प्रतिरोधी, विशेषकर भाखरी और लहया बनाने के लिए उपयोग में लाना।
ज्वार चिकनी लाल जुवार ;सेल कनिसद्ध एवं चिकनी जुवार ;घट्ट कनिसद्ध ब्लैक स्मट रोग प्रतिरोधी एवं सूखा परिस्थितियों के प्रति सहनशील, विशेषकर पापड़ बनाने में उपयोग
चारा लहन मनी जुवार एवं मेथी मनी जुवार देर में पकने वाली प्रजाति ;105-110 दिनों कीद्ध ब्लैक स्मट रोग प्रतिरोधी, सूखा सहनशील, आसानी से ओसाई जाने वाली और बेहतर चारा गुणवत्ता
चारा मोथी सफेद जुवार 220-240 सेमी0 लम्बे पौधे, कटाई के समय भी पौधे हरे रहते हैं जिससे यह दाना एवं चारा दोनों के लिए अच्छा होता है। अधिक दाने, स्वाद में मिठास, दानों का बड़ा आकार, विशेषकर भाखरी और लहया बनाने के लिए उपयोग में लाना।

 

बीज बचाओ समिति
विभिन्न गांवों के चयनित बीज रक्षक बीज बचाओ समिति के सदस्य हैं। वे समिति में सक्रिय रूप से शामिल हैं और योजना को प्रक्षेत्र स्तर पर क्रियान्वित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। समिति प्रक्षेत्र में अपनी मासिक बैठक आयोजित करती है। इन-सीटू भूखण्डों के प्रक्षेत्र भ्रमण के दौरान योजना के उपर चर्चा की गयी। बीज के भण्डारण एवं अन्य किसानों के साथ आदान-प्रदान का कार्य समिति सदस्यों की जिम्मेदारी होती है। प्रत्येक समूह प्रखण्ड स्तर पर गठित समिति ‘‘महमोगी माता बीज बचाओ समिति’’ में अपने प्रतिनिधियों को नामित करता है। प्रखण्ड स्तर पर इस समिति में 10 सदस्य होते हैं। यहां पर लगभग 70 महिला किसान बीज रक्षक के तौर पर हैं। जो विभिन्न सब्जी फसलों के बीज को संरक्षित करती हैं। गांव स्तर पर तीन बीज बैंक स्थापित किये गये हैं जो किसानों द्वारा प्रबन्धित किये जाते हैं। बीज रक्षक समिति इच्छुक किसानों को बीज उपलब्ध कराते हैं और वे किसान उत्पादन होने पर दुगुनी मात्रा में बीज बीज बैंक को वापस करते हैं। हाल ही में बीज बचाओ समिति ने नई दिल्ली में पौध प्रजातियों की सुरक्षा एवं किसान अधिकार अधिनियम ;पीपीवीएफआरएद्ध में मक्का और बाजरा के लिए 5-5 स्थानीय भूखण्डों के लिए कुल 10 आवेदन डाले हैं।

प्रभाव
फसल विविधता और परम्परागत ज्ञान दोनों के संरक्षण पर इस पहल के बहुत से सकारात्मक परिणाम सामने आये हैं। समुदाय ने महसूस किया कि उनके आस-पास बहुत जानकारियां हैं और वे बेहतर गुणवत्ता जैसे- स्वाद, सुगन्ध, रख-रखाव की बेहतर गुणवत्ता, उच्च पोषण मूल्य आदि से भरपूर पारम्परिक भूखण्डों को संरक्षित करने के लिए पर्याप्त क्षमतावान थे। उन्होंने यह भी पाया कि पारम्परिक फसल काफी कठोर, सूखा परिस्थितियों के प्रति सहनशील थे और उनके उपर कीटों एवं रोगों का प्रकोप भी कम होता था। बीज अंकुरण की दर अधिक होने के बावजूद खेती की लागत कम थी। पारम्परिक फसल के लाभों को देखते हुए किसानों ने इनकी खेती अधिक से अधिक करनी प्रारम्भ कर दी है और पारम्परिक प्रजातियों की खेती के क्षेत्र में वृद्धि हुई है। 2016-17 में खरीफ ऋतु के दौरान 120 बीज रक्षक किसानों ने मक्का और ज्वार की पारम्परिक प्रजातियों की 120 एकड़ खेती की। जबकि पहले सिर्फ 1/8 भू-भाग पर ही इसकी ख्ेाती क जाती थी। बहुत से किसानों ने पारम्परिक प्रजातियों की खेती करने में रूचि दिखाई।

बीज उत्पादन पर अपनी पकड़ बनाये रखते हुए बीजों तक किसानों की बहुत अधिक पहुंच हो गयी है और बाहरी स्रोतों पर उनकी निर्भरता कम हो गयी है। अगले खरीफ ऋतु में खेती करने के लिए उनके पास लगभग 550 किग्रा0 मक्का और 500 किग्रा0 ज्वार के बीज उपलब्ध हैं। इसके अलावा बीज पर होने वाले खर्च में भी भारी कमी आयी है।

पारम्परिक भूखण्डों के सहभागी पुररूद्धार, संरक्षण और दुहराव की इस प्रक्रिया से आदिवाी क्षेत्र के किसानों को उनकी खाद्य सम्प्रभुता प्राप्त करने में मदद मिल रही है। अब वे स्थानीय बीजों के बारे में जानकारी रखते हैं और अपनी पसन्द के बीजों तक उनकी पहुंच भी है।

लिलेश एन. चवन, हरेश्वर बी मागरे एवं सुधीर एम वागले


सुधीर एम. वागले
बाएफ मित्र भवन, निवास होम के सामने
बोधले नगर के पीछे, नासिक-पुणे मार्ग,
नासिक - 11
ई-मेल: mittransk@gmail.com

Source: Food Sovereignity, LEISA India, Vol. 19, No.1, March 2017

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