शहरी परिधीय ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य एवं आजीविका सुरक्षा

Updated on June 1, 2023

शहरी क्षेत्रों में प्रवेश के लिए उप नगरीय क्षेत्र ‘‘प्रतीक्षालय’’ नहीं हैं। भविष्य में होने वाले भू उपयोग में परिवर्तनों तथा अनियोजित व अनियन्त्रित निर्माण गतिविधियों को रोकने के लिए लोगों की सोच में मूलभूत परिवर्तन की आवश्यकता है। बहु क्रियात्मक हरित क्षेत्रों के साथ ही शहरी उपान्त कृषि को भी बढ़ावा देकर और व्यवस्थित करते हुए स्थिति को बेहतर तरीके से प्रबन्धित किया जा सकता है। गोरखपुर शहर के शहरी उपान्त क्षेत्रों में हरित स्थानों पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी समाधानों के सह-निर्माण के पहल ने लोगों की खाद्य सुरक्षा बढ़ाने, शहर के चारों तरफ हरित स्थान बनाये रखने तथा शहरी परिधीय ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण समुदाय की आजीविका बढ़ाने का एक प्रभावी मार्ग प्रशस्त किया है।


भारत के गोरखपुर शहर में शहरी उपान्त कृषि, शहरों में रहने वाले विशेषकर गरीब और सीमान्त समुदायों की विविधीकृत शहरी आजीविका, विशेषकर सब्ज़ियां एवं फलों के मामले में स्थानीय खाद्य आपूर्ति की उपलब्धता एवं बाढ़ के दौरान बफर जोन के तौर पर काम करने के लिए खुले क्षेत्रों को बनाये रखने के व्यवहारिक तरीके का प्रतिनिधित्व करती है। नवीन तरीकों के साथ जलवायु अनुकूलित शहरी उपान्त कृषि को बढ़ावा देते हुए इन क्षेत्रों में भूमि उपयोग पद्धति और पारिस्थितिकी प्रणाली को बनाये रखा गया। परिणामस्वरूप, लघु एवं सीमान्त किसानों की आजीविका सुरक्षित हुई, कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई और शहरी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई।

शहरों के स्थाई विकास के लिए अनियोजित शहरीकरण और जलवायु परिवर्तनशीलता, दो मुख्य बाधाएं हैं। शहरी क्षेत्रों में सिकुड़ते खुले स्थान और आवास की बढ़ती मांग से मौजूदा कृषिगत क्षेत्रों पर दबाव पड़ रहा है जिससे हरित स्थान खतरे में आ गये हैं, शहरों को आपूर्ति की जाने वाली बहुत सी खाद्य सामग्रियों की आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो रही है और ग्रामीण क्षेत्रों की पारम्परिक आजीविका पद्धति प्रभावित हो रही है।

प्रस्तुत लेख गोरखपुर एन्वायरन्मेण्टल एक्शन ग्रुप द्वारा भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की कोर सपोर्ट सहायतित परियोजना के अन्तर्गत किये गये नवाचारों को प्रसारित करने का एक प्रयास है। इस परियोजना में, संस्था ने, शहरी उपान्त कृषि को सुदृढ़ करते हुए हरित स्थानांे को बनाये रखने के माध्यम से गोरखपुर शहर के बाढ़ एवं जल-जमाव के जोखिम को कम करने का प्रयास किया है। यह प्रक्रिया गोरखपुर शहर पर जलवायु परिवर्तन के पड़ने वाले प्रभावों को कम करने के लिए अनुकूलित कृषि अभ्यासों के माध्यम से भी की जाती है।

गोरखपुर का शहरी उपान्त क्षेत्र सघन आबादी वाला है। सघन छोटी जोत की खेती यहां की प्रमुख पहचान है। सीमान्त स्थानीय किसान और गरीब शहरियों के साथ-साथ ग्रामीण प्रवासी भी यहां साथ-साथ रहते और खेती करते हैं। शहरी उपान्त क्षेत्र खाद्य उत्पादन के महत्वपूर्ण केन्द्र हैं। ये शहरी उपान्त क्षेत्र बढ़ती शहरी आबादी के ताजा और कम मूल्य का खाद्य आपूर्ति करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गरीब शहरी उपान्त क्षेत्र में रहने वाले समुदायों के लिए कृषि रोजगार के स्रोत जैसे- खेतिहर मजदूर के रूप में कृषि बुनियादी खाद्य उपज और आय आवश्यकताओं को पूरा करने वाली एक मुख्य आजीविका रणनीति है। हालांकि, पर्यावरणीय अखण्डता को बनाये रखने के लिए सुरक्षित और किफायती भोजन उगाने में चुनौतियां भी बहुत अधिक हैं।

गोरखपुर ट््रान्स सरयू क्षेत्र का एक बड़ा व्यवसायिक क्षेत्र माना जाता है, जहां कृषि उत्पादों से लेकर गृह आधारित कुटीर उद्योगों तक की वस्तुओं के खुदरा और थोक दोनों बाजार हैं। ऐतिहासिक रूप से, पूरे क्षेत्र में, हर साल मानसून ;जून-सितम्बरद्ध में कम स्तर की बाढ़ का अनुभव होता है। लेकिन पिछले कुछ दशकों के दौरान अव्यवस्थित शहरीकरण की प्रक्रिया और जलवायु परिवर्तनशीलता ;कम समय में अधिक बारिशद्ध ने शहर और उसके आस-पास मौजूदा नाजुकताओं को और बढ़ा दिया है। हाल की चरम घटनाओं ने शहर के कुछ हिस्सों में बाढ़ एवं जल-जमाव की तीव्रता और अवधि को बढ़ाया है।

इस पहल ने निराश किसानों के पलायन को कम किया और खेती में उम्मीद जगाई है।

पहल:
परियोजना के माध्यम से जंगल कौड़िया कस्बे के शहरी उपान्त क्षेत्र मंे स्थित दो गांवों में लगभग 170 हेक्टेयर भूमि पर लघु, सीमान्त एवं महिला किसानों के साथ नवोन्वेषी जलवायु अनुकूलित कृषि अभ्यासों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस हस्तक्षेप को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के वित्तीय सहयोग से रोजगार के लिए सुदृढ़ीकरण, उन्नयन एवं पोषण नवाचारों ;सुनीलद्ध कार्यक्रम के तहत् संचालित किया जा रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य पांच क्षेत्रांे – जल-जमाव क्षेत्र, बालू वाला क्षेत्र, उंचा क्षेत्र ;सूखा अनिश्चितताओं के साथद्ध बाढ़ मैदानी क्षेत्र एवं शहरी उपान्त क्षेत्रों के विशिष्ट सन्दर्भ में विकसित की गयी तकनीकों के माध्यम से लघु एवं सीमान्त किसानों के लिए खेती में शुद्ध लाभ को बढ़ाने की प्रकिया का निर्माण करना था।

सुनील कार्यक्रम के अन्तर्गत जी0ई0ए0जी0 पिछले तीन वर्षों ;2018-2021द्ध शहरी उपान्त क्षेत्रों में जलवायु अनुकूलित खेती को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है। दो लघु एवं सीमान्त चयनित किसानों – सुग्रीव ;बाक्स 1द्ध एवं रामचन्दर ;बाक्स 2द्ध से इस पहल की शुरूआत की गयी। इन चयनित किसानों को देखकर उनके अभ्यासों को अपनाने वाले फॉलो किसानों की संख्या अब बढ़कर 117 हो गयी है।

 

बाक्स 1: विविधीकरण: एक कम जोखिम वाला विकल्प

50 वर्षीय सुग्रीव प्रसाद जनपद- गोरखपुर के विकासखण्ड- जंगल कौड़िया स्थित गांव जिन्दापुर के एक किसान हैं, जो अपने एक एकड़ खेत में परम्परागत रूप से कुछ प्रकार के ही फसलों को उगाते थे। वर्ष 2019 में, उन्होंने संस्था की तरफ से कृषि सम्बन्धी विविध तकनीक विषय पर आयोजित एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया और अपनी खेती पद्धति को बदलने का निश्चय किया।

आज, सुग्रीव कुछ फसलों से बहुत आगे आ चुके हैं। जाड़े में वे सब्ज़ियां उगाते हैं, जिसमें वे मटर, गोभी, बन्दगोभी, मूली, गाजर, धनिया, लहसुन, प्याज, पालक, आलू, टमाटर एवं गेंहूं की खेती करते हैं, जबकि वर्षा ऋतु में वे बोड़ा, नेनुआ, लौकी, करैला व भिण्डी के साथ-साथ धान की खेती करते हैं। वह अपने घर पर ही सी0पी0पी0 और वर्मी कम्पोस्ट खाद तैयार करते हैं और गाय के गोबर में मिलाकर अपने खेत में खाद डालते हैं।

इसके अलावा वह अपनी फसलांे को कीटों से बचाने के लिए रसायन मुक्त कीटनाशक को घर पर ही तैयार करते हैं और उन्होंने सिंचाई के लिए एक प्रणाली भी विकसित की है। ये सभी मिलकर सुग्रीव को आत्मनिर्भर बनाती हैं। अब सुग्रीव को प्रयोग करने और नयी-नयी तकनीकों का उपयोग करने में प्रसन्नता होती है। वह कहते हैं, ‘‘अधिक आमदनी का मतलब कम लोन लेना पड़ता है। परिवार को खाने के लिए अधिक मिलता है।’’ वह पुनः कहते हैं, ‘‘इन प्रयासों और तकनीकों के साथ जुड़ाव के बाद मैंने बाहरी निवेशों पर अपने निर्भरता को कम करते हुए बाजार की लागत में 42 प्रतिशत तक की कमी की है।परियोजना से जुड़ाव के पहले, हमें खेती से सालाना तौर पर शुद्ध आय रू0 10,000.00-12,000.00 की होती थी, लेकिन यह पहल गरीब एवं सीमान्त समुदायों के लिए आजीविका में विविधता लाने, स्थानीय खाद्य विशेषकर सब्ज़ियांे एवं फलों की आपूर्ति सुनिश्चित करने तथा बाढ़ के समाधान के तौर पर खुले क्षेत्रों का संरक्षण करने के व्यवहारिक रास्ते का प्रतिनिधित्व करती है। इस प्रक्रिया ने नुकसान की संभावना को कम करके खेती करने वाले समुदायों को और अधिक मजबूत व बाढ़ के प्रति सहनशील बनाने में सहायता की है। किसानों खेती के उपतंत्रों में पुनर्चक्रीय प्रक्रियाओं को अपनाया, जिससे उनकी बाहरी निवेश की आवश्यकता घटी है। बाहरी जैव निवेशों को कम करने, उचित फसल प्रजातियों को उगाने, स्थान एवं समय प्रबन्धन को अपनाने, बीज बैंक की स्थापना, जमीन समतलीकरण एवं पोटेबल नर्सरी प्रणालियों सहित बहुत से अभ्यासों को किसान अपना रहे हैं।

 

 

यह पहल खेती प्रणालियों में विविधता-जटिलता एवं रिसाइकलिंग प्रक्रियाओं को बढ़ाने तथा कृषि-उद्यान-पशुपालन प्रणालियों के एकीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है ;चित्र 1द्ध। यह जी0ई0ए0जी0 का एक जांचा-परखा माडल है, जो पिछले तीन दशकों से लोगों द्वारा अपनाया जा रहा है। इस मॉडल का स्थाईत्व ही इसकी अनोखी विशेषता है। इसे स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर डिजाइन किया गया है। इन क्षेत्रों में अधिक बाढ़ आती है। इसलिए, किसानों को मौसम पूर्वानुमान की सूचना नियमित रूप से मोबाईल पर एस0एम0एस0 के माध्यम से समय-समय पर मिलती रहती है।

खेती प्रणालियों में तकनीकी सहायता देने के साथ-साथ, नाजुक समूहों के बीच जलवायु अनुकूलित शहरी-उपान्त खेती प्रणाली की मांग तैयार करने की भी रणनीति है। इसके साथ ही शहरी-उपान्त क्षेत्रों की कृषिगत भूमि को संरक्षित करने हेतु पर्यावरणीय नीति को बढ़ावा भी देना है। इस प्रक्रिया में चयनित किसानों और कृषि सेवा केन्द्रों के माध्यम से समुदाय को संगठित करने पर भी जोर दिया जा रहा है। जंगल कौड़िया क्लस्टर के साथ-साथ 16 चयनित किसान हैं एवं 4 कृषि सेवा केन्द्रों की स्थापना की गयी है।

शहरी-उपान्त खेती के मुख्य घटक
1. अनुकूलित और खेती प्रणाली की स्थापना और प्रसार: कार्यक्रम ने ‘‘देखना ही विश्वास करना है’’ के अन्तर्निहित विचार के साथ अनुकूलित कृषि प्रणाली की स्थापना और प्रसार किया।
2. संगठन बनाना: किसान विद्यालयों, स्वयं सहायता समूहांे एवं किसान उत्पादक समूहों के माध्यम से उपर वर्णित जैव निवेशों और जलवायु अनुकूलित कृषि अभ्यासों का क्रियान्वयन किया गया। किसानों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान करने तथा नये सीखे गये अभ्यासों को क्रियान्वित करने हेतु उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने में किसान विद्यालयों ने सहयोग किया। जबकि कृषि सेवा केन्द्रों के माध्यम से, किसानों को कृषिगत उपकरण जैसे- डीजल इंजन, सिंचाई पाइप एवं नर्सरी तैयार करने तथा पॉली हाउस बनाने हेतु हेतु सामग्रियों को किराये पर उपलब्ध कराया गया। जलवायु अनुकूलित उत्पादन अभ्यासों के क्रियान्वयन में चयनित व उनसे जुड़े अन्य किसानों को सहायता प्रदान करने में इन संगठनों ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई।
3. शैक्षणिक एवं अन्य संस्थानों के साथ जुड़ाव एवं नेटवर्किंग संस्थानों की स्थापना: परियोजना ने किसानों एवं विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों जैसे- कृषि विज्ञान केन्द्र, नाबार्ड, आई0आई0टी-कानपुर के विशेषज्ञों और स्टार्ट-अप कम्पनियों के बीच जुड़ाव एवं सम्पर्क स्थापित करने में सहायता की। इन जुड़ावों से विशेषज्ञों से प्राप्त होने वाली सूचनाओं तथा सरकार और सम्बन्धित विभागों से निकलने वाले अनुदानित कार्यक्रमों/योजनाआंे तक किसानों की पहुंच बढ़ी है। किसान यह महसूस करने लगे हैं कि इन जुड़ावों से वे अपनी समस्याओं के समाधान प्राप्त करने में अधिक सक्षम हुए हैं।

कार्यक्रम के प्रभाव:

मोटे तौर पर इस कार्यक्रम के निम्न प्रभाव रहे –
* शहरी-उपान्त क्षेत्रों में कृषिगत भूमि का संरक्षण हो रहा है और शहर की बाढ़ से निपटने की क्षमता वृद्धि का एक बेहतर मॉडल सिद्ध हुआ है।
* शहरी उपान्त क्षेत्रों में सीमान्त भूमि जोत में कृषि-उद्यान-पशुपालन प्रणाली के लिए जैव निवेश सहायता अभ्यासों को बढ़ावा देते हुए स्थाई और जलवायु अनुकूलित मॉडल स्थापित हुए हैं।
* गरीब परिवारों की की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई है और जबरन पलायन घटा है।
* छोटी जोत वाले और महिला किसानों की खेती में लागत कम हुई है और शुद्ध प्राप्ति में वृद्धि हुई है।
* शहरी उपान्त क्षेत्रों में नाजुक समूहों की आजीविका सुरक्षा और शहरी गरीबों की खाद्य सुरक्षा में वृद्धि हुई है।

 

बाक्स 1: लो-टनल पॉली हाउस तकनीक

जिन्दापुर के ही रहने वाले रामचन्दर सही मायनों में एक किसान नहीं थे। वह अपने 0.6 एकड़ खेत में गेंहूं उगाते थे, लेकिन बहुत कम उपज मिलती थी। इसके पीछे मुख्य कारण उनकी खेती की जमीन नीची होना और जल-जमाव ग्रस्त होना था। वह अपने परिवार की खाद्य एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए गांव मंे ही एक छोटी सी दुकान चलाते थे। वे कृषि सेवा केन्द्र, जिन्दापुर में होने वाली मासिक बैठकों एवं अन्य बैठकों व प्रशिक्षणों में प्रतिभाग करते रहे, परन्तु प्रशिक्षण लेने के एक वर्ष तक उन्होंने न तो प्रशिक्षण में बताई गयी गतिविधियों को अपनाया और न ही अपनाने में रूचि दिखाई। 

निचले क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से लाभप्रद तकनीक लो टनल पॉली हाउस ने उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। यह विशेष रूप से ग्रीनहाउस तकनीक पर आधारित है, जो सूर्य की रोशनी और प्रकाश को तो अन्दर आने देती है, लेकिन ताप या गर्मी से पौधों को सुरक्षित रखती है। यद्यपि यह पॉली हाउस कांच की न होकर स्थानीय तौर पर पॉलीथीन या प्लास्टिक से बनायी गयी हैं। रामचन्दर ने अपने खेत की सबसे उंची जगह पर मेड़ बनाकर लो टनल पॉली हाउस का निर्माण किया ताकि सब्ज़ियों के पौधों का उचित विकास करने में मदद मिल सके। उन्होंने न केवल बैमौसम की सब्ज़ियों के पौधे उगाये, वरन् पौधों की मृत्यु दर में भी कमी आयी। आज रामचन्दर के पास सब्ज़ियों की नर्सरी है और वे अपने आस-पास के किसानों को सब्ज़ियों के पौधे बेचते हैं। वे अन्य किसानों को इस तकनीक को सीखाते हैं और 12 किसानों को इस ढांचे को लगाने में भी सहायता की है।

 

 

निष्कर्ष:
गोरखपुर की यह कहानी निराश किसानों के पलायन को कम करने तथा खेती में एक नई आशा उत्पन्न करने का एक सफल प्रयास है। जलवायु अनुकूलित कृषि अभ्यासों ने खेती की लागत कम करने तथा शुद्ध प्राप्ति को बढ़ाने में सहायता की है। इसके साथ ही इसने शहरी गरीबों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा नाजुक समूहों की आजीविका सुरक्षा बढ़ाने में भी अपना योगदान दिया है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यदि गांव के लोग एक व्यवस्थित तरीके से खेती, उद्यान और पशुपालन को उन्नत करें तो उनकी मूल्यवान जमीनों को बिल्डरों द्वारा खरीदने की संभावना कम होगी, जिससे उनके अपने क्षेत्र में खुला स्थान और जल स्रोतों की सुरक्षा होगी।

अजय कुमार सिंह, अर्चना श्रीवास्तव


अजय कुमार सिंह
अर्चना श्रीवास्तव
गोरखपुर एन्वायरन्मेण्टल एक्शन ग्रुप
एच आई जी - 1/4, सिद्धार्थपुरम
तारामण्डल मार्ग, गोरखपुर - 273 017
ई-मेल: geagindia@gmail.com

Source: Urban Agriculture, LEISA India, Vol, 24. No.1, March 2022

 

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