वाडी: आजीविका, पोषण और पर्यावरण में वृद्धि का माध्यम

Updated on September 5, 2022

स्थानीय संसाधनों के उचित उपयोग, कम भूमि के साथ उत्पादक जुड़ाव और जलवायु स्मार्ट अभ्यासांे के माध्यम से स्थाई आजीविका के लिए कृषि प्रणाली मंे बागवानी को एकीकृत करने हेतु ‘‘कृषि- औद्यानिक-वानिकी ;वाडीद्ध’’ बाएफ संस्था का एक अभिवन मॉडल है। कृषि के मुख्य तत्व के तौर पर बागवानी को शामिल करता यह मॉडल पूरे वर्ष किसानों की बहु आय को सुनिश्चित करता है, जिससे विशेषकर संकट के दिनों में फसल पद्धतियों में मध्यम अवधि में लचीलापन और कम अवधि में बेहतर वापसी होती है।


भारत में बहुसंख्य आबादी की आजीविका का मुख्य स्रोत खेती एवं इससे सम्बन्धित क्षेत्र हैं। देश में लघु एवं सीमान्त किसानों की आबादी 82 प्रतिशत है, जिसमें से अभी भी 70 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए प्रमुख रूप से खेती पर ही निर्भर करती है। खाद्य एवं कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, पर्याप्त खाद्य उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त करने के बावजूद अभी भी भारत में विश्व की कुल भूखग्रस्त जनसंख्या की एक तिहाई आबादी रहती है और लगभग 190 मिलियन घरों के लोग कुपोषित हैं। भारत में जनजाति समुदायों के लोग इनमें से सबसे अधिक गरीब हैं और यही समाज के सबसे अधिक वंचित समुदाय भी हैं। वर्ष 2018 में, भारत का राष्ट््रीय आंकड़ा यह इंगित करता है कि भारत में जनजाति के लोग सबसे अधिक गरीब व वंचित श्रेणी में आते थे।

देश के अधिकांश किसान छोटी और सीमान्त जोत भूमिधारक हैं और वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर करते हैं। कृषि से कम उपज मिलने के कारण परम्परागत संसाधनों का तेजी से घटना, खराब स्वास्थ्य एवं सेवाओं तक पहुंच का अभाव जैसी बहुत सी चुनौतियां सामने आती हैं, जिससे लोगों को आजीविका चलाने के लिए मजबूरन पलायन करना पड़ता है। मजबूरी में किया गया पलायन निम्न स्तर की जीवन स्थितियों से जुड़ा होता है। अकुशल श्रमिक की श्रेणी में शामिल न लोगों को न तो रहने के लिए उचित स्थान मिलता है और न ही पर्याप्त पोषण व स्वस्थ जीवन शैली मिलती है, जिससे परिवार का स्वास्थ्य और बच्चों की शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण तत्व प्रभावित होते हैं।

आज एक ऐसी वैकल्पिक फसल प्रणाली तैयार करने की त्वरित आवश्यकता है, जिससे स्थाई आजीविका के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों के स्थाईत्व को भी सुनिश्चित किया जा सके। इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु औद्यानिक फसलें जैसे- फल, सब्ज़ियां, फूलों आदि की खेती में काफी संभावनाएं हैं। इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, बाएफ डेवलपमेण्ट रिसर्च फाउण्डेशन ;बाएफद्ध ने वाड़ी कार्यक्रम की शुरूआत की और इसे विस्तारित किया। इस वाडी कार्यक्रम में फलदार वृक्षों को बढ़ावा देने के साथ-साथ अन्य औद्यानिक और वानिकी पौधों को प्रोत्साहन दिया गया। वाडी मॉडल को अपनाने के बाद गरीबी से समृद्धि की तरफ अग्रसर होते एक आदिवासी परिवार की कहानी को इस लेख के माध्यम से साझा किया गया है। वाडी कार्यक्रम से जुड़ने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों के लगभग 2 लाख परिवारों की आजीविका, पोषण एवं जीवन की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार के परिणाम प्राप्त हुए हैं।

श्री सीताराम भाई सोनजी घाटका दक्षिणी गुजरात के सुदूर आदिवासी क्षेत्र में रहते हैं। वलसाड जिले के काप्रदा प्रखण्ड में सीताराम अपने 6 सदस्यीय परिवार के साथ रहते हैं। मैदानी क्षेत्र से लगा उनके पास 4 एकड़ जमीन है। उनकी लगभग आधा एकड़ जमीन काफी ढालू है, जिसमें अत्यधिक मृदा क्षरण होता है। उनके परिवार की आजीविका का प्रमुख स्रोत खेती है।

गांव में अधिकांश परिवारों का मुख्यतः खेती से ही जीवन निर्वाह होता था। उल्लेखनीय है कि केवल मानसून ऋतु में ही खेती होती थी और चावल, बाजरा एवं काला चावल यहां की प्रमुख फसल थी। खरीफ ऋतु की फसल कटाई के बाद, सीताराम भाई के पास गांव में आय अर्जन का अन्य कोई स्रोत न होने के कारण वे मजदूरी करने हेतु पलायन कर जाते थे। मानसून ऋतु के बाद पूरे वर्ष में वे काम की तलाश में 3-4 बार वापी, सिलवासा अथवा नासिक चले जाते थे। बार-बार जमीन बंजर रह जाने से मृदा का क्षरण और मृदा उर्वरता का ह्रास हो रहा था। बहुत बार पूरे परिवार की स्वास्थ्य और शिक्षा पर भी व्यापक असर पड़ता था। परिवार के सदस्यों के बीमार पड़ जाने पर चिकित्सा नहीं हो पाती थी साथ ही बच्चों की पढ़ाई भी छूट जाती थी। इन चुनौतियों के बावजूद, क्षेत्र के खेतिहर परिवार इसी पद्धति पर खेती कर रहे थे, जो चिन्ताजनक था।

क्षेत्र की इसी समस्या से निपटने के लिए बाएफ ने क्षेत्र में वाडी कार्यक्रम को प्रारम्भ किया। प्रारम्भिक पायलट परियोजना को नाबार्ड और सुप्रजा फाउण्डेशन द्वारा सहयोग प्रदान किया गया, जिसने कृषि, बागवानी और वानिकी हस्तक्षेपों सहित उपयुक्त खेती प्रणाली मॉडलों को विकसित करने में मदद की। बाएफ ने सुप्रजा फाउण्डेशन के सहयोग से ‘‘समग्र ग्राम विकास कार्यक्रम’’ के अन्तर्गत वाडी और विभिन्न औद्यानिक फसलों को आवश्यक मूल्य संवर्धन श्रृंखला हस्तक्षेपों के साथ क्षेत्र में परिचित कराया। इसके परिणामस्वरूप परिवारों की आजीविका में उल्लेखनीय सुधार परिलक्षित हुआ। सीताराम भाई ने वाडी कार्यक्रम के बारे में सुना और इस कार्यक्रम से लाभान्वित हुए अपने कुछ मित्रों और रिश्तेदारों से मिलकर इस खूबियों के बारे में जाना। तत्पश्चात् इस दिशा में कार्य करने का निश्चय किया।

         प्रमुख विशेषताएं एवं प्रभाव

  • स्थानीय संसाधनों के यथोचित उपयोग और उत्पादक जुड़ाव के लिए समग्र अनुकूलित दृष्टिकोण
  •  बाएफ ने 12 राज्यों में 2 लाख परिवारों तक पहुंच बनायी, जिसे नाबार्ड के साथ मिलकर 5 लाख परिवारों के साथ विस्तारित किया गया।
  •  परिवार को 80000-90000 की अतिरिक्त आमदनी। पूरे वर्ष आमदनी का होना।
  •  कोई जबरदस्ती का पलायन नहीं, पोषण, स्वास्थ्य व शिक्षा की स्थिति बेहतर।
  •  सामाजिक छवि बेहतर हुई है, सशक्तिकरण
  • मूल्य श्रृंखला का विकास: 48 एफ0पी0ओ0 के 41000 किसान आम, काजू, आंवला के प्रसंस्करण से जुड़े हैं।

 

शुरूआत में, वह बहुत आश्वस्त नहीं थे, क्योंकि वृक्षारोपण के लिए वह जिस भूमि को छोड़ सकते थे, उसकी ढलान बहुत अधिक थी और भूमि की गुणवत्ता भी बहुत खराब थी। उनके अनुरोध पर, बाएफ टीम द्वारा उनके खेत का भ्रमण किया गया और फिर संयुक्त रूप से एक एक कृषि प्रणाली सुधार योजना तैयार की गयी। उन्होंने सभी आवश्यक श्रम कार्य और प्रशिक्षणों को लेना भी सुनिश्चित किया। रोपण सामग्री, बेसल उर्वरकों, प्रशिक्षणों और नियमित मार्गदर्शन के रूप में उन्हें सहयोग दिया गया। गढ्ढांे की खुदाई, गढ्ढों की भराई, जैविक खादों का उपयोग आदि बहुत से कार्य पौध रोपण से पहले किया गया। सीताराम भाई ने खेत की मेड़ों पर आम के 20 पेड़, 40 पेड़ काजू के और 250 वानिकी पौधों की नर्सरी लगाई। फलदार वृक्षों के बीच में अन्तः फसली के रूप में दलहनी फसलों को लगाया। खरीफ फसल की कटाई के बाद फसल अपशिष्टों से नमी संरक्षित कर अन्तःखेती के रूप में सनई की खेती की गयी। इन अन्तःफसलों से एक तरफ तो अतिरिक्त आमदनी प्राप्त करने में सहायता मिली तो दूसरी तरफ नाइट््रोजन स्थिरीकरण क्षमता होने के कारण मृदा में सुधार हुआ। गर्मी ऋतु के दौरान, प्रक्षेत्र पर उचित मृदा संरक्षण गतिविधियों को सम्पादित किया गया। उन्हांेने खेत से प्राप्त अपशिष्टों का पुनर्चक्रण, हरी खाद, दशपर्णी के अर्क आदि का उपयोग सहित विभिन्न जैविक अभ्यासों को अपनाया। इन सभी अभ्यासों की वजह से मृदा संरक्षण के साथ मृदा सुधार में भी मदद मिली।

बाद में उन्होंने मचान आधारित फसलों सहित सब्ज़ियों की खेती में प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। सीताराम भाई ने कभी भी व्यवसायिक आधार पर सब्ज़ियों की खेती नहीं की थी। शुरूआत में उन्होंने बहुत छोटे से खेत में मचान आधारित खेती करना प्रारम्भ किया। जब मचान पर लौकी की खेती की तो उसके नीचे कुछ हरी पत्तेदार सब्ज़ियों को भी लगा दिया। इससे उन्हें एक ही समय में एक ही खेत से दो से 3 फसलें प्राप्त होने लगीं। पहले साल उन्होंने सब्ज़ियों की खेती से सराहनीय लाभ मिला। पहले साल सब्जी की खेती से की हुई बचत से ा। कुछ वर्षों पश्चात् पौधों के बढ़कर वृक्ष बन जाने के बाद मृदा में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ।

शुरूआती वर्षों के दौरान सीताराम भाई को अन्तःफसली के तौर पर दलहन की खेती से कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी। बाद के वर्षों में उन्हें अपनी सब्जी की खेती से आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। फलदार वृक्षों से उन्हें चौथे वर्ष से आमदनी मिलनी प्रारम्भ हो गयी, जो निरन्तर मिल रही है। पिछले कुछ वर्षों में फलों के उत्पादन में लगातार वृद्धि हुई है। अब सीतारामभाई अनाज, दलहन, सब्ज़ियों, फलों आदि से पूरे वर्ष भर आय प्राप्त कर रहे हैं। हस्तक्षेप के पहले और हस्तक्षेप के बाद उनके खेत के उत्पादों का उत्पादन और मूल्य का एक सार नीचे दी गयी तालिका में दिया जा रहा है-

बोयी गयी फसलें वाडी कार्यक्रम के पहले

उपज ;किग्रा

वाडी कार्यक्रम के पहले

मूल्य ;रू0

वाडी कार्यक्रम के बाद
उपज ;किग्रा
वाडी कार्यक्रम के बाद
मूल्य ;रू0
अनाज ;चावल, मोटा अनाजद्ध 1400 3500 1100 27500
दलहन ;चना, अरहरद्ध 70 4900 150 10500
लौकी 15540 217560
खीरा 1000 16000
आम 805 21735
काजू 180 18900
उपज का सकल मूल्य   39900   312195

 

कृषि उत्पादन में वृद्धि के फलस्वरूप घरेलू स्तर पर दालों, सब्ज़ियों और फलों की खपत में सुधार हुआ है। इससे परिवार स्तर पर पोषण उन्नत करने में मदद मिली है। अपने उपयोग के बाद अधिक हुई सब्ज़ियों व फलों को बेचने से परिवार की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अब उन्हें आजीविका के लिए जबरन पलायन करने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता है। अब परिवार एक सम्मानजनक जीवन जीने लगा है और बच्चे नियमित रूप से विद्यालय जाने लगे हैं। अन्य हस्तक्षेपों के साथ औद्यानिक फसलों और पेड़ों के कारण मृदा की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। परिवार ने यह देखा है कि अब उनके खेत में फसलों के साथ-साथ खेत में आने वाले चिडियों व कीट-पतंगों की विविधता में भी वृद्धि हुई है।

सामूहिक पहल
इस क्षेत्र में ऐसे कई अन्य किसान हैं, जो वाडी अर्थात् कृषि-औद्यानिक-वानिकी आधारित कृषि प्रणाली को अपनाये हुए हैं। परिणामस्वरूप कृषि प्रणाली में समग्र परिवर्तन और क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों में सुधार के कारण कृषि से मिलने वाले लाभ में वृद्धि हुई है। ये किसान किसानों के लिए संगठित निवेश आपूर्ति, कृषि उत्पादों को एकत्र करने, आम और काजू को प्रसंस्कृत करने के साथ-साथ प्रसंस्कृत उत्पादों के विपणन सहित मूल्य श्रृंखला हस्तक्षेपों को सुचारू पूर्वक करने के लिए किसान उत्पादक संगठनों ;किसान सहकारी समितियोंद्ध के रूप में संगठित हुए हैं। किसान सहकारी समितियों द्वारा इस प्रकार की गतिविधियों को किये जाने के कारण एक तरफ तो उनकी उत्पादन लागत कम हुई है तो दूसरी तरफ उनके उत्पादों का बेहतर मूल्य मिलना भी सुनिश्चित हुआ है। कृषि निवेश आपूर्ति, उत्पादों का एकत्रीकरण, प्रसंस्करण एवं विपणन जैसी गतिविधियों ने क्षेत्र के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर प्रदान किये हैं।

कई परिवार फलदार पौधों की नर्सरी/कलम तैयार करना, सब्ज़ियांे की नर्सरी तैयार करना, वर्मी कम्पोस्ट बनाना, मशरूम उत्पादन आदि करते हुए द्वितीयक कृषि उद्यमों में विविधता ला रहे हैं। कृषि- औद्यानिक हस्तक्षेपों से न केवल व्यक्तिगत परिवार स्तर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं, वरन् इससे समुदाय स्तर पर रोजगार के अवसर भी तैयार होते हैं। इस पूरे हस्तक्षेप से न केवल परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, बल्कि पर्यावरण में भी सुधार आया है। कार्बन को अपने अन्दर अवशोषित करते हुए वाडी मॉडल जलवायु परिवर्तन को कम करने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। आज बाएफ का यह वॉडी माडल गुजरात से बाहर निकल कर पूरे देश में फैल रहा है। छोटी जोत के किसान इस मॉडल को अपनाकर न सिर्फ जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप होने वाले नुकसान को कम कर रहे हैं, वरन् अपने पोषण में भी सुधार ला रहे हैं।

योगेश जी. सावन्त, राकेश के. वारियर, राजेश बी. कोटकर


योगेश जी. सावन्त
वरिष्ठ थिमेटिक कार्यक्रम कार्यकारी
ई-मेल: ygsawant@baif.org.in

राकेश के. वारियर
मुख्य कार्यक्रम कार्यकारी
ई-मेल: rakeshwarrier@baif.org.in

राजेश बी. कोटकर
वरिष्ठ परियोजना अधिकारी
ई-मेल: तंरमेीणवजांत/इंपण्वितहण्पद
बाएफ डेवलपमेण्ट रिसर्च फाउण्डेशन
बाएफ भवन, डॉ0 मणिभाई देसाई नगर,
एनएच 4, वारजे, पुणे- 411 058

Source: Healthy Horticulture, LEISA India, Vol. 23, No.3, Sep 2021

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