लीची प्रसंस्करण: एक आशाप्रद मूल्य संवर्धन

Updated on March 4, 2022

फलों का प्रसंस्करण अक्सर उच्च निवेश से जुड़ा होता है। यही कारण है कि छोटे किसान फलों के मूल्य संवर्धन की दिशा में अग्रसर नहीं होते हैं। अपनी सरल तकनीक और प्रारम्भिक सहयोग देकर आईसीएआर ने बिहार के लीची की खेती करने वाले किसानों को उनके बड़े सपने पूरे करने में सहयोग प्रदान किया है।


लीची के गढ़ बिहार में लीची की खेती करने वाले लगभग सभी किसान फसल कटाई से पूर्व ही अपनी फसल ठेकेदार को बेच देते हैं। वही आकर फलों की तुड़ाई करते हैं, बाजार में ले जाते हैं और मुनाफा कमाते हैं।यह एक सोचने का विषय है कि प्रत्येक लीची उत्पादक किसान अपनी फसल को फल आने से पूर्व ही बिचौलियों को क्यों दे देता है।

कई अन्य फलों के विपरीत, लीची की तुड़ाई आम तौर पर एक ही बार होती है। पूरे बाग से एक ही बार में लीची तोड़ ली जाती है। लीची की तुड़ाई की अवधि कम होती है, जो अधिकतम 15-20 दिनों तक चलती है। तब फलों के बहुत तेजी से पकने अथवा सड़ने की समस्या होती है। लीची का रंग 24-48 घण्टे के अन्दर भूरा होने लगता है। स्थानीय स्तर पर, बाजार में लीची की भरमार हो जाती है और बहुधा इसे बड़ी मुश्किल से बेचा जाता है। फल जल्दी खराब होने तथा पोस्ट हार्वेस्ट कोई उचित तकनीक न होने के कारण इसे दूर तक भेजना कठिन होता है। अन्ततः उच्च लागत और कम आमदनी होने के बावजूद अधिकांश लीची उत्पादक फल आने से पूर्व ही ठेकेदारों को बेच देना अधिक सरल विकल्प समझते हैं।

प्रसंस्करण के माध्यम से मूल्य संवर्धन: आई.सी.ए.आर- लीची पर राष्ट््रीय शोध संस्थान की पहल
पोस्ट हार्वेस्ट के बाद फलों के होने वाले नुकसान को कम करने तथा फलदार फसलों का मूल्य संवर्धन करने हेतु प्रसंस्करण एक बेहतर माध्यम है। आई.सी.ए.आर – लीची पर राष्ट््रीय शोध संस्थान, मुजफ्फरपुर, बिहार ने लीची से तैयार पेय पदार्थों के प्रसंस्करण और संरक्षण के लिए तकनीकों को विकसित व मानकीकृत किया है।

2014-2017 के बीच, प्रशिक्षण कार्यक्रमों, किसान मेलों, प्रदर्शनियों आदि के दौरान तकनीक के सकारात्मक पहलुओं से लोगों को परिचित कराया गया। केन्द्र ने प्रयोग के तौर पर पायलट के रूप में पेय पदार्थों का निर्माण किया और व्यापार के अवसर के रूप में इस तकनीक की सफलता को दिखाने के लिए बाजार में बेचा भी। उत्पादकों की रूचि को भांपते हुए, केन्द्र ने लीची से पेय पदार्थ बनाने हेतु सूक्ष्म प्रसंस्करण पर एक उद्यमिता विकास कार्यक्रम का प्रारम्भ किया, जहां पंजीकृत प्रतिभागियों को पेय पदार्थ संरक्षण, खाद्य सुरक्षा विनियमन एवं लाइसेंस बनाना, भण्डारण और विपणन पर जागरूक बनाया गया। एक बार प्रशिक्षु जब यह सीख गये कि पेय पदार्थों को बहुत न्यूनतम निवेश के साथ तैयार करना एक रसोई के काम जैसा है, तो फिर उन्होंने वर्ष 2018 के अन्त में इस काम को करना प्रारम्भ कर दिया।

कुछ मशाल वाहक
मुजफ्फरपुर के कुरहनी प्रखण्ड के 55 वर्षीय किसान राम सरोवर अपने बगीचे में लगे आम के 10 पेड़ों से अपनी परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत मुश्किल से आय अर्जन कर पाते हैं। यह सोचते हुए कि प्रसंस्करण से शायद उनका परिवार इन मुश्किलों से बाहर निकल सके, उन्होंने लीची पर राष्ट््रीय शोध संस्थान से फल प्रसंस्करण की तकनीक सीखी। शुरूआत में उन्होंने आम का स्कवैश एवं तुरन्त खाने योग्य उत्पादों को बनाया। बाद में, उन्होंने आस-पास के लीची उत्पादन करने वाले किसानों से लीची लेकर उसका गूदा बनाना एवं बेचना प्रारम्भ कर दिया। देश के अन्य स्थानों की तरह ही, युवा वर्ग खेतों में जुताई करने और मेहनत करने को व्यवसाय नहीं मानता और न ही उसे अपनाना चाहता है और राम सरोवर का बेटा भी इससे भिन्न नहीं था। राम सरोवर अपने 24 वर्षीय बेटे भारत भूषण के बारे में बताते हैं, ‘‘मैं अपने शिक्षित और युवा बेरोजगार बेटे को लेकर बहुत चिन्तित था, जो कृषि को एक व्यवसाय के तौर पर अपनाने का इच्छुक नहीं था। लेकिन, एक बार जब हमारा लीची प्रसंस्करण का व्यापार प्रारम्भ हुआ और लाभ आने लगा तब वह हमारे साथ पूर्णकालिक रूप से जुड़ गया।’’ आज वे गर्व से कहते हैं कि उनके बेटे की पहचान लीची प्रसंस्करणकर्ता एवं विपणनकर्ता के रूप में है। वर्ष 2018 में, उन्होंने अपने लाभ की कमाई को फिर से अधिक क्षमता वाला पल्पर खरीदने में लगा दिया। आज, उनकी कम्पनी, राम सरोवर एग्रो फूड्स पूरे देश में खरीददारों को लीची का गूदा बेचती है। सरोवर लीची का स्क्वैश एवं अन्य खाद्य वस्तुएं बनाते हैं और खुदरा ग्राहकों, रेस्टोरेण्टों एवं ढाबों पर आपूर्ति करते हैं। और उनके स्वादिष्ट ताजा पेय मुजफ्फरपुर से पटना राष्ट््रीय राजमार्ग के किनारे खुदरा दुकानों पर पाये जाते हैं, जो यात्रियों को उपलब्ध होते हैं। तीन वर्ष के अन्दर, सरोवर पहले ऐसे प्रसंस्करणकर्ता बन गये हैं, जो आस-पास के लीची उत्पादकों के साथ उनके विकास एवं महत्वाकांक्षा को पूरा करने का स्रोत बन गये हैं।

अपने अनूठे स्वाद वाले गुणधर्म के कारण ही लीची फलों के बीच एक अलग छवि रखता है। बाजार में लीची से बने पेय पदार्थों के विविध उत्पाद, आइसक्रीम, मिठाईयां, घरेलू उत्पाद जैसे- अगरबत्ती, सौन्दर्य प्रसाधन जैसे लिपिस्टिक आदि से इसकी लोकप्रियता और ग्राहकों के बीच इसकी स्वीकार्यता का अन्दाजा आसानी से लगाया जा सकता है। समस्तीपुर के एक अन्य किसान 50 वर्षीय श्री अनोज कुमार राय यह स्वीकार करते हैं कि विविधि उत्पादों के लिए लीची प्रसंस्करण एवं उच्च आय प्राप्त करने के लिए रास्ते तलाश करना हमारा बचपन का सपना था। अनोज कहते हैं, ‘‘लीची की उपलब्धता बमुश्किल एक माह ही होती है। मैं लीची का प्रसंस्करण करना चाहता हूं ताकि इसके स्वादिष्ट स्वाद एवं स्वास्थ्य लाभों को पूरे वर्ष उपभोक्ताओं को उपलब्ध करा सकूं।’’ उनके परिवार के पास समस्तीपुर के सुदूरवर्ती गांव मलिकोह में 5 एकड़ जमीन है। लेकिन उन्होंने अपनी गरीबी एवं संसाधन विहीनता को अपने आशावाद पर हावी नहीं होने दिया। मई 2020 में, जब कोविड-19 अपने चरम पर था, उस समय लीची को बेचना बहुत समस्याप्रद एवं जोखिमपूर्ण था। उन्होंने इस संकट को अवसर में बदलने का निश्चय किया। वह कहते हैं, ‘‘एक तरफ तो लीची जल्द खराब होने वाली फसल है, तो वहीं दूसरी तरफ पूरे देश भर में लगे प्रतिबन्ध ने हमारी चिन्ताओं को और बढ़ा दिया था। मैंने निश्चय किया कि हार मानने और अपना नुकसान गिनने के बजाय, मुझे फलों का प्रसंस्करण और गुदा का संरक्षण करना चाहिए।’’ लीची पर राष्ट््रीय शोध संस्थान के तकनीकी निर्देशन में श्री अनोज ने न केवल अपनी फसल को सुरक्षित किया, वरन् फल प्रसंस्करण के साथ अपनी विश्वासपूर्ण शुरूआत भी की। बिचौलियों के साथ सौदा कर उन्हें अपने 60 लीची के पेड़ों से मात्र रू0 40000.00 की आय होती थी। जबकि 2020 की गर्मियों में 10 वृक्षों से 500 किग्रा0 लीची की तुड़ाई कर उसे प्रसंस्कृत कर खाने के लिए तैयार पेय पदार्थों के रूप में बदल कर रू0 79200.00 की सकल आय प्राप्त की। लीची प्रसंस्करण की सफलता के साथ, उन्होंने इसी प्रक्रिया को ‘‘मल्लिका’’ आम के साथ दुहराया। आज उनके उत्पाद स्थानीय स्तर पर धड़ल्ले से बिक रहे हैं। श्री सरोवर की तरह, यह भी समस्तीपुर एवं पूसा में रेस्तरां, खुदरा दुकानों एवं कैटरिंग वालों को लक्षित कर रहे हैं। श्री अनोज का कृषि-नवाचार के प्रति जज्बा प्रशंसनीय एवं उल्लेखनीय है और वह कठिन परिस्थितियों में सफलता का एक बेहतर उदाहरण हैं। अपने 5 एकड़ के भूखण्ड में उन्होंने देश भर के विभिन्न प्रकार के कृषि विश्वविद्यायालों एवं शोध संस्थानों से लाये भांति-भांति के फलदार वृक्षों- लीची, आम, सेब, आड़ू, बेर, किन्नू, संतरा, नीबू, अंगूर, जामुन, आंवला एवं अन्य बहुत से पौधों को लगा रखा है। श्री अनोज ने अपनी फसल के अधिकतम भाग को प्रसंस्कृत करने की योजना बनाई है। उनकी सफलता को देखते हुए आस-पास के बहुत से किसान श्री अनोज के साथ जुड़े और पूसा फार्मर्स प्रोड्यूसर कम्पनी नाम से एफपीओ का गठन किया।

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के झपहा में समर्पण जीविका महिला किसान प्रोड्यूसर कम्पनी लिमिटेड नामक एक एफपीओ है, जो तकनीक एवं विपणन आधारित गतिविधियों के माध्यम से किसानों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को उन्नत बनाने की दृष्टि से महिला किसानों के बीच काम कर रही है। फल एवं सब्जी प्रसंस्करण आय बढ़ाने को एक जरिया हो सकता है, इस बात पर विचार करते हुए कम्पनी आगे आयी और उसने मार्च, 2020 में आईसीएआर-एनआरसीएल में उद्यमिता विकास कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। आगामी लीची सीजन में मई-जून में इन लोगों द्वारा लगभग 20 टन लीची का गूदा प्रसंस्कृत किया गया था।

यद्यपि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विशाल जगत में इस तरह की सफल कहानियां एक छोटा कदम लेकिन सर्वश्रेष्ठ निवाला माना जा सकता है, फिर भी परिवर्तन की बयार वास्तविक और प्रोत्साहित करने वाली है। फल प्रसंस्करण में छोटे एवं सीमान्त किसानों के बीच आशा एवं रूचि है और यह सही भी है। बिहार के शाही लीची को जीआई ;भौगोलिक संकेतद्ध के तौर पर पंजीकृत किया गया है, जो गुणवत्ता को सुनिश्चित करता है और विशिष्टता का श्रेय बिहार में इसके उत्पादन वाले क्षेत्र को दिया जाता है। इसके बाद एमओएफपीआई की पीएमएफएमई योजना के अन्तर्गत एक जिला एक उत्पाद कार्यक्रम में मुजफ्फरपुर, पश्चिमी चम्पारण और सीतामढ़ी जिलों के लिए लीची का चयन किया गया। इन कारकों की वजह से लीची में प्रसंस्करण की वृद्धि के रास्तों को अत्यावश्यक प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है।

प्रभावित करने वाले कारक
राम सरोवर और अनोज राय जैसे और भी बहुत से लोगों को सफलता मिलने के पीछे कुछ उल्लेखनीय कारक हैं, जो निम्नवत् हैं –

अपने स्वयं की रसोई में प्रसंस्करण
प्रौद्योगिकी को अपनाने के पीछे एक गलत धारणा यह प्रचलित है कि प्रसंस्करण की प्रक्रिया में बड़ा निवेश करने की आवश्यकता होती है। यह एकमात्र कारण है, जो किसानों को अपने खेत में प्रसंस्करण करने से रोकता है। छोटे और सीमान्त किसानों को उद्यमी बनाने और पहली बार प्रसंस्करण करने हेतु तभी तैयार किया जा सकता है, जब उन्हें यह विश्वास दिला दिया जाय कि उनकी स्वयं की रसोई में भी प्रसंस्करण कार्य किया जा सकता है। इसे प्राप्त करने के लिए, सूक्ष्म स्तरीय प्रसंस्करण तकनीकों पर प्रशिक्षण एवं क्षमता वर्धन महत्वपूर्ण हो जाता है अर्थात खाद्य प्रसंस्करण पर वैज्ञानिक तरीके से अनुभवों व प्रशिक्षणों को देना जिससे सीखने वाले उसे अपने घरों में दुहरा सकें। मुजफ्फरपुर से एक दूसरे प्रसंस्करणकर्ता अखिलेश के अनुसार, ‘‘मेरे पास विभिन्न फलों वाला एक बगीचा है और साथ में एक बड़ा सपना भी है, लेकिन कुछ बड़ा करने से पहले मुझे कुछ बुनियादी चीजें जाननी आवश्यक होंगी। मुझे फल संरक्षण के मूलभूत सिद्धान्तों को जानना है तथा यह भी समझना है कि मैं अपने उत्पादों को बेचने में किस प्रकार सक्षम हो सकूं।’’

संस्थागत सहयोग
छोटे व्यवसायों को प्रत्येक कदम पर सलाह देकर तथा तकनीकी कौशल एवं संरचनात्मक सुविधाएं प्रदान कर पहली बार प्रसंस्करण करने वाले लोगों को लम्बे समय तक संस्थागत सहयोग प्रदान किया जा सकता है। आईसीएआर, केवीके, कृषि विश्वविद्यालयों आदि सार्वजनिक संस्थानों में कृषि-व्यापार इनक्यूबेशन इकाईयां एवं तकनीकों का हस्तान्तरण जैसे अनुभाग खाद्य प्रसंस्करण सहित कृषि में छोटे व्यवसायों तथा स्टार्ट-अपों का ध्यान रखते हैं। आईसीएआर-एनआरसीएल में, उद्यमिता विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रशिक्षण के बाद प्रतिभागियों को सभी संभावित तकनीकी दिशा-निर्देशों के साथ उत्पाद विकास के लिए प्रयोगशाला उपकरणों तक पहुंच की सुविधा प्रदान की जाती है। नये प्रसंस्करण करने वाले लोगों को केन्द्र की तरफ से पोस्ट हार्वेस्ट कार्यशाला व प्रसंस्करण सुविधाएं किराये पर प्रदान की जाती है। इसके साथ ही नया स्टार्ट-अप शुरू करने वाले लोगों को अपने उत्पादों के विपणन तथा एफएसएसएआई लाइसेन्स सहित अन्य आवश्यक पंजीकरण के लिए भी सलाह दी जाती है। ये सभी प्रसंस्करण में असफल होने के जोखिम को कम करने के लिए किसानों को सहयोग देने के महत्व को दर्शाते हैं।

सपने बड़े, शुरूआत छोटी
सपने देखना एक बात है और उसे वास्तविकता में बदलना बिलकुल दूसरी बात है। खाद्य उद्योग में बहुत सी बहुराष्ट््रीय कम्पनियों का वर्चस्व है और प्रतिस्पर्धा में बने रहना तथा सफल होना आसान नहीं है। किसी भी सूक्ष्म प्रसंस्करणकर्ता को कोई बड़ा निवेश करने का निर्णय लेने से पहले यह आवश्यक है कि वह पहले एक उत्पाद विकसित कर उसे बाजार में उतारे और यह देखे कि उपभोक्ताओं में उसकी स्वीकार्यता है अथवा नहीं। जब प्रसंस्करणकर्ता पूरी तरह निश्चिन्त हो जाये कि अब यह उत्पाद बिकेगा, तभी उसमें बड़ा निवेश करना चाहिए।ऐसी स्थिति में उत्पादों की बाजार में स्वीकार्यता जानने के बाद ही बड़ा निवेश करना चाहिए। बिना यह जाने कि उत्पाद बिकेगा या नहीं, बड़ा निवेश करने से व्यवसायक को घाटा तथा भारी नुकसान का जोखिम होगा। जैसा कि अनोज कहते हैं, ‘‘मेरी योजना छोटी शुरूआत करने और स्थानीय बाजार मांगों के अनुसार प्रक्रिया करने की है। पहले मैं अपने उत्पादों को लोकप्रिय बनाने और अपने विपणन क्षेत्र को विस्तारित करने के लिए प्रयास करूंगा। मेरी योजना कारोबार की वृद्धि के अनुसार ही विस्तार एवं निवेश करने की है।’’

निष्कर्ष
लीची प्रसंस्करण में व्यवसाय करने के बहुत से विकल्प हैं। ताजी लीची के विपणन से जुड़े खतरों एवं जोखिमों को कम करने के लिए प्रसंस्करण एक महत्वपूर्ण उपकरण हो सकता है। फल प्रसंस्करण के माध्यम से उद्यम एवं व्यवसाय का विकास अन्य सम्बन्धित उद्योगों जैसे- पैकेजिंग, खाद्य सामग्री, जल शुद्धिकरण, लॉजिस्टिक एवं गोदाम, ई-कॉमर्स आदि को भी बढ़ावा दे सकता है। मुजफ्फरपुर एवं उसके आस-पास लीची के कुछ सूक्ष्म प्रसंस्करणकर्ता उभरे रहे हैं। हाल के वर्षों में, जी0आई0 में पहले से ही पंजीकृत शाही लीची और पीएमएफएमई योजना के रूप में वर्तमान संस्थागत सहयोग के चलते प्रसंस्करण का भविष्य उज्जवल है। इसके अलावा, इसी संरक्षण तकनीक को अपनाकर पूरे वर्ष भर उपलब्ध रहने वाली दूसरी मौसमी फलों एवं सब्ज़ियों का प्रसंस्करण लोगों को रोजगार दे सकता है।

अलेमवती पोंगनेर


अलेमवती पोंगनेर
वैज्ञानिक ;फल विज्ञानद्ध
आईसीएआर-लीची पर राष्ट््रीय शोध संस्थान
मुजफ्फरपुर, बिहार
ई-मेल: alemwati@gmail.com

Source: Value addition, LEISA India, Vol.23, No.2, June, 2021

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