लम्बवत बागवानी में नये रास्ते बनाना

Updated on March 2, 2023

प्रेरणादायक नवीन संरचनाओं और संसाधनों के पुनर्चक्रण व पुर्नउपयोग की गहरी समझ के चलते यह नवोन्वेषी किसान शहरी बागवानी करने वालों के एक मॉडल के रूप में स्थापित हुआ है।


प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ0 रत्तन लाल ने अपनी एक वार्ता में यह बताया कि किस प्रकार विभिन्न अध्ययनों के आधार पर दक्षिण एशिया को खाद्य असुरक्षा के एक अत्यन्त संवेदनशील स्थल के तौर पर जाना जाता है। अध्ययन में यह भी कहा गया कि साउथ एशिया में रहने वाले 57 प्रतिशत से भी अधिक लोग स्वस्थ आहार नहीं ले सकते। साथ ही लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्य असुरक्षा का संकट दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में जहां कम क्षेत्र में ज्यादा लोग रह रहे हैं। ऐसी स्थिति में अधिक रिजीलियेण्ट खाद्य प्रणालियों, उन्नत शहरी खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को अपनाने, गृहवाटिकाओं और शहरी खेती को प्रोत्साहित करने की अत्यधिक आवश्यकता है। शहरी गृहवाटिकाओं से न केवल अपने घर के उपभोग के लिए स्वस्थ सब्ज़ियां मिलती हैं, वरन् घर के चारों तरफ एक बेहतर सूक्ष्म वातावरण भी मिलता है। बहुत कम स्थानों का प्रभावी उपयोग करते हुए इन्हें उगाया जा सकता है।

श्री वर्गीज केरल के वायनॉड में स्थित एक छोटे से कस्बे पुलपल्ली के एक लोकप्रिय व्यक्ति हैं। अपनी उत्सुक व उत्साही प्रवृत्ति के साथ उन्होंने क्षेत्र में लम्बवत् अर्थात् नीचे से उपर की ओर बागवानी करने में प्रमुख भूमिका निभाई है।

60 वर्षीय श्री वर्गीज, एक नवोन्वेषी किसान होने के साथ ही बहुत ही सरल व विनम्र इंसान भी हैं। अपने घर के आगे व पीछे की खाली जमीनों का उपयोग करते हुए उन्होंने सफलतापूर्व अद्वितीय क्रियात्मक मॉडलों को तैयार किया है। एक रेडियो मैकेनिक के तौर पर नौकरी कर रहे श्री वर्गीज ने 20 वर्षों पहले अपनी नौकरी छोड़ने के बाद खेती में प्रयोग करना प्रारम्भ किया। वर्तमान में, लम्बवत बागवानी एवं अन्य दूसरे नवाचारों के माध्यम से वह विभिन्न प्रकार की फसलों जैसे- गाजर, बन्दगोभी, आलू, साबूदाना, सौंफ, स्ट््राबेरी, मिर्च, शकरकन्द आदि की खेती कर रहे हैं। प्रारम्भ में श्री वर्गीज अपने घर के सामने कुछ सजावटी पौधे उगाते थे। लेकिन जब उन्होंने यह महसूस किया कि ये सजावटी पौधे उनके परिवार को भोजन नहीं दे सकते, तब उन्होंने सब्ज़ियां उगाने का निर्णय लिया। उन्होंने ऐसी प्रणालियों को विकसित करने का निश्चय किया, जो देखने में सुन्दर हो, जिसमें स्थान का प्रभावी तरीके से उपयोग हो, जो फसल विविधता को प्रोत्साहित करे और जिसमें पौधरोपण के लिए खाद के साथ धान के पुआल, सूखी पत्तियों और रसोई से निकले अपशिष्टों का उपयोग किया जा सके।

लम्बवत बागवानी का ढांचा

श्री वर्गीज ने कई प्रकार के नवीन लम्बवत बागवानी के ढांचों को विकसित किया-

जी.आई.नेट और पी.वी.सी. पाइप ढांचा प्रणाली: मुख्य रूप से सब्ज़ियों की व्यापक प्रजातियों जैसे- गाजर, बन्दगोभी, मिर्च, शिमला मिर्च, बैगन, शकरकन्द और स्ट््राबेरी की भी खेती अपने घर के सामने करने के लिए इस संरचना का उपयोग किया जाता है। एक ढांचे में लगभग 24 पौधों को लगाया जा सकता है। यह प्रणाली एक बेलनाकार टावर संरचना जैसी होती है। इसमें बहुत महीन मजबूत फाइबर/कपड़ा अथवा शेड नेट का प्रयोग किया जाता है, जो आगे 2 इंच के अंतराल पर जी0आई0 नेट से ढंका होता है। उसके बाद इस बेलनाकार संरचना में पौध उगाने वाली सामग्री की तह लगाकर भरी जाती है। सबसे नीचे, पानी के रिसाव को रोकने के लिए धान की पुआल या सुखी पत्तियां बिछा देते हैं। उसके बाद इस पर कुछ मिट्टी और खाद में रसोई से निकले अपशिष्ट को मिलाकर डाल देते हैं। इसे अच्छी तरह से भरने के लिए प्रत्येक परत को कस कर दबाया जाता है ताकि यह आपस में मजबूती से जुड़ा रहे। पौधों को पानी की आपूर्ति के लिए संरचना के बीच में एक पतला पाइप डाल देते हैं, जिसमें 3.5 इंच की दूरी पर छिद्र रहते हैं। वर्तमान में, श्री वर्गीज विभिन्न ढांचों के शीर्ष पर ड््िरप सिंचाई के माध्यम से पानी की आपूर्ति कर रहे हैं। ढांचे को खोलने और बन्द करने के लिए कुछ ज़िप टाई भी लगे हुए हैं ताकि इन्हें 10-15 वर्षों तक उपयोग में लाया जा सके।

सब्जी की पौध लगाने के लिए उचित जगह पर छोटे पीवीसी पाइप फिट होते हैं। अतिरिक्त पाइपों की सेटिंग करने से बाद में पौधों के बढ़ने के समय सहायता मिलती है। पाइपों में मृदा और गाय के गोबर से बने जैविक खाद के साथ नीम की खली मिलाकर भर दी जाती है। इस मिश्रण से पौधों को पानी और पोषण का अवशोषण करने में मदद मिलती है। यहां तक कि इस पद्धति से बिना पीवीसी पाइप को जोड़े स्ट््राबेरी की खेती भी आसानी से की जा सकती है। इसके लिए समुचित दूरी पर छिद्र बनाकर पूरा किया जाता है।

श्री वर्गीज बड़े गर्व के साथ कहते हैं, कि इस प्रणाली में एक तरफ तो स्थान के प्रभावी उपयोग होता है तो दूसरी तरफ एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच समुचित दूरी होने के कारण कीटों एवं व्याधियों का आक्रमण भी कम होता है। इसके साथ ही चूंकि इस प्रणाली में केवल फसलों के लिए ही अनुकूलतम दूरी होती है, इसलिए खर-पतवार नियंत्रण की भी आवश्यकता नहीं होती है।

सुपारी की लकड़ी का ढांचा प्रणाली: पिछले मॉडल के समान ही, यह प्रणाली भी पर्यावरणसम्मत विकल्प होने के साथ ही कम खर्चीला भी है। इस मॉडल में कपड़े और जी0आई नेट के स्थान पर सुपारी की लकड़ी और सूखी पत्तियों का उपयोग किया जाता है। इस संरचना को संकरे लकड़ी के तख्तों से विकसित किया जाता है। इसमें लकड़ियों को आपस में एक-दूसरे के साथ बेलन के आकार में बांध दिया जाता है और उसमें किनारे-किनारे पर पौधों की सूखी पत्तियां एवं भूसा भर दिया जाता है। फिर इसके अन्दर एक समान तरीके से मृदा एवं जैविक खाद, नीम की खली आदि के साथ रसोई से निकले अपशिष्ट को भर दिया जाता है। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद, सतह पर आलू के बीजों को अंकुरण के लिए बो दिया जाता है। 10 टावर में लगभग 120 बीजों की बुवाई की जा सकती है। इस प्रणाली में एक ही ढांचे में बहुत से पौधों का समायोजन होने से आलू की अच्छी पैदावार होती है। पौधों को अतिरिक्त पोषण प्रदान करने के लिए वह समय-समय पर जैविक खाद, जीवाम्रुत एवं नीम की खली भी डालते रहते हैं। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि श्री वर्गीज ने एक ही टावर में विभिन्न स्तरों पर मिर्च और टमाटर की एकीकृत खेती भी सफलतापूर्वक की है। वह दर्शाते हैं कि सभी फसलों की अच्छी उपज हुई और व्यक्तिगत उपज भी प्रभावित नहीं हुई थी।

पीवीसी पाइप ढांचा प्रणाली: गाजर, सौंफ, र्मिच आदि फसलों को उगाने के लिए पीवीसी पाइपों के उपयोग कर श्री वर्गीज द्वारा लम्बवत बागवानी के एक सामान्य ढांचे का उपयोग किया गया। खेती के लिए बीजों की बुवाई अथवा पौधांे की रोपाई हेतु उचित दूरी पर काटने के लिए 6 इंच व्यास के एक पीवीसी पाइप का उपयोग किया जाता है। बुवाई अथवा रोपाई हेतु एक लोहे की छड़ को गर्म करके उससे काटते या छिद्र करते हैं। इस प्रणाली में 16-20 पौधों को लगाया जा सकता है। पौधों को एक आकार में उगने के लिए पाइपों के माध्यम से अतिरिक्त सहयोग प्रदान करते हैं। सिंचाई के लिए कई छोटे-छोटे आउटलेट्स के साथ एक केन्द्रीय पाईप को ढांचे के साथ जोड़ा गया है। इससे या तो हाथ से अथवा बूंद सिंचाई के माध्यम से सिंचाई करते हैं।
श्री वर्गीज कुछ समय से अब लम्बवत् बागवानी की पीवीसी और जीआई प्रणाली पर काम कर रहे हैं। एक वेल्डर की सहायता से, वह जब भी आवश्यकता होती है पीवीसी पाइपों और जीआई नेट को पुनः सही करा लेते हैं। लम्बवत बागवानी ढांचा को बनाने के लिए अगर आवश्यकता होती है तो वह नया पीवीसी पाइप और जीआई नेट भी खरीदते हैं।

इन सभी प्रणालियों में एक अच्छी बात यह है कि ढांचों के अन्दर भरी गयी सामग्री को वर्मी कम्पोस्ट मिलाकर पुनः भरने के लिए उपयोग कर सकते हैं। उगाने वाले थैलों में पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी आदि को भी भर सकते हैं और फसल उगा सकते हैं। इस प्रकार, श्री वर्गीज ‘‘कम करना- पुनः उपयोग-पुनः चक्रीकरण’’ के सिद्धान्त को प्रभावी ढंग से अपने खेत पर क्रियान्वित कर रहे हैं।

जैव निवेश तैयार करना और भावी योजनाएं:

इन लम्बवत बागवानी ढांचों के अतिरिक्त, श्री वर्गीज अपने खेत पर निरन्तर नवाचार और एकीकरण की ओर अग्रसर हैं। वह जैविक खाद और पोषण युक्त जैव तरल पदार्थ जैसे- जीवामु्रथम, बीजामु्रथम, मछली अमीनो आदि को तैयार कर हैं। वह अपने घर के निकट एक नर्सरी स्थापित करने की योजना बना रहे हैं, जहां से वह अपने लम्बवत बागवानी ढांचों में लगाने के बाद अधिशेष बचे पौधों को उचित दर पर आस-पास के किसानों को बेच सकें। नर्सरी शेड तैयार हो चुका है और वे आने वाले महीनों में व्यापार करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। आगामी वर्षों में, अपने परिवार के साथ, श्री वर्गीज किसानों को सब्जियों की नर्सरी एवं अन्य सामग्रियां सस्ते दरों पर उपलब्ध कराने हेतु अपनी स्वयं की नर्सरी खोलने की योजना बना रहे हैं।

कसावा की खेती की अभिनव पद्धति
सामान्य लम्बवत् बागवानी के अतिरिक्त, श्री वर्गीज ने कसावा की खेती करने की एक अभिनव पद्धति विकसित की है, जिससे उन्हें बेहतर गुणवत्ता वाला कसावा का उच्च उत्पादन मिलता है। उनकी इस रचनात्मक पद्धति कसावा के एक पौध से तीन कन्द निकलते हैं। इस पद्धति में, कसावा की जमीन में जाने वाली जड़ों के अलावा मृदा की दो अतिरिक्त परतों को तैयार किया जाता है। ग्रो बैग में कसावा के पौध को लगाकर उसे जमीन में लगा देते हैं और उसके बाद उपर से मिट्टी की दो और परत चढ़ाकर पौध की मुख्य तना को इन दोनों परतों के बीच से निकालते हैं। ग्रो बैग की मिट्टी के सम्पर्क में आने वाली जड़ों में पहले से ही छोटे-छोटे चीरे लगा देते हैं। इससे जड़ों को तैयार और कन्द बनने में सहायता मिलती है। श्री वर्गीज गर्व से कहते हैं, मैंने इस पद्धति का उपयोग कर एक पौध से 25 किग्रा0 वजन तक के अच्छे आकार वाले कसावा प्राप्त किया है। वह शेड नेट में वनीला और प्लास्टिक बोतलों में पुदीना की खेती का भी अभिनव प्रयोग कर रहे हैं।

दूसरों के साथ साझा करना:

वह बहुत से किसान समूहों एवं व्हाट्सअप समूहों से जुड़े हुए हैं जहां वह अपने ज्ञान एवं जानकारियों को लोगों के साथ साझा करते हैं। प्रशिक्षण गतिविधियों के लिए वह सन्दर्भ व्यक्ति के तौर पर भी अपनी सेवाएं देते हैं। अपने पुत्र की मदद से, उन्होंने अपना स्वयं का यू-ट्यूब चैनल https://www.youtube.com/c/VARGHESEPULPALLY  भी प्रारम्भ किया है, जहां पर वह सब्ज़ियों के खेती में अपने नवाचारों को प्रदर्शित करते रहते हैं। वे कहते हैं, फोन और व्हाट्स-अप के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति के साथ अपनी जानकारियों को प्रभावी ढंग से साझा करने में आ रही कठिनाईयों को देखते हुए मैंने अपना स्वयं का यू-ट्यूब चैनल बनाया। इस उम्र में भी, श्री वर्गीज खेती के प्रति अत्यधिक रूचि रखते हैं और नयी तकनीकों को सीखने में बेहद उत्सुकता प्रदर्शित करते हैं, जिससे अन्य सहयोगी किसानों एवं युवाओं को बहुत प्रेरणा मिलती है। बहुत से मीडिया मंचों के माध्यम से उन्हें और उनके कामों को पहचान व मान्यता मिल रही है और उनके नवाचारों को आगे बढ़ाने तथा साथी किसानों के साथ जानकारियां साझा करने में मदद मिल रही है। उनके पास अपने नवाचारो का बड़े पैमाने पर प्रसार करने के बहुत से विचार हैं, लेकिन वित्तीय संकट के कारण, वह अपनी बागवानी प्रणाली को और बेहतर नहीं बना पा रहे हैं। उन्हें दृढ़ विश्वास है कि यह लम्बवत् बागवानी प्रणाली शहरवासियों के लिए एक लागत प्रभावी मॉडल सिद्ध हो सकती है।

अर्चना भट्ट


अर्चना भट्ट
वैज्ञानिक
विपिन दास पी
डेवलपमेण्ट कोआर्डिनेटर
अब्दुला हबीब
डेवलपमेण्ट एसोसियेट
एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउण्डेशन-कम्यूनिटी एग्रोबायोडायवर्सिटी सेण्टर
वायनाड, केरल ई-मेल:archanabhatt1991@gmail.com

Source: Urban Agriculture, LEISA India, Vol. 24, No.1, Dec 2022

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