मिश्रित फसल प्रणाली का अधिकतम उपयोग करना

Updated on March 5, 2020

तमिलनाडु के पुडुक्कोटई जिले के कोविल वीराक्कुडी गांव के रहने वाले श्री कलाईसेलवन एक युवा व उत्साही किसान हैं। देश भर के अन्य स्थानों की तरह कोविल वीराक्कुडी में भी पिछले पांच वर्षों से भयंकर सूखा पड़ रहा है। कलाईसेलवन के पास स्वयं की 7 एकड़ खेती है और वे उस पर धान, मूंगफली, कपास और बाजरा जैसी फसलों की खेती करते हैं। जैविक तरीके से खेती करने में रूचि होने के कारण कलाईसेलवन ने एक स्थानीय स्वैच्छिक संगठन कुडुम्बम ;जो संसाधन विहीन किसानों के लिए काम करती है और जैव विविधता आधारित पारिस्थितिकी कृषि विकल्पों को प्रोत्साहित करने में संलग्न है।द्ध द्वारा चलाये जाने वाले किसान विद्यालयों में प्रतिभाग करना प्रारम्भ किया और धान की जैविक खेती करने की ओर उन्मुख हुए।

पांच वर्षों के बाद उन्होंने अनुभव किया कि जैविक खेती करने के बाद भी, उनकी खेती की लागत कम नहीं हो रही है, साथ ही उनके एकमात्र जलस्रोत कुंआ का पानी भी कम होता जा रहा है। इससे उन्हें लगने लगा कि अब उन्हें खेती की पद्धति में बदलाव लाने की जरूरत है और फिर उन्होंने उपलब्ध जल संसाधनों के साथ खेती की मिश्रित प्रणाली पर एक प्रयोग करने का निश्चय किया। उन्होंने अपने खेत के 75 सेण्ट भू-भाग पर मिश्रित खेती प्रणाली का एक प्रयोग किया। उन्होंने मुख्य फसल के रूप में मूंगफली और अन्तः फसल के रूप में चना, मटर एवं मूंग दाल की खेती की। सिंचाई जल के प्रभावी उपयोग करने के क्रम में, उन्होंने सिंचाई हेतु बनाई गयी नालियों की मेड़ों पर प्याज की फसल लगा और इसी प्रकार उन्होंने अपने खेत के चारों तरफ मेड़ पर तिल की खेती की। मूंगफली की दूसरी निराई और गुड़ाई के बाद, उन्होंने कपास के बीजों को बो दिया और मूंगफली की तुड़ाई के बाद उन्होंने कम समय में होने वाली साग को उगाया।

मिश्रित खेती करते हुए कलाईसेलवन ने विविध प्रकार की फसलों की कटाई की जिससे 8 बैग मूंगफली, 40 किग्रा0 काली उर्द, 10 किग्रा0 मूंग दाल, 10 किग्रा0 मटर और 50 किग्रा0 प्याज की उपज प्राप्त की। मूल्य संवर्धन करते हुए, वह अपने परिवार के उपभोग के लिए मूंगफली व तिल का तेल प्राप्त कर सके। इस मिश्रित फसल प्रणाली के माध्यम से, वे अपने परिवार की खाद्य एवं पोषण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न अन्तरालों पर 6-8 महीने तक लगातार फसल उगाने में स्थाईत्व प्राप्त करने में सक्षम हो सके।

इस 75 सेण्ट खेत से प्राप्त उपज में से अपने उपभोग के अलावा शेष उपज को बाजार में बेचने से उन्हें लगभग रू0 59,700.00 की आय प्राप्त की। यह आय 40 सेण्ट खेत में धान की एकल फसल से प्राप्त लाभ रू0 7315.00 से बहुत अधिक था। इसके अलावा, बड़े परिप्रेक्ष्य में देखें तो, मिश्रित फसल से खर-पतवार और कीट संक्रमण भी बहुत कम हो गया।

मिश्रित फसल प्रणाली से सबसे बड़ा लाभ सिंचाई में जल की बचत हुई है। अब फसल की सिंचाई 15 दिनों में एक बार की जा रही थी, जबकि धान की एकल फसल को 4 दिनों में एक बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। इन सबसे उपर, अन्य फसलों के विफल होने की स्थिति में, कुछ फसलों की खेती के साथ मिश्रित फसल प्रणाली सबसे अच्छे जलवायु अनुकूलित विकल्प के रूप में सामने आयी है।

बहुत से किसान इन विकासों को देखकर प्रेरणा पा रहे हैं और खेती के इस दृष्टिकोण को अपनाने हेतु इच्छुक हो रहे हैं। गांव के लगभग 30 किसान अब प्रशिक्षित हो चुके हैं और अपने खेत के एक छोटे भू-भाग पर मिश्रित खेती करने की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं। मिश्रित फसल प्रणाली पर उनके अनुभवों को बहुत से प्रिण्ट और दृश्य मीडिया ने प्रस्तुत किया है। जलवायु परिवर्तन एवं महिला व पर्यावरण पर इनके प्रभावों पर आयोजित एक अन्तर्राष्ट््रीय सेमिनार में इन्हें बुलाया गया, जहां पर इन्होंने ‘‘मिश्रित खेती पद्धति एवं एक किसान के सन्दर्भ में कृषि पारिस्थितिकी खेत को मजबूत करने में कैसे सहायक है’’ विषय पर अपने अनुभवों को साझा किया।

खेती के प्रति कलाईसेलवन का दृष्टिकोण हमेशा अलग रहा है। वह नवोन्वेषी किसान हैं और वह जलवायु विविधताओं एवं प्रकृति को समझने एवं अध्ययन करने हेतु अपने खेत पर अभिनव प्रयोगों का प्रयास करते हुए विकल्पों की खोज में लगातार संलग्न हैं। उनका दृढ़ विश्वास है कि खेती एकमात्र ऐसा व्यवसाय है जो ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को आजीविका सुरक्षा देगा।

श्री कलाईसेलवन से नं0 75, पश्चिमी स्ट््रीट, कोविल वीरक्कुड़ी, पोस्ट- अन्दाकुलम, तालुक- कुलथर, जिला पुडुक्कोटी, तमिलनाडु, फोन नं0- 097513-25207 पर सम्पर्क किया जा रहा है।

इस लेख का सम्पादन श्री सुरेश कन्ना व किसान के आपसी संवाद पर किया गया है। सुरेश कन्ना से निम्न ई-मेल के माध्यम से सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है – ई-मेल: sureshkanna_kudumbam@yahoo.in

Source: Agroecological Value change, LEISA India, Vol.20, No.1, March 2018

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