बेहतर प्राप्ति के लिए मूल्य संवर्धन

Updated on March 2, 2022

छोटे और सीमान्त किसानों द्वारा अपनी खेती सम्बन्धी चुनौतियों से सफलतापूर्वक निपटने में सहयोग देने की फार्मर प्रोड्यूसर संगठनों के पास विशाल क्षमता है। मूल्य संवर्धन में इन संगठनों का क्षमता वर्धन करने से बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद मिलेंगे, उनकी मोल-भाव करने की क्षमता में सुधार होगा, अतिरिक्त रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे और बेहतर प्राप्ति होगी।


भारत में बहुसंख्य आबादी सीमान्त एवं लघु किसानों की है। किसान मुख्य रूप से फसल बरबाद हो जाने, मानसून की अनिश्चितता, जानकारियों एवं मार्गदर्शन तक पहुंच न होना, ऋणग्रस्तता, कार्यशील पूंजी का अभाव आदि चुनौतियों के कारण काफी नाजुक स्थिति में होते हैं। संगठित न होने के कारण, वे लगातार निवेशों तक पहुंच नहीं बना पाते हैं साथ ही लाभ दिलाने वाले बाजारों को उन्नत बनाने की क्षमता भी नहीं होती है।

फार्मर प्रोड्यूसर संगठन एवं सहकारी समितियां जैसे-जैसे छोटे किसान समूह कुछ प्रमुख उत्पादकों जैसे- किसान, मत्स्य पालकों, दुग्धउत्पादकों, बुनकरों एवं अन्यों द्वारा गठित कानूनी निकाय हैं। वे एक उत्पादक कम्पनी अथवा एक सहकारी समिति हो सकती हैं, जो सदस्यों के बीच फायदा/लाभ को साझा करने में सक्षम होता है। अपने स्वयं के संगठन के माध्यम से उत्पादकों की बेहतर आय सुनिश्चित करने में सक्षम बनाना कुछ उत्पादक संगठनों का प्रमुख लक्ष्य होता है। वे यह उम्मीद करते हैं कि इससे उनकी आमदनी में वृद्धि होगी, लेन-देन की लागत सहित बाजार से खरीदे जाने वाले निवेशों पर उनकी लागत घटेगी, रोजगार के लिए अवसरों का निर्माण होगा, प्रसंस्करण, वितरण एवं विपणन सहित मूल्य संवर्धन में उन्हें शामिल किया जायेगा, मोल-भाव करने की उनकी क्षमता में वृद्धि होगी और औपचारिक ऋण प्रदान करने तक उनकी पहुंच बढ़ेगी। सदस्यों का विश्वास प्राप्त करने के सन्दर्भ में इन फार्मर प्रोड्यूसर संगठनों को नित दिन विभिन्न प्रकार के मुद्दों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। दूसरी तरफ सदस्यों को भी अपने ढांचे और एक सदस्य के रूप में फार्मर प्रोड्यूसर संगठन के चयन को लेकर बहुत स्पष्टता नहीं होती है। वर्तमान में, मुख्य धारा में शामिल एक महत्वपूर्ण संगठन ने सहयोग का प्रस्ताव दिया और इसी क्रम में नाबार्ड द्वारा प्रोड्यूसर संगठनों को वित्तीय सहयोग के साथ-साथ तकनीकी और प्रबन्धकीय सहयोग के लिए सहायता प्रदान की जा रही है। बाक्स 1 में श्री बालाजी फार्मर प्रोड्यूसर संगठन को एक उदाहरण के तौर पर दिया जा रहा है –

कुछ सफल कहानियां
कटाई के बाद नुकसान को कम करने के साथ ही बेहतर आय प्राप्त करने के लिए मूल्य संवर्धन बहुत से फार्मर प्रोड्यूसर संगठनों की एक जांची-परखी रणनीति रही है। भिन्न-भिन्न सन्दर्भों से ऐसे प्रयासों के बहुत से उदाहरण हैं। ये सन्दर्भ या तो स्थानीय विशिष्ट उत्पादों के समरूप उत्पादन से जुड़े होते हैं या फिर उन्हें स्वयं को संगठित होने का लाभ दिलाने हेतु विस्तार का प्रस्ताव देते हैं। सबसे अधिक महत्वपूर्ण तो यह है कि प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन के लिए जरूरी आवश्यक दक्षता पर क्षमतावर्धन करने के माध्यम से सदस्यों का क्षमतावर्धन भी किया गया।
विविध सन्दर्भों से लिए गये कुछ उल्लेखनीय उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं-

मेघालय में केला में मूल्य संवर्धन
मेघालय का बोलकिंग्रे महिला कमोडिटी इण्टरेस्ट समूह केला की खेती करता है। केला बहुत से विटामिनों एवं मिनरलों से समृद्ध होने के साथ एक औद्यानिक फसल भी है, जो मेघालय की गारो पहाड़ियों में बहुत अधिक उगाई जाती है। यह समूह केला की स्थानीय प्रजाति ‘‘बिटागुरी’’ ;अथवा नेन्द्रनद्ध उगाता है। केले की इस विशिष्ट प्रजाति की मुख्य खासियत यह है कि इसके फल का आकार मध्यम होता है और इससे चिप्स बनाया जाता है। अब, जिला वाणिज्य एवं उद्योग केन्द्र के सहयोग से, वे केला का चिप्स बनाने के साथ ही अचार आदि बनाने की तकनीक सीख रही हैं। परिणामतः उनकी साप्ताहिक और मासिक आय में वृद्धि हुई है।

मछलियांे एवं इसके उत्पादों में मूल्य संवर्धन:
रेणुगादेवी आत्मा समूह ने मूल्य संवर्धन के साथ-साथ समूह दृष्टिकोण के माध्यम से अपनी खेती और आय के स्तर को बढ़ाने की कल्पना की। मूल्य संवर्धन और पोस्ट हार्वेस्ट तकनीक, दोनों में अपनी क्षमता बढ़ाने के क्रम में, समूह ने मछली प्रसंस्करण और मूल्य सवंर्धित उत्पादों जैसे- सूखे उत्पाद, बेक्ड सामग्री एवं मछली के भण्डारण करने योग्य उत्पादों के उत्पादन की संभावना को बढ़ाने के साथ ही विपणन रणनीति में वृद्धि करने के उद्देश्य से तमिलनाडु डॉ0 जयललिता मत्स्य विश्वविद्यालय के सहयोग से मछली प्रसंस्करण तकनीकों पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। समूह ने अभी तक मूल्य संवर्धन नहीं किया है।

आम का मूल्य संवर्धन:
कृषि विज्ञान केन्द्र, उन्नाव और उत्तर प्रदेश के जिला कृषि विभाग ने श्रीमती तारावती देवी को उनकी कृषि खेती को बेहतर तरीके से बनाये रखने के लिए तकनीकी मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करके सहयोग किया। बाद में वह ‘‘आम के फल का मूल्य सवंर्धन के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं के रोजगार’’ पर परियोजना का हिस्सा बनीं। इसके बाद उसने अपने खेत में लगे आम में मूल्य संवर्धन कार्य प्रारम्भ किया और अचार और पाउडर तैयार कर अपनी कमाई में वृद्धि की।

निष्कर्ष
फार्मर प्रोड्यूसर संगठनों के पास लघु एवं सीमान्त किसानों की चुनौतियों से सफलतापूर्वक निपटने की अपार संभावना है। वे मोल-भाव करने की क्षमता बढ़ाने तथा निवेशों तक बेहतर व सरल पहुंच सुनिश्चित करने में सक्षम बनाना आदि रूपों में किसानों को बहुत से लाभ दिलाते हैं। फिर भी, विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से इन संगठनों का क्षमता निर्माण किया जाना है। इससे उन्हें बेहतर गुणवत्तापूर्ण उत्पाद प्राप्त करने, पोस्ट-हार्वेस्ट तकनीकों को कम करने, अधिक रोजगार अवसरों को उपार्जन करने और मूल्य संवर्धन के माध्यम से बेहतर आय प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। वर्तमान में, इन फार्मर प्रोड्यूसर संगठनों को नाबार्ड एवं लघु किसान कृषि व्यापार कन्सोर्टियम, कृषि विज्ञान केन्द्रों एवं आत्मा के साथ बहुत सी स्वैच्छिक संगठनों द्वारा सहयोग प्रदान किया जा रहा है।

सन्दर्भ

1. बिक्किना एन., तुरागा, आर.एम.आर. व भामोरिया वी, संगठित किसान के तौर पर फार्मर प्रोड्यूसर संगठन: भारत से एक केस स्टडी, 2018, डेवलपमेण्ट पॉलिसी रिव्यू, 36 (6), 669-687

2. महिला किसानों की प्रेरणादायक कहानियां, 2020, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, कृषि, सहकारी एवं किसान कल्याण विभाग, https://agricoop.nic.in/sites/devault/files/success%20story_%208.pdf

3. नाबार्ड, फार्मर प्रोड्यूसर संगठन, https://www.nabard.org/demo/auth/writereaddata/File/FARMER%20PRODUCER%20ORGANISATIONS.pdf

अयगरी रामलाल एवं अम्बिका राजेन्द्रन, धन्धापानी राजू, मधुलिका सिंह एवं अजय कुमार


अयगरी रामलाल एवं अम्बिका राजेन्द्रन
जेनेटिक्स विभाग, आईसीेआर-भारतीय कृषिगत शोध संस्थान, पूसा कैम्पस, दिल्ली-110012
ई-मेल: rambikarajendran@gmail.com

धन्धापानी राजू
प्लाण्ट पैथालॉजी विभाग, आईसीेआर-भारतीय कृषिगत शोध संस्थान, पूसा कैम्पस, दिल्ली-110012

मधुलिका सिंह एवं अजय कुमार
सीरियल सिस्टम्स फॉर साउथ एशिया ; सीएसआईएसए-सीआईएमएमवाईटीद्ध, बिहार

Source: Value addition, LEISA India, Vol.23, No.2, June, 2021

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