प्रभावी शिक्षा और शोध दृष्टिकोण

Updated on September 1, 2023

कृषि पारिस्थितिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रयोगात्मक सीख आधारित शिक्षा, किसान केन्द्रित सहभागी शोध और ज्ञान का आदान-प्रदान आवश्यक है।


वर्ष 1982 में, कृषि में उच्च निवेश के नकारात्मक प्रभावों तथा कृषि, पारिस्थितिक एवं मानव पहलुओं के बीच जुड़ाव को पहचानते हुए नीदरलैण्ड में जुटे कुछ उत्साही लोगों ने पारिस्थितिक कृषि पर एक अन्तर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के तौर पर कृषि, पुरूष, पारिस्थितिकी की शुरूआत की। 80 के दशक के प्रारम्भ में, कृषि, पुरूष पारिस्थितिक ने विकासशील देशों से बहुत से प्रतिभागियों को अपनी ओर आकर्षित किया और पारिस्थितिक कृषि पर जागरूकता निर्माण करने में उल्लेखनीय योगदान दिया। भारत की ओर बढ़ते हुए, ए.एम.ई. ने उसे समय देश में बड़े पैमाने पर प्रचारित की जा रही उच्च निवेश वाली कृषि की बढ़ती समस्या को ध्यान में रखते हुए एक परियोजना के तौर पर कम बाहरी निवेश वाली स्थाई खेती की तकनीकों (लीज़ा) को बढ़ावा देने व प्रचार-प्रसार का कार्यक्रम निरन्तर जारी रखा। इसने इच्छुक संगठनांे को प्रशिक्षणों के माध्यम से तकनीकी सहायता का विस्तार करने पर अपना ध्यान केन्द्रित रखा। इसके साथ ही लीज़ा तकनीकों/कृषि पारिस्थितिकी को बढ़ावा देने हेतु मुख्य रूप से सहभागी सीख प्रक्रिया को अपनाया। 90 के दशक के उत्तरार्ध में, संस्था ने छोटी जोत के किसानों की बहुलता वाले वर्षा आधारित क्षेत्रों में किसान केन्द्रित सहभागी सीख प्रक्रियाओं में अपने प्रयास तीव्र कर दिये। वर्ष 2002 में, ए.एम.ई. फाउण्डेशन बनने के बाद से, कृषि पारिस्थितिकी सिंद्धान्तों के आधार पर खाद्य उत्पादकता और खेत सम्बन्धी आजीविकाओं को उन्नत करने के लिए शुष्क भूमियों में स्थाई कृषि अभ्यासों के संयोजन को बढ़ावा दिया गया।

शैक्षणिक यात्रा धीरे-धीरे ‘‘प्रशिक्षण पाठ्यक्रम’’ से ‘‘प्रयोगात्मक’’ सहभागी सीख प्रक्रियाओं की तरफ बढ़ी। ग्राम स्तर पर प्रत्येक गतिविधि पी0आर0ए0 (सहभागी ग्रामीण मूल्यांकन) से प्रारम्भ होती है। पी0आर0ए0 से गांव का सन्दर्भ, गांव में निवास करने वाले समुदाय एवं उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और अवसरों को समझने में मदद मिलती है। उपयुक्त पी0आर0ए0 विधियों का उपयोग करने से समुदाय से जमीनी वास्तविकताओं के विषय में सीखने और उपयुक्त सीख प्रक्रियाओं व कार्य करने की रणनीति बनाने में सहायता मिलती है।

इसके बाद आम तौर पर सहभागी तकनीक विकास की तरह ही एक ऋतु लम्बी संयुक्त रूप से सीखने की प्रक्रिया अपनायी जाती थी। यहां, किसान समूह एक सीमित क्षेत्र में बहुत से विकल्प अपनाते हैं, परिणामों की तुलना अपने सामान्य अभ्यासों से करते हैं और तब अपनाने में सरल, सस्ता और सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य विकल्पों को तय करते हैं। विशिष्ट फसल आधारित सहभागी तकनीक विकास प्रक्रियाओं के माध्यम से, किसान मुख्य समस्याओं को चिन्हित करते हैं, स्वयं की जानकारी और विशेषज्ञों के सुझाव के आधार पर विकल्पों को शामिल करते हैं और नयी उभर रही समस्याओं की पहचान करते हैं। यह प्रक्रिया प्रयोगों के माध्यम से किसानों को अपनी स्थितियों से निपटने और उपयुक्त विकल्पों को खोजने में मदद करती है।

ऋतु के अन्त में, किसानों के आकलन को समेकित कर बहु हितभागियों की वार्षिक बैठकों में साझा किया जाता है। उदाहरण के लिए, फसल आधारित दो कार्य समूह – मूंगफली कार्य समूह और कपास गोलमेज उभरे। औपचारिक और अनौपचारिक ज्ञान प्रणालियों के बीच ‘‘पारस्परिक सम्मान’’ बनाना सार्थक परन्तु चुनौतीपूर्ण पहलू रहा। अभ्यासकर्ताओं और शिक्षाविदों ने मिलकर एक साथ विचार किया, पिछले ऋतु के सुझावों की समीक्षा की और प्रक्षेत्र से निकले स्थानीय समाधानों का परीक्षण किया। इस प्रकार, इसने ‘‘द्विपक्षीय सीख’’ और सरल भाषा में कहें तो दो तरफा सत्यापन प्रक्रिया को सक्षम किया, जिससे आपसी सम्मान बढ़ा और एक तरह से आपसी जवाबदेही भी बढ़ी। यह कोई ‘‘ब्लू प्रिण्ट’’ दृष्टिकोण नहीं था। यह जैविक रूप से उभरते कुछ प्रतिबद्ध विशेषज्ञों का एक समूह था, जो बेहतर बीज प्रजातियों व व्याधि नियंत्रण हेतु पारिस्थितिक विकल्पों तक पहुंच बनाने और गैर सरकारी-सरकारी समन्वय व सहयोग को बढ़ाने हेतु संयुक्त रूप से पहल करने के लिए धीरे-धीरे देश और विदेश के शोध संस्थानों को शामिल कर रहा था।

ए.एम.ई. फाउण्डेशन द्वारा संचालित किसान प्रक्षेत्र विद्यालय, कृषि पारिस्थितिकी शिक्षा प्रक्रिया की दिशा में एक बड़ा, मान्यताप्राप्त व उल्लेखनीय योगदान है। इस ऋतु लम्बी सीख प्रक्रिया में, 20-30 किसान प्रत्येक 15वें दिन मिलते हैं, कृषि पारिस्थितिक प्रणालियों को एक साथ देखते हैं, विश्लेषण करते हैं और मृदा, जल एवं फसल प्रबन्धन पर ‘‘निर्णय’’ लेते हैं। शिक्षाशास्त्र उन्हें अध्ययनों, खेलों, मॉडलों और कुछ को शामिल करने के माध्यम से ‘‘सच्चाई’’ को खोजने और अभ्यासों के पीछे के ‘‘विज्ञान’’ को समझने और इस प्रकार नवाचार सीख कार्याें के माध्यम से परम्परागत अवधारणाओं को नष्ट करने में सक्षम बनाता है। उदाहरणस्वरूप, ‘‘कीट शाला’’ के माध्यम से उन्हें मित्र व शत्रु कीटों के व्यवहार का निरीक्षण करने में सहायता मिलती है। उपयुक्त विकल्पों को विकसित करने हेतु गांव/विकासखण्ड स्तर पर आयोजित प्रक्षेत्र दिवसों के माध्यम से किसान अपनी सीखों को अन्य किसानों के साथ साझा करते हैं। सुगमीकर्ता ‘‘सिखाने’’ और ‘‘निर्देश’’ देने के स्थान पर सीखने के लिए आवश्यक उपयुक्त वातावरण का निर्माण करते हैं। युवाओं और महिलाओं के सीखने की जरूरतों पर विशिष्ट ध्यान दिया जाता है।

प्रशिक्षित कृषि प्रोफेशनलों को तैयार करना एक बड़ी चुनौती है। युवा कृषि प्रोफेशनलों का नया कैडर तैयार करने की आवश्यकता को देखते हुए ए.एम.ई. ने चयनित युवा स्नातकों के लिए कृषि पारिस्थितिकी और सहभागी सीख प्रक्रियाओं पर 9 महीने लम्बा स्थाई कृषि फेलोशिप कार्यक्रम का आयोजन किया। हालांकि डोनर से सहयोग न मिलने के कारण यह कार्यक्रम पूरा नहीं हो सका। फिर भी, 15 दिवसीय प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण (टी0ओ0टी0) के माध्यम से विकास कार्यक्रमों में शामिल स्थानीय खेतिहर युवाओं को व्यवस्थित तरीके से प्रशिक्षण देना जारी था। ये प्रशिक्षित युवा क्षेत्र में पारिस्थितिकी कृषि के मशाल वाहक बन गये।

सीख प्रक्रियाओं पर चिन्तन
दो दशकों से भी अधिक समय से ए.एम.ई. फाउण्डेशन के साथ और अन्तर्राष्ट््रीय पारिवारिक खेती वर्ष के आयोजनों से जुड़े रहने के कारण, मेरे विचार निम्नवत् हैं –

सबसे पहले, कृषि पारिस्थितिक शिक्षा को ‘‘बड़ी तस्वीर’’ के साथ-साथ जमीनी वास्तविकताओं जैसे- पारिस्थितकी तंत्र का वैश्विक, परस्पर सम्बन्धित, अन्तर-निर्भर होना आदि को पहचानने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन वैश्विक स्तर पर प्रभाव डालते हैं, हालांकि यह अलग-अलग तरीकों से होता है। आस-पास के दो खेत एक जैसे नहीं होते हैं। एक प्रसिद्ध जैविक किसान अपने खेत की मिट्टी को बेहतर बनाने के जीवन भर प्रयास करता है और उसे अपने खेत से बेहद अच्छा परिणाम मिलता है, जबकि पड़ोसी खेत की मिट्टी खराब होने के कारण परिणाम निराशाजनक होते हैं।

कृषि पारिस्थितिक शिक्षा सन्दर्भ विशिष्ट वास्तविकताओं और जटिलताओं को पहचानने पर आधारित है, जो स्थानीय सामुदायिक नवाचारों द्वारा निरन्तर समृद्ध होती है। कृषि पारिस्थितिक शिक्षा को ‘‘समुदायों से सीखने’’ और ‘‘एक-दूसरे से सीखने’’ के महत्व को पहचानना चाहिए।

मूलतः कृषि पारिस्थितिक शिक्षा को सहभागिता, पारस्परिक सम्मान और सहानुभूति के बुनियादी सिद्धान्तों /मूल्यों के इर्द-गिर्द दृढ़ता से समाहित किया जाना चाहिए। किसानों की भागीदारी का अर्थ है कि समस्या चिन्हीकरण, परीक्षण डिजाइन, आकलन, स्वीकार्यता या अस्वीकार्यता सभी चरणों में किसानों को शामिल किया जाय। पारस्परिक सम्मान का अर्थ है – आवश्यकताओं, प्राथमिकताओं और चुनौतियों के सन्दर्भ में खेतिहर समुदाय और गैर सरकारी संगठनों के प्रासंगिक ज्ञान का सम्मान किया जाये और इसलिए उन्हें विकल्पों के निष्क्रिय प्राप्तकर्ताओं के बजाय ज्ञान प्रदाता/ज्ञान के सह-निर्माता के रूप में मान्यता दी जाये। सहानुभूति का अर्थ है – सहानुभूति का अर्थ है कार्य करने के लिए उपयुक्त तकनीकों या सामाजिक प्रक्रियाओं की संकल्पना करते समय किसानों के समक्ष आने वाली विविध वास्तविकताओं जैसे- परिदृश्य, जलवायु असामान्यता, बाजार, जेण्डर अर्थात महिला-पुरूष की भूमिका, पलायन का तरीका आदि सभी को ध्यान में रखा जाये।

प्रभावी कृषि पारिस्थितिकी शिक्षा को तीन बुनियादी स्तम्भों के आस-पास तैयार करने की आवश्यकता है-
* शिक्षाशास्त्र – सन्दर्भ और समूह विशेष
* पारस्परिक सम्मान पर आधारित ज्ञान का आदान-प्रदान
* वैकल्पिक कृषि पारिस्थितिक शोध

शिक्षाशास्त्र को यह पहचानने की आवश्यकता है कि-

अ) कृषिगत शिक्षा उन किसानों से सम्बन्धित है, जो वयस्क शिक्षार्थी हैं, उद्यमशील और नवोन्वेषी हैं।
ब) खेतिहर समुदाय एक जैसे नहीं हैं- उनमें संसाधनों तक पहुंच, क्षमताआंे आदि के मामले में बहुत विभिन्नता है।
स) खेती की स्थिति और चुनौतियां बहुत हैं अर्थात् जलवायु, बाजार, वित्त, ज्ञान, आत्मसम्मान की कमी आदि बहुत सी चुनौतियां हैं। इसलिए एक उपयुक्त पाठ्यक्रम और एक उपयुक्त शिक्षाशास्त्र काम नहीं करता।

शिक्षाशास्त्र को व्यावहारिक शिक्षण, मुख्य रूप से अनुभवात्मक शिक्षण विधियों के आधार पर वयस्क शिक्षण सिद्धान्तों के आस-पास बनाया जाना चाहिए। यह सर्वविदित है कि चूंकि किसान वयस्क शिक्षार्थी होते हैं इसलिए उनके स्थाई और बदले हुए व्यवहार के लिए उन्नत कौशल के साथ-साथ सीखने की प्रक्रियाओं को अनुभवात्मक होना चाहिए। युवाओं की रूचि बनाये रखने के लिए, शिक्षाशास्त्र और सामग्री को रोमांचक और यथोचित होना चाहिए अर्थात् वित्तीय वापसी और सामाजिक मान्यता साथ ही तात्कालिक व दीर्घकालिक दोनों के सन्दर्भ में लाभकारी होना चािहए।

ज्ञान का आदान-प्रदान: यह मानते हुए कि कई ज्ञान प्रणालियां मौजूद हैं, आदान-प्रदान के लिए एक सक्षम वातावरण बनाना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, मोटे अनाजों की प्रजातियों पर हो रहे एक कार्यक्रम में, वैज्ञानिक आकलन के अन्तर्गत पोषक तत्व सामग्री पर प्रकाश डाला गया, जबकि किसान का आकलन चारे की उपयुक्तता, पोषण, स्वाद, भोजन, टिकने की अवधि आदि पर आधारित था। कभी-कभी एक पर्यावरण-सम्मत परन्तु जेण्डर अनुपयुक्त अथवा सांस्कृतिक रूप से अस्वीकार्य विकल्प पर भी विचार किया जा सकता है।

वैकल्पिक कृषि पारिस्थितिक शोध: अन्तर्राष्ट्रीय पारिवारिक खेती वर्ष के दौरान वर्ष 2014 में फ्रांस के मोण्टेपेलियर में खाद्य एवं कृषि संगठन व वैश्विक शोध संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों एवं किसान संगठनों को शामिल करते हुए एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन में पूर्ण रूप से मेरे द्वारा तैयार किये गये वर्किंग पेपर और बहु-हितधारक समूह चर्चाओं के आधार पर निम्न दृष्टिकोणों को प्रस्तुत किया गया। विशिष्ट सन्दर्भ और निर्वाचन क्षेत्र के महत्व को मान्यता देना, समुदायों की भिन्न-भिन्न प्रकार की आवश्यकताओं एवं क्षमताओं को पहचानना, संसाधनों तक पहुंच, मालिकाना हक और ज्ञान प्रणालियों सहित जटिल सामाजिक मुद्दों को पहचानना, वैकल्पिक ज्ञान प्रणालियों की ओर पारस्परिक सम्मान पर आधारित किसान केन्द्रित सहभागी शोध की आवश्यकता, खेत की घटनाओं को ‘‘सत्यापित’’ करने वाला शोध, केवल रैखिक मॉडल के बजाय चक्रीय और व्यवस्थित शोध पर केन्द्रित करना और समावेशी शासन जहां शोध को किसान संगठनों एवं नागर समाज के साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। यदि सभी नहीं, तो इनमें से कुछ दृष्टिकोणों को मुख्य धारा में शामिल करने की आवश्यकता है। शोध अधिक से अधिक किसान केन्द्रित होना चाहिए। औपचारिक शोध को हमेशा प्रक्षेत्र नवाचार को प्रोत्साहित करना चाहिए और स्थानीय लोकप्रिय विकल्पों के कार्य को पहचानना और जांचना चाहिए। विकास में नागर समाज एवं किसान संगठनों के साथ विकास में पारस्परिक समावेशी साझेदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है।

कृषि पारिस्थितिक शिक्षा के लिए अन्य महत्वपूर्ण कारक निम्नवत् हैं –
* तकनीकी विकल्पों के अलावा अनुभवात्मक सीखने की प्रक्रियाओं के साथ शिक्षकों का गहरा जुड़ाव।
* स्थानीय अनुभवों का व्यवस्थित दस्तावेजीकरण और
* बहु सबूतों, आंकड़ों, व्यवस्थित फीडबैक और प्रभाव आकलन का व्यवस्थित समेकन

सन्दर्भ
के वी एस प्रसाद, । चमतेचमबजपअम वद जीम ूवतापदह व िउनसजप.ेजंामीवसकमत चतवबमेेमेण् लीज़ा इण्डिया अंग्रेजी अंक, वाल्यूम नं0 18.4, दिसम्बर 2016, पेज 10-14

के वी एस प्रसाद


के वी एस प्रसाद
कन्सल्टेण्ट सम्पादक, लीज़ा इण्डिया
ई-मेल: prasadkvs@amefound.org

Source: Agroecology Education, LEISA India, Vol. 24. No.2, June 2022

Recent Posts

कृषि पारिस्थितिकी पर प्रशिक्षण वीडियो: किसानों के हाथ सीखने की शक्ति देना

कृषि पारिस्थितिकी पर प्रशिक्षण वीडियो: किसानों के हाथ सीखने की शक्ति देना

छोटे एवं सीमान्त किसानों के लिए कृषि पारिस्थितिकी ज्ञान और अभ्यासों को उपलब्ध कराने हेतु कृषि सलाहकार सेवाओं को...