पोषण वाटिका: खेतिहर महिलाओं के लिए पोषण का एक समृद्ध स्रोत

Updated on December 3, 2022

सब्ज़ियों और फल से भरपूर पोषण वाटिका पोषण का एक समृद्ध स्रोत होती हैं और कुपोषण को दूर करने में एक सक्रिय भूमिका निभा सकती हैं। पोषण वाटिका गृहवाटिका का ही एक उन्नत स्वरूप है, जहां फलों और सब्ज़ियों को भोजन और आय के एक स्रोत के रूप में उगाया जाता है। लघु एवं सीमान्त किसानों के लिए, पोषण वाटिका परिवार के आहार में योगदान दे सकते हैं और विशेषकर महिलाओं के लिए, विविध प्रकार के अन्य लाभ प्रदान कर सकते हैं।


विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में, गांवों में कुपोषण एक गम्भीर मुद्दा है। छोटी और बिखरी भूमि जोत, मृदा उर्वरता कम होने एवं अधिकतर वर्षा आधारित खेती के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में फसल उत्पादकता बहुत कम होती है। यहां के किसान अभी भी परम्परागत खेती करते हैं, जिसमें अधिकतर अनाज वाली फसलों की खेती होती है और जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण 3-4 माह से अधिक नहीं हो सकता। पहाड़ी क्षेत्रों के पुरूषों का मैदानी क्षेत्र की तरफ बड़े पैमाने पर पलायन होता है, जिसके कारण यहां पर महिला आबादी बहुत ज्यादा है और जनसांख्यिकी असंतुलन है। इसलिए, महिलाओं के बढ़ते कार्यबोझ और काम में लगने वाली शक्ति को देखते हुए उन्हें प्रतिदिन के भोजन में उच्च गुणवत्ता वाली पोषण की आवश्यकता होती है। पहाड़ों में इस मौजूदा समस्या का एक बेहतर समाधान ‘‘स्थानीय रूप से स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करना ’’हो सकता है। सूक्ष्म पोषक तत्वों से समृद्ध मौसमी और गैर मौसमी सब्ज़ियों और फलों के उत्पादन के लिए पहाड़ी क्षेत्र की जलवायुविक परिस्थिति उपयुक्त होती है। चूंकि इस क्षेत्र में भूमि का आकार छोटा एवं बिखरा होता है, इसलिए पहाड़ी समुदाय के बीच मौजूद कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिए यहां पर पोषण-वाटिका को स्थापित करना अधिक आसान और लाभप्रद तरीका है।

पोषण-वाटिका
सब्जी आधारित पोषण-वाटिका पोषण का एक समृद्ध स्रोत है और कुपोषण को मिटाने में सक्रिय भूमिका निभा सकता है। पोषण-वाटिका गृहवाटिका का उन्नत स्वरूप है, जिनमें खाद्य के एक स्रोत के तौर पर सब्ज़ियों को अधिक वैज्ञानिक तरीके से उगाया जाता है। लघु एवं सीमान्त किसानों के लिए, पोषण वाटिका परिवार के आहार में योगदान दे सकते हैं और विशेषकर महिलाओं के लिए, विविध प्रकार के अन्य लाभ प्रदान कर सकते हैं। वर्तमान शोध प्रक्षेत्र आधारित व्यवसायिक फसलों पर केन्द्रित करते हैं, लेकिन इन फसलों की बिक्री से प्राप्त आय का उपयोग अक्सर परिवार द्वारा गुणवत्तापूर्ण खाद्य खरीदने के लिए नहीं किया जाता है। इससे धीरे-धीरे पोषण और स्वास्थ्य में कृषि के योगदान के बारे में प्रश्न उठने लगा। इसने पोषण-वाटिका की शुरूआत की, क्योंकि यह खाद्य उत्पादन से पोषक सम्बन्धी परिणामों तक एक अधिक स्पष्ट तरीके के तौर पर प्रदर्शित हुई। भारतीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान ;आईसीएमआर, 2010द्ध के अनुसार, प्रतिदिन प्रति व्यक्ति को 300 ग्राम सब्ज़ियों का उपभोग करना चाहिए, जिसमें 50 ग्राम पत्तेदार सब्ज़ियां, 50 ग्राम जड़ वाली सब्ज़ियां एवं 200 ग्राम अन्य सब्ज़ियां होनी चाहिए।

थाली में ‘‘इन्द्रधनुषी ;सतरंगीद्ध खाना’’ की अवधारणा को लोकप्रिय बनाना चाहिए। क्योंकि इनमें शामिल रंग विटामिनों और द्रव्यों की विशाल श्रृंखला का सूचक होते हैं।

पहाड़ी क्षेत्रों में भौगोलिक और जलवायु गुण समशीतोष्ण और उपोष्णकटिबन्धीय फलदार फसलों जैसे- सेब, नाशपाती, आड़ू, बेर, नीबू, खुबानी एवं अखरोट के लिए उपयुक्त होते हैं। रोजाना के भोजन में विभिन्न प्रकार के फलों और सब्ज़ियों को शामिल करके सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से होने वाले कुपोषण को दूर किया जा सकता है। वर्ष 2018 में, अल्मोड़ा में, आई.सी.ए.आर-वी.पी.के.ए.एस के अन्तर्गत क्रियान्वित किये गये पोषण सम्बन्धी कृषिगत हस्तक्षेप खाद्य उत्पादन बढ़ाने और आहार सेवन में विविधता लाने में प्रभावी सिद्ध हुए। महिला किसानों की सक्रिय सहभागिता से उत्तराखण्ड के उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में 65 से अधिक पोषण वाटिकाओं का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया।

पोषण वाटिका की स्थापना
सामान्यतःघर के पिछवाड़े पर्याप्त जल की उपलब्धता वाले स्थान पर एक पोषण-वाटिका की स्थापना की जा सकती है। पहाड़ों में, पोषण-वाटिकाओं को घर के निकट बनाना चाहिए ताकि क्षेत्र में आतंक मचाने वाले जानवरों से होने वाले नुकसान से इसकी सुरक्षा की जा सके। एक वर्गाकार भूखण्ड के बजाय आयताकार बगीचे को प्राथमिकता दी जाती है। पांच सदस्यों वाले एक परिवार को पूरे वर्ष सब्ज़ियां उपलब्ध कराने हेतु लगभग 200 वर्गमीटर भूमि पर्याप्त होती है। पोषण-वाटिका की ले-आउट और फसलों को जलवायुविक और मौसमी बदलावों के आधार पर संशोधित किया जा सकता है।
ऽ वार्षिक सब्ज़ियों को वाटिका के एक किनारे लगाना चाहिए ताकि भूखण्ड के अन्य भागों पर उसकी छाया न पड़े और न ही खेती के अन्य कार्यों में बाधा पहुंच सके। छाया में होने वाली सब्ज़ियों को बारहमासी सब्ज़ियों के नीचे लगाया जा सकता है। रसोई घर से निकले अपशिष्टों के बेहतर उपयोग के लिए पोषण-वाटिका के कोने पर कम्पोस्ट गढ्ढे बनाये जा सकते हैं।

* बारहमासी फसलों के लिए क्षेत्र का आवंटन करने के बाद, वार्षिक सब्जी फसलों को उगाने के लिए शेष भाग को 6-8 समान भाग में बांट सकते हैं।
* वैज्ञानिक अभ्यासों और फसल चक्रीकरण का अनुसरण करते हुए, उसी भाग में दो से तीन वार्षिक फसलें उगायी जा सकती हैं। भूखण्ड के प्रत्येक भाग का प्रभावी उपयोग करने के लिए अन्तः खेती एवं मिश्रित खेती का अनुसरण किया जा सकता है।
* भूखण्ड के चारों तरफ एवं बीच में आने-जाने के लिए मार्ग छोड़ना चाहिए। चूंकि बगीचे से ताजी सब्ज़िया लाकर सीधे उपभोग में लायी जाती हैं, इसलिए गांव में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध जैविक खाद का उपयोग पोषण-वाटिका में करना चाहिए। यद्यपि कीटों और बीमारियों से मुक्त अच्छी फसल पाने के क्रम में, बहुत न्यून मात्रा में रसायनों का उपयोग किया जा सकता है।
* अधिक उपज देने वाली फसलों की तुलना में लम्बे समय तक और स्थिर उपज देने वाली प्रजातियों को प्राथमिकता दिया जाना अधिक महत्वपूर्ण है।
* शहद प्राप्त करने के अतिरिक्त फसलों में पर्याप्त परागण सुनिश्चित करने के लिए 200 वर्गमीटर के भूखण्ड में शहद का एक छत्ता लगाया जा सकता है।

इन सभी पोषण-वाटिकाओं में, पोषण में विविधता को बढ़ाने के लिए बागवानी फसलों में फलों, सब्ज़ियों, जड़ और कन्द फसलों, सुगन्धित और औषधीय पौधों, मसालों और वृक्षारोपण फसलों जैसी व्यापक फसलों को शामिल किया जा सकता है।

उत्तराखण्ड के उच्च पहाड़ी क्षेत्र में पोषण-वाटिका के माध्यम से महिला सशक्तिकरण
उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्र के अन्य खेतिहर परिवारों की तरह श्रीमती पूजा कर्की भी पहले परम्परागत फसलों की खेती करती थीं और साल में केवल तीन या चार माह के लिए ही परिवार के लिए अनाज उत्पादित कर पाती थीं। शेष समय परिवार के भोजन के लिए उनकी निर्भरता बाजार पर रहती थी। वर्ष 2018 में वे आई.सी.ए.आर-वी.पी.के.ए.एस., अल्मोड़ा के वैज्ञानिकों के सम्पर्क में आयीं और सब्जी की खेती अभ्यासों, मशरूम उत्पादन, वर्मी कम्पोस्टिंग, मधुमक्खी पालन और सुरक्षित परिस्थितियों में सब्ज़ियों की नर्सरी तैयार करने आदि पर उन्हें प्रशिक्षित किया गया। यद्यपि उन्होंने मात्र आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त की थी, लेकिन पोषण स्तर को उन्नत बनाने के लिए पोषण एवं अन्य उन्नत कृषिगत गतिविधियों को तेजी से सीख रही थीं। उन्होंने अपनी पोषण-वाटिका में 16 प्रकार की सब्ज़ियों के साथ विभिन्न सूक्ष्म-पोषक तत्वों से भरपूर फलदार वृक्षों को उगाया। उन्होंने प्रशिक्षण में अत्यन्त रूचि प्रदर्शित की और अपने घर के पीछे पोषण-वाटिका का प्रदर्शन किया। उन्होंने 200 वर्गमीटर के भूखण्ड में पोषण-वाटिका तैयार की, जो वर्ष भर उनके पूरे परिवार की पोषण आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त थी। पोषण खेती और अन्य सम्बन्धित गतिविधियों को पूरा करने के लिए वे प्रायः अकेले ही अपने खेत पर काम करती हैं।

पहले मौसम में वे सब्ज़ियों की अच्छी उपज प्राप्त करने में सक्षम रहीं जो उनके परिवार की आवश्यकता पूर्ति से भी अधिक था। उन्होंने परिवार की आवश्यकता पूरी करने के बाद शेष बची सब्ज़ियों को निकट के बाजार में बेचा। उन्होंने अपनी पोषण-वाटिका में लो-टनल पॉली हाउस लगाकर सब्ज़ियों की नर्सरी तैयार करना भी प्रारम्भ कर दिया है और आज अपने साथ की महिला किसानों को उन्नत प्रजातियों की सब्ज़ियों की नर्सरी समय से उपलब्ध करा रही हैं। किसान से किसान के अनुभवों को साझा करने के लिए आस-पास के गांवों के किसान उनकी पोषण-वाटिका का भ्रमण करते हैं और खाद्य एवं पोषण सुरक्षा की तरफ उनके द्वारा किये जा रहे प्रयासों से सीख बना रहे हैं।

निष्कर्ष
पोषण-वाटिकाएं पारम्परिक कृषि प्रणालियों की आधारशिला रही हैं, लेकिन समय के साथ इनका महत्व खो गया है। असंख्य रंग-बिरंगी सब्ज़ियों को अपने दैनिक भोजन में शामिल करने व्यक्ति की रोगों से लड़ने तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार करने में वृद्धि होगी। इसके अतिरिक्त, ताजे फलों और सब्ज़ियों की एक श्रृंखला में असंख्य फाइटोकेमिकल्स एण्टी-आक्सीडेण्ट, एण्टी-एलर्जी, एण्टी-कार्सिनोजेनिक, एण्टी-इंफ्लेमेटरी, एण्टी-वायरल और एण्टी-प्रोलिफेरेटिव के तौर पर काम करते हैं। पोषक-वाटिका उन गांवों और स्थानों में भी बहुत आवश्यक हैं, जो मुख्य धारा से अलग-थलग हैं और स्थानीय बाजार से दूर हैं। ग्रामीण एवं दूरस्थ क्षेत्रों में उचित पोषण, पौध-बागवानी, खान-पान सम्बन्धी आदतों के सम्बन्ध में जागरूकता का प्रचार-प्रसार व प्रदर्शन किया जाना चाहिए। पोषण- वाटिका न्यूनतम निवेश के साथ महिलाओं में पोषण स्तर को उन्नत करने का एक लाभकारी माध्यम है।

प्रीती ममगई, पंकज नौटियाल, रेनू जेठी


प्रीती ममगई
प्रधान वैज्ञानिक, आई.सी.ए.आर-अटारी, ज़ोन-1
पीएयू कैम्पस, लुधियाना, पंजाब, भारत
ई-मेल: preetinariyal@yahoo.com

पंकज नौटियाल
एस.एम.एस. ;औद्यानिकद्ध कृषि विज्ञान केन्द्र
(आई.सी.ए.आर) वी.पी.के.ए.एस.द्ध-उत्तरकाशी, उत्तराखण्ड

रेनू जेठी
वरिष्ठ वैज्ञानिक ;समाज विज्ञानद्ध
आई.सी.ए.आर-वी.पी.के.ए.एस., अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड, भारत

Source: Healthy Horticulture, LEIS India, Vol.23, No., Sep,2021

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