डिजिटल उपकरणों का उपयोग — भारत में कोविड -19 के कारण लॉकडाउन के कारण अनुकूलित खाद्य प्रणाली के लिए बेहतर उपाय

Shobha Maiya

Updated on September 1, 2021

लॉकडाउन से तमाम छूटों के बावजूद, कोविड-19 संकट के दौरान भारत ने कृषि के क्षेत्र में बहुत सी बाधाओं का अनुभव किया। भारत में लगभग 55 प्रतिषत आबादी कृषि से रोजगार पाती है और देष की सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 17 प्रतिषत है। इसलिए भारत की खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कृषिगत आपूर्ति श्रृंखला का कार्यरत रहना आवष्यक है।

इसके अलावा, भारत और अन्य विकासषील देषों द्वारा वर्ष 2030 तक स्थाई विकासात्मक लक्ष्य को एक बड़ी संख्या में प्राप्त करने के लिए एक प्रमुख हथियार के तौर पर स्वास्थ्य और षिक्षा के साथ ही कृषि भी एक प्रमुख इंजन है। तब यह प्रष्न उठता है कि, किस प्रकार भारत और सरकारें, कोरोना वायरस महामारी के कारण उत्पन्न संकटों का सामना करने के लिए विषेषकर कृषिगत मूल्य श्रृंखला में किस प्रकार हस्तक्षेप कर सकती हैं?

मोबाइल फोन के माध्यम से कृषिगत प्रसार

कृषिगत क्षेत्र एक ऐसे संवर्ग के लोगों पर निर्भर करता है, जो तकनीक हस्तान्तरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन विषेषज्ञों को अक्सर क्षेत्र प्रसार कार्यकर्त्ता या कृषि प्रसार अधिकारी के रूप में जाना जाता है और भारत के बहुत से राज्यों में इनकी नियुक्ति कृषि विभाग द्वारा की जाती है। हाल ही में, बड़ी संख्या में विकास संस्थाओं द्वारा भी प्रसार अधिकारियों की नियुक्ति की गयी है ताकि उन क्षेत्रों को भी आच्छादित किया जा सके, जहां तक अभी भी सरकारी प्रसार प्रणाली नहीं पहुंच पाई है।

कड़े शारीरिक दूरी के उपायों से कार्य कर रहे कृषि प्रसार प्रणालियों पर गम्भीर दुष्प्रभाव पड़ा है और गांव-गांव में जाकर किसानों को प्रषिक्षण अथवा अन्य क्षमतावर्धन गतिविधियों के लिए एकत्र करना प्रसार कार्यकर्त्ताओं के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था। हालांकि निकट भविष्य में कृषिगत प्रसार का कार्य मोबाइल फोन के माध्यम से सम्पन्न किया जा सकता है। मोबाइल फोन की पहुंच और नेटवर्क कवरेज के वर्तमान आंकड़े उत्साहजनक हैं। जबकि कुछ समय के लिए भारत में ई-प्रसार हो रहा है, तब ऐसे समय में सूचनाओं के हस्तान्तरण व प्रषिक्षणों के आयोजन के लिए पहले से चली आ रही पद्धति पर काम नहीं किया जा सकता और एक नये रास्ते की तलाष करने हेतु प्रयास हो रहा है।वर्तमान स्थिति में, फोन और मोबाइल नेवटर्क ही एकमात्र वह तरीका हो सकता है, जिससे किसानों की पहुंच अर्थपूर्ण एडवायजरी तक हो सकती है।

श्रमिकों को ठेका देने, मषीनों तक पहुंच बनाने और सेवाओं की मांग करने के लिए नये मॉडल:

खेत से प्लेट तक पहुंचने वाली खाद्य आपूर्ति श्रृंखला एक ऐसा जटिल जाल है, जिसमें उत्पादक, उपभोक्ता, कृषि और मत्स्य निवेष, प्रसंस्करण करने वाले, परिवहन करने वाले एवं अन्य और भी बहुत से लोग शामिल होते हैं। भारत जैसे देषों में, जहां लगभग 80 प्रतिषत किसान छोटी जोत वाले हैं, जिनके पास दो एकड़ से भी कम खेती है वहां पर किसानों की निवेष सम्बन्धी आवष्यकताओं जैसे- बीज, खाद, कृषि रसायनों की आपूर्ति हेतु निवेष आपूर्ति श्रृंखला तथा किसानों के उत्पादों को उपभोक्ता की मांग से जोड़ने हेतु आउटपुट आपूर्ति श्रृंखला दोनों के बीच सघन जुड़ाव है।

क्योंकि खाद्य आपूर्ति श्रृंखला परम्परागत रूप से पूंजी पर निर्भर करती है, इसलिए खाद्य मूल्य आपूर्ति के साथ-साथ विभिन्न प्रमुख विषयों पर बहुत कम स्वचालन या मषीनीकरण किया गया है। फलस्वरूप, अधिकांष गतिविधियां मैनुअल और श्रमसाध्य हैं और इसलिए स्थानीय श्रम बाजारों पर निर्भरता है।

अनौपचारिक श्रम बाजारों के टूटने के साथ, ऐसे बहुत से उदाहरण सामने आ रहे हैं, जहां पर किसान श्रमिकों की कमी के कारण अपने फसलों की कटाई नहीं करवा पा रहे हैं। प्रवासी कृषि मजदूरों की अपने पैतृक गांवों की ओर वापसी तथा स्थानीय मजदूरों के उपर कहीं आने-जाने पर लगाये गये प्रतिबंध दोनो ही श्रम में आये व्यवधानों के प्रमुख कारण हैं।

पिछले कुछ वर्षों में, देष के कुछ भागों में उबेर शैली में मषीनरी सेवाएं उपलब्ध कराने का चलन उभरा है। ये स्टार्ट-अप किसानों की मांगों को एकत्रित करने और मषीनरी पहुंचाकर उनकी आवष्यकता को कम लागत में पूरा करने के लिए डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग कर रहे थे। मषीन सम्बन्धी सेवाएं प्रदान करने के कुछ ऐसे उत्साहजनक मॉडल भी हैं, जहां पर कीटनाषकों का छिड़काव करने जैसे कार्यों के लिए ड््रोन का उपयोग किया गया।

छोटी जोत के किसानों की दृष्टि से देखा जाये तो आर्थिक तर्क और स्थानीय श्रम की सुविधा के मामले में इन मॉडलों ने अभी तक कोई बेहतर प्रदर्षन नहीं किया है, लेकिन अनौपचारिक श्रम बाजारों के सिमटते जाने के कारण किसान मषीनीकरण के उबेर शैली मॉडल की खोज करने के प्रति अधिक उत्सुक हो सकते हैं। इसके साथ ही सक्षम श्रम बाजार को कार्यषील बनाने के लिए सरकारें और विकास क्षेत्र डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, बिना एक-दूसरे के सम्पर्क में आये और बिना भीड़ लगाये, एक डिजिटल प्लेटफार्म किसानों और श्रमिकों को एक दूसरे से जोड़ सकता है और इस प्रकार अनौपचारिक श्रम बाजारों में वायरस को फैलाव को कम किया जा सकता है।

कृषिगत क्षेत्र के डिजिटलीकरण पहलुओं का एक अनपेक्षित सकारात्मक परिणाम यह हो सकता है कि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाया जा सकता है, जिससे सरकारों को बेहतर आंकड़े उपलब्ध कराये जा सकते हैं और खेतिहर मजदूरों की सुरक्षा करने के लिए लक्षित सामाजिक हस्तक्षेपों की पहचान की जा सकती है, उनका निर्धारण किया जा सकता है।

बाजारों का विकेन्द्रीकरण करने और सम्पर्क कम करने के लिए डिजिटल प्लेटफार्मों का उपयोग करना

श्रम के मुद्दे न केवल कृषि के उत्पादन वाले भाग को प्रभावित कर रहे हैं, वरन् इससे रख-रखाव एवं विपणन की गतिविधियां भी प्रभावित हो रही हैं। यहां अब यह अधिक प्रमाणित हो रहा है कि खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में मण्डियां उल्लेखनीय बिन्दु हैं।

क्योंकि भारतीय स्थान बाजारों में सामान्य तौर पर विषेषकर फसल कटाई के समयों पर बहुत अधिक भीड़ होती है। ऐसी स्थिति में सरकारें किसानों, व्यापारियों एवं दुकानदारों की बड़ी भीड़ को रोकने के लिए कुछ तदर्थ उपाय कर रही हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा की मण्डियों में किसानों को टोकन जारी किये जा रहे हैं, जिस पर किसानों को अपने उत्पादांे को बाजार में लाने का विषिष्ट समय अंकित किया गया रहता है। इसी प्रकार यह भी निर्धारित है कि वे कितनी मात्रा में अपने उत्पादों को बाजार में बेच सकते हैं। हालांकि किसानों को अपने उत्पादों को लोड करने, बाजार तक ढोकर ले जाने और मण्डियों में सामान को गाड़ी से उतारने हेतु मजदूर प्राप्त करने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है और इस कठिनाई से स्थान बाजारों की दक्षता व कार्य कुषलता बाधित हो रही है। जब यह कठिनाई लम्बे समय तक आती रहती है तो ये छोटी-छोटी चुनौतियां खाद्य सुरक्षा के लिए गम्भीर खतरा बन कर सामने आ सकते हैं।

एक प्रमुख भारतीय कृषिगत अर्थषास्त्री और एक नीति नियन्ता डॉ0 रमेष चन्द सरकार को कृषिगत उत्पाद बाजार समिति को षिथिल करने का परामर्ष देते हैं, जिससे किसानों के खेत पर ही उनके कृषि उत्पादों के विक्रय को वैध किया जा सके। इस संस्तुति का घोषित उद्देष्य कमजोर बाजार के प्रकाष में खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में आने वाली बाधाओं को कम करते हुए उसे क्रियाषील बनाना और मण्डियों में भीड़ को कम करना था।

यदि कृषि उत्पाद बाजार समिति कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप को लेकर सचेत रहती तो विकेन्द्रीकृत विपणन और खेत पर से ही कृषि उत्पादों की बिक्री के लिए डिजिटल प्लेटफार्म एक प्रभावी माध्यम हो सकता था। उदाहरण के लिए, संविदा खेती प्रबन्धन को फैसिलिटेट करने और सघन निगरानी तथा गुणवत्ता के नियंत्रण के लिए डिजिटल प्लेटफार्म को डिजाइन किया जा सकता था। लोगों से न्यून सम्पर्क रखकर कार्यकर्ताओं को सुरक्षित करते हुए एकत्रीकरण, पैकेजिंग, परिवहन एवं आपूर्ति जैसी गतिविधियों को निर्धारित किया जा सकता था। आम तौर पर अपने उत्पादों को स्थान बाजारों में बेचने पर निर्भर रहने वाले किसानों के लिए ये डिजिटल प्लेटफार्म डिजिटल बिक्री के अवसर खोल सकते हैं।

डिजिटल गुणवत्ता आंकलन, श्रेणीकरण, परख एवं खरीददारी में विष्वास करना आज की बड़ी चुनौती है। कृषि-उत्पादों की गुणवत्ता आकलन एवं श्रेणीकरण काफी हद तक व्यक्तिगत तौर पर होती है और यद्यपि सरकारों ने मण्डियों में गुणवत्ता आकलन के लिए आकलन प्रयोगषाला में निवेष किया है, जिससे धीरे-धीरे मानव व्यक्तिगत हस्तक्षेप कम हो रहा है और अधिकांष व्यापारी अपने उत्पादों को हाथ में लेकर जांचते हैं। यदि किसान के खेत तक बाजारों का विकेन्द्रीकरण हो गया तो दूर बैठे हुए भी सामानों का श्रेणीकरण करने भौतिक जांच-पड़ताल की आवष्यकता को कम करने के लिए भी एक तरीका निकालने की आवष्यकता होगी। एक समाधान के मिलने तक, डिजिटल प्लेटफार्म मॉडल इन गतिविधियों को किसान के खेत पर ही फैसिलिटेट करेंगे।

किसानों द्वारा शहरी समुदायों के साथ प्रत्यक्ष लेन-देन वाला एक अन्य दूसरा रूचिकर मॉडल भी उभर कर सामने आ रहा है। बड़ी संख्या में शहरी एगटेक स्टार्टअप ने इस मॉडल का लाभ उठाया है। इसके माध्यम से शहरी केन्द्रों में आने वाली मांग को पूरा करने के लिए किसानों को ताजा उत्पाद उगाने में सक्षम बनाया गया है। एक उदाहरण में, हैदराबाद में संभावित उपभोक्ताओं तक पहुंच बनाने के लिए तेलंगाना के सिद््दीपेट में 100 किसानों के एक समूह ने एक डिजिटल सन्देष प्लेटफार्म व्हाट्स-अप का उपयोग किया। किसानों के इस समूह को एक मुख्य सदस्य द्वारा संचालित किया जाता है जो सन्देषों को व्यापक रूप से प्रसारित करते हैं, आर्डरों को संकलित करते हैं और उनकी प्राप्ति सुनिष्चित करते हैं। आपूर्ति और मांग से सम्बन्धित मुद्दों को हल करने के लिए सरल उपकरणों का लाभ उठाने वाले किसानों के इस तरह के ढीले गठबन्धन पर गहराई से विचार करना उपयुक्त होगा। इस सरल मानक संचालन प्रक्रियाओं के माध्यम से कुछ नवाचारों को प्रारूपित करने का अवसर प्रदान हो सकता है ताकि एक जैसे तंत्रों के माध्यम से अन्य संघर्षरत किसानों को सषक्त बनाया जा सके।

इसके अलावा, संकट ने सरकारों को ई-एनएएम, पूरे भारत में इलेक्ट््रॉनिक ट््रेडिंग पोर्टल के माध्यम से गोदाम आधारित बिक्री की तैनाती करने का एक अवसर भी प्रदान किया है। ग्रामीण गोदामों की अवधारणा के अनुसार, कृषि उत्पाद बाजार समिति के परिसर के अन्दर बड़े-बड़े गोदाम हैं, जो बहुत सी सरकारी नीतियों एवं नाबार्ड की योजनाओं का एक हिस्सा हैं।

हालांकि, अभी ग्रामीण गोदाम अभी रफ्तार नहीं पकड़ सके हैं। डिजिटल रूप से सक्षम गोदामों के कारण सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सामानों को खरीदने की क्षमता में वृद्धि होगी और किसानों के खातों में सीधे अनुदान को हस्तान्तरित किया जा सकेगा।

निवेष आपूर्ति श्रृंखला का डिजिटलीकरण

बीज, खाद, रसायनों आदि तक किसानों की पहुंच सुनिष्चित करने वाली निवेष आपूर्ति श्रृंखला में भी कोविड-19 के परिणामस्वरूप एक सूक्ष्म डिजिटल क्रान्ति देखने को मिल रही है। खेत से प्लेट तक आपूर्ति श्रृंखला की तरह ही निवेष आपूर्ति श्रृंखला उच्च सहन घटक है। यह एक मजबूत अनौपचारिक बीज क्षेत्र है, जिसके माध्यम से किसान बीजों तक अपनी पहुंच सुनिष्चित करते हैं।

हालांकि लॉकडाउन के दौरान कृषि निवेष मूल्य श्रृंखला के उप क्षेत्रों को छूट दी गयी थी, लेकिन श्रम और परिवहन पर प्रतिबन्ध से चुनौतियां उत्पन्न हो सकती थीं। ऐसे समय में ई-कामर्स प्लेटफार्मों द्वारा कृषि निवेषों की पेषकर करना इन अवरोधों के प्रभावों को कम करने की संभावना हो सकती है और बाजार के डिजिटलीकरण के माध्यम से उपलब्ध आंकड़े एक अन्य लाभ होंगे।

इसके अतिरिक्त, अन्य सेवाओं और ई-प्रसार का पूरा काम देखने वाले किसानों को उपयोग करने हेतु ई-कामर्स प्लेटफार्म उपलब्ध कराया जा सकेगा। ये प्लेटफार्म वित्तीय संस्थानों के साथ एकीकरण कर छोटी जोत वाले किसानों की पहुंच संस्थागत ऋण तक सुनिष्चित करने में भी सक्षम हो सकेंगे।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि कोविड-19 के कारण कृषि के क्षेत्र में आये बाधाओं को दूर करने के लिए डिजिटल उपकरण और तकनीकें काफी व्यवहार्य पद्धति हैं। छोटी जोत वाले किसानों की बहुतायत वाले अन्य विकासषील क्षेत्रों में बड़ी संख्या में ये संस्तुतियां बड़े पैमाने पर लागू होती हैं। यद्यपि जमीन से जुड़ी संस्थाओं एवं मानव हस्तक्षेपों से कृषि को दूर नहीं किया जा सकता, लेकिन महामारी के कारण इस क्षेत्र के समक्ष उत्पन्न होने वाली विषिष्ट चुनौतियों से पार पाने के लिए डिजिटल तकनीकें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। और लॉकडाउन अवधि के विस्तारित होने की संभावना के साथ हितभागियों के लिए डिजिटल कृषिगत समाधान खोजने का इससे बेहतर समय और कोई नहीं हो सकता है।

यह लेख बिग डाटा के लिए सीजीआईएआर प्लेटफार्म पर प्रकाषित मूल लेख का सम्पादित संस्करण है।

राम धुलीपला


राम धुलीपला
थीम लीडर - डिजिटल कृषि एवं युवा
आईसीआरआईएसएटी
हैदराबाद, भारत

Source: Digital Agriculture, LEISA INDIA, Vol.22, No.2, June 2020

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