जैविक सब्जी की खेती

Updated on December 1, 2021

तुमकूर के सब्जी उगाने वाले किसान पारिस्थितिकी विकल्पों की तरफ स्थानान्तरित होकर बहुत से लाभ प्राप्त कर रहे हैं। इसके साथ ही वे अपने खेत पर विविध प्रकार की फसलों और पेड़ांे को लगाकर खेत के स्थाईत्व में भी सुधार ला रहे हैं।


तुमकूर जिले के तुमकूर और कोराटगेरे तालुक के उर्दीगेरे और कोलाला होबली को परम्परागत रूप से सब्जी उत्पाद के लिए जाना जाता है। यहां के लगभग 76 प्रतिषत किसान छोटी एवं सीमान्त श्रेणी के हैं और उनके पास खेती योग्य जमीन एक से दो एकड़ के बीच है। अधिकांष किसान अपनी आजीविका के लिए सब्ज़ियों की खेती पर निर्भर करते हैं।

अधिकांश किसान सब्ज़ियों को एक व्यवसायिक फसल के तौर पर उगाते हैं। सामान्यतः वे टमाटर, बीन्स, बैगन, भिण्डी, आलू, मिर्चा, फूलगोभी एवं पत्तेदार सब्ज़ियां उगाते हैं। चूंकि ये किसान इन सब्ज़ियों को बाजार के लिए उगाते हैं, इसलिए ये अपने खेतों में रसायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों एवं खर-पतवार नाशकों का जमकर उपयोग करते हैं, जिससे उनकी खेती की लागत बढ़ती जाती है। किसान जैविक अभ्यासों के बारे में जानते भी नहीं हैं और मृदा व जल संरक्षण जैसी गतिविधियों को अपनाकर संसाधन संरक्षण की दिशा में कोई प्रयास भी नहीं करते हैं। इसके साथ ही उन्नत गतिविधियों पर उन्हें समय से जानकारी भी नहीं मिल पाती है और न ही ज्ञान एवं जानकारियों को एक-दूसरे के साथ साझा करने के लिए कोई मंच भी उपलब्ध है।

क्षेत्र में वर्ष 2011 से काम कर रही स्वैच्छिक संगठन आविष्कार सघन रूप से महिला सशक्तिकरण, ग्राम स्तरीय संगठनों एवं कृषिगत विकास गतिविधियों पर केन्द्रित है। तुमकूर और कोराटगेरे तालुकों में आविष्कार ने लगभग 157 स्वयं सहायता समूहों तथा 20 किसान क्लबों का गठन किया है।

इस क्षेत्र में जैविक कृषि अभ्यासों को बढ़ावा देने के लिए आविष्कार ने वर्ष 2017 में, सेव इण्डियन फार्मर्स, यू0एस0ए0 के सहयोग से एसआईएफ-जैविक खेती परियोजना पर काम करना प्रारम्भ किया। इसने विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से वर्ष 2017-2018 के दौरान 15 किसानों और 2018-2019 के दौरान 17 किसानों को सहयोग प्रदान किया।

प्रत्येक गांव से जैविक खेती में रूचि रखने वाले 2-3 किसानों का चयन ग्रामस्तरीय बैठकों के दौरान किया गया। इन चयनित किसानों के आधारभूत आंकड़ों को एकत्र किया गया। किसानों को जैविक खेती अभ्यासों के उपर प्रशिक्षित किया गया। सफल जैविक खेतों का एक्सपोजर भ्रमण भी इन किसानों को कराया गया। किसानों ने मैसूर जिले के डोडाबल्लापुरा में श्री नारायण रेड्डी के खेत का, हुन्सुर में श्री कोडिपापन्ना के खेत तथा बाएफ, एवं तिप्तूर में बाएफ का भ्रमण किया।

विभिन्न जैविक अभ्यासों जैसे- वर्मी कम्पोस्ट एवं वृक्ष आधारित खेती प्रणालियों को प्रोत्साहित करने हेतु प्रदर्शनों का आयोजन किया गया। प्रारम्भ में, 10-15 गुण्टा में बीन्स, टमाटर और पत्तेदार सब्ज़ियों को उगाकर जैविक खेती पर प्रदर्शन किया गया। पोषक तत्वों से भरपूर कम्पोस्ट खाद के उपयोग, जीवाम्रुत, वर्मी वॉष, नीम खली, सूक्ष्म जैविक तत्वों का अर्क, ट््राइकोडर्मा, नीम का साबुन, नीम का तेल एवं दसपारनी आदि के प्रयोग को बढ़ावा दिया गया। जीवामु्रत, दसपारनी एवं पोषक कम्पोस्ट तैयार करने के उपर इन किसानों को प्रशिक्षित किया गया।

वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग को अपनाने से किसानों के खेतों में केंचुओं की संख्या में वृद्धि हुई है और खेत पोषणयुक्त हुए हैं।

परियोजना अन्तर्गत आच्छादित गांवों में मासिक बैठकों के दौरान किसानों को जैविक खेती से सम्बन्धित बहुत से नवाचार तकनीकों को भी बताया गया। कृषि विज्ञान केन्द्र हिरेहाल्ली के कृषि वैज्ञानिकों एवं अन्य औद्यानिक विषेषज्ञों द्वारा तकनीकी सहयोग भी प्रदान किया गया।

वर्मी कम्पोस्ट इकाई, पौध आधारित कीटनाषक तैयार करने हेतु ड््रम, सोलर ट््रैपों की स्थापना करने तथा एक्सपोजर एवं प्रषिक्षण आयोजित करने में किसानों को सहयोग प्रदान किया गया। किसानों को प्रति एकड़ 40-50 फलदार पौध एवं 70-80 वानिकी के पौध भी प्रदान किये गये। खेत की मेड़ों पर ढैंचा एवं हेमाटा जैसी चारा प्रजातियों को लगाने हेतु किसानों को प्रोत्साहित किया गया। फलदार पौधों एवं वानिकी पौधों को खेत के चारों तरफ मेड़ों पर एवं खेतों में लगाया गया। प्रतिभागियों के खेतों मंे बहु फसल एवं फसल चक्रों को भी अपनाया गया।

परिणाम

प्रत्येक किसान ने एक-एक एकड़ में सब्जी की खेती की। किसानों ने बैगन, तुरई, करेला, टमाटर एवं बीन्स उगाया।

किसानों ने समृद्ध खाद, तरल उर्वरक ;जीवाम्रुतद्ध, हरी खाद एवं वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग के माध्यम मृदा उर्वरता को बढ़ाने एवं समृद्ध करने की आवश्यकता को महसूस किया है। उन्होंने बीज उत्पादन, बीज उपचार, वर्मी कम्पोस्ट, जीवाम्रुत के उपयोग, मल्चिंग एवं जैविक सब्जी उत्पादन अभ्यासों को तुरन्त अपनाया है। पांच किसान वर्मी-कम्पोस्ट खाद बना रहे हैं। वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से किसानों के खेतों में केंचुओं की जनसंख्या बढ़ी है और खेत उर्वर हुए हैं।

परियोजना से जुड़े सभी किसानों द्वारा चना, लोबिया के बीजों के साथ हरी खाद एवं नीम खली तथा जीवाम्रुत का उपयोग किया जा रहा है। इससे मृदा की उर्वरता मृदा में जैविक कार्बन के स्तर को सुधारने में सहायता मिली है।

 

 

खेती के तरीके

 

किसानों द्वारा अपनाई गयी तकनीक

मृदा एवं नमी संरक्षण मृदा और जल प्रबन्धन अभ्यास
वृक्ष आधारित खेती किसान धीरे-धीरे वृक्ष आधारित खेती के महत्व को समझे हैं और वे मिश्रित वानिकी पेड़ और बागवानी आधारित पेड़ों को लगा रहे हैं।
बीज उपचार अर्क माइक्रोबियल कन्सोर्टियम, ट््राइकोडर्मा विरिद एवं बीजाम्रुत के साथ उपचारित
बुवाई एवं पौध रोपण छोटे पौधों का उपयोग, पौधों के बीच उचित दूरी रखना, मशीनों के माध्यम से घासों का नियंत्रण
मृदा उर्वरता में वृद्धि वर्मी कम्पोस्ट खाद, फार्म यार्ड खाद, समृद्ध खाद, नीम खली, जीवाम्रुत, जैव-उर्वरक एवं जैविक खाद
कीट एवं व्याधि प्रबन्धन जैव-नियंत्रण एजेण्टों एवं जैव-कीटनाशकों का उपयोग

 

किसानों का कहना है कि मृदा की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। अलुमर्दापल्या गांव के रहने वाले श्री वेंकटेश का कहना है कि मृदा की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। मिट्टी मुलायम हुई है और इसकी जलधारण क्षमता भी बेहतर हुई है।

 

 

चिक्कनगैया तुमकूर जिले के दुर्गादहल्ली गांव के रहने वाले एक किसान है। इनके पास दो एकड़ जमीन है। यह सब्ज़ियां एवं अन्य फसलें उगाते हैं। चिक्कनगैया की जमीन वर्षा आधारित होने के कारण, बार-बार सूखा पड़ जाने की वजह से वह अधिक उत्पादन नहीं ले पाते थे। हाल के वर्षों में भूजलस्तर में अत्यधिक गिरावट आने के कारण उनके खेत में लगा बोरवेल भी पूरे खेत के लिए पानी नहीं दे पाता था।

चिक्कनगैया ने एसआईएफ-आर्गेनिक फार्मिंग परियोजना के अन्तर्गत आविष्कार द्वारा आयोजित प्रशिक्षणों एवं एक्सपोजर भ्रमणों में सक्रियता से भाग लिया। उन्होंने अपने घरेलू उपभोग के लिए पत्तेदार सब्ज़ियों, बीन्स, टमाटर, मिर्चा एवं अन्य लतादार सब्ज़ियों को उगाया। उन्होंने जैविक अभ्यासों को अपनाते हुए बाजार के लिए भी बैगन, टमाटर व बीन्स को उगाया। वे प्रत्येक रविवार को तुमकूर में किसान जैविक सब्जी बाजार में अपनी सब्ज़ियों को बेचते हैं। उनके परिवार को प्रतिवर्ष औसतन रू0 25000.00 से 30000 के बीच शुद्ध लाभ होता है। चिक्कनगैया प्रसन्नता से कहते हैं, ‘‘मैं प्रत्येक सप्ताह रू0 1000.00 कमा लेता हूं।’’

उन्होंने अपने खेत में नीबू के 60 पौधे, सहजन के 30 पौधे और मालाबार नीम के 50 पौधे लगा रखे हैं। सभी पौधे अच्छी तरह विकास कर रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने स्वयं से नीबू के 50 पौधे खरीदे और उसे 15 फीट की दूरी पर अपने खेत में लगा दिया। वर्तमान में, उनके खेत में चारा पौध पर्याप्त मात्रा में लगे हैं और उनके जानवरों के लिए खूब चारा मिल रहा है। अपने खेत में लगे ढैंचे के पौधों का बेहतर एवं भरपूर उपयोग करने के लिए उन्होंने दो बकरियां खरीदी हैं। उनकी पत्नी, जो पहले निकट के गांवों मंे जाकर रोज मजदूरी करती थीं, अब वे एक पूर्णकालिक खेतिहर महिला के रूप में पूरे समय अपनी खेती में संलग्न रहती हैं।

 

 

किसान एकल खेती के अलावा भिन्न-भिन्न प्रकार की मिश्रित खेती प्रणालियों पर जानकारी प्राप्त कर रहे है। परियोजना क्षेत्र में किसान फसल चक्र की गतिविधि अपना रहे हैं। एकीकृत कीट प्रबन्धन एवं एकीकृत पोषण प्रबन्धन के माध्यम से पर्यावरण सम्मत उत्पादन अभ्यासों को अपनाया गया है, जिससे उत्पादन लागत घटाने में मदद मिली है। अभ्यास में हैं। पारिस्थितिकी विकल्पों में बदलाव के परिणामस्वरूप रसायनिक उर्वरकों का उपयोग कम हो गया है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग के लिए उत्तरदायी ग्रीन हाउस गैसों में से एक नाइट््रेटस का वातावरण में उत्सर्जन कम हुआ है।
वृक्ष आधारित कृषि प्रणाली के अन्तर्गत वृक्ष घटक के एकीकरण के माध्यम से वर्तमान कृषि प्रणाली के स्थाईत्व को बढ़ाया गया है। वानिकी प्रजातियां, फल प्रजातियां एवं चारा की खेती के माध्यम से चयनित किसानों के खेत में पौध विविधता में वृद्धि हुई है। आने वाले दिनों में ये किसान अन्य किसानांे के लिए प्रक्षेत्र प्रदर्शन करेंगे।

एक जैविक फोरम प्रुथ्वी ऑर्गेनिक फोरम का गठन किया है, जहां पर किसान महीने में एक बार मिलते हैं और अपनी बैठकों में जैविक खेती के मुद्दों पर चर्चा करते हैं। इन बैठकों में कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों, प्रगतिशील जैविक किसानों और कृषि विभाग के कर्मचारियों को भी आमंत्रित किया जाता है। वर्तमान में, इस मंच को आर्गनिक फार्मर प्रोड्यूसर कम्पनी में बदलने की योजना है और इसकी पंजीकरण प्रक्रिया चल रही है। एफ पी ओ बेहतर मार्केंटिंग सुनिश्चित करेगा, क्योंकि वर्तमान में तुमकूर जैविक आउटलेटों के माध्यम से उत्पादों को बेचा जा रहा है और प्रत्येक रविवार को किसान तुमकूर में जैविक सब्जी बाजार में उत्पाद बेच रहे हैं। जैविक सब्ज़ियों एवं अन्य उत्पादों की बिक्री की सुविधा के लिए तुमकूर में एक जैविक आउटलेट खोलने की भी योजना है।

यद्यपि जैविक तरीकों से खेती करने से कुछ किसानों की फसल नुकसान होने के भी उदाहरण हैं, फिर भी कृषि संस्थानों से व्यक्तिगत बात-चीत, प्रेरणा और निरन्तर मार्गदर्शन के माध्यम से किसानों के हित को उच्च स्तर पर बनाये रखा गया है। 4-5 वर्षों की अवधि में, परियोजना अन्तर्गत आच्छादित गांवों की सूखी भूमि बढ़ी हुई खाद्य सुरक्षा, चारे की उपलब्धता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति लचीलेपन के साथ विविधीकृत खेती बन जायेगी।

ए. आनन्दकुमार


ए. आनन्दकुमार
परियोजना निदेशक
आविष्कार, तुमकूर
कर्नाटका
ई-मेल: avishkar2004@gmail.com

Source: Small farmers and safe vegetable cultivation, LEISA India, Vol, 22, No.3, September 2020

 

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