जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए उद्यम

Updated on June 1, 2022

वर्षा पर निर्भर करने वाले किसान हमेशा ही नाजुक श्रेणी में आते हैं। लेकिन संकट से एक अवसर की तरफ मुड़ने के लिए बहुत दृढ़ संकल्प व लोगों के सहयोग की आवश्यकता होती है। सेबस्टियन इसका एक उदाहरण हैं, जो स्वयं अपनी खेती में बदलाव लाकर तथा जैविक खेती पद्धतियों की तरफ किसानों को उत्प्रेरित करने के लिए सहायता देकर एक रोल मॉडल बन गये हैं।


यह सर्वविदित है कि कार्बनिक या जैविक निवेशों के उपयोग ने जैविक खेती को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। परम्परागत खेती में, जहां यह माना जाता है कि रसायनिक उर्वरक पौधों को भोजन देने और उनकी सुरक्षा करने हेतु प्रत्यक्ष कार्य करते हैं, वहीं जैविक खेती में, मृदा को उर्वर बनाने तथा ऐसे वातावरण के निर्माण हेतु निवेशों का उपयोग किया जाता है, जिससे कीटों का विकास कम से कम हो। इस प्रयास में, जैविक खेती अपनाने की सोच रखने वाले किसानों के लिए दो अहम् मुद्दे हैं – पहला, जैविक निवेशों की उपलब्धता और दूसरा उत्पाद की गुणवत्ता।

हाल के कुछ वर्षों में, कुछ नवाचारी उद्यमी किसानों ने गुणवत्तापूर्ण जैव उत्पादों के उत्पादन के लिए उपयुक्त उत्पादन पद्धतियों को अपनाने का प्रयास किया और अन्य किसानों को उचित दामों पर उपलब्ध कराया। उन्होंने किसानों के बीच जैविक खेती पर बढ़ रही जागरूकता का लाभ उठाया। विभिन्न प्रकार कार्बनिक और जैविक निवेश बाजार में आ रहे हैं ओर किसानों को बेचे जा रहे हैं। सेबस्टियन एक इसी प्रकार के किसान उद्यमी हैं, जो सफलतापूर्वक जैविक निवेशों का उत्पादन कर रहे हैं और क्षेत्र में अन्यों के लिए एक रोल मॉडल के तौर पर उभरे हैं।

सेबस्टियन तमिलनाडु के त्रिची जिले के वैयामपट्टी विकासखण्ड के मुगवानपुर के रहने वाले एक छोटे से किसान हैं। उनके पास साढ़े चार एकड़ कृषिगत भूमि है, जिसमें ढाई एकड़ खेत वर्षा आधारित है। वह अपने दो एकड़ खेत की सिंचाई कुंएं और बोरवेल स्रोतों से करते हैं। एक दशक से भी अधिक समय से सूखा के चक्रीय प्रवाह के कारण, उनके लिए खेती करना चुनौती बनती जा रही थीं इसलिए, उन्होंने अधिक पानी चाहने वाली फसलों जैसे धान की खेती करना कम कर दिया और लतादार सब्ज़ियों जैसे- नेनुआ, चिचिड़ा, लौकी की खेती करने लगे इन लताओं की छाया में वे नवाचारी तरीके से टमाटर जैसी सब्ज़ियों की खेती करते हैं। इसे प्रभावी जमीनी स्तर के नवाचारों के रूप में मान्यता दी गयी और वर्ष 2012 में नार्वे और टीएनयू के जलवायु-अनुकूलन कार्यक्रम के रूप में शामिल किया गया।

जैविक कृषि की यात्रा

सेबस्टियन का घर व खेत तमिलनाडु में जैविक कृषि की परिकल्पना को सामने लाने वाले स्वर्गीय श्री नाम्मलवर द्वारा गठित एक संगठन वनागम के बहुत निकट है। वर्ष 2013 के दौरान, इन्होंने सुरूमान्नपट्टी गांव में स्थित वनागम के पारिस्थितिकी खेत पर पारिस्थितिकी कृषि पर आयोजित एक 5 दिवसीय पाठ्यक्रम में प्रतिभाग किया। यही वह समय हुआ, जब उन्होंने खेती के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदला।

सेबस्टियन ने एक स्थानीय गैर सरकारी संगठन एएचआईएमएसए द्वारा एकीकृत कीट प्रबन्धन पर आयोजित प्रशिक्षण में भी सहभागिता की थी। यह संस्था उन प्रमुख संगठनों में से एक है, जिसने 1990 के दशक के उत्तरार्ध में एएमई फाउण्डेशन के तकनीकी दिशा-निर्देशन में तमिलनाडु में एकीकृत कीट प्रबन्धन दृष्टिकोण को अपनाया था और वैयामपट्टी विकास खण्ड में पारिस्थितिकी कृषि को बढ़ावा देने के लिए लगातार कार्य कर रही है। बाद में, यह नाबार्ड और एएचआईएमएसए द्वारा समर्थित उझावर मन्द्रम के एक सक्रिय सदस्य भी बने। वनागम एवं एएचआईएमएसए के सहयोग से बहुत से स्थानों का भ्रमण कर, सेबस्टियन जैविक खेती अपनाने की ओर उत्प्रेरित हुए और अपने दृढ़ विश्वास को मजबूत किया। उन्होंने अपने खेत में जैविक खेती दृष्टिकोण को अपनाना प्रारम्भ किया और मात्र एक वर्ष के अन्दर उन्होंने अपने पूरे 4.5 एकड़ खेत में जैविक खेती पद्धतियों को पूर्णतया अपना लिया।

रचनात्मकता के लिए संकट

सेबस्टियन के विश्वास को चुनौती देने के लिए प्रकृति भी खड़ी हो गयी और लगातार कई वर्षाें तक निरन्तर सूखा पड़ने से उसका जैविक किसान बनने का सपना चकनाचूर हो गया। क्षेत्र में लगातार कम वर्षा होने के कारण वह अपने वर्षा आधारित खेत में कोई भी फसल नहीं ले सका। खुले कुंएं और यहां तक कि बोरवेल भी सूख गये, जिससे सिंचाई आधारित खेती भी असंभव हो गयी। अपनी सब्ज़ियों को बचाने के लिए, सेबस्टियन को घड़ों में पानी लाकर लताओं को सींचने पर मजबूर होना पड़ा।

इसी समय उन्हें पुड्डुकोट्टई जिले के कुडुमियानमलाई में स्थित तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के अन्ना औद्यानिक फार्म द्वारा आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण में भाग लेने का अवसर मिला। इस प्रशिक्षण का विषय था, ‘‘किसान किस प्रकार जैव निवेशांे के उत्पादन और विपणन के माध्यम से वैकल्पिक आय अर्जन कर सकते हैं।’’ प्रशिक्षण से प्राप्त निवेशों और विचारों ने जैव-निवेशों के उत्पादन को उद्यम के तौर पर अपनाने हेतु उन्हें आत्मविश्वास प्रदान किया। उन्होंने इसे अपनी खेती में उत्पन्न संकट के समाधान के तौर पर देखा। इस प्रकार, उन्होंने अपना ध्यान और उर्जाएं फसल उगाने के बजाय जैव-निवेशों के उत्पादन और विपणन पर केन्द्रित किया।

सेबस्टियन कहते हैं, ‘‘यद्यपि मेरे पास जैविक कृषि करने के लिए पर्याप्त भूमि है, लेकिन पानी की सीमित उपलब्धता के कारण मैं अपनी 50 प्रतिशत भूमि में ही फसल उगा सकता था। साथ ही जैविक कृषि में रूचि रखने वाले कुछ किसानों अपने स्वयं के जैव निवेशों का उत्पादन करने में असमर्थता व्यक्त की। इसलिए मैंने जैव-निवेश का उत्पादन करने का निर्णय लिया, जो न केवल मेरे लिए आय का एक स्रोत बन गया, बल्कि इससे जैविक की ओर बढ़ने वाले किसानों का सहयोग करने में भी मुझे सहायता मिली। इससे मुझे खुशी और संतुष्टि मिलती है।’’

जैव निवेशों का उत्पादन एवं आय

इस समय, वह अपने खेत पर उपलब्ध कच्ची सामग्री पर आधारित दसगव्य, पंचगव्य, मछली अमीनो एसिड, वर्मी कम्पोस्ट, हर्बल पेस्ट विकर्षण मिश्रण जैसे जैव निवेशों को तैयार करने में जुटे हुए हैं। जानवर एवं फसल अवशेषों को वे कच्चा माल के रूप में उपयोग करते हैं साथ में बहुत न्यून मात्रा में उन्हें बाहर से निवेश लेना पड़ता है। उनके पास दो देशी गायें ;स्थानीय प्रजाति मनापाराई गायद्ध एवं एक जर्सी गाय है। जैव निवेश तैयार करने में वे सिर्फ देशी गाय का गोबर एवं मूत्र उपयोग करते हैं।

उनकी उद्यमिता कौशल को देखते हुए कृषि विभाग ने उन्हें 2 टन की क्षमता वाले वर्मी कम्पोस्ट पिटों के निर्माण में सहायता प्रदान की। इसी प्रकार, स्थानीय संस्था एएचआईएमएसए ने उन्हें दसगव्य, पंचगव्य, मछली अमीनो एसिड एवं हर्बल पेस्ट विकर्षण मिश्रण उत्पाद करने में सहायता प्रदान करने के साथ ही उपयोग करने हेतु स्प्रेयर मशीनें भी दीं।

उनकी पत्नी एवं दो बच्चों सहित उनका पूरा परिवार इस पहल में लगा हुआ है। उन्होंने अपने बच्चों को औषधीयों को पहचानने तथा उसके उपयोग पर पूरी तरह प्रशिक्षित कर दिया है, जिससे वे औषधीयों एवं आवश्यक कच्चा सामग्रियों के संग्रहण, जैव निवेशों को तैयार करने, नियमित देख-भाल, प्रबन्धन एवं विपणन में भी उनका सहयोग करते हैं।

अपनी खेती की जरूरतों को पूरा करने के बाद, वर्तमान में सेबस्टियन सालाना तौर पर 100 लीटर आसगव्य, 100 लीटर पंचगव्य, 20 लीटर मछली अमीनो एसिड, 100 लीटर हर्बल पेस्ट विकर्षण मिश्रण एवं 2000 किग्रा0 वर्मी कम्पोस्ट बेचते हैं। जैव निवेशों की बिक्री से उनकी सालाना आय रू0 60,000.00 होती है। उनके जैव उत्पादों को खरीदने वालों की संख्या 60-70 है। इन खरीददारों की सूची में 20 लोग ऐसे हैं, जो उनके नियमित ग्राहक हैं। वे नियमित रूप से उनसे जैव निवेशों को खरीदते हैं और अगर समय पर उनकी पूर्ति न हो तो वे स्वयं फोन करके आते है। और जैव निवेशों को खुद ले जाते हैं। इससे सेबस्टियन को नियमित आय होती रहती है।

लगभग 90 प्रतिशत जैव-निवेश उनके खेत पर से ही बिक जाते हैं। शेष की बिक्री के लिए वे लोगों से अपने फोन के माध्यम से सम्पर्क करते हैं। हाल ही में उन्होंने इसे सोशल मीडिया पर भी साझा किया, जिससे उनके जैव-निवेशों की मांग में वृद्धि हुई। वह जैव निवेशों को तैयार करने एवं प्रयोग करने में रूचि रखने वाले किसानों को सलाह भी देते हैं।

जैव-निवेशों का उत्पादन करने वाले किसानों को विपणन में आने वाली चुनौतियों से निपटने हेतु प्रारम्भ में पीछे से सहयोग करने/खरीदने की आवश्यकता होती है।

छोटी प्रयोगशाला
वर्ष 2018-2019 में कृषि विभाग ने किसानों की सामूहिक पहल को मजबूत करने और उनकी उद्यमशीलता कौशल को बढ़ाने के लिए राज्यस्तरीय प्रशिक्षण का आयोजन किया। सेबस्टियन ने किसान उत्पादक संघ के सदस्य के रूप में 70 किसानों के साथ इस प्रशिक्षण में भाग लिया। प्रशिक्षण के बाद, सेबस्टियन ने मिट्टी में रहने वाले कीड़ों और सम्बन्धित जड़ सड़न समस्याओं के लिए जैव नियंत्रण एजेण्ट के रूप में काम करने वाले एक कवक एंटोमोपैथोजन-मेटारिजियम एनिसोप्लिया के उत्पादन में अपनी रूचि व्यक्त की। उन्होंने कृषि विभाग से सम्पर्क किया और मेटारिजियम उत्पादन करने हेतु एक छोटी प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए कृषि विभाग से सहयोग की मांग की।

इसके बाद, कृषि विभाग के अधिकारियों ने उनके यहां का दौरा किया और उनके समूह के सदस्यों के साथ बात-चीत कर एक छोटी प्रयोगशाला स्थापित करने की योजना को अन्तिम रूप दिया। सभी आवश्यक कार्यवाी पूरी करने के बाद मेजों, प्रेशर कुकर, यू वी प्रकाश, बाल्टियों एवं कण्टेनरों को खरीदकर एक छोटी प्रयोगशाला स्थापित करने हेतु कुल रू0 70,200.00 का अनुदान दिया गया। इस प्रयोगशाला से सेबस्टियन वर्ष भर में लगभग 50 किग्रा0 मेटारिजियम का उत्पादन करते हैं और लगभग 9000.00 रू0 कमाते हैं।

हालांकि सेबस्टियन के सामने अपने उत्पादों के विपणन की चुनौतियां हैं क्योंकि कृषि विभाग आकर्षक पैकिंग और एक ब्राण्ड नाम के साथ मेटारिजियम को सीधे किसानों को बेचता है। इस प्रकार सेबस्टियन जैसे किसानों के लिए, जिनके पास अपने उत्पाद के लिए न तो आकर्षक पैकिंग है और न ही एक ब्राण्ड है, कृषि विभाग खुद एक प्रतिद्वन्दी बन गया है। सेबस्टियन प्रारम्भ में विपणन की इस चुनौती से निपटने हेतु लोगों से सहयोग की अपेक्षा कर रहे हैं।

निष्कर्ष
जैविक की तरफ जाने से, अपने खेतों की मृदा स्वास्थ्य में सुधार होता देखकर सेबस्टियन और अन्य किसान बहुत प्रसन्न हैं। जैव निवेशों के प्रयोग के परिणामस्वरूप जमीन की निचली परत में मृदा का सुधार हुआ है, पौधे स्वस्थ हो रहे हैं, कीटों का आक्रमण कम हो रहा है और परिवार को सुरक्षित और स्वादिष्ट भोजन मिलने लगा है। साथ ही इसने सेबस्टियन जैसे किसानों को उद्यम की राह दिखाकर आय सृजन का एक नया रास्ता भी खोल दिया है। सेबस्टियन के अनुभवों को स्थानीय समाचार पत्रों और ऑल इण्डिया रेडियो, त्रिचुरापल्ली के कृषि के लिए एक विशेष प्राइम समय स्लॉट वेलान अरंगम में प्रसारित किया गया। सेबस्टियन क्षेत्र में उद्यमिता के लिए एक रोल मॉडल के तौर पर उभरे हैं।

आज सेबस्टियन न केवल वैयामपट्टी, वरन् आस-पास के क्षेत्रों में किसानों को जैव निवेशों को उपलब्ध कराते हैं, उन्हें जैविक खेती के प्रति प्रोत्साहित करते हुए जैव निवेशों के उपयोग के बारे में बताते हैं साथ ही मृदा गुणवत्ता में हो रहे सुधार को जानने के लिए किसानों के खेतों की मिट्टी की जांच कराने हेतु सम्बन्धित विभागों व अधिकारियों से समन्वय भी स्थापित करते हैं।

विक्टर आई, सुरेश कन्ना के


विक्टर आई
सचिव, एएचआईएमएसए
नं0 1-207 सी, सोना काम्पलेक्स, मुख्य मार्ग
वैयामपट्टी, 621 315, त्रिची जिला, तमिलनाडु
ई-मेल: info@ahimsa.ngo

सुरेश कन्ना के
वरिष्ठ टीम सदस्य
कुडुम्बम
113/118, सुब्रमण्यपुरम, त्रिची, 620 020
ई-मेल: kannasuresh71@gmail.com

Source: Bio-input for agroecology, LEISA India, Vol.23, No.1, March 2021

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