जैविक खेती की ओर बदलाव

Updated on September 1, 2022

खेती बदल रही है। लोग फिर से रासायनिक से पारम्परिक खेती की तरफ बढ़ रहे हैं, परन्तु एक नये अन्दाज़, नये दृष्टिकोण एवं नई चुनौतियों के साथ। चाहे जैविक खेती हो, पुनरूत्पादक हो अथवा शून्य बजट की खेती हो, ये सभी किसानों के बीच इसलिए लोकप्रिय हो रहे हैं, क्योंकि इनके माध्यम से आर्थिक व पर्यावरणीय स्थिरता सामने आ रही है।


11 वर्षों तक जैविक विधि से खेती करने के अनुभव एवं महाराष्ट््र के चन्द्रपुर जिले के चिमूर तालुका के गोन्डेडा मंे सीमान्त किसानों के साथ जैविक विधि से 5 वर्षों तक कार्य करने के बाद हमने ;जेनेरियस टेक्नालॉजीज प्राइवेट लिमिटेडद्ध पिछली खरीफ ऋतु में महाराष्ट््र के भान्दरा जिले के सबसे ज्यादा कीटों के आक्रमण वाले क्षेत्र असगांव गांव मे अपना हाथ आजमाने का प्रयास किया। खेती के मौजूदा अभ्यासों में बदलाव करना हमेशा आसान ही नहीं होता है। यह 8 किसानों के लिए भी आसान नहीं था। कई दौर की चर्चाओं तथा सफलतापूर्वक धान की जैविक खेती करने वाले किसानों के खेतों का भ्रमण करने के बाद, किसानों के इस समूह का प्रत्येक सदस्य अपने कम से कम एक एकड़ खेत पर जैविक विधि से धान की खेती करने के लिए तैयार हुआ था। किसानों ने आपसी सहमति से ठीक व मध्यम आकार के चावल के दाने वाले धान की प्रजाति जै श्री राम की खेती करने का निश्चय किया।

प्रति एकड़ दो टन समृद्ध कम्पोस्ट का प्रयोग किया गया। इसे पशुशाला से निकली खाद एवं खेत से प्राप्त अपशिष्टांे में डिकम्पोजिंग कल्चर को मिलाकर तैयार किया गया था। पूरी तरह से, सड़ जाने के पश्चात् इसमें 8 प्रकार बैक्टीरिया और कवकों को मिलाया गया। बीच उपचार के लिए विभिन्न जैव उर्वरकों का प्रयोग किया गया था। ढैंचा का प्रयोग हरी खाद के रूप में किया गया। कीटों को भगाने के लिए दशपर्णी अर्क ;10 पत्तियों का अर्कद्ध, नीम की पत्तियों का अर्क, अग्निअस्त्र ;मिर्चा, लहसुन और अदरक का घोलद्ध का उपयोग किया गया एवं धान की खेती के लिए पौध विकास प्रमोटर के तौर पर पार्थेनियम अर्क, जीवाम्रुत, वर्मीवॉश एवं पंचगव्य का उपयोग किया गया।

छोटी जोत पर उर्वरक, कीटनाशकों, श्रम और पूंजी के अधिक उपयोग के साथ सघन खेती करने का यह हमारा पहला अवसर था। हमें अत्यन्त आश्चर्य हुआ कि प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों के बावजूद, हमारे प्रदर्शन प्रक्षेत्रों का प्रदर्शन पड़ोसी किसान के फसलों की तुलना में अधिक संतोषजनक रहा, जबकि उसमें रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया गया था। किसानों को फसलों पर कीटों के प्रकोप में कमी और रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि देखने की मिली और अन्ततः धान की उत्पादकता में सुधार हुआ।

सभी 8 किसानों को जैविक खेती करने के पहले वर्ष ही बेहतर उपज प्राप्त हुई। रसायनिक तरीके से की गयी खेती से जहां इन्हें 2-4 कुन्तल प्रति एकड़ उपज मिलती थी, वहीं जैविक विधि से इन्होंने प्रति एकड़ 9-11 कुन्तल धान की उपज प्राप्त की। ध्यान देने की बात यह भी रही कि इस वर्ष प्रतिकूल जलवायुविक परिस्थितियों के कारण रासायनिक उर्वरकों से की गयी खेती से प्राप्त उपज में और भी कमी आयी। सामान्यतः उस विशिष्ट क्षेत्र में रासायनिक विधि से की गयी खेती में अच्छी प्रजाति होने पर प्रति एकड़ 15-16 कुन्तल़ उपज मिलती है।

किसान बहुत खुश थे, क्योंकि एक तरफ तो उन्हें रासायनिक विधि से उगायी गयी फसलों के सापेक्ष अधिक उपज प्राप्त हुई, तो दूसरी तरफ उस उपज का उन्हें बाजार मूल्य भी अधिक प्राप्त हुआ। साथ ही उत्पादन लागत में भी 50 प्रतिशत तक कमी आयी। कहीं-कहीं तो लागत में कमी का यह प्रतिशत और भी कम हो गया था। उन्होंने पिछले वर्ष की अपेक्षा अधिक बचत किया और पिछले वर्ष की तुलना में उपत भी अधिक प्राप्त किया।

एक कृषि उद्यमी के रूप में जैविक खेती को प्रोत्साहन देने का यह एक छोटा सा उदाहरण है।

सहयोगी नीति
जिला/तहसील स्तर पर कृषि विभाग और कृषि तकनीक प्रबन्धन अभिकरण ;आत्माद्ध सहभागी गारण्टी योजना के माध्यम से जैविक खेती को प्रोत्साहन दे रही हैं। जैविक खेती के लिए आवश्यक सभी निवेशों को तैयार करने हेतु किसानों को प्रशिक्षित किया जाता है। आत्मा में भी आवश्यक सामग्रियों जैसे- 200 लीटर का ड््रम, वर्मी कम्पोस्ट इकाई आदि को अनुदानित दर पर उपलब्ध कराने का प्रावधान है। किसान समूहों एवं महिला स्वयं सहायता समूहों को एचएएनपीवी उत्पादन एवं ट््राइको कार्ड तैयार करने पर प्रशिक्षित किया गया। इन सभी प्रयासों के साथ, बहुत से किसान उत्पादक संगठन एक पंजीकृत जैविक उत्पादक समूह के तौर पर कार्य कर रहे हैं। नागपुर जिले में, विपणन पहल के तौर पर किसानों के सामानों को बेचने के लिए मुख्य स्थानों को चिन्हित करने हेतु कृषि विभाग और नगर निगम मिलकर कार्य कर रहे हैं, जिसे किसानों के लिए एक कमजोर कड़ी माना जाता है।

राष्ट््रीय स्तर पर मैनेज ;एमएएनएजीईद्ध, हैदराबाद एवं आईआईएफएसआर, मोदीपुर जैसे संस्थान अपनी प्रसार प्रणालियों के माध्यम से अध्ययन करने, आंकड़े एकत्र करने और जैविक खेती को प्रोत्साहित करने का काम कर रहे हैं। जैविक खेती में प्रमाणित कृषि सलाहकार ;सीएफएद्ध उन नवीन पाठ्यक्रमों में से एक है, जो पूरे देश में जैविक सलाहकारों का एक दल तैयार कर रहा है। यह प्रमाणित कृषि सलाहकार भविष्य में जैविक खेती के प्रसार में सहायक होंगे।

प्रसार के प्रत्येक स्तर से किये जाने वाले नवाचार निश्चित रूप से किसानों को जिम्मेदार तरीके से खेती करने में मदद कर रहे है। किसानों तक सूचना का प्रवाह नियमित रूप से निश्चित अन्तराल पर होता है। जैव उर्वरक जैसे निवेश बाजार में आसानी से उपलब्ध होते हैं और जब बाजार में नहीं मिलते हैं तो इसे आसानी से बाहर से मंगाया जा सकता है।

मैं जैविक विधि से खेती करने वाले किसानों से हमेशा कहता हूं कि वे अपने पड़ोसी किसान को जैविक खेती करने के लिए तैयार करें। उसे उन लाभों के बारे में बतायें, जिसे आपने अनुभव किया है। यदि वह आपकी बात सुनता है और आपका अनुसरण करता है तो आपको बहुत से अप्रत्यक्ष लाभ होंगे और आप प्रसन्न रहेंगे। यदि वह आपकी बात नहीं सुनता है तब भी आप प्रसन्न रहेंगे। क्योंकि उसके द्वारा उपयोग किये जाने वाले रसायनों के कारण कीट-पतंगे और रोग-व्याधि आपके खेत/फसल के बजाय उसके खेत/फसल की ओर आकर्षित होंगे। –

 

चुनौतियां
जैविक खेती को एक सुनियोजित गतिविधि के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। जैविक खेती मूल रूप से कृषि के लिए एक उपचारात्मक दृष्टिकोण है। जैविक खेती प्रारम्भ करने से पहले फसल उत्पादन से लेकर उत्पाद के विपणन तक सम्पूर्ण प्रक्रिया को समझने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है।

जैविक खेती को अपनाने हेतु सरकारी प्रणाली पर्याप्त ध्यान दे रही है, फिर भी किसान बहुत धीमी गति से जैविक खेती करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इसके पीछे कुछ कारण निम्नवत् हैं-

  •  रासायनिक खेती ने किसानों की मानसिकता को ‘‘रेडीमेड और तेज’’ में बदल दिया है। जैविक खेती में किसानों को अपना उर्वरक एवं कीटनाशक, फंगीसाइड आदि निवेश तैयार करने के लिए स्वयं मेहनत करना पड़ता है, जिससे कई लोग हिचकिचाते हैं।
  • चूंकि जैविक खेती एक उपचारात्मक दृष्टिकोण है। अतः जैविक खेती की तरफ बदलाव करने के दौरान प्रारम्भ में, छिड़काव जल्दी-जल्दी करना चाहिए। ऐसी स्थिति में कुछ मामलों में छिड़काव करने की संख्या बढ़ सकती है। बहुत बार, इसे किसान करना नहीं चाहते हैं। और एक बार जब संक्रमण या बीमारी नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तब लोग कहते हैं कि ‘‘जैविक पद्धति’’ सही नहीं है।
  •  जैविक विधि से खेती करने में रासायनिक विधियों की तुलना में अधिक श्रम की आवश्यकता होती है। और मजदूरों की कमी तथा खेत का रकबा अधिक होना एक समस्या हो जाती है।
  •  जैविक खेती मॉडल को पशुपालन के साथ शामिल करने से ही लाभ होता है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि ‘‘एक उद्योग का अपशिष्ट दूसरे उद्योग के लिए सर्वोत्तम है।’’ सभी किसानों के पास जानवर नहीं होते और जैविक विधि से तैयार की जाने वाली तरल एवं ठोस उर्वरकों, कीट नियंत्रकों आदि को तैयार करने के लिए जानवरों के अपशिष्ट जैसे- मूत्र एवं गोबर की आवश्यकता होती है। इसे बाहर से खरीदने से लागत में वृद्धि होती है।

भावी योजना
फसल का चयन करने से पहले, उपज की बिक्री के लिए बाजार की पहचान कर लेनी चाहिए। यदि कोई किसान अपने उत्पाद को एपीएमसी में बेचना चाहता है तो उसे जैविक विधि से खेती करने हेतु अमूल्य प्रयासों को बरबाद करने की सलाह नहीं दी जाती है। इसलिए यदि हम पहले ही बाजार का निर्धारण कर लें तो आधी लड़ाई तो वैसे ही जीत जायेंगे।

खेती करने से पहले, किसान को जैविक विधि से उत्पादन के विज्ञान को समझना चाहिए। इसलिए जैविक विधि से खेती करने से पहले मृदा, फसल व उपलब्ध संसाधनों का अध्ययन करना अति आवश्यक होता है। कुछ किसानों के अभ्यासों की नकल करने वाले बड़ी संख्या में किसानों को अपने पर्यावरण और उपलब्ध संसाधनों के अनुसार उपचार में आवश्यक बदलाव करना चाहिए। ऐसी स्थिति में यह सलाह दी जाती है कि किसान इन सभी बिन्दुओं का अध्ययन करने के बाद ही पहले एक छोटे से खेत से जैविक खेती की शुरूआत करें, फिर धीरे-धीरे इसका परिक्षेत्र बढ़ायें।

ज्ञान एवं संसाधनों के आदान-प्रदान के लिए समूह बनाना हमेशा लाभकारी होता है। यह किसानों को खरीदने और बेचने की शक्ति भी देता है। एक बात ध्यान में रखने योग्य यह भी है कि यदि हम एक पल के लिए मृदा की सेहत में सुधार, मृदा की जलधारण क्षमता में सुधार, मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव आदि अप्रत्यक्ष लाभों को न गिनें, फिर भी जैविक खेती से तैयार उपज का मिलने वाला उच्च बाजार मूल्य सबसे प्रत्यक्ष लाभ है। सबसे पहले किसान को जैविक खेती से होने वाले आर्थिक लाभ के बारे में ही आश्वस्त होना चाहिए। अप्रत्यक्ष लाभ तो उसके लिए एक बोनस के तौर पर हो जायेगा।

इस समय तेज और रेडीमेड दृष्टिकोणों को छोड़ने और आर्थिक व पर्यावरणीय स्थिरता की बदलती आवश्यकताओं के लिए उचित प्रतिक्रिया देना आवश्यक है। इससे खेती में स्थिरता आयेगी और यही आने वाले समय की मांग भी है।

रोहन योगेश राउत


रोहन योगेश राउत
पता - 63, मायर ले-आउट, निकट सुदमपुरी
सक्करदारा स्क्वायर, नागपुर - 440 009
ई-मेल: raut.rohan1@gmail.com

Source: Bio-input for agroecology, LEISA India, Vol.23, No.1, March 2021

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