छोटी जोत को अधिक स्मार्ट बना रहा मूल्य संवर्धन

Updated on December 4, 2022

मूल्य संवर्धन को सरल अभ्यासों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। सहयोग, समन्वय, अभिसरण, समुदायों की समावेशिता एवं एक मुख्य शोध संस्थान के माध्यम से मदद प्रदान करने के परिणामस्वरूप केरल के पथियूर पंचायत क्षेत्र में सफल सामाजिक नवाचार किया जा रहा है।


विश्व के पूरे खेती योग्य भूमि मंे पारिवारिक खेत का प्रतिशत 70.80 है और विश्व खाद्य उत्पादन में इनका योगदान 80 प्रतिशत है। छोटी जोत पारिस्थितिक दृष्टि से बेहतर होती है और खाद्य सुरक्षा और पोषण सहयोग को बढ़ावा देने में एक बड़ी भूमिका निभाती है।

केरल राज्य में, जोत भूमि का आकार औसतन 0.2 हेक्टेयर है। अधिकांशतः परिवार नारियल की खेती करते हैं। छोटी जोत के किसानों के लिए नारियल की खेती को लाभप्रद बनाना छोटी जोत के किसानों के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। इसलिए खेत आधारित आजीविका और आय को उन्नत करने के लिए एकीकृत तकनीकों पर काम करने के लिए बने संस्थान भारतीय कृषि अनुंसधान संस्थान-केन्द्रीय पौधरोपण फसल शोध संस्थान, कायमकुलम द्वारा वर्ष 2016 से पथियूर पंचायत में फार्मर फर्स्ट प्रोग्राम का संचालन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम को 1000 खेतिहर परिवारों के बीच फसल, औद्यानिक, पशुधन, प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन, मूल्य संवर्धन एवं एकीकृत खेती प्रणाली में सहभागी हस्तक्षेपों के माध्यम से पूरा किया गया।

परियोजना के अन्तर्गत हस्तक्षेपों का प्रारम्भ करने से पहले 750 परिवारों के बीच पूर्व परियोजना सर्वेक्षण किया गया, सहभागी ग्रामीण विश्लेषण अभ्यासों का अनुसरण करते हुए ग्राम का त्वरित विश्लेषण किया गया, सभी 19 वार्डों में वार्ड प्रतिनिधियों एवं हितभागियों को शामिल करते हुए केन्द्रित समूह चर्चा की गयी। समस्याओं का वरीयता निर्धारित करना, समाधानों को चिन्हित करना और किसानों की अपेक्षाओं का पूरा करना इस कार्यक्रम का उद्देश्य था, जिसे 2016 में पूरा किया गया। निम्न चुनौतियों के उपर कार्य करने के लिए रणनीतियां तैयार की गयीं-

* खेतों/नारियल के भूखण्डों की छोटी जोत होना। अव्यवहारिक उत्पादन स्तर सहित खेती की सामाजिक और आर्थिक चुनौतियांे में तेजी से परिवर्तन।

इसके अलावा, पहचाने गये अन्य कारकों और चुनौतियों में शामिल है- छोटे किसानांे की पहुंच प्रसार सेवाओं तक छोटे किसानों की खराब/कम पहुंच होना। विशेषकर महिला किसानों की पहुंच संसाधनों और आय तक बहुत सीमित है। इसके लिए मूल्य संवर्धन की पहचान एक उपयोगी रणनीति के तौर पर की गयी थी। फिर भी, पंचायत के लघु एवं सीमान्त किसानों के लिए उपयुक्त ‘‘मूल्य संवर्धन प्रसार रणनीतियों’’ को परिभाषित, परिष्कृत, डिजाइन, विकसित एवं मानवीकृत किया जाना जरूरी था।

कटाई के बाद की व्यवस्था के साथ-साथ प्रसंस्करण व्यवस्था ने महिला किसानों को समाज और परिवारों के लिए आर्थिक योगदानकर्ता के रूप में सक्षम बनाया।

समुदाय विकास समाज, वार्ड नं0 1 की अध्यक्षा श्रीमती राधा कुमारी, एक गौरवान्वित प्रतिभागी हैं और समूह खेती की अगुआ के तौर पर उभरी हैं। वे कहती हैं, ‘‘हम सभी फार्मर फर्स्ट प्रोग्राम ;एफ एफ पीद्ध हस्तक्षेप के माध्यम से एक किसान के तौर पर बहुत उत्प्रेरित और आत्मविश्वास से भरपूर हैं। पिछले 5 वर्षों में तिल की खेती की सफलता हमें लगातार पहले वर्ष के बाद से ही तिल के पहले धान की खेती को पुनर्जीवित करने हेतु भी उत्प्रेरित करती है। हमने 500 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उच्च उत्पादकता प्राप्त की और फार्मर फर्स्ट प्रोग्राम संचालित 19 वार्डों के 68 महिला समूहों में बेहतर किसानों में से एक माना गया। हमने कन्द फसलों, दलहन, मसालों सब्ज़ियों, मोटे अनाज और चारा फसलों की जैविक खेती में भी विशेषज्ञता हासिल की। हम फसल सीजन में औसतन रू0 10,000.00-12,000.00 प्रति महिला की दर से आय अर्जन करते हैं। साथ ही, मनरेगा से भी अतिरिक्त आमदनी अर्जित करते हैं। ताजा उत्पादों से हमने अपने परिवार की भोजन आवश्यकता को पूरा किया और उपभोग के बाद बचे उत्पाद को बाजार में बिक्री कर दिया। इससे विशेषकर कोविड काल में, बच्चों सहित परिवार के सदस्यों ने खेती की गतिविधियों में खुशी-खुशी अपना सहयोग प्रदान किया। हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि तो यह है कि उम्र को दर किनार करते हुए हमारी पहचान एक किसान, आय अर्जक और अभ्यासकर्ता के रूप में हो गयी है।

खेतिहर समुदायों के स्थितिजन्य अध्ययन और विश्लेषण में, जन प्रतिनिधि ;वार्ड सदस्य और पंचायत की स्थानीय निकायद्ध, नारियल उत्पादक किसान समुदाय, महिला किसानों के स्वयं सहायता समूह, मनरेगा श्रमिक, पशुधन और कुक्कुट पालक किसान और ग्रामीण युवा शामिल थे। विश्लेषण ने दुहराया कि लघु किसानों की उत्पादन प्रणाली के बहुआयामी पहलुओं के उपर यथोचित रूप से ध्यान नहीं दिया गया है। संभावित हस्तक्षेपों को प्रारूपित किया गया, जिसमें बेहतर प्रजातियों एवं पसंदीदा कृषि प्रणालियों के माध्यम से उत्पादकता को उन्नत करना, बेहतर कृषिगत अभ्यासों को अपनाना, खेत तालाबों को पुनर्जीवित करना, बेहतर प्रसंस्करण और विपणन प्रयास शामिल थे। मूल्य संवर्धन की कमी, नियोजित विपणन प्रयास, श्रम और निवेश की उच्च लागत, जोत भूमि का आकार छोटा होना, परिवार स्तर पर खेती का आकार छोटा होते जाना आदि को इन हस्तक्षेपों को पूरा करने के दौरान आने वाली मुख्य बाधाओं के रूप में पहचाना गया।

प्रारम्भ में, किसानों को अपने खेत व घर की वर्तमान स्थिति, फसलों, एकीकृत खेती के अवयव, जल स्रोतों, भूमि, मृदा के प्रकार, किये जा रहे निवेश और इस समय होने वाले लाभ/हानि को चिन्हित करने हेतु मानचित्रण बनाने में सक्षम बनाने की दृष्टि से खेत नियोजन करने में मदद की गयी थी। नारियल के विशिष्ट सन्दर्भ में फसल पैदावार, संसाधनों के पुनर्चक्रीकरण का स्तर, सलाहकार सेवाओं तक पहुंच, स्थानीय निकायों द्वारा दी जाने वाली सहायक योजनाएं, आने वाली चुनौतियों के साथ ही मूल्य संवर्धन के लिए संभावनाएं आदि पहलुओं को दस्तावेजित किया गया।

अभिसरण और एकीकरण

प्रति हेक्टेयर परिवारों की संख्या 4-10 के बीच थी, इसलिए तकनीकी प्रसार और अपनाने के लिए सामाजिक संस्थाओं के उद्देश्यपूर्ण जुड़ावों एवं अभिसरण की आवश्यकता थी। स्थानीय स्वशासन ने वार्ड सदस्यों द्वारा सभी 19 वार्डों में समाज को संगठित करने में समर्थन, भागीदारी और स्थानीय नेतृत्व का विस्तार किया। खाद्य सुरक्षा हस्तक्षेपों की दिशा में मनरेगा के साथ जुड़ाव था। पंचायत के तहत् पशु चिकित्सालय की पशु चिकित्सक डॉ0 माधुरी ने कुक्कुट पालन और पशुधन में हस्तक्षेप डिजाइन करने में प्रक्षेत्र स्तर की परियोजना विशेषज्ञता का लाभ लिया। स्थानीय स्वशासन के साथ सहयोग ने नियोजित और केन्द्रित हस्तक्षेपों की दिशा में कार्रवाई अनुसंधान को आगे बढ़ाया, दोहराया से बचाया और छोटे और सीमान्त किसानों के बीच तेजी से जागरूकता और परिणाम आधारित बड़े पैमाने पर गोद लेने के लिए सामाजिक और तकनीकी प्रयोग और नवाचार सामने आये। मनरेगा मजदूरों के साथ-साथ किसानों के रूप में महिला किसानों की उच्च दृश्यता वार्ड सदस्यों, कुदुम्बश्री के सीडीएस/एडीएस और संयुक्त देयता समूह ;जेएलजीद्ध के नेताओं के रूप में महिला नेतृत्व के माध्यम से स्थापित की जा सकती है।

निष्कर्ष तौर पर कहा जा सकता है कि, फार्मर फर्स्ट कार्यक्रम में श्रम, समय और ज्ञान का एकीकरण विशेषकर भूमि तक सीमित पहुंच रखने वाली महिला किसानों के लिए एक मूल्य संवर्धक नवाचार था। महिला किसानों के पास औसतन 0.04-0.06 हेक्टेयर भूमि होने के कारण उन्हें क्लस्टर/समूह के तौर पर संगठित करना आवश्यक था। इससे बाजार में बेचने योग्य अधिशेष, मोल-भाव करने की ताकत और उच्च दृश्यता को प्राप्त करने में महिला किसानों को सहायता मिली। इसे सार्वजनिक स्थानों ;मंदिर परिसर, सरकारी कार्यालयों आदिद्ध में आपसी सहमति और सहयोग से भूमि चकबन्दी के साथ-साथ व्यक्तिगत रूप से किसानों को न्यूनतम 2 एकड़ का खेत देने के माध्यम से प्राप्त किया गया। इस प्रकार, 250 हेक्टेयर परती भूमि का मूल्य संवर्धन कर उत्पादक बनाया गया।

विशिष्ट फसल और मूल्य संवर्धन के रूप में तिल का चयन

पंचायत में पानी की बचत और पोषण युक्त जलवायु अनुकूलित फसलों जैसे- रागी, दलहन, मक्का, सूरजमुखी एवं मूंगफली के साथ प्रयोग और सहभागी परिचय को फैसिलिटेट करने के माध्यम से कार्यक्रम की शुरूआत की गयी। 248 महिला स्वयं सहायता समूहों को शामिल करते हुए 19 वार्डों में सहभागी प्रयोग एवं मूल्यांकन के अन्तर्गत फसलों की 19 प्रजातियों को रखा गया। इसके बाद, किसानों, सामान्य जन एवं भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान – केन्द्रीय पौधरोपण फसल शोध संगठन एवं सम्बन्धित एजेन्सियां/संस्थानों के शोधकर्ताओं को शामिल करते हुए एक सामाजिक प्रक्रिया के तौर पर मूल्यांकन किया गया। सूरजमुखी का मूल्यांकन उपयुक्त नहीं था और इसे फिर नहीं संस्तुत किया गया।

कम संसाधनों की आवश्यकता, पोषण तत्वों, उच्च मांग, कीटों एवं व्याधियों का अत्यन्त कम प्रकोप होने के सन्दर्भ में तिल और रागी एक सर्वाधिक स्वीकार्य फसल के तौर पर उभरी। इसके अलावा, 250 हेक्टेयर क्षेत्र में व्यापक खेती ने कार्बन प्रच्छादन को सक्षम करने के लिए मिट्टी के पोषक तत्वों और फसल अवशेषों को जोड़ने में मदद की।

तिल इस ‘‘ओनाट्टुकरा मृदा क्षेत्र’’ की एक पारम्परिक फसल है जो मुख्य रूप से दोमट रेतीली है। परम्परागत रूप से इसमें धान के बाद दूसरी फसल के तौर पर धान की खेती की जाती है। परियोजना पूर्व के सर्वेक्षण प्रदर्शित करते हैं कि पंचायत में तिल ;जिसे शीघ्र ही जी आई फसल के तौर पर घोषित किया जायेगाद्ध और धान सर्वाधिक छोड़ी गयी फसलें हैं। इस प्रकार, ‘‘मूल्य संवर्धन प्रसार रणनीति’’ के तहत् तिल का पुनरूद्धार व कायाकल्प सर्वाधिक सफल मूल्य संवर्धन हस्तक्षेप के तौर पर रहा। वर्ष 2016 में केरल कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जारी की गयी उच्च उत्पादन देने वाली प्रजातियों ;कायमकुलम-1, थिलक, थिलथारा, थिलारानी एवं थिलोथमाद्ध का सहभागी मूल्यांकन प्रथम वर्ष का हस्तक्षेप था। वर्ष 2016 में, शुरूआती दौर में 2.04 एकड़ से प्रारम्भ करने के बाद, आच्छादित क्षेत्र में लगातार सुधार करते हुए आगे आने वाले वर्षाें में महिला समूहों ने इस क्षेत्र को बढ़ाकर 188 एकड़ कर दिया। 19 स्थानों में 68 समूहों द्वारा किये गये मूल्यांकन के आधार पर कायमकुलम-1 एवं थिलक प्रजाति को वरीयता दी गयी। मूल्यांकन से यह निकला कि, कायमकुलम में तेल की मात्रा 46-48 प्रतिशत और थिलक में 38 प्रतिशत है जबकि अन्य प्रजातियों में तेल की मात्रा बहुत ही कम थी। इन दोनों प्रजातियों में आघात सहन करने की क्षमता भी अधिक थी तथा फसल को नुकसान पहुंचाने वाली प्लाइओडी नामक बीमारी भी इन प्रजातियों में बहुत कम थी। इस प्रकार, महिला समूहों ने अपनी आवश्यकता और स्थानीय परिस्थिति के अनुसार फसल प्रजातियों के चयन की अपनी क्षमता का निर्माण किया।

नारियल उत्पादक समिति, वार्ड नं0 16, पथियूर पंचायत के अध्यक्ष, श्री सी0के0 उन्नीथन का कहना है कि ‘‘विशेषज्ञ आधारित यथोचित उपकरणों और मशीनों का चयन उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि श्रम की कमी और कम उत्पादकता से जूझ रही लघु एवं सीमान्त समुदायों के लिए आज की कृषि में परामर्श सेवाएं महत्वपूर्ण हैं।ों की आवश्यकता है। मशीनीकरण, आईसीटी और ज्ञान आधारित नवाचारों के माध्यम से कुशलतापूर्वक उत्पादकता बढ़ाने के लिए मूल्य सवंर्धित सेवाओं की आवश्यकता

‘‘उत्तम उत्पाद’’ के रूप में प्रतिवर्ष 5-8 मीट््िरक टन पारम्परिक तिल का उत्पादन किया जा रहा है। इसकी मांग रू0 250-300/किग्रा0 है। तिल को अच्छी तरह साफ करके पैक करने के बाद अपने पंचायत के साथ ही आस-पास के अन्य पंचायतों में बिक्री की जाती है। स्थानीय ब्राण्ड के रूप में तिल का तेल ‘‘पथियूर कृषक एलेन्ना’’ अर्थात ‘‘पथियूर किसानों का तिल का तेल’’ रू0 900-1000 प्रति लीटर की दर से बिक रहा है। एक युवा उद्यमी के लिए संचालित कार्यक्रम के अन्तर्गत तेल प्रेसिंग सुविधा ने एक संस्थागत व्यवस्था में तिल उपार्जन का मार्ग प्रशस्त किया है। तिल की खेती में महिला किसान स्थानीय विशेषज्ञों के तौर पर उभरी हैं। कटाई के बाद की व्यवस्था के साथ-साथ प्रसंस्करण व्यवस्थाओं ने महिला किसानों को अपने परिवार और समाज में आर्थिक योगदान देने में सक्षम बनाया है। वास्तव में एक ठोस मूल्य संवर्धन किसान से किसान तक उद्देश्यपूर्ण और प्रभावी ज्ञान प्रसार में किसानों को सक्षम बना रहा है।

‘‘कृषि डायरी’’ को व्यवस्थित रखने हेतु महिला किसानों को आंकड़े लेने, विकास चरणों, कीटों/ बीमारियों की अवधि, उपज, उत्पन्न समस्या आदि पर महिला किसानों को निर्देशित किया गया। व्हाट्स समूहों ने बड़े पैमाने पर अनुभवों को साझा करने, वैज्ञानिकों एवं साथी किसानों द्वारा समस्याओं के सुझाये गये समाधान को बताने एवं चित्रों, वीडियो, संदेशों व डिजिटल मीडिया के माध्यम से अपनी उपलब्धियों को प्रदर्शित करने में सक्षम बनाया। सभी पहलुओं पर विचार करते हुए सम्पूर्ण मूल्य संवर्धन प्रक्रिया को उनके द्वारा ही सामने लाया गया। सरल आईसीटी उपकरणों के उपयोग ने उन्हें अपने समय का बेहतर प्रबन्धन करने, तकनीकों का विस्तार बढ़ाने एवं फसलों का नुकसान कम करने के अतिरिक्त उन्हें पारस्परिक रूप सशक्त होने में सक्षम बनाया।

नारियल और अन्य उत्पाद – मूल्य संवर्धन

दैनिक जीवन, व्यवहार, पहनावा, सामाजिक सम्बन्धों, पारिस्थितिकी सम्मत आदि के सन्दर्भ में ग्रामीण जीवन काफी सरल है। समुदायों की पीढ़ियों से चले आ रहे अनुभवात्मक शिक्षा से उत्पन्न सरल नवाचारों के सन्दर्भ में सरलता को आसानी से समझा गया।

वर्ष 2019 में फार्मर प्रोड्यूसर कम्पनी का गठन एवं किसानों के बीच जमीनी स्तर पर सक्रिय रूप से काम करना एक प्रमुख उपलब्धि रही। किसानों से ताजा कृषि उत्पादों जैसे- कोपरा, हल्दी एवं कन्द की खरीद ने बहुत उत्साह उत्पन्न किया। यद्यपि कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा और फार्मर फर्स्ट प्रोग्राम तथा नाबार्ड के संयुक्त तत्वाधान में बने फार्मर प्रोड्यूसर कम्पनी लिमिटेड ने जिस तरीके से उनका समाधान किया, उसके कुछ प्रमुख बिन्दु नीचे दिये गये हैं।

नारियल, तिल और हल्दी को बाजार में बेचने के लिए उत्पादित करने के बाद मूल्य संवर्धन प्रारम्भ किया गया था। मूल्य संवर्धन उतना ही सरल हो सकता है, जितना सही समय पर कटाई करना। नारियल के सन्दर्भ में, प्रभावी विपणन के लिए, फल आने के सातवें महीने में उसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए। कम्पनी खरीद करते समय कोपरा की एकरूपता तथा सुखाने की गुणवत्ता को सुनिश्चित नहीं कर सकी। इस समस्या से निपटने के लिए फार्मर फर्स्ट प्रोग्राम ने रू0 3500-4000 प्रति पीस की लागत से कोपर माश्चर मीटर खरीद कर उसका उपयोग करने के माध्यम से हस्तक्षेप किया। गुणवत्तापूर्ण कोपरा के लिए नमी का स्तर 6 प्रतिशत सुनिश्चित करने के बाद ही खरीद प्रक्रिया पूरी की गयी। वे नमूने के रूप में एक कप कोपरा लेकर उसमें नाब डालकर एवं रीडिंग रिकार्ड करके नमी की मात्रा को सुनिश्चित कर सकते हैं।

बाद में, एफ एफ पी में नारियल तेल इकाईयां, दो विरजिन नारियल तेल एवं नारियल आधारित खाद्य उत्पाद इकाईयां, एक हल्दी उबालने, सुखाने और पीसने की इकाई स्थापित की गयी। वर्तमान में नारियल का विस्तार लगभग 25000 है। हल्दी में, हल्दी पाउडर के प्रसंस्करण में 3 टन ताजा हल्दी का इस्तेमाल किया गया। तिल और तिल के तेल का विपणन कर रू0 15-20 लाख प्रतिवर्ष आय अर्जन किया गया।

वर्ष 2020 में, फार्मर प्रोड्यूसर आर्गनाइजेशन ने पथियूर किसानों के ब्राण्ड पर ध्यान केन्द्रित किया। विरजिन नारियल तेल, हल्दी पाउडर, तिल का तेल, छाया में सुखाया गाय का गोबर एवं खेत की जैविक अवशेषों से बना वर्मी कम्पोस्ट, देशी गायों का घी और मक्खन आदि ब्राण्ड नामों से उत्पादों को बाजार में उतारा गया। एफ पी ओ के अन्तर्गत तैयार इन उत्पादों, रोपण सामग्रियों, गाय का गोबर, अन्य जैव निवेशों, वर्मी कम्पोस्ट आदि की बिक्री के लिए एक ग्रामीण ‘‘एग्रीमार्ट’’ खोला गया था। कोविड महामारी के दौरान मोबाइल फोन के माध्यम से खेत उत्पादों की खरीद और मांग के अनुसार लोगों के घरों तक आपूर्ति सुनिश्चित करने के माध्यम से एफपीओ एक छोटा सहयोग प्रदान करने की शुरूआत कर सकता है।

प्रमुख सीख यह मिली कि सरल अभ्यासों, सहयोग, समन्वय और अभिसरण तथा समुदाय की सघन सहभागिता सुनिश्चित कर मूल्य संवर्धन को प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही यह भी सीख मिली कि एक प्रमुख शोध संस्थान किस प्रकार सामाजिक नवाचारों को बढ़ावा दे सकता है। परियोजना संचालित करने के दौरान जो, चुनौतियां मुख्य रूप से सामने आयीं, वे थीं – नारियल के वृक्षों पर चढ़ाई करने वाले दक्ष लोगों की अत्यन्त कमी, कोविड स्थितियों में आवागमन का पूर्णतया बाधित होना, जलवायु परिवर्तन जनित असमय भारी वर्षा, कृषिगत भूमि का आवासीय भूमि में तेजी से परिवर्तन के कारण सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन- परिणामस्वरूप जल-निकास की समस्या एवं बिखराव का उत्पन्न होना। हालांकि, मोबाइल एवं आय सृजन के माध्यम से सक्रिय एवं निरन्तर बात-चीत के साथ सक्र्रिय कृषि हस्तक्षेप कोविड के दौरान आशा की एक किरण के रूप में रहे।

अनिता कुमारी पी


अनिता कुमारी पी
प्रधान वैज्ञानिक ;कृषिगत प्रसारद्ध
आईसीएआर केन्द्रीय पौधरोपण फसल शोध संस्थान ;सीपीसीआरआईद्ध
कायमकुलम, केरल - 690 533
ई-मेल: anithacpcri@gmail.com

Source: Value Addition- LEISA India, Vol. 23, No. 2, June 2021

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