घरेलू फसलों से एक शैक्षणिक परिसर में खाद्य सुरक्षा लाना

Updated on September 2, 2023

खाद्य उत्पादन के लिए शहरी स्थानों का उपयोग नवोन्वेषी ढंग से किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में ये स्थान शहरी खाद्य पारिस्थितिकी प्रणाली और भूमि के साथ अपने सम्बन्धों के बारे में पुनर्विचार करने हेतु शहरी नागरिकों की मदद कर सकते हैं। शैक्षणिक संस्थान पाठ्यक्रमों के साथ-साथ बाहरी गतिविधियों के एक भाग के तौर पर खाद्य सुरक्षा को एकीकृत कर सकते हैं। आई0आई0टी0 गांधीनगर का जैविक खेत शहरी और उप- शहरी स्थानों में समुदाय संचालित और स्थानीय सहायता प्राप्त खेती की संभावनाओं का एक प्रमाण है।


खेत में टहलते हुए शांतु पिंडोरिया बोली, ‘‘ये कोहलर्बी (गांठ गोभी) की सब्ज़ियां हैं, ये मेथी हैं, इनके बीच में ये पालक और धनिया हैं। इन लाल गाजरों को देखिये, वो शलजम है और वो चुकन्दर है……’’ यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि शांतु पिंडोरिया खेत के हर पौधे के बारे में जानती हैं। जब वह खेत के चारों तरफ घूमते हुए खेत में मौजूद हर एक चीज के बारे में बता रही थीं तो मैं उनके पीछे टहल रही थी।

आई0आई0टी0 गांधीनगर परिसर में खाद्य पदार्थ उगाने वाली शांतु से हमारा परिचय एक ईमेल के जरिये हुआ था। हम उस क्षेत्र को देखने के लिए उत्सुक थे। हम लोग वहां शनिवार को पहुंचे थे। वह सर्दियों की धूप वाली सुबह थी। जब सड़क के किनारे प्राकृतिक रूप से उगने वाले बहुत से पौधों की पत्तियां भूरी हो गयी थीं, वैसे समय में फलों के पेड़ों और फूलों की झाड़ियों के बीच हरी, पत्तेदार सब्ज़ियों की कतारें देखकर हम आश्चर्यचकित रह गये। सहजन के पौधे मुलायम सहजन से लदे हुए थे, इसके फूलों के बीच मधुमक्खियां और पक्षी भिनभिना रहे थे। मैं जानना चाहता था कि इस जैविक फार्म की शुरूआत कैसे हुई।

मामूली शुरूआत
सुश्री शांतु पिंडोरिया के पास खेती का कोई औपचारिक शैक्षणिक अनुभव नहीं था। आई0आई0टी0 गांधीनगर के एक संकाय सदस्य के पत्नी के रूप में, वह हमेशा सामाजिक उद्यमों एवं बाहरी गतिविधियों में रूचि लेती थीं। वर्ष 2016 में, जब परिसर का निर्माण किया जा रहा था, तो तत्कालीन निदेशक परिसर में खाद्य पौधों के साथ बगीचे की कुछ जगह रखने के इच्छुक थे। कई अनौपचारिक चर्चाएं हुईं और अन्त में शांतु से छोटे पैमाने पर पहल करने का अनुरोध किया गया।

शांतु पिंडोरिया कहती हैं, ‘‘यह एक अनौपचारिक बात-चीत थी, क्योंकि संकाय के कुछ सदस्यों को पता था कि मैं गृहवाटिका, फूलों की बागवानी आदि की शौकीन हूं। उन्होंने मुझसे छोटे स्तर पर कुछ करने के लिए कहा। इस प्रकार, 30 फीट गुणा 30 फीट के छोटे से परिक्षेत्र में इसे प्रारम्भ किया गया।’’ शांतु ने प्रारम्भ में बैगन, मिर्च और टमाटर के पौधों को उगाया, जो स्थानीय अर्धशुष्क और अपेक्षाकृत गर्म जलवायु को सहन कर सकते थे। उन्होंने इस बाबत आनलाइन उपलब्ध बहुत से वीडियो एवं ट्यूटोरियल्स को देखा। खेती तकनीकों, जैविक निवेशों, बीज की गुणवत्ता और अन्य सामग्रियों के बारे में सीखने के लिए उन्होंने स्थानीय स्तर पर आयोजित किसान मेलों का भी भ्रमण किया, जिनके बारे में पहले वे सोचती भी नहीं थीं। वे याद करती हैं कि क्षेत्र के आस-पास बहुत कम ऐसे किसान थे, जो जैविक खेती करते थे। इसलिए, वह पढ़ने और दूसरे राज्यों के विशेषज्ञ अभ्यासकर्ताओं एवं प्रशिक्षकों से प्राप्त सलाह के ऊपर निर्भर रहीं।

संस्थान में खेती की शुरूआत वर्ष 2016 में की गयी। निर्माण मलबे को साफ करने, भूमि को समतल करने और मिट्टी तैयार करने के लिए प्रारम्भ में संस्थान ने उन्हें कुछ धन प्रदान किया। विभिन्न प्रकार की गतिविधियों जैसे- जुताई, बुवाई, रोपाई, निराई-गुड़ाई और कटाई आदि में उनकी सहायता के लिए संस्थान ने स्थानीय नर्सरियों से कुछ सहायकों को भी काम पर रखा।

शांतु खेत को यथासंभव स्थाई बनाना चाहती हैं। इसलिए उन्होंने खेत पर उपलब्ध बहुत सी सामग्रियों से अधिकांश निवेश स्वयं तैयार करने का निश्चय किया। उन्होंने बताया, ‘‘हम इसी क्षेत्र के पौधों का उपयोग कर रहे हैं और कीट नियंत्रण के लिए दवाएं बना रहे हैं। अधिकांशतः हम जीवाम्रुत एवं दशपर्णी का उपयोग करते हैं। हमने बीजाम्रुत भी बनाया है (देखें बाक्स 1)। यह अपशिष्ट खाद से तैयार तरल पदार्थ है। हम उसका उपयोग छिड़काव के लिए करते हैं। पौधों को पोषण और प्रोटीन देने के लिए हम जीवाम्रुत का उपयोग करते हैं, कीटों को भगाने के लिए दशपर्णी का और कवक के लिए हम छाछ का उपयोग करते हैं। फल आने के लिए, हम दूध और गुण के मिश्रण का छिड़काव करते हैं और तीन साल में एक बार जमीन पर गाय के सूखे गोबर की एक परत बिछाते हैं। केवल यही बड़ा खर्च है।’’

पहले 6 माह में उन्होंने खेत पर विभिन्न गतिविधियों के लिए लगभग रू0 40,000.00 व्यय किये। परिसर के अन्दर रहने वाले स्टाफ सदस्यों को रू0 3,000.00-4,000.00 की सब्ज़ियां बेची गयीं।

भोजन उगाना, समुदाय बनाना
अपनी साधारण सी शुरूआत के साथ, अब वर्ष 2022 में यह खेत लगभग आठ एकड़ में विस्तारित है। चार एकड़ जमीन पर सब्ज़ियां एवं औषधीय पौधों की खेती होती है, जबकि बाकी का उपयोग फलदार वृक्षों को उगाने के लिए किया जा रहा है। खेती करने और उसकी देख-भाल करने के लिए शांतु सात सहायकों के साथ काम करती हैं।

शांतू जमीन का बेहतर उपयोग करने के लिए वृक्षों के बीच में कम अवधि के पौधे लगाते हुए मिश्रित फसल तकनीक के साथ बहुस्तरीय फसल पद्धति का उपयोग करती हैं। वे कहती हैं, ‘‘हमारे पास आम, कस्टर्ड सेब, बैगनी बेर, चीकू, मौसम्बी, संतरा, जामुन, ड््रैगन फल, बेर, नीबू, एवाकैडो, ये सभी पेड़ हैं, जो हमने लगाये हैं। हमारे पास कुल 1400 फलदार वृक्ष हैं।’’

प्राप्त उपज को परिसर के अन्दर सप्ताह में तीन दिन एक स्टाल लगाकर बेचा जाता है। इसके अलावा, खाली महीनों के दौरान आय प्राप्त करने के लिए वे परिसर के अन्दर पुराने वृक्षों से प्राप्त फलों से कैण्डी बनाकर तथा अचार आदि मूल्य सवंर्धित उत्पाद तैयार कर उसे भी बेचती हैं। वर्तमान मंे, परिसर के अन्दर तैयार खेत से रू0 25,000.00-30,000.00 प्रतिमाह आय प्राप्त करती हैं।

उनके अनुसार, खेत एक समुदाय सहायतित स्थान के रूप में आकार ले चुका है जिसमें कई लोग छोटे बच्चों के साथ अनौपचारिक रूप से स्वयंसेवा कर रहे हैं। संस्थान ने अपने पहले वर्ष के छात्रों के लिए जागरूकता सत्र और सामुदायिक सेवा के हिस्से के रूप में जगह आवंटित करके इसका उपयोग भी किया है। इससे छात्रों को खेत के बारे में जानने, उनका भोजन कहां से आता है इसके बारे में जानने और ताजी फसल का आनन्द लेने में मदद मिली है।

महामारी के समय एक अवसर
शांतु की इस पहल ने अन्य निवासियों के बीच बहुत रूचि जगाई है। उनमें से कुछ ने खाद बनाना और कुछ ने अपने घर पर खाद्य पौधों को लगाना प्रारम्भ कर दिया है। हालांकि, शांतु ने यह महसूस किया गया कि घर पर उगाये खाद्य पदार्थों का वास्तविक महत्व लोगों को कोरोना महामारी के दौरान ही महसूस हुआ।

शांतु कहती हैं, ‘‘जब मैंने शुरूआत की तो मेरे एक दोस्त ने मुझसे खाद बनाने की विधि, पौध कैसे उगायें, कहां से अच्छा बीज प्राप्त करें आदि के बारे में पूछा। मेरे कुछ दोस्तों ने लौकी और तुरई आदि लतादार सब्ज़ियों तथा कुछ ने अन्य दूसरी सब्ज़ियों को उगाना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने अपनी रसोई से निकलने वाले अपशिष्टों से स्वयं खाद बनाना प्रारम्भ किया। इस तरीके से, परिसर में लगभग 90 छोटी-छोटी गृहवाटिका हैं। लॉकडाउन के दौरान, हमने बीज और खाद वितरित किये और परिसर में जहां-जहां मिट्टी थी, प्रत्येक जगह कुछ न कुछ उग रहा था और कोई न कोई उसकी देख-भाल कर रहा था। उस समय हमारे पास कोई भी सहायक नहीं था और बहुत से लोग देख-भाल करने के लिए स्वेच्छा से आगे आये थे। जहां तक सब्ज़ियों का सवाल था, हमारा लक्ष्य आत्मनिर्भर बनना था इसलिए हमारा प्रयास सराहनीय रहा। सबने मिलकर कुछ न कुछ उगाना सीखा।’’

परिसर में बहुत से स्थानों पर खाद्य पदार्थ उगाये जाते हैं और उनसे प्राप्त उत्पादों को उन क्षेत्रों में काम करने वाले स्वयंसेवकों के बीच में वितरित कर दिया जाता है। प्रत्यक्ष अनुभव और कृषि के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के साथ निरन्तर बात-चीत करने के माध्यम से समुदाय में मौसमी खाद्य पदार्थों के उपभोग की सराहना और समझ बढ़ी है।

प्रतिदिन कुछ न कुछ सीखना
इस कार्य के रास्ते में बहुत सी चुनौतियां आयीं, विशेषकर बन्दरों, जंगली सुअरों एवं चूहों द्वारा फसल नष्ट कर देना बड़ी समस्या थी, लेकिन शांतु एवं उनकी टीम ने खेत के चारों तरफ खाईंया खोदने तथा खेत की गहन निगरानी के माध्यम से इन चुनौतियों को प्रबन्धित करना और स्वीकार करना सीख लिया है। जब हम बात कर रहे थे, उस समय टमाटर खा रहे एक लंगूर को दूर भगाते हुए शांतु हंसते हुए बताती हैं, ‘‘यह जमीन पहले वन विभाग की थी, इसलिए हमें लगता है कि ये जानवर भी इन फसलों में अपना हिस्सा लेने के हकदार हैं।’’ वह आगे कहती हैं, ‘‘ चाहे कोई कीट हो या फल लगना, व्याधि लगना हो या फिर फूल आना.. प्रत्येक दिन, हमें खेत से कुछ नया सीखने या खोजने का अवसर मिलता है। मुझे लगता है कि खेती पूरी तरह से अवलोकन करने और धैर्य रखने के बारे में है।’’ शांतु के पास खेत को और विस्तारित करने की योजना है और आई0आई0टी0 गांधीनगर के छात्र मेस को पूरी तरह से ताजी सब्ज़ियां उपलब्ध कराने में समक्ष हो जाना उनका अन्तिम लक्ष्य है।

खेत में पारस्परिक निर्भरता का अनुभव करना
ऐसे समृद्ध पारिस्थितिक प्रणाली समीपवर्ती समुदाय के लिए जीवित कक्षाओं का हिस्सा हो सकते हैं, जो उनके शरीर को पोषण प्रदान करते हुए प्रणालीगत सोच में अमूल्य सीख देते हैं। खाने योग्य खाद्य बागीचा स्थानीय जैव विविधता के लिए हॉटस्पॉट हैं और परागणकों, कीट-शिकार सम्बन्धों, मृदा पारिस्थितिकी तंत्र और पौधों के स्वास्थ्य व जड़ सूक्ष्मजीव समुदाय की परस्पर निर्भरता की अनुभव आधारित समझ प्रदान करते हैं। संकेत करने पर शांतु ने गोभी का एक फूल सहित पौधा उखाड़ लिया और मुझे पौधे को सहारा देने वाली बहुत सी मजबूत जड़ें दिखाईं। वह कहती हैं, ‘‘इनका स्वाद व स्वास्थ्य अलग नहीं है। इन सब्ज़ियों को खाने से मुझे अपने बचपन की याद आती है जब सब कुछ जैविक खेती के माध्यम से उगाया जाता था। बाजार की सब्ज़ियों मंे अब वो स्वाद कहां मिलता है? मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चे इस स्वाद का अनुभव करें और याद रखें।’’ परिसर में बहुत से बच्चे खेत में नियमित रूप से आते हैं और शांतु के अनुसार, खाद्य पौधांे को पहली बार देखने, इसे उगाने में लगने वाले समय और प्रयासों को देखने के बाद वे भोजन को बरबाद न करने के बारे में बहुत जागरूक हो गये हैं। वे खेत में उगने वाली चीजों को स्वयं आजमाने के लिए उत्सुक भी रहते हैं और इसीलिए कभी-कभी खाना पकाने का सत्र भी आयोजित किया जाता है।

प्रत्यक्ष अनुभव और कृषि के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के साथ निरन्तर बात-चीत करने के माध्यम से समुदाय में मौसमी खाद्य पदार्थों के उपभोग की सराहना और समझ बढ़ी है।

इसी तरह के पहल को शुरू करने के लिए सीख बनाना
* आई0आई0टी0 गांधीनगर का जैविक खेत शहरी और शहरी-उपान्त क्षेत्रों में समुदाय संचालित और स्थानीय रूप से सहायतित खेती की संभावनाओं का एक प्रमाण है। सुरक्षित स्थानों की उपलब्धता, जल तक पहुंच और एक तैयार उपभोक्ता समुदाय होने के कारण शैक्षणिक संस्थान खाद्य बागीचा तैयार करने हेतु एक आउटरीच हब और प्रायोगिक प्रक्षेत्र के रूप में कार्य करने हेतु विशिष्ट रूप से उपयुक्त हैं। यह लोगों को प्रबन्धन करने एवं भूमि से लगाव रखने के प्रति आवश्यकतानुसार अवसर प्रदान कर सकता है तथा लोगों को अपने आस-पास के वातावरण में खाद्य उगाने की क्षमता विकसित करने हेतु सहयोग प्रदान कर सकता है। खेत का क्षेत्र स्वयं जैवविविधता के लिए केन्द्रबिन्दु हो सकता है और बृहद पारिस्थितिकी प्रणाली को बेहतर बनाने में योगदान दे सकता है। शांतु के अनुभवों को सुनने के बाद, हमें निम्न बिन्दु विचारणीय लगे –

* प्रशासनिक सहयोग की आवश्यकता: इस तरह के विचार के लिए संस्थागत अधिकारियों के स्पष्ट सहयोग की आवश्यकता होती है। एक बार जब यह प्रदान किया गया तो खेत बनाना प्रारम्भ करने के लिए प्रारम्भिक स्तर पर लगने वाले वित्तीय सहयोग को जुटाने और आवश्यक प्रशासनिक पूर्ति करने में आसानी हुई।

*  प्रारम्भ छोटे से करें और परिणामों पर निर्माण करें: एक सीमित स्थान पर शुरूआत करने के विचार ने उन्हें फसल के सन्दर्भ में कुछ शुरूआती ठोस परिणाम दिखाने और विस्तार करने के लिए आवश्यक दक्षता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। सीमित संसाधनों के साथ तुरन्त एक बड़े क्षेत्र में काम शुरू करना उनके लिए डराने वाला और कठिन रहा होगा और समुदाय के लिए यह एक काल्पनिक विचार था।

* वित्तीय स्थाईत्व के लिए नियोजन: स्थानीय ग्राहकों की प्राथमिकताओं को समझकर उचित मूल्य पर उपज बेचने से खेत चलाने की लागत को निकालने में मदद मिली। केन्द्र सरकार के पैमाने के अनुसार भुगतान किये जाने वाले श्रमिकों के वेतन को छोड़कर खेत को बनाये रखने हेतु अन्य सभी लागतें उपज की बिक्री से ही पूरी की जाती हैं।

* प्रयोग के लिए कुछ जगह बनाना: प्रति वर्ष नई फसलें, तरीकों में विविधता, खेती के इनपुट आदि ने उन्हें स्थाई व्यवसाय प्राप्त करने हेतु स्थानीय मौसम, भौगोलिक परिस्थितियों एवं पर्याप्त बिक्री के लिए अनुकूलन करते हुए नया ज्ञान प्राप्त करने में मदद की है।

* सामूहिक स्वामित्व बनाना: परिसर के अन्दर रहने वाले लोगों को खेत पर स्वैच्छिक ढंग से कार्य करने का अवसर प्रदान करने से लोग खेत से सक्रिय रूप से जुड़े और विभिन्न तरीकों से पहल करने में सहायता मिली। परिसर के निवासी केवल निष्क्रिय ग्राहक नहीं हैं, वरन् फसल की बिक्री में सहयोग करने, फीडबैक देने, अन्य राज्यों से बीज लाने, खेत पर छोटे कार्याें में सहायता देने आदि के माध्यम से इस पहल में उनकी हिस्सेदारी है।

* दुहराव के माध्यम से सीखना और फीडबैक: पौधे एवं उनके विकास में योगदान देने वाली स्थितियों के गहन अवलोकन करने के माध्यम से निरन्तर सीखने और फीडबैक के परिणामस्वरूप खेत का विकास हुआ है। ऐसी पहल को बनाये रखने के लिए इस सतत् प्रक्रिया को समझना महत्वपूर्ण है।

* ऐसे शहरी कृषि सामुदायिक स्थान कई उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं – वे ताज़ा भोजन तक लोगों की पहंुच बनाते हैं और बच्चों व वयस्कों को अपने हाथ में मिट्टी लगाने का अवसर प्रदान करने के साथ ही हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को बनाये रखने वाले बहुत बारीक संतुलन की प्रत्यक्ष समझ बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बीज से लेकर खेत से मेज तक, आज भोजन हम तक कैसे पहुंचता है, यह प्राकृतिक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अर्थशास्त्र और व्यवसाय को एकीकृत करने वाला एक सूक्ष्म पाठ है। इस प्रकार शहरी खेतों को हमारे सामुदायिक स्थानों और शैक्षणिक पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में शामिल करने के तरीके खोजना एक सार्थक प्रयास है।

आभार
आई0आई0टी0 गांधीनगर परिसर में स्थापित खेत के साथ लेखकों का सम्बन्ध स्थापित करने हेतु लेखकगण डॉ0 शर्मिष्ठा मजूमदार एवं डॉ0 अर्निबान दासगुप्ता का आभार व्यक्त करते हैं।

देबोरा दत्ता, अमृता बी हाज़रा


देबोरा दत्ता
वरिष्ठ रिसर्च फेलो
लिविंग फ्राम इनकम्स प्रोजेक्ट
ग्रामीण प्रबन्धन संस्थान,
आनन्द - 388 001 गुजरात
ई-मेल: deborah@irma.ac.in

अमृता बी हाज़रा
सहायक प्राध्यापक
रसायन विभाग, जीव विज्ञान सम्ब) संकाय
जल अनुसंधान केन्द्र,
भारतीय विज्ञान शिक्षण एवं शोध संस्थान, पुणे
डॉ0 होमी भाभा मार्ग, पुणे - 411 008
म्हाराष्ट््र, भारत
ई-मेल: amrita@iiserpune.ac.in

Source: Agriculture, LEISA India, Vol.24, No.1, March, 2022

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