गौ-मूत्र के साथ औषधीय पौधों का इस्तेमाल कर जैव कीट विकर्षक: पौधों, मानव एवं पर्यावरण स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त

Updated on December 3, 2021

फसलांे में लगने वाली लागत में कीटनाशकों पर होने वाला व्यय एक प्रमुख मद है, क्योंकि फसलों पर कीटों एवं ब्याधियों का प्रकोप अधिक होता है। बदलती जलवायुविक परिस्थितियों में यह प्रकोप और अधिक होने लगा है और किसान अपनी फसल को बचाने के लिए, अधिक मुनाफा कमाने के लिए रसायनिक कीटनाशकों का अन्धाधुन्ध प्रयोग करते हैं। इससे एक तरफ तो पौधों को नुकसान होता है, तो दूसरी तरफ उसका जाने-अनजाने उपयोग करने वाले पशु, मानव एवं पर्यावरण सभी के स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है। इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के कोर सपोर्ट परियोजना ;सीड डिवीजनद्ध के सहयोग से गोरखपुर एन्वायरन्मेण्टल एक्शन ग्रुप ने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर एवं बिहार के पश्चिमी चम्पारण जिले में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों से बनने वाले जैव कीट विकर्षक पर व्यापक शोध एवं उपयोग करके इसकी उपयोगिता को सिद्ध किया है।


रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का मानव स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी प्रणाली पर व्यापक दुष्प्रभाव पड़ता है। विकासशील देशों जैसे-भारत, नेपाल आदि में बढ़ती जनसंख्या की खाद्य जरूरतांे को पूरा करने के लिए फसलों एवं सब्ज़ियों का उच्च उत्पादन लेने हेतु किसान अत्यधिक मात्रा में रसायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। डीडीटी, आर्गेनो-फासफोरस, कार्बामेट जैसे कीटनाशकों पर पूर्व में किये गये एक अध्ययन से स्पष्ट पता चलता है कि मानव स्वास्थ्य पर इनके नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं और मनुष्य इण्डोक्राइन, प्रजनन सम्बन्धी विकार एवं अन्य बीमारियों से ग्रसित हो जाता है और उसका जोखिम बढ़ जाता है। इन रसायनिक कीटनाशकों का दुष्प्रभाव मानव के साथ-साथ पशुओं पर भी पड़ता है। भोजन एवं चारे के माध्यम से इन रसायनों को ग्रहण करने के साथ ही ये रसायन हवा में घुलकर उसे भी प्रदूषित कर देते हैं, जिससे लोगों को श्वांस सम्बन्धी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। यही नहीं इन रसायनिक कीटनाशकों का अधिक समय तक प्रयोग करने से जल एवं मृदा प्रदूषण भी होता है और मिट्टी में मौजूद खेती के लिए आवश्यक एवं महत्वपूर्ण सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।

रसायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से होने वाले दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इस बात की आवश्यकता महसूस की गयी कि किसानों को इस बात के लिए तैयार किया जाये कि वे पर्यावरणसम्मत वैकल्पिक कीटनाशक तैयार कर उसका उपयोग करें। इस हेतु उन्हें स्थानीय स्तर पर उपलब्ध औषधीय पौधों की पत्तियों जैसे- नीम, भांग, धतूर, मदार, मेउड़ी व कनेर की पत्तियों, लहसुन का पेस्ट तथा गौमूत्र का उपयोग कर जैव कीट विकर्षक तैयार करने के उपर प्रशिक्षित किया गया एवं तैयार उत्पाद का विभिन्न प्रकार की सब्ज़ियों पर उपयोग कर प्रभावों को जांचा गया।

मुख्य शब्द
जैविक, कीट, विकर्षक, औषधीय पौधे, गौमूत्र, प्रभाव, स्वास्थ्य, पर्यावरण

अध्ययन क्षेत्र
जैव कीट विकर्षक का यह तुलनात्मक अध्ययन डी0एस0टी0 कोर सपोर्ट परियोजना के अन्तर्गत आच्छादित गोरखपुर जनपद के दो विकासखण्डों- कैम्पियरगंज एवं जंगल कौड़िया के क्रमशः 5 एवं 8 गांवों में किया गया।

इन दो विकासखण्डों का चयन करने के पीछे प्रमुख कारण यह था कि ये दोनों विकासखण्ड और उनके अन्तर्गत चयन किये गये गांव बाढ़ प्रभावित हैं और यहां पर सब्ज़ियों की खेती बहुतायत में होती है। इसके साथ ही ये दोनांे विकासखण्ड जनपद में कीटनाशकों का सर्वाधिक प्रयोग करने वाले विकासखण्डों में शामिल हैं। डी0एस0टी0 कोर सपोर्ट परियोजना के अन्तर्गत इन क्षेत्रों का चयन करने के बाद किसानों के साथ बात-चीत एवं चर्चा में यह निकलकर आया कि यहां पर किसान सब्ज़ियों में लगने वाले विभिन्न कीटों की समस्या से निपटने के लिए लगातार रसायनिक कीटनाशकों का व्यापक प्रयोग कर रहे हैं, जिससे एक तरफ तो मानव, पशु स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है, तो वहीं दूसरी तरफ इनकी खेती की लागत भी बढ़ती जा रही है।

मटका जैव कीट विकर्षक तैयार करने की विधि
स्थानीय स्तर पर आसानी से उपलब्ध होने वाली कुछ चुनिन्दा औषधीय पौधों की पत्तियों एवं गौ-मूत्र के मिश्रण से यह जैव कीट विकर्षक तैयार किया जाता है। विभिन्न सामग्रियों की मात्रा निम्न तालिका सं0 2 में दी जा रही है-

तालिका सं0 2: जैव कीट विकर्षक

क्रमांक सामग्री मात्रा
1 नीम की पत्ती (Azadirachta Indicia) 400 ग्राम
2 धतूरा की पत्ती (Azadirachta Indicia) 250 ग्राम
3 कनेर की पत्ती (Cascabela thevetia) 400 ग्राम
4 मदार की पत्ती (Calotropis gigantean) 400 ग्राम
5 भांग की पत्ती (Cannabis indicia) 300 ग्राम
6 लहसुन ;तोड़ा हुआ (Cascabela thevetia) 400 ग्राम
7 गौ मूत्र 8 लीटर
8 पानी 2 लीटर

उपरोक्त सभी सामग्रियों को एक 12 लीटर की क्षमता वाले मटके में भर कर उसे किसी लकड़ी की सहायता से अच्छी तरह मिला देंगे, उसके बाद मटका के मुंह को सूती कपड़े से बांधकर छायादार स्थान पर रख देंगे। 22 दिनों में यह जैव कीट विकर्षक तैयार हो जाता है।

नवाचार एवं तुलनात्मक फायदे
* स्थानीय स्तर पर सभी अवयव प्राप्त हो जाते हैं।
* लागत शून्य के बराबर है।
* पर्यावरण, स्वास्थ्य व मृदा के लिए कोई कुप्रभाव नहीं है।
* यह गतिविधि ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम का सहयोग करती है।
* इसको महिलाएं भी आसानी से बना लेती हैं।
* इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं है।
* किसानों के मित्र कीटों का नुकसान नहीं होता है।
* सभी फसल की ऋतुओं में बनाया जा सकता है।
* इसके छिड़काव के बाद सब्ज़ियों की विपणन व्यवस्था प्रभावित नहीं होती है।

जैव कीट विकर्षक का अध्ययन
तैयार कीट विकर्षक का परीक्षण सीधे खेत पर किया गया। इस हेतु पहली बार लौकी ;स्ंहमदंतपं ेपबमतंतपं ;ठवजजसम हवनतकद्धद्ध, भिण्डी ;।इमसउवेबीने मेबनसमदजने ;स्ंकपमे ष्पिदहमतद्धद्ध, बैगन ;ैवसंदनउ उमसवदहमदं ;ठतपदरंसद्धद्ध, सरसो ;ठतंेेपबं बंउचमेजतपे ;डनेजंतकद्धद्ध, मक्का र्;पं उंले ;डंप्रमद्धद्ध एवं धान ;व्तल्रं ेंजपअं ;चंककलद्धद्ध के 50 पौधों ;तालिका 3द्ध तथा बाद में 100 ऐसे पौधों ;तालिका 4द्ध को चुना गया, जिन पर सूंडी, फलीछेदक, फलमक्खी, माहो, टिड्डा, गन्धी कीट, मेज इयर वार्म और सैनिक कीटों का प्रकोप था। इन चुने हुए पौधों पर एक लीटर कीट विकर्षक में 10 लीटर पानी मिलाकर कीड़ों से बचाव हेतु उन पर छिड़काव किया गया। यह छिड़काव 7 व 15 दिन के अन्तराल पर शाम के समय किया गया। इसके साथ ही प्रत्येक बार बिना छिड़काव किये गये पौधों का भी अध्ययन किया गया। यह पाया गया कि छिड़काव के बाद पौधों के उपर ये सभी कीट नहीं लग रहे हैं।

तालिका- 3: 50 पौधों पर उपचार/अध्ययन

 

उपचार इकाई सूंड़ी फलीछेदक पत्ती काटने वाले कीट मेज इयर वार्म टिड्डा सैनिक कीट
प्रयोग से पहले 50 पौधा 03 12 03 05 14 04
प्रयोग के 7 दिन बाद 50 पौधा 02 08 01 02 05 01
प्रयोग के 14 दिन बाद 50 पौधा 01 02 00 01 00 01
नियन्त्रण प्रतिशत में 67 83 100 80 100 75

 

उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि पत्ती काटने वाले कीटों एवं टिड्डा पर इस जैव कीट विकर्षक का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है और यदि नियमित प्रयोग किया जाये तो इनको रोका जा सकता है। इसका सबसे कम प्रभाव सूंड़ी पर पड़ता है।

तालिका- 3: 100 पौधों पर उपचार/अध्ययन

उपचार इकाई सूंड़ी फलीछेदक पत्ती काटने वाले कीट मेज इयर वार्म टिड्डा सैनिक कीट
प्रयोग से पहले 100 पौधा 20 08 11 50 10 25
प्रयोग के 7 दिन बाद 100 पौधा 15 06 08 22 07 13
प्रयोग के 14 दिन बाद 100 पौधा 10 03 05 18 03 03
नियन्त्रण प्रतिशत में 50 63 54 64 70 88

 

इस अध्ययन के दौरान पाया गया कि इस कीट विकर्षक का सर्वाधिक प्रभाव गन्धी कीटों पर पड़ा।

गुणवत्ता का आकलन
तैयार जैव कीट विकर्षक की गुणवत्ता तथा पौधों के स्वास्थ्य पर इनका प्रभाव जानने के लिए दो महत्वपूर्ण बिन्दुओं -‘‘क्लोरोफिल कन्टेण्ट एवं नाइट््रेट रिडक्टेस एन्जाईम की गतिविधि’’ को जानने के लिए प्रयोगशाला में जांच की गयी। इसके अन्तर्गत दो मुख्य फसलों- लौकी और बैगन को लेकर 10 दिन और 20 दिन के बाद उपचार किया गया। जांच के परिणाम को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत देखा जा सकता है-
* पत्तियों में क्लोरोफिल की मात्रा:
प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के लिए क्लोरोफिल एक महत्वपूर्ण अवयव है। इसके माध्यम से पौधे प्रकाश से उर्जा प्राप्त करते हैं। क्लोरोफिल की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए मैकलाचलेन एवं जालिक ;1963द्ध तथा रिचा एवं अन्य ;2016द्ध द्वारा सुझाई गयी पद्धति का इस्तेमाल किया गया था। पाया गया कि पौधों की पत्तियों में क्लोरोफिल की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध है।
* नाइट््रेट रिडक्टेस एन्जाईम की गतिविधि का आकलन
पौधो के लिए नाईट््रोजन एक अन्य महत्वपूर्ण आवश्यकता है, जिससे पौधे मृदा से नाइट््रेट के रूप में ग्रहण करते हैं। नाइट््रेट रिडक्टेस एन्जाइम का आकलन ताजा पत्तियों में किया गया था। इसका आकलन करते समय स्ट््रीटर एवं बोस्लर, 1972 तथा श्रीवास्तव, 1990 द्वारा सुझाये गये नियमों का पालन किया गया था।
* एण्टीफंगल गतिविधि
तैयार जैव कीट विकर्षक एण्टीफंगल के रूप में भी कार्य करता है। पैथाजेन के सापेक्ष विट््रो जांच के द्वारा इसने 100 प्रतिशत फंगीसाइडल क्रिया को प्रदर्शित किया। विवो प्रक्षेत्र जांच के दौरान प्रयोग किये गये पौधों पर पैथाजेन को नहीं देखा गया।

विश्लेषणः
तालिका सं0 3 एवं 4 में दी गयी सूचनाओं के आधार पर विश्लेषण करने पर स्पष्ट पता चलता है कि लौकीद्ध, भिण्डी, बैगन, सरसो, मक्का एवं धान में इस जैव कीट विकर्षक के 7 एवं 14 दिन के अन्तराल पर प्रयोग करने पर 50 पौधों पर किये गये परीक्षण में सूंडी को 67 प्रतिशत, फलमक्खी को 83 प्रतिशत, मेज इयर वार्म को 80 प्रतिशत तथा सैनिक कीटों को 70 प्रतिशत तक नियन्त्रित किया गया जबकि इस कीट विकर्षक के प्रयोग से पत्ती काटने वाले कीटों एवं टिड्डा को शत-प्रतिशत नियन्त्रित किया गया। इसी प्रकार 100 पौधों की इकाई वाले प्रक्षेत्र में इस जैव कीट विकर्षक का 7 एवं 14 दिन के अन्तराल पर प्रयोग करने पर सूंड़ी को 50 प्रतिशत, फलीछेदक को 63 प्रतिशत, फलमक्खी को 54 प्रतिशत, माहो को 64 प्रतिशत, टिड्डा को 70 प्रतिशत एवं गन्धी कीट को 88 प्रतिशत तक नियन्त्रित किया जा गया।

इस तैयार जैव कीट विकर्षक के परिणाम यह प्रदर्शित करते हैं कि कुछ निश्चित पौधों की पत्तियों, गौमूत्र एवं लहसुन से तैयार यह तरल पदार्थ कीटों को भगाने के लिए उपयुक्त है। इसका पौधों के स्वास्थ्य एवं मृदा में उपस्थित जीवाश्मों पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, जबकि रसायनिक कीटनाशकों से पौधों का स्वास्थ्य एवं मृदा मंे उपस्थित जीवाश्म दोनों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। यह भी देखा गया कि इस जैव कीट विकर्षक के उपयोग से मृदाजनित बीमारियों जैसे अल्टरनेरिया एसपी, फ्यूजेरियम एसपी एवं पाइथेइयम से भी बचाव होता है और पौधों को बीमारीरहित बनाया जा सकता है। हालांकि, अभी भी मृदा जीवाश्मों एवं हानिकारक पैथोजेन पर इसके प्रभावों को देखने हेतु विस्तृत अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष
तैयार ‘‘जैव कीट विकर्षक’’ एक प्रभावी उपचारात्मक उत्पाद है, जो विभिन्न हानिकारक कीट एवं पतंगों के विरूद्ध विभिन्न प्रकार की फसलांे एवं सब्ज़ियों पर व्यापक रूप से उपयोग किया जा सकता है। अनेक अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का मानव स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी प्रणाली पर बहुत घातक प्रभाव होता है और ये काफी महंगे भी होते हैं, जिससे खेती की लागत भी बढ़ती है। तैयार जैव कीट विकर्षक स्थानीय स्तर पर उपलब्ध औषधीय पौधों की पत्तियों एवं गौमूत्र से तैयार होने के कारण पर्यावरण पर भी इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता, पौधों एवं उनके फलों के उपर कोई दुष्प्रभाव न होने से मानव स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक नहीं होता है और इसको तैयार करने में कोई विशेष खर्च भी नहीं होता। अतः परीक्षण के आधार पर कहा जा सकता है कि धान, सरसों एवं विभिन्न प्रकार की सब्ज़ियों में लगने वाले विभिन्न कीटों जैसे- टिड्डा, माहो, गन्धी कीट, सूंड़ी, फली छेदक, फलमक्खी आदि को नियन्त्रित करने के लिए यह जैव कीट विकर्षक एक बेहतर बायो उत्पाद है।

यह शोध अध्ययन डी0एस0टी0 कोर सपोर्ट परियोजना ;सीड डिवीजनद्ध के सहयोग से गोरखपुर एन्वायरन्मेण्टल एक्शन ग्रुप द्वारा सम्पादित किया गया।

अजय कुमार सिंह व अर्चना श्रीवास्तव

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