खेती की लागत कम करने में सक्षम जैविक खेती

Updated on March 4, 2023

मौसम की मार झेल रहे किसानों के लिए जैविक खेती एक बेहतर विकल्प हो सकती है। स्थानीय संसाधनों से तैयार और कम लागत वाले जैविक खादों के उपयोग से एक तरफ तो किसानों की बाजार पर निर्भरता कम होगी तो दूसरी तरफ खेती में लगने वाली लागत भी कम होगी और मौसमी चरम घटनाओं के चलते होने वाला नुकसान भी कम होगा। इस बात को गोरखपुर, जंगल कौड़िया के ग्राम भुईंधरपुर के किसानों ने सिद्ध भी किया है।


पिछले तीन दशकों से वैश्विक मुद्दा बना जलवायु परिवर्तन एवं उसके प्रभाव अब स्थानीय स्तर पर भी दिखने लगे हैं। कभी खेती के लिए सबसे बेहतर मानी जाने वाली पूर्वांचल में अब खेती घाटे का सौदा सिद्ध होने लगा है। इसके पीछे मुख्य रूप से कम समय में अधिक बारिश, बिन मौसम की बरसात, लम्बे अन्तराल का सूखा, अत्यधिक गर्मी आदि कारण हैं। बाढ़/बारिश, सूखा आदि के कारण खेती में निरन्तर हो रहे नुकसान, खेती निवेश की बढ़ती लागत, नये-नये कीट-पतंगों का बढ़ता प्रकोप एवं नवाचारों/तकनीकों/जानकारियों तक किसानों की पहुंच न होने के पूर्वांचंल के किसान खेती से विमुख होकर पलायन करने पर विवश होने लगे।

इसी समय ;वर्ष 2018-2019द्ध गोरखपुर एन्वायरन्मेण्टल एक्शन ग्रुप ने विज्ञान एवं प्रौद्यागिकी मंत्रालय, भारत सरकार के सीड डिवीजन के वित्तीय सहयोग से छोटे-मझोले किसानों की पहुंच ज्ञान-विज्ञान, जानकारियों एवं तकनीकों तक पहुंचाने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जनपद के विकासखण्ड जंगल कौड़िया एवं बिहार राज्य के पश्चिमी चम्पारण जिले के नौतन प्रखण्ड के कुल 18 गांवों में काम करना प्रारम्भ किया। इसी में से एक गांव गोरखपुर जनपद के विकासखण्ड जंगल कौड़िया का भुईंधरपुर भी था, जहां संस्था ने परियोजना से सम्बन्धित कार्यों को करना प्रारम्भ किया।

पहल:
प्रारम्भ में संस्था ने परियोजना के उद्देश्यों से लोगों को परिचित कराने तथा समुदाय को जुड़ाव सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अन्य गांवों की तरह भुईंधरपुर में बैठकें करना शुरू किया। इसी दौरान खेती में नित नये प्रयोग करने के उत्सुक किसान इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा प्राप्त दुर्गेश कुमार कनौजिया का चयन मॉडल किसान के रूप में किया गया। परियोजना केे अन्तर्गत गांव में आयोजित किसान विद्यालयों में दुर्गेश कुमार ने प्रतिभागिता करनी प्रारम्भ कर दी। किसान विद्यालय के सत्रों में जैविक खेती एवं उसकी तकनीकों पर चर्चाओं में सहभागिता कर रहे दुर्गेश ने जैविक खेती करने का निश्चय किया। इस हेतु इन्होंनें सबसे पहले जैविक खाद बनाने का कार्य शुरू किया और संस्था कार्यकर्ता की तकनीकी मदद से सी0पी0पी0, मटका खाद, वर्मी कम्पोस्ट, एफ0वाई0एम, मटका कीटनाशक, हरी खाद, देशी कम्पोस्ट खाद बना कर अपने खेतों में प्रयोग करना प्रारम्भ किया और खेती में बाहरी खाद का प्रयोग न्यून करते हुए बाहरी निवेशों पर अपनी निर्भरता को कम किया। इनके दो एकड़ खेंत में प्रत्येक फसली मौसम में 25-30 कुन्तल जैविक खाद की आवश्यकता पड़ती है जिसकी पूर्ति ये अपने द्वारा बनाये गये जैविक खाद से करते हैं।

अपने खेतों की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने एवं बढ़ाने के लिए ये प्रतिवर्ष 200-250 भेड़ों को अपने खेत में बिठाते हैं, ताकि इन भेड़ों द्वारा त्यागे गये मल-मूत्र से इनके खेत को पोषक तत्वों की प्राप्ति होती रहे। इसके अतिरिक्त इन्होंने डी0एस0टी0 कोर सपोर्ट परियोजना द्वारा पचगांवा में संचालित कृषि सेवा केन्द्र से प्रत्येक फसली मौसम में हड्डी का चूरा और नीम की खली को लेकर अपने खेत में प्रयोग किया और बेहतर उपज भी प्राप्त किया। खरपतार के नियन्त्रण के लिए पालीथीन सीट द्वारा मल्ंिचग तकनीक का भी प्रयोग कर रहे हैं और कीट नियन्त्रण के लिए स्वयं द्वारा निर्मित मटका जैव कीट विर्कषण का प्रयोग करके अपनी लागत को कम कर रहें है। हरी सब्ज़ियों को नुकसान से बचाने के लिए इन्होंने संस्था के सहयोग से जीरो इनर्जी कूलिंग चैम्बर बनाकर उसका उपयोग करना प्रारम्भ किया।

परिणाम:
वर्तमान मंे ये अपने 2 एकड़ खेती में विभिन्न प्रकार की सब्ज़ियां जैसे- खीरा, तरबूज, मिर्च, मटर, पत्तगोभी, फूलगोभी, लौकी, करैला, बीन्स, लहसुन एवं आलू उगाते हैं, जिसे स्थानीय व्यापारी इनके घर से आकर ले जाते हैं और जैविक उत्पाद तथा गुणवत्तापूर्ण होने के कारण बाजार भाव से 1-2 रूपये अधिक मूल्य देकर जाते हैं। प्रत्येक फसली मौसम में लिये गये आंकड़ांे के अनुसार जैविक खादों का उपयोग कर इन्होंने अपनी लागत में 40-50 प्रतिशत की कटौती की है साथ ही गुणवत्तापूर्ण उपज भी प्राप्त होती है। गांव के अन्य किसानों के साथ तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि दुर्गेश की अपेक्षा उन्हें सब्जी जी खेती में कम उपज प्राप्त हो रही है। आज दुर्गेश जैविक खेती के माध्यम से बेहतर गुणवत्तापूर्ण उपज प्राप्त करते हुए अपने सात सदस्यीय परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। इनके द्वारा की जा रही जैविक खेती से प्रेरणा प्राप्त कर गांव के अन्य किसान भी इस तरह की खेती करने को उत्सुक हुए हैं। ये अपने अनुभवों को अन्य किसानों के साथ साझा करते हैं साथ ही इनके अनुभवों को इण्डिया टीवी और न्यूज नेशन समाचार चैनलों के माध्यम से भी अपने अनुभवों को प्रसारित किया गया है।

अर्चना श्रीवास्तव, अजय सिंह


अर्चना श्रीवास्तव
परियोजना समन्वयक
गोरखपुर एन्वायरन्मेण्टल एक्शन ग्रुप
ई-मेल: archanasri844@gmail.com

अजय सिंह
परियोजना समन्वयक
गोरखपुर एन्वायरन्मेण्टल एक्शन ग्रुप
ई-मेल: mahewa@geagindia.org

 

Recent Posts

कृषि पारिस्थितिकी पर प्रशिक्षण वीडियो: किसानों के हाथ सीखने की शक्ति देना

कृषि पारिस्थितिकी पर प्रशिक्षण वीडियो: किसानों के हाथ सीखने की शक्ति देना

छोटे एवं सीमान्त किसानों के लिए कृषि पारिस्थितिकी ज्ञान और अभ्यासों को उपलब्ध कराने हेतु कृषि सलाहकार सेवाओं को...