कृषि पारिस्थितिकी शिक्षा: अध्यापन और अभ्यास

Updated on March 5, 2023

आज एक संकुचित दायरे से बाहर निकलकर विस्तारित और चक्रीय दृष्टिकोण सीखने की तरफ बदलाव करने की अत्यन्त आवश्यकता है। यह तभी संभव हो सकता है, जब विद्यार्थी सुगमीकरण के माध्यम से सीखने की प्रक्रिया में शामिल होकर मुख्य दक्षताओं को सोचने और बनाने की प्रणाली की ओर बढ़ते हैं।


एक प्रोफेसर बताते हैं, ‘‘हमारे छात्रों के लिए खेत पर जाना अनिवार्य होता है।’’ ‘‘यहां तक कि मैं भी नियमित रूप से खेत पर जाता हूं। जैसाकि आप देखते हैं, विशेषकर नवीनतम तकनीकों के बारे में किसानों का ज्ञान काफी कम होता है।’’ ‘‘हम किसान की समस्याओं को समझने हेतु आंकड़ों का संग्रह करने के लिए जाते हैं।’’ पीछे से एक छात्र ने चहक कर कहा।

हमारी कृषि शिक्षा अभी भी किसान को केवल एक बाहरी हितभागी के तौर पर देखती है। हम ‘उनके’ पास ‘उनकी समस्याओं’ को समझने और समाधान ‘प्रस्तुत’ करने ‘जाते’ हैं। एक विख्यात विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों और छात्रों के समक्ष इस वाक्य को उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत करते समय मैंने यह महसूस किया कि, मैं इस वाक्य के माध्यम से जो कहना चाहता हूं, उसमें पूरी तरफ विफल रहा हूं। उनकी स्थितियों के साथ ही मेरे अवलोकन का बचाव करने के लिए बहुत से जवाब आये।

हम पिछले 7 वर्षों से शोधकर्ताओं, कार्यकर्ताओं और अभ्यासकर्ताओं के लिए कृषि पारिस्थितिकी पर एक सर्टिफिकेट कोर्स चलाकर अपना हाथ जला रहे थे। भारत के 15 राज्यों और 4 अन्य देशों से लगभग 170 छात्रों ने इस कोर्स को किया। उस समय भारत में निश्चित तौर पर शिक्षा की मुख्य धारा में कृषि पारिस्थितिकी एक विषय के तौर पर बिलकुल नया था। फिर भी, कृषि पारिस्थितिकी की पद्धतियां लम्बे समय से ‘अभ्यास’ में है, लेकिन इसका विज्ञान काफी नया है और इसीलिए यह एक अभियान है। भारत में पहले भी किसानों के आन्दोलन थे और वर्तमान में भी आन्दोलन हैं, लेकिन अधिकांशतः अभियान आर्थिक मुद्दों, भूमि अधिकार और वन अधिकार से ही सम्बन्धित हैं। यहां तक कि किसानों का वर्तमान संघर्ष भी केवल बाजार व विपणन सम्बन्धी मुद्दांे को हल करने से सम्बन्धित था। कृषि पारिस्थितिकी सीख अभी भी केवल एक जैविक कृषि अथवा स्थाई कृषि पाठ्यक्रम के अर्थ और अपेक्षा को सामने लाता है। पाठ्यक्रम के प्रारम्भिक दिनों में यह एक चुनौती है कि छात्रों में इस तरह की समझ बनायी जाये कि सीखने के दौरान वे खुले प्रश्न रखें ताकि छात्र पहले से निर्धारित समाधान के बजाय वास्तविक घटनाओं से सम्बन्धित समस्या समाधान के माध्यम से सीख बनायें।

अधिकांश छात्रों की प्रारम्भिक अपेक्षाएं जैविक खेती की तकनीकों को सीखने से सम्बन्धित थीं। एक चुनौती से सरल तरीके से निपटने हेतु तकनीकों पर अधिक ध्यान केन्द्रित करना एक आधुनिक परिघटना रही। समय बीतने के साथ, विज्ञान और तकनीक के बीच की खाई धीरे-धीरे मिटती जा रही है। आज का विज्ञान अधिक सरल एवं न्यूनीकरणवादी हो गया है-जैसे एक त्वरित नुस्खा प्रदान करना- जो हमारी शिक्षा प्रणाली, विशेषकर कृषि में भी तेजी से उभर रहा है। एक कीट के लिए एक कीटनाशक न्यूनीकरणवाद का एक आश्चर्यजनक उदाहरण है। यहां तक कि पारम्परिक निवेश सघन कृषि के तथाकथित विकल्प भी तकनीक जैसे- बीजामृत, जीवामृत, मल्चिंग, ब्रम्हास्त्र आदि प्रस्तुत करने वाले एक निर्देशात्मक मोड़ पर वापस आ रहे हैं। हालांकि यह चर्चा का एक अलग विषय है, लेकिन तकनीक-जुड़ाव पर ओवर फोकस हमारी पारम्परिक कृषि शिक्षा प्रणाली में आसानी से घुस गया है।

यह सब क्या हैः
हालांकि, छात्रों को यह समझने में थोड़ा समय लगा कि कृषि पारस्थितिकी पारम्परिक कृषि में केवल तकनीक प्रतिस्थापन नहीं है। धीरे-धीरे उन्हें यह समझ में आया कि यह पाठ्यक्रम अध्ययन, डिजाईन और कृषि पारिस्थितिकी प्रणाली के लिए ढांचा प्रदान करने तथा उत्पादक और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण हेतु कृषि पारिस्थितिकी प्रणाली प्रबन्धित करने के उपर अधिक था। चूंकि इस पाठ्यक्रम में कृषि पारिस्थितिकी सम्बन्धी सिद्धान्तों को पढ़ाने के बजाय कृषि पारिस्थितिकी वैज्ञानिक तैयार करने पर अधिक जोर दिया गया था, इसलिए छात्र वास्तविक जीवन स्थितियों एवं वास्तविक घटनाओं के सम्पर्क में अधिक रहे। सरलीकृत दृष्टिकोण की तुलना में, यह विभिन्न प्रणालियों जैसे- खेत प्रणाली, प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणाली, खाद्य प्रणाली, बाजार प्रणाली, सामाजिक प्रणाली एवं राजनीतिक प्रणाली के बीच आपसी संवाद के माध्यम से किसी भी परिस्थितियों को समझने का अवसर भी उपलब्ध कराता है।

सीखने की एकल रेखीय पद्धति से चक्रीय दृष्टिकोण की ओर बदलाव के दौरान पाठ्यक्रम में करके सीखने की प्रक्रिया पर अधिक जोर दिया गया। सामान्यतः सक्रिय, जटिल वास्तविकताओं के साथ सामाजिक सीख एवं सहायक भूमिका में सिद्धान्त के साथ तैयार की गयी परिकल्पना के साथ काम करना परम्परागत सिद्धान्त आधारित रणनीतियों की अपेक्षा अधिक प्रभावी थी। साथ ही जटिल स्थाई चुनौतियों को समझने एवं उनसे निपटने के लिए अधिक उपयुक्त थीं। सीखने की क्रिया कक्षा के बाहर जटिल दुनिया में होने से सीखने के प्रत्येक घटक की शुरूआत जीवन की वास्तविक घटनाओं से हुई। चुनौतियों को सामने लाने तथा उन चुनौतियों से निपटने के लिए विकल्पों को विकसित करने हेतु एक खेत के साथ जुड़ाव एवं उसमें काम करना मुख्य कार्य था। सीखने की प्रक्रिया एक आदर्श खेत से प्रारम्भ की गयी और प्रदर्शनी के माध्यम से एक बड़े समूह के साथ अनुभवों के आदान-प्रदान के बाद समाप्त की गयी। इसमें एक चक्रीय रास्ता अपनाया गया, जहां सबसे पहले छात्र जीवन की वास्तविक घटनाओं या क्रियाओं के सम्पर्क में आये और दुहराव की प्रक्रिया के माध्यम से ज्ञान अर्जन किया। इसके बाद अगली क्रिया चक्र पर गये, जैसा कि नीचे दिये गये चित्र में दर्शाया गया है –

एक्सपोजर से संलग्नता तक
कृषि शिक्षा में, किसान हमेशा अपने आस-पास की चीजों से प्रसार प्रणाली के माध्यम से एक ज्ञान प्राप्तकर्ता के तौर पर सीखता रहता है। हर कोई किसान को यह सीखाने के लिए तैयार है कि वह खेती कैसे करे! केवल सूचनाओं के एकत्रीकरण अथवा तकनीक हस्तान्तरण के विरोध के तौर पर, इस पाठ्यक्रम में किसानों और अन्य अभ्यासकर्ताओं ने ज्ञान केन्द्र के तौर पर उल्लेखनीय भूमिका निभाई। पूरे पाठ्यक्रम के दौरान, छात्र किसानों के साथ बहुत बार मिले, बात-चीत किया एवं उनके नजरिये का समझने के लिए उनके यहां ठहरे। प्रारम्भ में प्रक्षेत्र नियोजन, तकनीकों, अभ्यासों, बाजार के साथ जुड़ाव आदि पर अच्छी तरह से समझ बनाने के लिए छात्रों को सुव्यवस्थित पारिस्थितिकी खेतों पर भेजा गया। यद्यपि कुछ बात-चीत की रूपरेखा तय नहीं थी, लेकिन फिर भी किसानों को यह बात पहले से ही बता दी गयी थी कि छात्र खेतों में काम करेंगे और किसान उन छात्रों को प्रक्षेत्र नियोजन, संसाधन फ्लो आदि के बारे में समझाएं। अनुभवों से सीखने के लिए, छात्रों के एक समूह के लिए एक खेत निर्धारित कर दिया गया, जिस पर जाकर वे विभिन्न उपकरणों के माध्यम से चुनौतियों का आकलन करें एवं सहभागी तरीके से समाधान विकसित करें। चिन्हित चुनौतियों के अनुसार सभी को पर्याप्त जानकारी दी गयी एवं विशेषज्ञों के साथ बात-चीत करायी गयी। किसानों ने छात्रों के प्रदर्शन के विषय में अपने फीडबैक भी दिये, जैसे- वे सीखने के लिए कितना उत्सुक थे, यदि किसी को गांव में ठहरने और खेत पर काम करने में, लोगों के साथ मिलने आदि में दिक्कत थी आदि। कुछ घटनाओं में, छात्रों ने खाद्य प्रसंस्कर्ताओं एवं बीज उत्पादकों आदि के साथ काम किया।

ज्ञान से मुख्य दक्षताओं तक
यह पाठ्यक्रम कृषि पारिस्थितिकी पढ़ाने के बजाय कृषि पारिस्थितिकीविज्ञानी तैयार करने पर अधिक केन्द्रित था, इसलिए यह अति आवश्यक है कि केवल सामग्री पर ध्यान देने के बजाय छात्रांे पर केन्द्रित किया जाये। दुनिया के प्रभावों को देखना और उसके आधार पर भविष्य में कार्य करना हम कैसे सीखें। परिणामतः यदि हम हमारे भविष्य के कार्यों में और अधिक स्थाईत्व लाना चाहते हैं तो पुनः सोचने वाली शिक्षा एवं सैद्धान्तिक शिक्षा के बजाय अनुभवों से सीखी जाने वाली व्यवहारिक दक्षता की तरफ मुड़ने की अत्यन्त आवश्यकता है। कृषि के क्षेत्र में प्रोफेशनलांे की अगली पीढ़ी के लिए कुछ मुख्य दक्षताओं को प्राप्त करना और उनका अभ्यास करना आवश्यक है। जो उनकी शैक्षणिक और प्रक्षेत्र अध्ययनों के माध्यम से आवश्यक होंगी और बाद में गतिविधियां निर्धारित की जा सकेंगी। इसका अर्थ यह है कि छात्रों को निरीक्षण, अभ्यासों में प्रतिभागिता, हितभागियों के साथ बात-चीत और प्रदर्शित गतिविधियों के माध्यम से खेती और खाद्य प्रणालियों के विषय में जानकारी तैयार करने के लिए सहभागिता और निरीक्षण से प्राप्त अनुभवों का उपयोग अवश्य करना चाहिए।

शिक्षण से सुगमीकरण तक
ज्ञान की वर्तमान प्रणाली में शिक्षक ‘‘स्वामी’’ की भूमिका में होता है और ज्ञान का ‘‘दाता’’ होता है जो छात्रों के दिमाग के खालीपन को भरता है। ज्ञान का प्रवाह शिक्षक से छात्र की ओर होता है और सीखकर्ताओं के बीच अथवा गोले में कोई अन्य रास्ता नहीं है। छात्रों के मस्तिष्क को ज्ञान से भरने का तरीका सबसे उपयुक्त माना गया है। फिर भी इसे छोड़कर ‘‘ज्ञान विकसित होगा’’ की अनिश्चितता की तरफ मुड़ना चाहिए। शिक्षक से सुगमीकर्ता की भूमिका में वापस आना अभी भी स्वीकार्य नहीं है। पाठ्यक्रम में, शिक्षकों से अनुरोध किया गया था कि वे पढ़ाने के बजाय सुगमीकरण का कार्य करें, फिर भी बहुत से केसों, विशेषकर प्रोफेसरों के लिए यह बहुत आसान नहीं था। सुगमीकरण एक उच्चस्तरीय कार्य है, जहां अब शिक्षकों को कार्य डिजाइन करना, कार्य सौंपना, अपेक्षाओं को बनाना, कार्य करने के लिए उपकरणों को बनाना एवं उपलब्ध कराना तथा प्रगति की समीक्षा करना है।

एक आसान परिवर्तन के सुगमीकरण हेतु, हमने सहयोगी शिक्षा, सहकारी अधिगम, चर्चाओं, समूह परियोजनाओं, सहकर्मी ट्यूशन, अनुभवात्मक अधिगम, समस्या आधारित सीख, खेल, क्रियात्मक भाव-भंगिमाओं आदि को बनाया ताकि छात्र सुगमीकर्ता की अनुपस्थिति में भी राय रखने से लेकर ज्ञान तैयार करने तक विचारों को आपस में बांट सकें। भाषण के अलावा, हमने कहानियों, अनुकरणों, प्रस्तुतिकरणों, परियोजनाओं, चर्चाओं, बात-चीत आदि का उपयोग किया। इसके पीछे यह सोच थी कि छात्रों की क्षमता को इस हद तक बढ़ा दिया जाये कि वे एक आत्मनिर्भर/स्व निर्भर के तौर पर उभरें और विभिन्न पारस्परिक पद्धतियों को उपयोग कर आजीवन सीखने वाले की भूमिका में बने रहें।

विषय सूची
बड़े मुद्दे                                                                                    खेत प्रणाली सूक्ष्म विवरण                                      दृष्टि निर्माण
प्रणालियां और सिस्टम थिंकिंग                                    प्राकृतिक खेती सिद्धान्त                                दृष्टि निर्माण
खाद्य और खेती प्रणाली का इतिहास और राजनीति          परमाकल्चर                                              पारम्परिक खाद्य प्रणाली
स्थाईत्व                                                                            बीज                                      जलवायु और आपदा जोखिम न्यूनीकरण को समझना
कृषि और पारिस्थितिकी के मूल                                  पशुधन और मुर्गी पालन                               बदलावकर्ता के तौर पर संवाद
क्रास कटिंग मुद्दे- पोषण, जेण्डर                                  खेत तकनीकियां
व्यापार और बाजार                                                         प्रमाणीकरण
सीखने और संसाधन मूल्यांकन  हेतु उपकरण                 वाटरशेड सिद्धान्त
मूल्य श्रृंखला

 

सोच प्रणाली की ओर
मुख्य प्रश्नों के उत्तर पाने हेतु छात्रों द्वारा सोचने के लिए कहने के बजाय शिक्षक उन प्रश्नों के उत्तर बताने में ज्यादा रूचि रखते हैं। अब पुनः शिक्षण में सभी द्वारा जानने योग्य साधारण समाधान आधारित कृषि उदाहरणों को प्रस्तुत करना है। पाठ्यक्रम में, हमने इसे लाने का प्रयत्न किया है, परन्तु पाठ्यक्रम में पहले सिद्धान्त के बजाय घटनाओं/चुनौतियों के साथ प्रारम्भ किया गया और छात्रों से कहा गया कि वे पहले स्वयं से विभिन्न प्रकार के अधिक से अधिक विकल्पों को ढंूढ़ें।

पर्यावरणीय, आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक चुनौतियों को समझने के लिए ट््रान्सडिस्पिलनरी, सिस्टम्स थिंकिंग और अनिश्चितता और त्वरित बदलाव के इस दौरान में सूचित क्रियाओं का सुगमीकरण आवश्यक होता है। हमारी औपचारिक शिक्षा अभी भी बहुत हद तक ज्ञान के बड़े करीने से सजे अनुशासनात्मक निकायों के प्रसारण पर आधारित है, जहां सभी कुछ असंदिग्ध सत्य के तौर पर प्रस्तुत किया गया है। न्यूनीकरणवादी, रैखिक व अनुशासनात्मक सोच सरल परिस्थितियों में तो बहुत प्रभावी है, लेकिन खेती और खाद्य प्रणाली जैसी जटिल समस्याओं के दौरान यह कम प्रभावी अथवा अप्रभावी हो जाती है। पाठ्यक्रम का मूल सिस्टम थिंकिंग था, जहां स्थिति को बहु परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए उसमें काम करने वाले के तौर पर अभ्यास किया गया, न कि एक बाहरी शोधकर्ता के तौर पर काम किया गया। सम्पूर्ण स्थिति से निपटने के लिए छात्रों की क्षमता बढ़ाने का यह माध्यम बहुत आसान नहीं था अन्यथा यह उसी कहानी की तरह हो जाती, जिसमें कुछ अन्धे मनुष्य हाथी के शरीर के विभिन्न भागों को छूकर उसे समझने का प्रयास करते हैं।

चुनौतियां
कुछ परिवर्तन बहुत आसान नहीं होते हैं। प्रक्रिया खोज करने, गलतियां करने, निष्कर्षों/प्राप्तियों को फिर से देखने समय की मांग करता है और शिक्षकों के सहयोग से निष्कर्षों पर आसानी से पहुंचे छात्र अक्सर उतावले हो जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ, प्रक्रिया को फैसिलिटेट करने के लिए कक्षाकक्ष के स्थान को पुनः परिभाषित होना है। एक परम्परागत भारतीय कक्षाकक्ष हमेशा इस तरह से डिजाइन होता है कि सम्पूर्ण कक्षा अपने सामने उपर शिक्षक की तरफ देखती है, जो एक उंचे मंच पर आसीन होते हैं और आपस में एक दूसरे के साथ संवाद की कोई संभावना नहीं होती है। विश्वविद्यालय के अन्दर यह अवसर सीमित था, लेकिन सीखने के क्षेत्र में विविधता लाई गयी और इसे खेत, बाजार और फैक्ट््िरयों तक ले जाकर हमने सीमाओं को तोड़ा। कुछ विविधताएं एक स्तर की फैसिलिटेशन क्षमता रखने वाले कुछ विभिन्न प्रकार के सन्दर्भ व्यक्तियों के साथ सामंजस्य बिठाते समय कुछ विविधताएं नयी चुनौतियां सामने आती हैं।

पिछले दो वर्षों में कोविड के दौरान कुछ चुनौतियां सामने आयीं, जबकि इसके अनुकूल ढलते हुए हमने यह भी अनुभव किया कि विविधता को जोड़ते हुए विभिन्न देशों के छात्रों और शिक्षकों को एक साथ लाकर निश्चित अवसरों को तैयार करने में ऑनलाइन ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन चुनौतियों के बावजूद, हमने बहुत आनन्द किया, अब हम 5 देशों में विस्तारित कृषि पारिस्थितिकी अभ्यासकर्ताओं के एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा हैं।

अंशुमान दास पिछले दो दशकों से लघु किसानों के साथ काम कर रहे हैं। वह वर्तमान में वेल्थंगरलाइफ से जुड़े हुए हैं। वह खाद्य और कृषि प्रणाली में भावी प्रोफेशनलों के लिए अध्यापन प्रणाली तैयार करने वाले वैश्विक शोध कन्सोर्टियम के एक अंग थे। अध्यापन प्रणाली के बारे में जानने हेतु, कृपया https://www. nextfood-project.eud देखें।

अंशुमान दास


Source: Agroecology education, LEISA India, Vol. 24, No.2, June 2022

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