कृषि-पारिस्थितिकी को बढ़ावा देने के रास्ते

Updated on June 2, 2023

खाद्य आवश्यकताओं, आजीविका, स्थानीय संस्कृति, पर्यावरण और अर्थशास्त्र के बीच सम्बन्ध जोड़ने के सन्दर्भ में कृषि पारिस्थितिकी दृष्टिकोण अत्यधिक स्थान विशिष्ट होते हैं। इसलिए कृषि पारिस्थितिकी पर शिक्षा इन कड़ियों को जोड़ने वाला एक समग्र दृष्टिकोण है, जहां किसान पूरी प्रक्रिया के केन्द्र में हैं।


पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के व्यापक दुष्प्रभावों को देखते हुए गैर सरकारी संगठनांे एवं सामुदायिक संगठनों द्वारा विगत कई वर्षों से खेती में गैर-रसायनिक दृष्टिकोणों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन्हें विभिन्न नामों जैसे- स्थाई कृषि, जैविक खेती, बायो-डायनमिक कृषि, प्राकृतिक खेती, पुर्नउत्पादक कृषि, कृषि पारिस्थितिकी दृष्टिकोण, कम बाहरी लागत स्थाई कृषि, गौ-आधारित खेती आदि नामों से प्रोत्साहित किया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन कन्वेन्शन पर संयुक्त राष्ट््र फ्रेमवर्क की भारत की तीसरी द्विवार्षिक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कृषि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का एक बड़ा कारण है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार भी पूरे देश में प्राकृतिक खेती में कृषि पारिस्थितिकी दृष्टिकोणों को बढ़ावा देने का काम कर रही है। कृषि-पारिस्थितिक दृष्टिकोण की तुलना में आधुनिक कृषि अधिक आत्मनिर्भर है। इसके साथ ही आधुनिक कृषि तकनीक ने किसानों को तकनीक का मात्र उपभोक्ता बना दिया है। इसके चलते किसान खेती की अपनी पारम्परिक दक्षताओं जैसे- अपनी खेत की भूमि, मृदा के प्रकार एवं गुणवत्ता के आधार पर खेत के लिए उपयुक्त बीज का चयन, मौसम का पूर्वानुमान एवं उसके अनुसार गतिविधियों का नियोजन, फसल से बेहतर बीज प्रजातियों का चयन आदि करना भूलते जा रहे हैं। कृषि पारिस्थितिक दृष्टिकोणों में, कृषि की पारिस्थितिकी प्रणाली को समझना महत्वपूर्ण होगा। यह समझना होगा कि पारिस्थितिकी प्रणाली मात्र एक जैविक और अजैविक पर्यावरण नहीं है, वरन् यह आर्थिक और सामाजिक-राजनीतिक पर्यावरण के विषय में भी है। ये सभी पारिस्थितिक प्रणालियां किसान और उसकी खेती को प्रभावित करती हैं। इसलिए इन सभी पर विचार करने की आवश्यकता होगी। खेती की पारिस्थितिक प्रणाली किसान की पारिस्थितिक प्रणाली से भिन्न होती है। इसे शिक्षाविदों को समझना होगा। खेती का मतलब सिर्फ यह नहीं है कि भोजन का उत्पादन करने के लिए संसाधनों का कितनी कुशलता के साथ उपयोग किया जाता है। खेती वह है, जिसमें किसान एक दिये गये कृषि पारिस्थितिकी स्थिति में अपने आस-पास उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हुए खेती करता है। यह आजीविका का एक विकल्प है, जो स्थानीय संस्कृति, स्थानीय परिस्थितियों एवं स्थानीय पर्यावरण के साथ जुड़ा होता है। इसलिए कृषि पारिस्थितिक शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो किसानों को न केवल खाद्य उत्पादन, वरन् तर्कसंगत निर्णय लेने में भी सक्षम बनाये। साथ ही मानव एवं पर्यावरण स्वास्थ्य की भी सुरक्षा करे। आज की आवश्यकता है कि शिक्षा ऐसी हो जो हमें भोजन आवश्यकताओं, आजीविका, संस्कृति, पर्यावरण और अर्थ से जोड़े।

कृषि शिक्षा के लिए दृष्टिकोण
किसी भी नई तकनीक या प्रक्रिया को अपनाने के लिए तीन महत्वपूर्ण पहलू होते हैं – 1. आवश्यक सामग्री या मूर्त संसाधन ;हार्डवेयरद्ध 2. तकनीक कैसे उपयोग करें? इस पर ज्ञान एवं प्रशिक्षण और 3. कुछ तकनीकों को क्यों उपयोग करना चाहिए और उससे सम्बन्धित परिणाम पर समझ विकसित होना। यद्यपि सभी सिद्धान्त समान होते हैं, लेकिन कृषि पारिस्थितिकी प्रणाली या भौगोलिक परिस्थिति में बदलाव होने की दशा में तकनीक ;प्रयुक्त सामग्रीद्ध में अन्तर हो सकता है और स्थानीय स्थितियों के अनुसार पद्धति अपनाने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, अधिक पढ़े-लिखे किसानों की तुलना में कम पढ़े-लिखे किसानों के लिए प्रशिक्षण सामग्री और पद्धति भिन्न-भिन्न हो सकती है। इसी प्रकार जो तरीका काली मिट्टी मंे काम करता है, वही तरीका लाल बलुई मिट्टी में काम नहीं कर सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों की तुलना में मैदानी भागों की अलग पारिस्थितिक प्रणाली होती है।

बहुत लम्बे समय से कृषि प्रसार प्रणाली के माध्यम से सरकार किसानों तक सूचना प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। चंूकि, सरकार की मौजूदा प्रणाली के साथ प्रत्येक किसान के साथ पहुंचना मुश्किल है, इसलिए अन्य दूसरे संगठन जैसे- स्वयंसेवी संगठन, निजी कम्पनियां, वित्तीय संगठन आदि भी किसानों तक पहुंच बनाने की प्रक्रिया में शामिल हो गये हैं।

गैर सरकारी संगठनों के क्षेत्र में आने के साथ ही अनुभवात्मक शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा। खोज सीख की प्रक्रिया के अनुभवों के लिए किसान प्रक्षेत्र विद्यालय जैसे तरीकों के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षित किया गया। इस पद्धति में, चुनिन्दा किसानों का एक समूह एक निश्चित समयावधि पर मिलता है और चयनित खेत की निश्चित फसल का निरीक्षण कर उसके उपर समझ विकसित करता है। मौसम-कीट गतिशीलता, कीट जीवन चक्र, कीट व रक्षक सम्बन्ध, कीटों से होने वाले नुकसानों को देखना, चुने गये समाधानों की प्रभावशीलता कुछ प्रमुख सीख हैं। एक तरफ जहां सीखना प्रभावी और सशक्त है, वहीं प्रक्रिया संसाधन सघन है। समुदाय से सन्दर्भ व्यक्तियों को तैयार करने हेतु पद्धति का उपयोग किया जा सकता है।

प्रशिक्षण और प्रदर्शन एक अन्य दूसरा माध्यम है, जो किसानों को प्रक्रिया, आवश्यक सामग्रियों एवं उसके उपयोग को समझने में किसानों की मदद करता है। बहुत सी संस्थाएं किसानों को प्रशिक्षण के माध्यम से शिक्षित करती हैं। शिक्षाशास्त्र में, किसानों को जो जानकारी ज्ञात है, उससे शिक्षा शुरू होती है और उसी से आगे बढ़ती है। किसानों को शिक्षित करने में, स्थानीय भाषा एवं शब्दावलियों का बहुत महत्व होता है। कृषि में कृषि-पारिस्थितिक दृष्टिकोण में स्थानीय संसाधन एवं उनके उपयोग पर किसानों के अनुभव एवं जानकारी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। वहीं प्रशिक्षण में स्थानीय पारिस्थितिक प्रणाली को समझना प्रशिक्षकों के लिए भी महत्वपूर्ण है। किसानों को पूरे दिन कक्षाओं में बैठकर व्याख्यान सुनने का अभ्यास नहीं होता है। इसलिए दृश्य-श्रव्य सामग्रियों एवं प्रायोगिक गतिविधियों के माध्यम से उनको सक्रिय बनाये रखना अधिक महत्वपूर्ण होता है।

सेण्टर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर – कृषि-पारिस्थितिक शिक्षा में भूमिका
सेण्टर फॉर सस्टेनबल एग्रीकल्चर ;सी0एस0ए0द्ध एक स्वतन्त्र और प्रभावी संगठन है, जो स्थाई कृषि को बढ़ावा देने का कार्य करता है। इसने सफल मॉडलों का विस्तार करने हेतु सरकारी, गैर सरकारी संगठनों, समुदाय आधारित संगठनों एवं किसान संगठनों ;फार्मर प्रोडयूसर आर्गनाइजेशन ;एफपीओद्ध आदिद्ध के सहयोग एवं समन्वयन में वैज्ञानिक पृष्ठभूमि पर आधारित बहुत से मॉडल स्थापित किये हैं। गैर-कीटनाशक प्रबन्धन, जैविक/प्राकृतिक खेती, मुक्त स्रोत बीज प्रणाली, फार्मर प्रोडयूसर संगठन और सार्वजनिक-नीति के मुद्दे सी0एस0ए0 के प्रमुख योगदान हैं।

90 के दशक के उत्तरार्ध में और 2000 के दशक के पूर्वार्ध में, कीटनाशक एक प्रमुख मुद्दा था। सी0एस0ए0 ने किसानांे और किसानों के साथ काम करने वाले लोगों को गैर-कीट प्रबन्धन पर शिक्षित करके कीट समस्याओं का समाधान किया। गैर-कीट प्रबन्धन बिना रासायनिक कीटनाशकों के कीट प्रबन्धन अभ्यासों के विभिन्न तरीकों के बारे में है। किसानों को कीटों के जीवन चक्र, मित्र एवं शत्रु कीटों के बीच अन्तर एवं कीट प्रबन्धन के विभिन्न तरीकों जैसे- फसल प्रणाली में ट््रैप फसल एवं बार्डर फसल, फेरोमेन ट््रैप लगाने एवं स्थानीय संसाधनों जैसे- पौधों, जानवरों आदि से प्राप्त विभिन्न संसाधनों से जैव निवेशों को तैयार करने आदि के बारे में शिक्षित किया गया। जब किसान अभ्यास के पीछे के सिद्धान्तों को समझ गये, तब उन्होंने अपने पारम्परिक ज्ञान और सी0एस0ए0 से प्राप्त आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर विभिन्न अन्य पौधों के साथ प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया। यद्यपि सी0एस0ए0 ने अपना कार्य एन0पी0एम0 के साथ शुरू किया, लेकिन उन्होंने समग्र समझ के साथ काम किया। संस्था ने किसानों के बीच सिर्फ एक मुद्दे को लेकर काम करना शुरू किया था, परन्तु धीरे-धीरे उन्होंने कृषि के अन्य पहलुओं को अपने कार्य के साथ निर्बाध रूप से एकीकृत कर लिया।

किसानों को शिक्षित करने की प्रक्रिया में, प्रसार कार्यकर्ताओं के तौर पर सामुदायिक सन्दर्भ व्यक्ति विकसित किये गये, जिन्होंने बहुत बेहतर परिणाम दिया। खेतिहर समुदायों के बीच कृषि पारिस्थितिक दृष्टिकोणों का विस्तार करने में इन सामुदायिक सन्दर्भ व्यक्तियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहां यह भ समझना आवश्यक है कि कृषि पारिस्थितिकी पुरानी प्रणालियों पर वापस जाने के बारे में नहीं है, वरन् यह कृषि की वर्तमान और भविष्य की संभावित मुद्दों के समाधान हेतु पारम्परिक ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक समझ का सम्मिश्रण है। इस प्रक्रिया में, नीति नियन्ताओं को पूरे प्रमाण के साथ जागरूक किया जाता है और प्रोत्साहित किया जाता है कि वे इस तरह के कार्यक्रमों की शुरूआत करें जिससे किसानों कोे कृषि पारिस्थितिक दृष्टिकोणों को अपनाने में मदद मिले।

इण्टरनेट युग के साथ तालमेल बिठाते हुए सी0एस0ए0 ने एण्ड््रायड मोबाइल आधारित बहुत से एप विकसित किये हैं, जो प्रक्षेत्र स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं, सामुदायिक सन्दर्भ व्यक्तियों एवं शिक्षित किसानों के लिए उपयोगी हैं। पेस्टोकोप एक ऐसा ही एप है, जो प्रक्षेत्र स्तर पर कीटों की पहचान के लिए उपयोगी है। प्रक्षेत्रस्तरीय कार्यकर्ता समस्या का एक फोटो लेकर समाधान हेतु भेज सकते हैं। भेजी गयी तस्वीरें स्वमेव जियो-टैग हो जाता है। विशेषज्ञ पैनल जवाब देता है और समाधान भेजता है। इस एप को गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है। इसके साथ ही यह वेब पेज ीhttps://pestoscope.com) पर भी उपलब्ध है। इसी प्रकार, सी0एस0ए0 द्वारा इकृषि.टीवी(https://www.youtube.com/c/Krishi TV) नाम से एक यूट्यूब चैनल भी चलाया जा रहा है। इस पर विभिन्न भाषाओं में भिन्न-भिन्न विषयों पर अनुभवों, तैयारियों, फिल्मों आदि से सम्बन्धित वीडियो अपलोड हैं।

सी0एस0ए0 द्वारा अपने प्रारम्भ से ही कृषि पारिस्थितिकी के विषयों पर बहुत सी स्वयंसेवी संगठनों, सरकारी अधिकारियों, समुदाय आधारित संगठनों एवं लोगों को प्रशिक्षित किया गया है। कोविड 19 के दौरान लगे लॉकडाउन ने सी0एस0ए0 को आभासी प्रशिक्षणों को खोजने का एक अवसर प्रदान किया। यद्यपि आभासी प्रशिक्षण समुदाय के साथ ही सी0एस0ए0 के लिए भी बहुत नया था, लेकिन सी0एस0ए0 ने इसे जल्द ही अपना लिया और इसी के अनुसार अपनी सामग्री को संशोधि किया। आज, आभासी प्रशिक्षण एवं ऑनलाइन चर्चाएं दैनिक जीवन का एक हिस्सा बन गयी हैं।

सी0एस0ए0 ने एक ग्रामीण शिक्षा पोर्टल ग्रामीण अकादमी (http://www.grameenacademy.in) प्रारम्भ किया है, जो ग्रामीण विकास के विभिन्न विषयों पर नियमित रूप से पाठ्यक्रमों का आयोजन करती है। ग्रामीण अकादमी का प्रारम्भ पारिस्थितिक प्रणाली के उपर ग्रामीण युवाओं, महिलाओं एवं ग्रामीण क्षेत्र में अपनी रोजगार या उद्यम की यात्रा शुरू करने की इच्छा रखने वाले लोगों की ज्ञान, जानकारी एवं दक्षता का निर्माण करने हेतु एक वैकल्पिक सीख प्रणाली तैयार करने के उद्देश्य के साथ किया गया। इसमें ग्रामीण विकास से सम्बन्धित विभिन्न विषयों पर भौतिक, आभासी और दोनों का मिश्रित बहुत से पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। ग्रामीण अकादमी पाठ्यक्रम उपलब्ध कराने हेतु बहुत से अन्य संस्थानों के साथ सहयोग करती है। वैश्विक स्तर पर विभिन्न विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी में कृषि पारिस्थितिकी में औपचारिक शिक्षा प्रारम्भ करने हेतु, सी0एस0ए0 के अतिरिक्त, अन्य संगठन भी पाठ्यक्रमों के माध्यम से अपनी विशेषज्ञता प्रदान कर सकते हैं। सी0एस0ए0 ने जैविक/प्राकृतिक खेती, ग्रामीण आजीविका, एफ0पी0ओ0, शोध पर एवं साझा रूचि के अन्य क्षेत्रों पर संयुक्त रूप से पाठ्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए सेंचुरियन विश्वविद्यालय के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है। इसके तहत् सी0एस0ए0 अपने द्वारा प्रस्तावित पाठ्यक्रमों के लिए सामग्री विकसित करेगा और शिक्षकों को जैविक खेती/ प्राकृतिक खेती, एफ0पी0ओ0, नीतिगत मुद्दे आदि पर प्रशिक्षण प्रदान करेगा।

निष्कर्ष:
स्थानीय परिस्थितियों को समझना और खेतिहर समुदाय की वर्तमान आवश्यकताओं एवं भावी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त कृषि पारिस्थितिकी पद्धतियों को सुझाना ही कृषि पारिस्थितिकी शिक्षा का सार है। यदि किसानों की वर्तमान समस्या का समाधान हो जाता है तो उनके सामने दूसरी अन्य समस्याएं मुख्य समस्या के रूप में आ खड़ी होती है। समय के साथ मुद्दे बदलते रहते हैं। इसलिए संस्थाओं को भी खेतिहर समुदायों की गतिशीलता के अनुरूप अपने-आपको बदलते रहना चाहिए। सीखने के आधार पर सामग्री एवं उचित संसाधन को समय पर अद्यतन करते रहना कृषि पारिस्थितिकी क्षिक्षा के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण पहलू है। इसके साथ ही स्थानीय कृषि पारिस्थितिकी प्रणाली के लिए स्थान विशिष्ट समाधानों को विकसित करने की दिशा में शिक्षा प्रक्रिया में एक तकनीशियन, प्रसारकर्ता और नवाचारी सहयोगी के तौर पर किसानों को शामिल आवश्यक है।

जी. चन्द्रशेखकर, जी. राजशेखर एवं जी.वी. रामाजनेयूलु


जी. चन्द्रशेखकर, जी. राजशेखर एवं जी.वी. रामाजनेयूलु
सेण्टर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर
मकान नं. 12-13’568, नागार्जुन नगर, गली नं0 14,
लेन नं. 10, तरनाका, सिकन्दराबाद - 500 017
ई-मेल: sekhar@csa-india.org

Source: Agroecology education, LEISA India, Vol. 24, No. 2, June 2022

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