कांजीकुझी केरल की प्रथम रसायन-मुक्त पर्याप्त सब्जी वाला पंचायत

Updated on September 4, 2023

जब भारत के अधिकांश लोग जैविक खेती की अवधारणा के बारे में भी नहीं जानते थे, उस समय वर्ष 1994 में इस गांव ने जैविक खेती में वापस प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया था।


जैसे-जैसे मैं केरल के अलाप्पुझा जिले के एक तटीय गांव कांजीकुझी की ओर बढ़ रहा हूं, रेत और नमक की गंध से भरी समुद्री हवा धीरे-धीरे चल रही है, लेकिन जैसे ही मैं गांव में प्रवेश करता हूं, अचानक से हवा बदल जाती है और बगीचों से ताजी एकत्र की गयी सब्ज़ियों की भीनी-भीनी नई सुगन्ध से हवा भर जाती है।

कांजीकोझी शेष भारत से बहुत अलग तस्वीर प्रस्तुत करती है। ऐसे समय में जबकि गांवों में भी सब्ज़ियों की दिक्कत थी, उस समय कांजीकोझी बहुतायत में सब्ज़िया उगा रहा था और वह भी जैविक तरीके से। केरल की एकमात्र सब्जी-पर्याप्त पंचायत के रूप में कांजीकोझी एक मॉडल के तौर पर अनुकरणीय है। यह और भी महत्वपूर्ण इसलिए है कि इसने वर्ष 1994 में ही जैविक खेती में प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया था, जब शेष भारत इसकी अवधारणा से भी परिचित नहीं था।

इसे कैसे प्रारम्भ किया जाये? यह एक बड़ा सवाल था, क्योंकि कांजीकोझी की मृदा खेती के लिए अनुपयुक्त थी और यहां के लोगों को केरल के अन्य भागों से मुख्य रूप से सब्ज़ियां खरीदनी पड़ती थीं। इससे सब्ज़ियों के दाम बहुत बढ़ गये और इन सबसे उपर, गांव वालों की आमदनी का मुख्य स्रोत नारियल की जटाओं से रस्सी बनाने का स्थानीय उद्यम था, जिसमें आमदनी बहुत कम थी। इसलिए तत्कालीन पंचायत प्रमुखों ने एक क्रान्ति का आहवान किया। उन्होंने निश्चय किया कि गांव का भविष्य गांव के खेतिहर परिवारों द्वारा किये जाने वाले जैविक खेती में ही है। पंचायत अध्यक्ष एम0जी0 राजू कहते हैं ‘‘यह बहुत महत्वपूर्ण था कि सब्ज़ियां खरीदी न जायें, वरन् गांव में ही उगायी जायें।’’

आगे जोड़ते हुए वह कहते हैं, ‘‘जब हमने इस बात पर विचार करना प्रारम्भ किया तो बहुत सी चुनौतियां सामने आने लगीं। बात केवल यहां की मृदा की नहीं थी, जो खेती के लिए अनुपयुक्त थी, उससे भी बड़ी आवश्यकता, यहां के लोगों को जैविक खेती पर प्रशिक्षित करना था। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह थी कि परियोजना की निरन्तरता बनाये रखना सुनिश्चत करने के लिए एक व्यवहारिक व कुशल पद्धति की आवश्रूकता थी।

एक योजना तैयार कर, पंचायत समिति ने 8600 परिवारों को अपने घर के पिछवाड़े और छत पर सब्ज़ियां जैसे- करेला, लाल चौलाई, गोभी, बीन्स और भी बहुत सी सब्ज़ियां उगाने का आहवान किया। विचार यह था कि प्रत्येक उपलब्ध स्थान का प्रयोग खेती के लिए किया जाये। इस कार्य में लगने वाला प्रारम्भिक पैसा पंचायत से दिया गया। इसे और विस्तार से बताते हुए राजू कहते हैं, ‘‘अभ्यास को स्थाई बनाये रखने के लिए, कृषक कर्मसेना नाम से एक छोटी समिति गठित कर उसे निगरानी करने और सब्जी उत्पादकों को उत्साहित करने पर प्रशिक्षित किया गया। यह एक कठिन प्रक्रिया थी, लेकिन धीरे-धीरे मृदा का पीएच मान संतुलित हुआ और मिट्टी की पोषण शक्ति पुनः एकत्रित हुई और जैविक खेती को सहयोग प्रदान करने के लिए स्थानीय स्तर पर विकसित तकनीकों जैसे- कीट रोक-थाम पद्धतियों को क्रियान्वित किया गया।’’

किसान सबसे बेहतर जानता है
एक बार तंत्र स्थापित हो जाने के बाद इसे आगे बनाये रखने की जिम्मेदारी ग्रामीणों पर थी। इसलिए, आज तक प्रत्येक परिवार आवश्यक खाद की मात्रा और कीट-नियंत्रण प्रक्रिया की निगरानी करता है। राजू कहते हैं ‘‘किसान जानते हैं कि उनके लिए सबसे अच्छा क्या है। वे परीक्षण-और-गलती विधि के माध्यम से इस तक पहुंचते हैं। यदि एक पूर्ण नियम है तो वह यह है कि खेती में किसी भी रसायन का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

पंचायत एक महिला स्वयं सहायता संगठन ‘कुडुम्बश्री’’ द्वारा ग्रीन हाउस में उगाये गये नर्सरी के पौधों और बीजों को मुफ्त में लोगों को प्रदान करती है। राजू का कहना है, ‘‘पिछले वर्ष हमने 50 लाख से अधिक पौधे दिये। इसके साथ ही हम कम लागत, पर्यावरण-सम्मत खाद बनाने के लिए भी सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं।’’

कांजीकुझी को अब कहीं और से सब्ज़ियां लाने की आवश्यकता नहीं है। ‘‘पहले सब्ज़ियां पड़ोसी शहरों से गांव में लानी पड़ती थी। राजू कहते हैं, ‘‘अब हमारी ताजी, जैविक रूप से उगाई गयी सब्ज़ियां स्थानीय बाजार में बिकती हैं।’’ जब हमने अधिक सब्ज़ियां उत्पादित करना प्रारम्भ किया तो हमें राजमार्ग पर झुग्गियां दिखाईं दीं, जो आने-जाने वालों को सब्ज़ियां बेच रही थीं। ‘‘हमारी सब्ज़ियां उन शहरों तक पहुंचने लगीं, जहां से हमने उन्हें कभी खरीदा था। जब हम ग्राहक को उचित मूल्य पर जैविक उत्पाद देते हैं तो हमारा मानना है कि हम ग्राहक की आवश्यकता के दो पहलुओं – वित्त और स्वास्थ्य दोनों को ध्यान देते हैं।

गांव का जीवन बदल गया है। सहायता से समृद्धि आयी है। कुछ ग्रामीण एक महीने में रू0 50,000.00 तक कमाते हैं और पूरे वर्ष खेती करते हैं। वे जैविक खेती पर लोगों को प्रशिक्षित भी करते हैं। कुछ ने सब्ज़ियों की संकर प्रजातियां भी विकसित की हैं। 48 वर्षीय सुभकेशन एक स्थानीय संकर बीन, जिसे कांजीकुझी बीन भी कहा जाता है, उसके बीज बेचकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। एक अन्य दूसरे किसान 71 वर्षीय आन्नधन का कहना है, ‘‘मैंने 2 प्रतिशत जमीन पर खेती करना प्रारम्भ किया था, जो अब बढ़कर 25 प्रतिशत तक हो गया है। खेती ने मेरी जिन्दगी बदल दी है।’’ वह पूरे वर्ष खेती करते हैं। अपने तरीके के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं, 80 प्रतिशत उपज पर खेती बन्द कर दें। ‘‘तभी बीमारियां लगती हैं। इस तरह मैं पूरे वर्ष में तीन बार खेती करते हुए पूरे वर्ष खेती करने में सक्षम हूं।’’

खेती करने के लिए अगली पीढ़ी को तैयार करने हेतु स्थानीय स्कूलों में खेती का पाठ अनिवार्य है। गांव की ओर से बोलते हुए राजू कहते हैं, ‘‘मिट्टी अब पोषक तत्वों से समृद्ध है और हमारे बच्चे स्वस्थ, रसायन-मुक्त भोजन खाकर बड़े होते हैं।’’ पिछले वित्तीय वर्ष में पंचायत का वार्षिक कारोबार रू0 14 करोड़ था और कांजीकुझी की उपज पूरे केरल में लोगों को अच्छी लगने लगी है। और रेतीले समुद्र तटीय स्थान से शुरूआत करने वाले इस गांव के लिए यह कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है।

यह लेख मूल रूप से https://www.thehindu.com/scitech/agriculture/how-kanjikuzhivillage-in-alappuzha-became-the-first-chemicalfree-vegetable-sufficient-panchayat-in-kerala/article28949494.ece में प्रकाशित है।


तान्या अब्राहम


Source: Healthy Horticulture, LEISA India, Vol. 21, No.3, Sep. 2021

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