एकीकृत दुग्ध पालन की ओर एक यात्रा

Updated on September 2, 2022

जब विपरीत परिस्थितियों ने उन्हें नयी पहल प्रारम्भ करने के लिए प्रेरित किया, बाहरी एजेन्सियों से प्रशिक्षण और सहायता प्राप्त कर उन्होंने अपने सपने को संभव और स्थाई बनाया। लिली मैथ्यूज की कहानी ऐसी ही प्रेरणादायक है। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों को अवसर में बदला। दुग्ध उत्पादन में 25 वर्ष पूरा कर चुकी लिली अब इस क्षेत्र में एक आदर्श मॉडल बन चुकी हैं।


लिली मैथ्यूज उन बहुत कम महिलाओं में से हैं, जिन्होंने खराब परिस्थितियों में नयी चुनौतियों को लेने और उनका सामना करने का साहस किया है। जब उनका परिवार खेती में बहुत बड़े नुकसान से जूझ रहा था, उस समय उन्होंने काली मिर्च की खेती में होने वाले नुकसान की भरपाई करने हेतु दुग्ध पालन में अपना हाथ आजमाने की पहल की। लिली मैथ्यूज एक भावुक महिला हैं, जो अब 70 से भी अधिक संकर प्रजाति की दुधारू गायों की स्वामिनी हैं और केरल के वायनाड जिले के मनन्तवड़ी स्थित अपने घर से ही एक सफल डेयरी उद्योग चला रही हैं। लेकिन उनकी यह यात्रा आसान नहीं थी, लक्ष्य को प्राप्त करना सरल नहीं था, परन्तु उन्होंने चुनौती ली और अपने डेयरी उद्योग को स्थापित करने में आने वाले जोखिमों का प्रबन्धन किया।

पहले, लिली और उनका परिवार अपने नौ एकड़ खेत में मुख्य रूप से काली मिर्च और साथ में अन्य दूसरी फसलों जैसे- नारियल, कॉफी, सुपारी, काजू और सब्ज़ियों की खेती करता था। उनकी आमदनी का मुख्य स्रोत काली मिर्च से होने वाली आय थी और वे 40 कुन्तल काली मिर्च की उपज प्राप्त करती थीं। इसके साथ ही नारियल, कॉफी और सुपारी का भी उनकी आय में उल्लेखनीय योगदान था। लेकिन लगभग 26 वर्षों पूर्व, काली मिर्च की फसल का एक बड़ा हिस्सा, क्विक विल्ट ;तेजी से मुरझानेद्ध और स्लो विल्ट ;धीमी गति से मुरझानेद्ध जैसे बीमारियों से ग्रसित हो गया और काली मिर्च की लताओं को पुनर्जीवित करना बहुत मुश्किल हो गया। वर्तमान में, वे अभी भी मुख्य रूप से करिमुण्डा और पन्नियूर-1 में काली मिर्च की प्रजातियों की खेती करती हैं जबकि वायनन्दन रोग संक्रमण के कारण पूरी तरह नष्ट हो गया। यह परिवार के लिए मुश्किल का समय था। परिवार को भारी वित्तीय बोझ का सामना करना पड़ रहा था, क्योंकि काली मिर्च के साथ-साथ सुपारी की फसल भी बीमारियों के प्रकोप के कारण प्रभावित थी और उसका उपचार नहीं हो सका था। इन नाजुक समयों में, लिली मैथ्यूज ने अपने विश्वास को डिगने नहीं दिया और नुकसान से भरपाई की रणनीति के तौर पर उन्होंने अपने परिवार के सहयोग से एक डेयरी उद्योग खोलने का निश्चय किया। उनके माता-पिता पारम्परिक रूप से पशुपालन और दूध का कार्य करते थे। इसलिए इस अनुभव ने उन्हें इस उद्यम को अपनाने हेतु साहस दिया।

गौशाला की पहल
प्रारम्भ में, लिली मैथ्यूज ने संकर प्रजाति की 15 गायों के साथ एक छोटी डेयरी खोली। इन गायों को उन्होंने कोयम्बटूर से खरीदा था और शेष इतिहास है। उनके पति, श्री मैथ्यू मनन्तवडी के एक निजी कॉलेज में लेक्चरर थे, बाद में वेे लिली के डेयरी उद्योग से जुड़ गये। काली मिर्च के फसल में रोग संक्रमण के कारण, उन्होंने काली मिर्च के पौधों को सहारा देने के लिए लगाये कुछ वृक्षों को काट दिया और वहां पर चारा की खेती करने लगी। यद्यपि, उनके पास दुग्धशाला का अनुभव था, परन्तु डेयरी को एक उद्यम के तौर पर प्रारम्भ करना उनके लिए बिलकुल एक नयी चुनौती थी। लिली ने स्वयं को एक पूर्ण पशुपालक किसान के तौर पर तैयार करने के लिए बहुत से प्रशिक्षणों में भाग लिया। उन्होंने अपनी इस यात्रा में सरकारी विभागों और अन्य संगठनों से भी सहयोग प्राप्त किया। वर्ष 2008 में, उन्हें पशुपालन विभाग से 10 गायों के लिए सहयोग मिला, इसके बाद दूध वाली मशीन, चारा फसलों की खेती के साथ-साथ पशुशाला का विस्तार करने के लिए भी सहयोग मिला। बाद में, वर्ष 2014 में, इरोड पशु अस्पताल और वेटेनरी कॉलेज, पूकोड से जानवर पालने और दुग्ध उत्पादन का विकास विषय पर इन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया। इन सभी प्रशिक्षणों से उन्हें अधिक से अधिक आत्मविश्वास प्राप्त करने डेयरी उद्यम में अपने जुनून को बनाये रखने में सहायता मिली।
वर्तमान में उनके पशुशाला में 70 संकर गायें रहती हैं। पिछले 10 वर्षों से, उनके डेयरी में कुछ बेहतर प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं के सहयोग से दूध निकालने का कार्य ऑटोमेटिक मिल्किंग मशीन द्वारा किया जाता है। इन कार्यकर्ताओं को स्वयं लिली ने डेयरी प्रबन्धन पर प्रशिक्षित किया है। सभी गायों को गुणवत्तापूर्ण भोजन और अपने खेत पर उगाये गये अच्छे चारा के साथ-साथ मिश्रित राशन दिया जाता है, जिसे वह स्वयं विभिन्न कन्सन्ट््रेट और भूसा-दाना को उचित अनुपात में मिलाकर तैयार करती हैं। उन्होंने यह भी साझा किया कि, बहुत आवश्यक होने की स्थिति में, पशुपालन विभाग के अधिकारीगण तत्काल चिकित्सा सहायता के लिए आवश्यक सहयोग भी प्रदान करते हैं।

वर्ष 2018 में, लिली ने एक नयी उंचाई को प्राप्त किया। उन्होंने दही, घी, मक्खन, पनीर, छांछ आदि दूध से तैयार होने वाले विविध प्रकार के उत्पादों के उत्पादन हेतु अपने घर कोल्ड स्टोरेज की सुविधा सहित एक मूल्य संवर्धन इकाई का प्रारम्भ किया। पहले, जब वह दूध सोसायटी पर अपने डेयरी का दूध देती थीं, तब उन्हें न्यूनतम रू0 35/- प्रति लीटर की दर से मूल्य प्राप्त होता था, लेकिन मूल्य संवर्धन इकाई की स्थापना के बाद उन्हें प्रति लीटर रू0 55/- प्राप्त होता है। इससे उन्हें दूध और दूध से बने उत्पादों को बेचने से प्रति माह एक अच्छी आमदनी प्राप्त करने में सहायता मिलती है। वर्तमान में, उनके डेयरी फार्म से प्रतिदिन लगभग 700 ली0 दूध का उत्पादन होता है। उनका कहना है कि डेयरी फार्म को सफलतापूर्वक संचालित करने और लाभकारी बनाये रखने के लिए प्रति गाय प्रति दिन कम से कम 20 लीटर दूध आवश्यक है और इससे कम दूध मिलने पर नुकसान की स्थिति बनती है, क्योंकि खर्च बहुत ज्यादा होता है। वह अपने स्वयं के ब्राण्ड ‘‘लिली’’ नाम से दूध एवं दूध से तैयार उत्पादों को वायनाड और कुन्नूर जिले में अपने स्वयं के वाहनों एवं दो दुकानों के माध्यम से बेचती हैं। उनके डेयरी फार्म को देखने आने वाले उनके पड़ोसी और अन्य लोग इकाई से सीधे उत्पादों को खरीद सकते हैं। जानवरों के अलावा, वे मुर्गी, बत्तख और हंस आदि भी रखती हैं और निकट भविष्य में वे कुछ बकरी पालने की योजना भी बना रही हैं।

प्रक्षेत्र स्तर पर एकीकरण
अपने डेयरी फार्म की सफलता के साथ, लिली ने खेती के लिए भी अपनी प्रतिबद्धता को फिर से जगाया और खेती में पुनः जुट गयीं। कॉफी, काली मिर्च, नारियल आदि के अलावा, वे विभिन्न सब्ज़ियों की खेती भी करती हैं। धीरे-धीरे वे अपने पूरे खेत को जैविक बना रही हैं। गाय का गोबर और गौमूत्र एकत्र किया जाता है और पूरे खेत के लिए जैविक खाद के तौर पर उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही गोबर के पुनर्चक्रीकरण के लिए एक बड़ा गोबर गैस प्लाण्ट भी बन रहा है। गौमूत्र का उपयोग वे कीट प्रबन्धन के लिए करती हैं और लोगों की मांग होने पर बेचती भी हैं। वह आने वाले वर्षों में जैविक उर्वरक जैसे- जीवामृत के उत्पादन का भी एक उद्यम प्रारम्भ करने की योजना बना रही हैं। अपने उद्यम को मूल्य सवंर्धित उत्पादों में विस्तारित करने के साथ-साथ उन्होंने अब पुनः काली मिर्च की खेती करना प्रारम्भ कर दिया है, जिसे कुछ साल पहले अधिक नुकसान होने के कारण खेती करना बन्द कर दिया था।

अगले साल अपने खेत की सिल्वर जुबिली मनाने की तैयारी कर रही लिली गर्व से कहती हैं कि उनका सपना है कि वे अपने डेयरी फार्म में 90 गायें पालें और दूध का उत्पादन बढ़ाकर 1000 लीटर प्रतिदिन कर लें। इस क्षेत्र में उद्योग का प्रारम्भ करने की इच्छा रखने वाले नये लोगों के लिए उनकी सलाह है कि पहले छोटे स्तर पर उद्यम लगायें और व्यक्ति को समुचित प्रशिक्षण लेना चाहिए तथा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर काम करते रहना चाहिए। अपनी सफलता के साथ, लिली मैथ्यूज, अपने डेयरी फार्म का भ्रमण करने आये अन्य किसानों और छात्रों को सलाह देने हेतु एक मान्यता प्राप्त सन्दर्भ व्यक्ति के तौर पर काम करती हैं। उन्हें अपनी उपलब्धियों के लिए बहुत से अवसरों पर डेयरी वुमन ऑफ द इयर सहित बहुत से राष्ट््रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कार मिल चुके हैं। अपने ज्ञान एवं अनुभवों को लोगों के साथ साझा करने के लिए वे द्वारका रेडियो मटोली, मनन्तवडी में एक मुख्य वक्ता के तौर पर भी काम करती हैं।

अपने अतीत को याद करते हुए, लिली साझा करती हैं कि जब हमें अपनी खेती में नुकसान हुआ, तब हमें उस नुकसान से उबरने के लिए बहुत कर्ज लेना पड़ा, परन्तु जब हमने अपनी पारम्परिक खेती प्रणाली में डेयरी का एकीकरण किया तो आज हमारे पास एक अच्छा घर और एक सफल व्यापार है। उनकी यह यात्रा इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि अपनी पारम्परिक खेती प्रणाली में पशुधन को शामिल करते हुए फसल आधारित कृषि प्रणाली के तत्वों को बदला जा सकता है और खेती को लाभप्रद बनाया जा सकता है।

अर्चना भट्ट, रवीन्द्रन, अब्दुल्ला हबीब


अर्चना भट्ट
वैज्ञानिक

रवीन्द्रन
विकास सहायक

अब्दुल्ला हबीब
विकास सहयोगी
एमएसएसआरएफ-सामुदायिक कृषिजैवविविधता केन्द्र
वायनाड, केरल
ई-मेल: archanabhatt1991@gmail.com

Source: Resilient crop- Livestock System, LEISA India, Vol.23, No.4, Dec, 2021

Recent Posts

कृषि पारिस्थितिकी पर प्रशिक्षण वीडियो: किसानों के हाथ सीखने की शक्ति देना

कृषि पारिस्थितिकी पर प्रशिक्षण वीडियो: किसानों के हाथ सीखने की शक्ति देना

छोटे एवं सीमान्त किसानों के लिए कृषि पारिस्थितिकी ज्ञान और अभ्यासों को उपलब्ध कराने हेतु कृषि सलाहकार सेवाओं को...