एकीकृत कृषि प्रणाली

Updated on December 2, 2022

किसानों के खेत पर एकीकृत कृषि प्रणालियां अपनाने में कृषि विज्ञान केन्द्र किसानों की मदद करने में सहायक रहे हैं, जिससे उन्हें अधिक उत्पादन करने और अधिक आय अर्जन में सहायता मिली है। वर्तमान समय में मॉडल खेत के रूप में विकसित ल्यांग्रह के खेत कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा उपलब्ध कराई गयी इस प्रकार की सहायता का एक अच्छा उदाहरण हैं।


श्री वाल्लम कूपर ल्यांग्रह एक समर्पित प्रगतिशील और नवोन्वेषी किसान हैं जो मेघालय के पूर्वी खासी हिल्स जिले के मवलई सी एवं आरडी विकासखण्ड के मौसियतखनम गांव के रहने वाले हैं। वह स्नातक तक पढ़े हुए और पेशे से शिक्षक हैं। उन्होंने बेहतर कृषि अभ्यासों पर अपना समय देना प्रारम्भ कर दिया। उनके पास 4.94 एकड़ भूमि है, जिसमें से 2.50 एकड़ खेत को एकीकृत खेत में बदल दिया है।

एक कृषि उद्यमी के तौर पर श्री ल्यांग्रह ने यह महसूस किया कि कृषिगत खेती की पारम्परिक पद्धति ने उपज और आय को कम कर दिया है। यह कम उत्पादकता, कृषिगत निवेशों की बढ़ती लागत और खेत पर उपलब्ध संसाधनों के खराब उपयोग अथवा उपयोग न होने से भी संबंधित है। पारम्परिक पद्धति में कम फसल विविधता होने के साथ-साथ मृदा और जल प्रदूषण उत्पन्न करने के सन्दर्भ में पारिस्थितिक समस्याओं का भी उत्पादन किया है।

एक स्थाई किसान बनने की उनकी यात्रा तब शुरू हुई, जब उन्होंने स्थाई कृषिगत पद्धतियों की ओर एक समाधान की खोज कर रहे थे। यह तब हुआ था, जब वर्ष 2013 में वे कृषि विज्ञान केन्द्र, पूर्वी खासी हिल्स के अधिकारियों के साथ निकट सम्पर्क में आये। उन्होंने एकीकृत खेती के माध्यम से स्थाई कृषि पर तकनीकी दिशा-निर्देश प्राप्त किया। वह मेघालय के रि-भोई जिला में स्थापित एनईएच क्षेत्र, उमरोई रोड, उमियाम स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का एक एक्सपोजर भ्रमण करने से भी उत्प्रेरित हुए, जहां उन्हें एकीकृत कृषि प्रणाली की अवधारणा एवं आय अवसरों से परिचित कराया गया था। उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्र और अन्य सम्बन्धित विभागों द्वारा आयोजित बहुत से प्रशिक्षण कार्यक्रमों, सेमिनारों, कार्यशालाओं आदि में सहभाग कर तकनीकी जानकारियां एकत्र कीं और वर्ष 2015 में कुक्कुट और सूकर पालन को खेत के मुख्य घटक के तौर पर शामिल करते हुए अपने 2.50 एकड़ में एक एकीकृत खेत स्थापित किया। एकीकृत खेती के बारे में एक मजबूत आधार से सुसज्जित श्री ल्यांग्रह ने अपनी इकाई में अतिरिक्त घटकों को शामिल करके अपने खेत को और विकसित कर लिया है।

घटकों का विवरण
2.5 एकड़ जमीन में विस्तारित एकीकृत खेत को वर्तमान में निम्न घटकों में विभक्त किया गया है-
1) औद्यानिक इकाई
2) पशुपालन एवं पशुधन इकाई
3) वर्मी कम्पोस्ट इकाई

1) औद्यानिक इकाई:

औद्यानिक इकाई में सब्जी वाली फसलों जैसे- बन्दगोभी, फूलगोभी, मिर्च, अदरक, चो-चो आदि एवं फलदार वृक्षों में पपीता, अनानास, आसाम नीबू, संतरा आदि शामिल हैं। कृषि विज्ञान केन्द्र, पूर्वी खासी हिल्स ने वर्ष भर सब्ज़ियां उगाने के माध्यम से भूमि के प्रभावी एवं यथेष्ट उपयोग पर विशेष जोर दिया ताकि खेत से होने वाली आय में वृद्धि हो और मृदा स्वस्थ बनी रहे। बहुत से प्रशिक्षणांे के उपरान्त उन्होंने समझा कि फसल विविधता में सब्ज़ियों का महत्वपूर्ण स्थान है और वे खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनके गांव मौसियतखनम में, पॉली हाउस के अन्दर वर्ष भर सब्ज़ियों का उत्पादन संभव है। मई से अक्टूबर तक भारी बारिश होने के कारण खुले में दूसरी फसल उगाना बहुत कठिन है। चूंकि वे स्वयं के खर्च से पॉली हाउस का निर्माण नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने अपने जिले के कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क स्थापित किया, जिसने बदले में एग्रो टेक्सटाइल्स मंत्रालय के माध्यम से ससमीरा के सहयोग से उन्हें अनुदानित दर पर एक पॉली हाउस बनाने में मदद प्रदान किया। अब, वह वर्ष भर सब्ज़ियां उगाते हैं और इस गतिविधि से वर्ष भर आय प्राप्त करते हैं।

2) पशुपालन और पशुधन इकाई

अ) कुक्कुट पालन इकाई:

उन्होंने वर्ष 2000 में अपने खेत में 50 चूजों के साथ कुक्कट पालन का कार्य प्रारम्भ किया। लेकिन उनकी अपेक्षा के अनुरूप आमदनी नहीं हुई। बाद में, उन्होंने चूजों की संख्या दुगुनी करके अपनी कुक्कुट पालन गतिविधियों को बढ़ाया। उन्होंने लेयर अर्थात् बी वी 360 प्रजाति के चूजों का पालन प्रारम्भ किया, जहां उन्हें वैज्ञानिक तरीके से कुक्कुट पालन करने में समस्याओं का सामना करना पड़ा। समस्याओं से निपटने के लिए, उन्होंने नई तकनीकों को अपनाना शुरू कर दिया। यद्यपि अभी भी उन्हें नुकसान ही उठाना पड़ा। गहराई से देखने पर, उन्होंने पाया कि मुर्गियां कोने में अण्डा देना चाहती हैं, जहां पर अंधेरा होता है।

इस बात का अनुभव कर, उन्होंने अण्डा देने वाले केबिनों का निर्माण किया, जो मुर्गियांे को अण्डा देने के लिए आकर्षित करते थे। केबिन को इस तरीके से व्यवस्थित किया गया कि एक भी अण्डा न टूटे। यह भी व्यवस्था की गयी कि बिना केबिन में जाये ही उपर से हाथ डालकर अण्डों को निकाल लिया जाये। इस पद्धति को अपनाते हुए वे अपने पोल्ट््री फार्म पर ज्यादा संख्या में अण्डों का उत्पादन कर सकते थे और पक्षियों की मृत्यु को कम कर सकते थे। औसतन, किसान द्वारा इस संशोधित नवीन तकनीक को अपनाने से अण्डों का नुकसान 90 प्रतिशत तक कम हो गया और उत्पादकता में 80-90 प्रतिशत की वृद्धि हुई। किसान द्वारा अपनाई गयी इस विधि में निवेश कम लगाए अधिक उत्पादकता हुई तथा पक्षियों की मृत्यु दर में कमी आयी, जो इसे आर्थिक दृष्टि से अधिक व्यवहार्य बनाती है।

ब) सुअर पालन इकाई:

पूर्वी खासी हिल्स जिले में सूअर अधिक पायी जाने वाली तथा पसन्द की जाने वाली पशुधन प्रजातियां हैं। क्षेत्र के लगभग 80 प्रतिशत खेतिहर परिवार सुअर पालन करते हैं। अधिकांशतः 1-2 सुअर प्रति परिवार पालते हैं जिसका मुख्य उद्देश्य चर्बी उत्पादन होता है। लोग देशी प्रजाति के सुअर पारम्परिक पद्धति से पालते हैं। अधिकांशतः सुअर पालकों के पास चर्बी उत्पादन के लिए पारम्परिक ज्ञान और दक्षता होती है, परन्तु कुछ लोगों के पास सुअरों के नस्ल सुधार की दक्षता होती है। इस अवसर को देखते हुए, श्री ल्यांग्रह ने बच्चा पैदा करने के उद्देश्य से सुअर पालन इकाई का प्रारम्भ किया। उन्होंने 9 मादा सुअर और 1 नर सुअर का पालन किया। 1 मादा सुअर कम से कम एक बच्चा प्रतिवर्ष देती है। बाजार में सुअर के मांस की उच्च मांग को देखते हुए इसमें सुधार/विस्तार की बेहतर गुंजाइश है।

स) बकरी पालन इकाई:

इस इकाई में 15 बकरियां शामिल हैं, जिन्हें बाड़ वाले क्षेत्र में पाला गया है, जहां वे चरती हैं। इनके भोजन पर शून्य खर्च होता है। बाड़ा बनाने और कम लागत शेड बनाने के लिए लगभग रू0 5,000.00 व्यय किया गया। बकरियों की बिक्री स्थानीय बाजार में हो जाती है।

द)  मत्स्य पालन इकाई:

वर्ष 2018 में, उन्होंने 600 किग्रा0/0.3 हेक्टेयर की उत्पादन क्षमता वाले 3 मत्स्य तालाबों का निर्माण किया और उसमें बाजार से लाकर मछली के बीजों को डाल दिया। जिस समय उन्होंने मछली पालन का कार्य प्रारम्भ किया, उस समय स्थानीय बाजार में मछलियों की लागत रू0 200.00/किग्रा0 थी। खेत की सभी इकाईयों के उप उत्पाद मछली तालाबों के लिए उर्वरक और भोजन का काम करते हैं। इस प्रकार इस इकाई में इनकी लागत सिर्फ मछली के बीजों पर लगी। शेष अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इनकी निर्भरता खेत के अन्य घटकों पर रही, जिससे मत्स्य पालन में लागत निवेश कम और आय अधिक हुई।

3) वर्मी कम्पोस्ट इकाई:

उनके पास 6ग4ग2 फीट आकार के दो वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने वाले गढ्ढे हैं, जिनकी उत्पादन क्षमता औसतन 3000 किग्रा0 प्रतिवर्ष है। इन गढ्ढों में गाय की सड़ी हुई गोबर की खाद, सूखे पत्ते, फसल अपशिष्ट, अन्य सड़ने वाले अपशिष्ट जैसे- सब्ज़ियों के छिलके, डण्ठल आदि व केंचुए की मदद से 24 दिनों में चाय की पत्ती के रंग की तैयार इस खाद का प्रयोग वह पूरी तरह अपने खेत में लगने वाली सभी फसलों में करते हैं। इसके अलावा पूरे वर्ष भर खाद बनाने के लिए वे खेत से प्राप्त फसल अपशिष्टों का उपयोग करते हैं।

श्री ल्यांग्रह उन्नत कृषिगत अभ्यासों के सम्बन्ध में अन्य किसानों के लिए अब एक प्रभावित करने वाले तथा उत्प्रेरक के रूप में हैं।

तालिका 1: एकीकृत खेत के प्रत्येक घटक पर लगने वाली कुल लागत और प्राप्त होने वाली शुद्ध आय

घटक क्षेत्र/संख्या सकल आय शुद्ध आय लाभ-लागत अनुपात
औद्यानिक इकाई
सुरक्षित खेती ;2018 से 1 (500 वर्ग मी) 1,10,000.00 45,583.00 0.71 ;प्रथम वर्षद्
खुली खेती अदरक 2,40,000.00 1,82,508.00 3.20
पशुपालन और पशुधन
कुक्कुट पालन इकाई लेयर

स्थानीय प्रजाति

8,76,000.00

18,000.00

7,09,140.00

8,556.00

4.25
2
बकरी पालन इकाई 15 60,000.00 38,000.00 1.73
सुअर पालन इकाई 1 (9एसओडब्ल्यू 1 बोर) 6,00,000.00 4,31,419.00 2.4
मत्स्य पालन इकाई  (अनुमानित) मछली (अनुमानित) 15,000.00 35000.00 2.3

 

 

प्रभाव

किसान द्वारा विकसित की गयी नवीन तकनीकों का प्रयोग उनके द्वारा पिछले 3 वर्षाें से किया जा रहा है और आर्थिक रूप से लाभकारी सिद्ध हो चुका है। श्री वाल्लम के0 ल्यांग्रह के खेत अब एक मॉडल खेत हैं। उनके गांव के एवं जिले के अन्य किसान, जिनके पास अपना स्वयं का पोल्ट््री शेड है, वे इनकी सफलता से उत्प्रेरित हैं और जिनके पास पोल्ट््री शेड है वे पुरस्कार प्राप्त नवाचार ‘‘कम लागत कुक्कुट पालन शेड’’ को अपना रहे हैं। जिले के साथ ही राज्य के अन्य भागों में अण्डा देने वाली मुर्गियों का पालन करने वाले अन्य किसानों के लिए वे एक रोल मॉडल हैं। उन्होंने अपने खेत पर उपलब्ध सभी संसाधनों का एकीकरण कर रहे हैं। उनके खेती सफलतापूर्वक हो रही है। एक प्रगतिशील किसान के रूप में वह हमेशा अपने कौशल विकास के लिए तत्पर रहते हैं और विभिन्न स्रोतों जैसे- प्रशिक्षण, विशेषज्ञों एवं सम्बन्धित विभागों द्वारा की जाने वाली बैठकों आदि के माध्यम से खेती के प्रत्येक पहलू को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। उन्नत कृषिगत अभ्यासों के सम्बन्ध में अब वह दूसरे किसानों के लिए एक प्रभावित करने वाले तथा उत्प्रेरक के तौर पर हैं। पूर्वी खासी हिल्स जिले में एक नवोन्वेषी किसान के तौर पर जाने जाने वाले श्री ल्यांग्रह जिले में विशेष तौर पर कुक्कुट और सुअर पालन के उपर आईएफएस में एक मुख्य प्रशिक्षक हैं। अपने विकासखण्ड में एक सफल एकीकृत खेती प्रणाली स्थापित करने के लिए वह एक रोल मॉडल के तौर पर उभरे हैं।

नोट: यह लेख मूल रूप से ‘‘भारत के एनईएच क्षेत्र में किसानों की आय दुगुना करने के लिए एकीकृत खेती प्रणालियां’’ शीर्षक के साथ आईसीएसआर-कृषिगत तकनीक उपयोग शोध संस्थान, जोन 7 के विद्युत सी. डेका, ए0के0 सिंहा, दिव्या परिसा, अजरील मेरविन तरियांग, इमिका कोरडोर क्यनडियाह मेसाया आर0 मारक द्वारा लिखा व प्रकाशित है।

मौसियतखनम कृषि विज्ञान केन्द्र


मौसियतखनम कृषि विज्ञान केन्द्र
पूर्वी खासी हिल्स
उपरी शिलांग - 793 009
मेघालय
ई-मेल:kvkekhup@gmail.com

Source: Resilient crop-Livestock system, LEISA India, Vol. 23 No.4, Dec,2021

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