एकीकृत कृषि: अधिक प्राप्ति

Updated on June 4, 2022

एकीकृत कृषि प्रणाली में कृषि प्रणाली के बहुत से घटकों का जुड़ाव शामिल होता है। घटकों के बीच संसाधन प्रवाह स्थापित होते हैं। एक घटक का आउटपुट दूसरे घटक के इनपुट के तौर पर काम करता है। एकीकृत कृषि प्रणाली दृष्टिकोण संसाधनों के यथोचित उपयोग, कृषि उत्पादकता और कृषि आजीविका को स्थाईत्व प्रदान करने और उन्नत बनाने तथा अन्य ग्रामीण आवश्यकताओं की पूर्ति करने के अतिरिक्त मानव एवं पशु के लिए पोषणयुक्त, स्वस्थ एवं विविध प्रकार के भोजन व चारा की खेती करने के लिए आगे का रास्ता है।


कोडियाल्ली तमिलनाडु राज्य के धर्मपुरी जिले के पेन्नाग्राम विकास खण्ड का एक गांव है, जो सुरक्षित वनक्षेत्र के निकट अवस्थित है। गांव के चारों तरफ सुरक्षित वनक्षेत्र है। इस गांव के रहने वाले अधिकांश किसान लघु किसान हैं, जो वर्षा आधारित खेती करते हैं और मौसम की अनियमितता इनके लिए एक बड़ा खतरा है। आजीविका के लिए, इनकी निर्भरता मौसमी शुष्क भूमि एकल खेती प्रणाली पर है। उन्हें मृदा की घटती उर्वरता एवं कीट नियन्त्रण हेतु महंगे व जोखिम भरे रसायनिक निवेशों से निपटना पड़ता है। यहां के पुरूष किसान आजीविका की तलाश में शहरों की तरफ पलायन कर जाते हैं। इस कारण खेती का सारा कार्य एवं प्रबन्धन महिलाओं के जिम्मे आ जाता है। उनमें से अधिकांश को कीटों के आक्रमण, घटती मृदा उर्वरता और अनियमित जलवायु के साथ एकल खेती में शामिल जोखिमों से निपटने हेतु संघर्ष करना पड़ता है।

खेती में लागत घटाने तथा उपज बढ़ाने के लिए किसानों को पारिस्थितिकी विकल्पों की ओर जाने में सहायता करने के लिए, ए0एम0ई0 फाउण्डेशन वर्ष 2021 से कोडियाल्ली के किसानों के साथ काम कर रही है। प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन और एकीकृत खेती प्रणालियों के स्वीकार्य एवं व्यवहार्य विकल्पों पर खेतिहर समुदायों को व्यवस्थित तरीके से प्रशिक्षित किया गया साथ सघन प्रक्षेत्र निर्देश भी प्रदान किया गया। 27 वर्षीय थामिलारासी एक ऐसी ही उत्साही किसान हैं, जिन्होंने इस पूरी सीख प्रक्रियाओं में सक्रियता से भाग लेकर उत्साहपूर्वक सीख बनाई।

थामिलारासी अपने एक एकड़ शुष्क भूमि में या तो मूंगफली या फिर रागी की एकल फसल लेती थीं। उनके पास दो गाय थीं, जिन्हें वे हमेशा महंगे दामों पर हरा और सूखा चारा खरीद कर खिलाती थीं। ए0एम0ई0 फाउण्डेशन से प्रशिक्षण एवं दिशा-निर्देश प्राप्त कर, थामिलारासी अपने खेत पर एकीकृत खेती प्रणाली मॉडल अपनाने के लिए उत्प्रेरित हुईं। इसके साथ ही ये अपने खेत के साथ अन्य तत्वों जैसे- गृहवाटिका, अजोला एवं मशरूम को भी जोड़ने के लिए उत्सुक थीं।

मिश्रित खेती की ओर रूझान
प्रारम्भ में, थामिलारासी ने एकल खेती के स्थान पर अपने परिवार की खाद्य, चारा एवं आर्थिक आवश्यकताओं पर आधारित बहुफसली खेती करने का निश्चय किया। वे पारिस्थितिकी दृष्टिकोण अपनाने के लिए तैयार थीं। परिवार की बहु आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए फसल संयोजन जैसे- गहरी जड़ के साथ उथली जड़, अनाज और दलहन को चिन्हित किया गया। उदाहरण के लिए, विविध प्रकार के खाद्यों तक पहुंच, जानवरों के लिए चारा स्रोत, मृदा और सूक्ष्म जलवायु के सुधार हेतु, चारा का उपज बढ़ाने में सक्षमता, कीट एवं व्याधि की समस्याओं से निपटने हेतु पारिस्थितिकी माध्यमों जैसे- कीट नियंत्रण के लिए ‘‘प्रीडेटर्स’’ को बढ़ावा दिया। इसके साथ ही, उन्होंने जैविक खादों को बनाने के लिए पौधों और पशुओं से प्राप्त अपशिष्टों को भी चिन्हित किया।

उन्होंने पूरे वर्ष परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अरहर के साथ मूंगफली की अन्तःखेती की। मूंगफली की फसल को कीटों ;लार्वा स्टेज परद्ध के आक्रमण से बचाने हेतु अरण्डी को ट््रैप फसल के रूप में लगाया, दाल के प्रमुख स्रोत के रूप में लोबिया को खेत के अन्दर की तरफ किनारे-किनारे पर लगाया गया, चूसक कीटों के प्रवेश को रोकने के लिए ज्वार/कुम्बू की फसल को खेतों की मेड़ों पर लगाया गया। आधा एकड़ खेत में मूंगफली और आधा एकड़ खेत में रागी की खेती की गयी, जबकि लोबिया और अरहर की खेती अन्तःफसल के तौर पर की गयी।

आधा एकड़ खेत में, अगले 3-4 महीनों में तैयार होने वाली चारा फसलों के साथ कुछ वर्ष भर चलने वाली चारा घासों जैसे- ब्व4ब्छ स्वीट सूडान, कई बार काटी जाने वाली ज्वार की प्रजाति ब्वथ्े 29 आदि को लगाया।

फसल एवं जानवर अपशिष्टों का पुनर्चक्रीकरण
थामिलारासी पहले कभी भी फसलों एवं जानवरों के अपशिष्टों का पुर्नउपयोग नहीं करती थीं। वे इन्हें खेत में लगभग 10-11 महीनों तक वैसे ही खुला छोड़ देती थीं। लगातार धूप और बारिश का सामना होने के कारण इन अपशिष्टों में पर्याप्त सड़न नहीं होता था, जिससे मृदा उर्वरता को बढ़ाने में कोई मदद नहीं मिल पाती थी।

लेकिन अब, उन्होंने जैविक खाद बनाना सीखकर फसलों एवं जानवरों के अपशिष्टों से खाद तैयार करने लगी हैं। उन्होंने 10ग्15 फीट का एक गढ्ढा तैयार किया। इस गढ्ढे को दो भागों में बांट कर एक भाग में उन्होंने सड़ने के लिए गाय का गोबर रख दिया और दूसरे भाग में कटाई के बाद फसल अवशेषों, ठूंठों और बायोमॉस के स्रोत पौधे के अन्य दूसरे भागों आदि को भर दिया। गढ्ढे के दोनों भागों को प्रत्येक दिन भरा गया। 1-2 फीट तक भरने के बाद इस गढ्ढे में उपर से गोबर का घोल डाल दिया गया।

किसान के पास बैकयार्ड पोल्ट््री के तौर पर 5 मुर्गे एवं दो बकरियां हैं। इन्होंने कम्पोस्ट पिट में इनके द्वारा उत्सर्जित अपशिष्टों को भी डाला। औसतन, 2 गायों से प्रतिदिन लगभग 25 किग्रा0 गाय का गोबर, 5 कुक्कुट से 600 ग्राम अपशिष्ट तथा 2 बकरियों से 1 किग्रा0 अपशिष्ट निकलता है। इस प्रकार एक छोटे से समय में ही उच्च गुणवत्ता युक्त खाद का उत्पादन होता है।

चारा प्रबन्धन
विविध प्रकार की चारा फसलों जैसे- रागी से प्राप्त 912 किग्रा0 भूसा, मूंगफली की 476 किग्रा0 लताएं, 122 किग्रा0 बाजरा का भूसा, इन सभी ने मिलकर जानवरों के लिए हरा और सूखा चारा के तौर पर अपना योगदान दिया। मौसमी फसलों की कटाई के उपरान्त, चारा को घर पर ही तैयार किया गया। एक तरफ जहां बाजरा और मक्का के दानों से एक अनाज के तौर पर उर्जा प्राप्त हुई, तो वहीं तेल निकालने के बाद मूंगफली की खली प्रोटीन के स्रोत के तौर पर काम आयी। तेल निकालने के लिए 100 किग्रा0 मूंगफली की पेराई करने से लगभग 47 किग्रा0 खली प्राप्त हुई। रागी और चना की भूसी के साथ, लगभग 200 किग्रा0 सान्द्र चारा तैयार किया गया।

थामिलारासी कहती हैं, ‘‘जब से मैंने यह समझ लिया कि खाद बनाने के लिए मैं खर-पतवार का भी उपयोग कर सकती हूं, तब से मैंने गाय के गोबर और पौधों से प्राप्त बायोमॉस के समुचित भण्डारण की चिन्ता करना छोड़ दिया है।’’

फसल के अवशेषों को चारा के तौर पर उपयोग करने तथा उनसे सान्द्र तैयार करने के बाद अब थामिलारासी हरा चारा और सान्द्र को खरीदने से बचती हैं। पहले वे 210 किग्रा0 सान्द्र चारा खरीदने के लिए प्रतिमाह रू0 1650.00 और हरा चारा ;बाजराद्ध अथवा भूसा ;धान का पुआलद्ध खरीदने के लिए रू0 7500 व्यय करती थीं। थामिलारासी का कहना है, ‘‘इन खर्चों से मेरे आमदनी की बड़ी क्षति होती थी। बहुत बार तो जानवरों के चारा के खर्चे को देखते हुए मुझे जानवर रखना बोझ मालूम पड़ता था।’’ उनकी दो गायें प्रतिदिन 10-15 लीटर दूध देती हैं। दूध बेचने से उन्हें प्रतिमाह रू0 16500.00 से 20000.00 के लगभग आमदनी हो जाती है।

एकीकृत खेती मॉडल
वर्ष 2019-20 में अपने आधा एकड़ खेत से थामिलारासी ने केवल 280 किग्रा0 मूंगफली और 670 किग्रा0 रागी की उपज प्राप्त की, जिससे उन्हें रू0 30,000.00 प्रति एकड़ की दर से आय हुई। लेकिन वर्ष 2021-2022 में उन्होंने उतने ही खेत से मुख्य फसल मूंगफली और रागी की उपज क्रमशः 436 किग्रा0 920 किग्रा0 के साथ ही कई और फसलों की कटाई की, जिससे उन्हें रू0 44,560.00 की आय हुई।

घर के पिछवाड़े लगायी गयी गृहवाटिका से, तीन महीनों में उन्होंने औसतन 1.5 किग्रा0 मिर्च, 3 किग्रा0 टमाटर, 3 किग्रा0 भिण्डी, 2 किग्रा0 लोबिया, 25 किग्रा0 लौकी, 20 किग्रा0 नेनुआ, 10 किग्रा0 करैला, 2.5 किग्रा0 बैगन, चार प्रकार की पत्तियों, 10 किग्रा0 सेम और 25 किग्रा0 कद्दू की उपज प्राप्त की। थामिलारासी ने सितम्बर से नवम्बर, 2021 तक के बीच बाहर से सब्जी न खरीद कर रू0 4500.00 की बचत की, साथ ही स्वास्थ्यवर्धक खाने तक इनकी पहंुच भी बढ़ी। इसके साथ ही सब्ज़ियों का अपशिष्ट जानवरों के खाने तथा खाद गढ्ढा भरने में भी काम आया।

दुग्धपालन के अलावा, खेती प्रणाली में तीन अधिक तत्वों – बैकयार्ड पोल्ट््री, बकरियां एवं अजोला ने उनकी आमदनी को बढ़ाने के साथ ही खाद का स्रोत भी प्रदान किया। दिसम्बर 2021 में बकरियों का मूल्य रू0 16,000.00 था और मुर्गियांे से 40 अण्डे और 35 छोटे लगभग 250 ग्राम के चूजे प्राप्त हुए। जब मुर्गियां बढ़ जायेंगी तब अनुमानतः रू. 28000.00 की आमदनी होने की संभावना है। उन्होंने नवम्बर, 2021 से अपने घर के पिछवाड़े अजोला की खेती करना प्रारम्भ कर दिया। अपने 12 वर्गमीटर परिक्षेत्र से वे प्रत्येक दूसरे दिन लगभग आधा किग्रा अजोला निकालती हैं। अजोला जानवरों को सप्लीमेण्ट खाने के रूप में खिलाया जाता है।

इन सभी जुड़ावों एवं एकीकरण ने थामिलारासी को अपनी आय बढ़ाने में मदद की और अब वे अपने खेत से लगभग 1,00,560.00 की आय व बचत प्राप्त कर रही है। आमदनी बढ़ने के अलावा, एकीकृत खेती मॉडल के माध्यम से, थामिलारासी पोषणयुक्त भोजन प्राप्त कर रही हैं, पारिस्थितिकी कीट नियंत्रण के तरीकों को अपना रही हैं और पौधों व जानवरों से प्राप्त अपशिष्टों का पुर्नउपयोग करते हुए जानवरों के लिए घर पर ही चारा तैयार करने में सक्षम हो रही हैं। हालांकि इन सभी अतिरिक्त उद्यमों को करने हेतु उन्हें अपने खेत में ही अधिक समय देना पड़ रहा है। वह कहती हैं, ‘‘मैं अपने खेत में काम करते हुए बहुत गर्व का अनुभव कर पा रही हूं।’’

जे कृष्णन


जे कृष्णन
टीम लीडर
ए एम ई फाउण्डेशन
धर्मपुरी, तमिलनाडु
ई-मेल: krishnan.j@amefound.org

Source: Resilient crop- Livestock System, LEISA India, Vol.23, No.4, December 2021

Recent Posts

कृषि पारिस्थितिकी पर प्रशिक्षण वीडियो: किसानों के हाथ सीखने की शक्ति देना

कृषि पारिस्थितिकी पर प्रशिक्षण वीडियो: किसानों के हाथ सीखने की शक्ति देना

छोटे एवं सीमान्त किसानों के लिए कृषि पारिस्थितिकी ज्ञान और अभ्यासों को उपलब्ध कराने हेतु कृषि सलाहकार सेवाओं को...