तटीय तमिलनाडु के किसान कम प्राप्ति के बावजूद चावल की खेती करने हेतु मजबूर हैं। क्योंकि चावल ही एकमात्र ऐसी फसल है, जिसमें अधिक समय तक पानी में बने रहने की अनूठी विशेषता है। चावल के साथ एकीकृत रूप से मछली पालन और मुर्गी पालन करने से तमिलनाडु के तीन तटीय जिलों मंे किसानों ने अपनी आमदनी को दुगुना किया है और अपने परिवार के पोषण स्तर को उन्नत बनाया है।
चावल आधारित कृषि प्रणालियां एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के लाखों ग्रामीण गरीब लोगों की मुख्य आर्थिक गतिविधि है। अकेले एशिया में 200 मिलियन चावल के खेत हैं जो एक हेक्टेयर से कम जोत वाले हैं और पूरे विश्व चावल उत्पादन का 90 प्रतिशत भाग हैं। यद्यपि पूरे एशिया में तटीय चावल के इलाकों और आर्द्रभूमि के किसानों के लिए चावल हमेशा एक वैकल्पिक के बजाय एक अनिवार्य फसल रही है। इसका कारण यह है कि इस पूरे क्षेत्र में सिंचाई हेतु किसानों की निर्भरता मुख्य रूप से मानसून की बारिश पर रहती है, जिसमें वर्षा का वितरण अनियमित होता है और वर्ष के एक विशेष एवं छोटी अवधि के दौरान भारी बारिश होती है, जिससे जल प्लावन और बाढ़ की स्थिति को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा, इन अवधियों के दौरान समुद्र में जल की निकासी भी मुश्किल हो जाती है, क्योंकि भारी ज्वार-भाटे के कारण समुद्र में भारी उथल-पुथल मच जाती है। इस स्थिति के साथ, चावल के अधिकांश तटीय इलाकों में, भारी बनावट वाली मिट्टी होती है, जिससे पानी का रिसाव मुश्किल हो जाता है। परिणामतः इन इलाकों में चावल की फसल के मौसम के दौरान खेतों में पानी रूक जाता है। खरीफ ऋतु में यहां पर खेती के लिए फसलों के जितने भी विकल्प होते हैं, उनमें अकेले चावल में ही पानी के जमाव को लम्बी अवधि तक झेलने की अनूठी विशेषता होती है, जबकि अन्य सभी फसलें पानी में बहुत अधिक नहीं जीवित रह पाती हैं। इस प्रकार, चावल में बहुत कम आर्थिक लाभ होने तथा आजीविका में पर्याप्त सहयोग न मिलने के बावजूद इन क्षेत्रों के किसान खरीफ की मौसम के दौरान चावल उगाने के लिए बाध्य होते हैं। अपर्याप्त आजीविका के कारण, इन छोटी जोत वाली महिला किसानों को कुपोषण, जन्म के समय बच्चे का वजन कम होना और बच्चे कमजोर होना जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है। इन समस्याओं के लिए- मानसून पर निर्भर फसल मौसम, वर्षा का असमान वितरण, लगातार जल प्लावन अथवा सूखा और फसल की विफलता, चावल से न्यूनतम लाभ, विविध प्रकार के उद्यमों की कमी, खराब आर्थिक स्थिति, कम पोषण का मिलना और शहरी क्षेत्रों में पलायन आदि प्रमुख कारण हैं, जो एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
सामान्य स्वास्थ्य स्थितियों में एक वयस्क व्यक्ति के लिए 55 ग्राम प्रति दिन और महिला के लिए 45 ग्राम प्रतिदिन की दर से प्रोटीन की आवश्यकता होती है। पौधों से प्राप्त प्रोटीन की तुलना में जानवरों से प्राप्त प्रोटीन की गुणवत्ता अधिक अच्छी होती है। क्योंकि जानवरों से प्राप्त प्रोटीन का शुद्ध प्रोटीन उपयोग लगभग 0.75 होता है जबकि पौधों के स्रोत से प्राप्त प्रोटीन का शुद्ध प्रोटीन उपयोग 0.5 से 0.6 के बीच होता है। मांस का मूल्य यह है कि यह उच्च गुणवत्ता युक्त प्रोटीन का एक केन्द्रित स्रोत होता है, अत्यधिक सुपाच्य होता है ;सुपाच्य का स्तर 0.95 की तुलना में बहुत से पौध स्रोतों का सुपाच्य स्तर 0.8-0.9 होता हैद्ध और कई अनाजों में अपर्याप्त मात्रा में पाये जाने वाले एक आवश्यक तत्व अमीनो एसिड को अधिक मात्रा में उपलब्ध कराता है। 2050 तक, विश्व की बढ़ती जनसंख्या द्वारा आज की तुलना में दो तिहाई अधिक पशु प्रोटीन का उपयोग होगा ;विश्व खाद्य संगठन, 2017द्ध बढ़ते वैश्विक मांग को पूरा करने की दृष्टि से कुल मांस उत्पादन के विकास में कुक्कुट का मांस मुख्य भूमिका निभा रहा है, क्योंकि इसकी उत्पादन लागत कम होने के कारण यह अधिक किफायती प्रोटीन है ;ओ.ई.सी.डी.-2016द्ध
इस पृष्ठभूमि में,एक संसाधन प्रबन्धन रणनीति के तौर पर फसल और पशु घटकों के विवेकपूर्ण मिश्रण के साथ एक एकीकृत कृषि प्रणाली का एक उपयुक्त डिजाइन इस मुद्दे पर काम करने का सबसे बेहतर तरीका होगा। इसके अतिरिक्त, यह एकीकृत कृषि प्रणाली डिजाइन किसानों के घरेलू आहार में विविधता और संसाधन के पोषण मानकों को भी बढ़ायेगा।
चावल, मछली और कुक्कुट पालन की एकीकृत कृषि प्रणाली
चावल +मछली + कुक्कुट पालन की पारम्परिक प्रणाली की कुछ मुख्य विशेषताएं निम्नवत् हैं-
* चावल के एक एकड़ खेत में 90 प्रतिशत खेत में चावल की खेती होती है और 10 प्रतिशत क्षेत्र में बिना चावल की खेती किये एक मछली तालाब के तौर पर उपयोग किया जाता है।
* मछली तालाब के उपर एक मुर्गी पालन का ढांचा बनाया जाता है और मछली तथा मुर्गी पालन सीधे तौर पर चावल के साथ एकीकृत नहीं होते हैं। बरसात का मौसम समाप्त होने के बाद तालाब से पानी बाहर निकालकर मुर्गियों से निकलने वाले अपशिष्टों को एकत्र करने की आवश्यकता होती है, जो काफी श्रमसाध्य होता है।
* मुर्गी पालन ढांचा में अधिकांशतः अण्डा देने वाली मुर्गियों को विकसित किया जाता है।
अन्नामलाई विश्वविद्यालय द्वारा चावल + मछली + मुर्गीपालन की पारम्परिक प्रणाली को उन्नत किये जाने के बाद इस प्रणाली की मुख्य विशेषताएं निम्नवत् हैं-
* मुर्गी पालन ढांचा को 8 फीट उंचे कंकरीट खम्भों की सहायता से धान के खेत में सीधे स्थापित किया जाता है। इन खम्भों के उपर 4 फीट के अन्दर दबे हुए तथा 4 फीट के उपर उभरे हुए खम्भों की सहायता से मुर्गी पालन ढांचा को स्थापित किया जाता है ताकि धान की फसल पर छाया न पड़े। ढांचे की सतह जालीदार होती है, जिससे मुर्गियों का अपशिष्ट नीचे धान के खेत में गिर जाता है जहां वह पानी में घुलकर फसल के लिए खाद और मछलियों के लिए भोजन दोनों रूप में काम आता है।
* मछली पालन हेतु पूरे क्षेत्र के 10 प्रतिशत को आच्छादित करते हुए चावल के खेत के चारों तरफ 1 मीटर गहरी, उपरी सिरे पर 1 मीटर चैड़ी तथा नीचे की तरफ 0.75 मीटर चैड़ी खाई खोद देते हैं। धान की रोपाई के 15 दिनों बाद इस खाई में प्रति 200 वर्गमीटर में 100 मछली के हिसाब से कतला, रोहू, मिरगल एवं कामन कार्प के 5000 बच्चों को समान मात्रा में डाल देते हैं। वे धान के खेत में तैरती हैं और सुबह-शाम कीटों एवं घासों को खाती हैं तथा चावल के खेत में उथले पानी में तापमान के उतार-चढ़ाव से बचने के लिए दिन के समय खाई में चली जाती हैं।
* कुक्कुट पालन ढांचा और उसमें रहने वाले पक्षियों की संख्या के बारे मंे बहुत सोच-विचार कर निर्णय लिया गया। ब्वायलर प्रजाति के 20 चूजों को रखने के लिए 6फीट ग 4फीट ग 3फीट का ढांचा तैयार किया गया। ढांचा बड़ा रखने से फसलों की विकास प्रभावित होती है तथा अधिक कुक्कुट रखने से अधिक मात्रा में अपशिष्ट निकलता है जो अम्लीय होने के कारण फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं।
तालिका 1: वेटलैण्ड क्षेत्रों में आजीविका अभिवृद्धि
विवरण | विल्लूपुरम | कुड्डालोर | नगापट्टिनम | तीन जिलों का तौल |
मुर्गी पालन की संख्या | 7 | 5 | 5 | 5 |
औसत मांस उपज/चिड़िया ;किग्राद्ध | 2.40 | 2.50 | 2.10 | 2.3 |
औसत मांस उपज/ परिवार ;किग्रा0द्ध | 336 | 250 | 210 | 265 |
मांस की लागत रू0/किग्रा0 | 100 | 110 | 90 | 100 |
मुर्गी पालन से सकल प्राप्ति | 33,600 | 27,500 | 18,900 | 26,666 |
र्गी पालन के उत्पादन की लागत | 9,900 | 5,700 | 7,100 | 7,566 |
मछली पालन की संख्या | 2 | 1 | 1 | 1 |
मछली उपज/परिवार;किग्राद्ध | 120 | 75 | 75 | 90 |
मछली की लागत रू0/किग्रा | 70 | 90 | 80 | 80 |
मछली से सकल प्राप्ति ;रू0द्ध | 8,400 | 6,750 | 6,000 | 7,050 |
मछली पालन की लागत ; | 900 | 500 | 500 | 633 |
कुल शुद्ध प्राप्ति, परिवार/वर्ष ;रू0द्ध | 31,200 | 28,050 | 17,300 | 25,516 |
आजीविका में वृद्धि ;प्रतिशत मेंद्ध | 98 | 88 | 54 | 80 |
- इस तरह से, इस डिजाइन में, मछलियों की सहायता से चावल में कीटों एवं खर-पतवार का नियन्त्रण, कुक्कुट के माध्यम से प्रत्येक फसली सीजन में 8.5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से चावल को पोषण युक्त जैविक खाद उपलब्ध कराना एवं अम्लीय तत्वों के कारण खर-पतवार नियंत्रण के माध्यम से सभी तीन तत्वों का एक पूर्ण एकीकरण किया गया।
तालिका 2: मानव पोषण पर प्रभाव
हस्तक्षेप | पशु प्रोटीन की खपत | ||
अन्नामलाई चावल + मछली + मुर्गीपालन | हस्तक्षेप से पहले | हस्तक्षेप के बाद | |
कुक्कुट मांस
मछली का मांस |
2.8 किग्रा0/माह
0.5 किग्रा0/माह |
4.00 किग्रा0/माह
4.00 किग्रा0/माह |
|
अन्नामलाई चावल + मछली + मुर्गीपालन | पोषण मानक | ||
रक्त बायो केमिकल | हस्तक्षेप से पहले | हस्तक्षेप के बाद | |
रक्त हीमोग्लोबीन | 11.7ग्राम | 13.9ग्राम | |
सीरम अलबरमिन | 4.20ग्राम | 4.87ग्राम | |
सीरम ग्लोब्यूलिन | 1.94ग्राम | 2.79ग्राम | |
फोलिक एसिड | 7.61एनजी/मिलीली0 | 7.61एनजी/मि लीली0 | |
रक्त कैल्शियम स्तर शिशु | 9.4 | 10.05 | |
मानवमिति बीएमआई | 13.9 | 19.5 | |
वजन | 15 किग्रा0 | 2 किग्रा0 |
- इसके अलावा, धान की बुवाई से लेकर कटाई तक की अवधि में ब्रायलर पक्षियों की तीन खेप तैयार होने से कम संसाधन वाले गरीब किसानों की आजीविका सुरक्षा में वृद्धि होती है। इसके साथ ही प्राकृतिक आपदाओं जैसे अचानक बाढ़ या सूखे की स्थिति में, जिसमें फसल पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो सकती है, इस ब्रायलर मांस से होने वाली प्राप्ति किसानों को सांत्वना प्रदान करेगी और एक जलवायु रिजीलियन्स तंत्र के रूप में काम करेगी।
सहभागी शोध और उन्नतीकरण
भारत के तमिलनाडु राज्य में विश्व बैंक-भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ;आईसीएआरद्ध के वित्तीय सहयोग से पोषित राष्ट््रीय कृषिगत परियोजना के माध्यम से इस कृषि प्रणाली के डिजाइन का उन्नयन किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य स्थायी ग्रामीण आजीविका को बढ़ाना था। अन्नामलाई धान + मछली + कुक्कुट पालन कृषि प्रणाली डिजाईन का प्रदर्शन 838 किसानों के साथ किया गया। प्रत्येक किसान के धान की खेती वाले परिक्षेत्र के 200 वर्गमीटर क्षेत्रफल में यह प्रदर्शन किया गया। सहभागी विधि से शोध करने के लिए दक्षिणी भारत मंे तमिलनाडु राज्य के तीन स्थलों- कुड्डालोर, विल्लूपुरम एवं नगापट्टिनम क्षेत्र का चयन किया गया। प्रत्येक जिले में तीन गांवों के क्लस्टर में 100 की संख्या में लघु एवं सीमान्त किसानों को संगठित किया गया। इस एकीकृत कृषि प्रणाली में बनने वाले ढांचे जैसे- कुक्कट पालन, सीमेण्ट पोल, मछली पालन हेतु खाई, चूजे, चूजों का खाना, मछली के बच्चे, बकरी एवं मधुमक्खी पालन ढांचा आदि की लागत को परियोजना फण्ड से पूरा किया गया।
बाद में, वर्ष 2015-2016 के दौरान खेतिहर परिवारों के पोषण प्रभावों पर इन माॅडलों के प्रभाव को जानने के लिए बाॅयोटेक्नालाॅजी इण्डस्ट््री रिसर्च असिस्टेन्स कौसिंल ;बिल एवं मिलिण्डा गेट्स फाउण्डेशन के साथ सहयोग में बीआईआरएसीद्ध के माध्यम से वित्तीय सहयोग प्राप्त गै्रण्ड चैलेन्जेज भारत, परियोजना के अन्तर्गत 75 खेतिहर परिवारों के साथ वेटलैण्ड माॅडल के लिए एक नये क्लस्टर पर प्रभावों का पता लगाया गया। अन्नामलाई विश्वविद्यालय और मेसर्स प्राइस वाटर हाउस कूपर, कोलकाता, भारत द्वारा स्थाईत्व और आजीविका पर प्रभाव का आकलन किया गया। जबकि खेतिहर परिवारों के पोषण स्तर पर भोजन विविधता पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन मेसर्स सतगुरू कन्सलटेण्ट, हैदराबाद, भारत द्वारा किया गया।
आजीविका और कृषि उत्पादन पर प्रभाव
परियोजना के आधारभूत सर्वेक्षण के अनुसार वेटलैण्ड क्लस्टर में एक परिवार की वार्षिक आय रू0 31,822.11 थी। धान ़ मछली ़ कुक्कुट पालन का माॅडल अपनाने के बाद इन तीन जिलों में खेतिहर परिवारों की सकल आय में होने वाली वृद्धि को तालिका 1 में प्रदर्शित किया गया है। धान की तीन फसलों में ब्रायलर पालन की संख्या सात होने के कारण विल्लूपुरम जिले में परिवारों की सकल आय बढ़कर रू0 31,200.00 हो गयी, जो सबसे उच्च 98 प्रतिशत है। कुड्डालोर जिले में परिवारों की सकल आय बढ़कर रू0 28,050.00 हुई, जो केवल 88 प्रतिशत वृद्धि का योगदान करती है। इसके पीछे कारण यह था कि इस जिले में वेटलैण्ड क्लस्टर में जल की उपलब्धता कम होने के कारण एक से अधिक फसल नहीं ली जा सकती और इसलिए केवल चार बार ही ब्रायलर पालन संभव हो सका। फिर भी, किसान इस हस्तक्षेप को करने के लिए उत्साहित हैं, क्योंकि उन्होंने चावल की एक फसल के दौरान एक बार ब्रायलर पालन करके उससे होने वाले लाभ को देख लिया है जबकि अभी तीन बार ब्रायलर पालन करना बाकी है। सकल घरेलू वार्षिक आय में सबसे कम वृद्धि रू0 17,300.00 नगापट्टिनम जिले में हुई, जो मात्र 54 प्रतिशत ही रही। यद्यपि यहां पर धान की दो फसल ली गयी और पांच बार कुक्कुट पालन किया गया, फिर भी कुड्डालोर की अपेक्षा मांस की उपज और बाजार मूल्य कम होने के कारण यहां किसानों की आय में कम वृद्धि हुई।
कुक्कुट पालन से मिलने वाली खाद का उपयोग करने से फार्म यार्ड मेन्योर का उपयोग कर उगायी जाने वाले धान के लिए सामान्य तौर पर संस्तुत पोषण की मात्रा से 5 प्रतिशत अधिक पोषक तत्व फसल को मिला। संस्थागत और खेत पर किये गये प्रयोगों के माध्यम से यह पहले ही सिद्ध हो चुका है कि अन्य जैविक स्रोतों की तुलना में कुक्क्ुट से प्राप्त खाद का प्रयोग करने से फसल को उच्चतम पोषण तत्व मिलते हैं। मछली और कुक्कुट पालन घटकों का एकीकरण करने से धान में कीटों का आक्रमण भी कम हुआ, क्योंकि मछलियां हानिकारक कीटों एवं उसके अण्डों, लार्वा एवं कीटों को आश्रय देने वाली घासों को खा लेती थीं। इसके साथ ही इस तकनीक से प्रति परिवार/प्रतिवर्ष 219 दिन का अतिरिक्त आय सृजन करते हुए उत्पादक रोजगार सृजन भी हुआ।
धान + मछली + कुक्कुट पालन प्रणाली की आश्चर्यजनक सफलता को देखते हुए 838 चिन्हित लाभार्थियों के अलावा 392 अन्य किसान इस प्रणाली को अपनाया। इसके अलावा चिन्हित किये गये लाभार्थियों में से 12 लाभार्थी इस प्रणाली को 200 वर्गमीटर क्षेत्र से बढ़ाकर आधा एकड़ खेत में अपनाते हुए इस तकनीक का विस्तार कर रहे हैं।
वर्ष 2015-16 के दौरान यह हस्तक्षेप 3 गांवों के माध्यम से विस्तारित हुआ, परिणामस्वरूप 9,000 किग्रा0 ब्रायलर मांस और 2250 किग्रा0 मछली का उत्पादन हुआ। इससे परिलक्षित होता है कि इस हस्तक्षेप से जुड़े खेतिहर परिवार आधारभूत मूल्य 2.8 किग्रा0 प्रति माह के स्थान पर अब 4 किग्रा0 प्रतिमाह कुक्कुट मांस ग्रहण कर रहे हैं ;तालिका 2द्ध। इसी प्रकार इन परिवारों द्वारा मछली का उपभोग भी बढ़ा है। हस्तक्षेप प्रारम्भ करने से पूर्व जहां ये परिवार मात्र 0.5 किग्रा0 प्रति माह की दर से मछली का उपभोग करते थे, वहीं अब यह मात्रा भी बढ़कर 4 किग्रा0 प्रतिमाह हो गयी है। एक औसत के आधार पर 10 लाभार्थी महिला किसानों का नमूना लिया गया, जिसके आधार पर स्पष्ट हुआ कि वेटलैण्ड क्लस्टर के इन लाभार्थियों का हीमोग्लोबिन स्तर 11.7ग्राम से बढ़कर 13.9 ग्राम, फोलिक एसिड का स्तर 7.61 मिलीग्राम से बढ़कर 8.76 मिलीग्राम, सीरम एल्बुमिन 4.20 ग्राम से बढ़कर 4.87 ग्राम, कैल्शियम का स्तर 9.4 से बढ़कर 10.05 तथा ग्लोबुलिन 1.94 ग्राम से बढ़कर 2.79 ग्राम हो गया है।
निष्कर्ष
धान की खेती में मछली और कुक्कुट पालन की अन्नामलाई धान त्र मछली त्र कुक्कुट कृषि प्रणाली ने खेतिहर परिवारों की आमदनी को दुगुना करने तथा उनके पोषण स्तर को उन्नत करने में सहायता प्रदान की है। इस माॅडल को विश्व में धान की खेती करने वाले सभी क्षेत्रों में धान की खेती वेटलैण्ड क्षेत्र में रोपाई विधि से खेती करने वाले विशेषकर छोटी जोत वाले किसानों के बीच विस्तारित किया जा सकता है।
आभार
इस परियोजना हेतु वित्तीय सहयोग प्रदान करने के लिए हम एनएआईपी-आईसीएआर एवं बीआईआरएसी गै्रण्ड चैलेन्जेज इण्डिया एग्रीकल्चर एवं न्यूट््रीशन का आभार व्यक्त करते हैं।
सन्दर्भ
एफएओ, 2017, विकसित देशों में मानव पोषण में मांस एवं मांस उत्पादन। एफएओ कारपोरेट दस्तावेज रिपोजिटरी।https://www.fao.org/docrep/T056RE05.htmlOECD,2016l ओईसीडी में मांस – एफएओ कृषिगत आउटलुक 2016-2025, ओईसीडी प्रकाशन, पेरिस
कथीरेसन रामनाथन
कथीरेसन रामनाथन सेवानिवृत्त प्रोफेसर;एग्रोनामीद्ध कृषि फैकल्टी अन्नामलाई विश्वविद्यालय तमिलनाडु, भारत - 608 002 ई-मेल: rmkathiresan.agron@gmail.com वेबपेज: http://rmkathiresan.in
Source: Resilient crop-Livestock System, LEISA India, Vol.23, No.4, Dec 2021